Tuesday, July 13, 2010

मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की


फ़िरदौस ख़ान
भौतिकवादी संस्कृति ने जहां जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है, वहीं मनुष्य का स्वास्थ्य भी इससे न अछूता रहा हो तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है. दौलत कमाने की चाह ने इंसान को बहुत ज़्यादा व्यस्त कर दिया है. समय के अभाव के कारण व्यक्ति अपनी सेहत की सही देखभाल नहीं कर पाता. बीमार होने की हालत में वह दवाओं का सेवन करके जल्द से जल्द ठीक होना चाहता है, लेकिन कुछ स्वस्थ व्यक्ति भी ख़ुद को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए नियमित रूप से दवाओं का सेवन करते हैं. इंसान का स्वस्थ रहना उसके खान-पान व उसके रहन-सहन पर निर्भर करता है, जबकि वे इसे दवाओं का लाभ समझता है.

अनेक दवाएं ऐसी हैं जो लाभ की बजाय नुक़सान ज़्यादा पहुंचाती हैं. कुछ दवाएं रिएक्शन करने पर जानलेवा तक साबित हो जाती हैं, जबकि कुछ दवाएं मीठे ज़हर का काम करती हैं. कब्ज़ की दवा से पाचन तंत्र प्रभावित होता है. सर्दी, खांसी, ज़ुकाम, सरदर्द और नींद न आने के लिए ली जाने वाली एस्प्रीन सालि सिलेट नामक रसायन होता है, जो श्रवण केंद्रीय के ज्ञान तंतु पर विपरीत प्रभाव डालता है. कुनेन का अधिक सेवन कर लेने पर व्यक्ति बहरा हो सका है. ये दवाएं एक तरह से नशे का काम करती हैं. नियमित रूप से एक ही दवा का इस्तेमाल करते रहने से दवा का असर कम होता जाता है और व्यक्ति दवा की मात्रा में बढ़ोतरी करने लगता है. दवाओं में अल्कोहल का भी अधिक प्रयोग किया जाता है जो कि फेफड़ों को हानि पहुंचाती है.

अधिकांश दवाएं शरीर के अनुकूल नहीं होतीं जिससे ये शरीर में घुलमिल कर खाद्य पदार्थों की भांति पच नहीं पाती हैं. नतीजतन, ये शरीर में एकत्रित होकर स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती हैं. दवाओं में जड़ी-बूटियों के अलावा खनिज लोहा, चांदी, सोना, हीरा, पारा, गंधक, अभ्रक, मूंगा, मोती व संखिया आदि का इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ही कई दवाओं में अफ़ीम, अनेक जानवरों का रक्त व चर्बी आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है. सल्फ़ा तथा एंटीबायोटिक दवाओं के लंबे समय तक सेवन से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. चिकित्सकों का कहना है कि मेक्साफार्म, प्लेक्वान, एमीक्लीन, क्लोरोक्लीन व नियोक्लीन आदि दवाएं बहुत ख़तरनाक हैं. इनके अधिक सेवन से जिगर व तिल्ली बढ़ जाती है, स्नायु दर्द होता है, आंखों की रोशनी कम हो सकती है, लकवा मार सकता है और कभी-कभी मौत भी हो सकती है. दर्द, जलन व बुख़ार के लिए दी जाने वाली ऑक्सीफ़ेन, बूटाजोन, एंटीजेसिक, एमीडीजोन, प्लेयर, बूटा प्राक्सीवोन, जेक्रिल, मायगेसिक, ऑसलजीन, हैडरिल, जोलांडिन व प्लेसीडीन आदि दवाएं भी ख़तरनाक हैं. ये ख़ून में कई क़िस्म के विकार उत्पन्न करती हैं. ये दवाएं सफ़ेद रक्त कणों को ख़त्म कर देती हैं. इनसे अल्सर हो जाता है तथा साथ ही जिगर व गुर्दे ख़राब हो जाते हैं.

एक फ़ार्मास्टि के मुताबिक़ स्टीरॉयड तथा एनाबॉलिक्स जैसे डेकाडयराबोलिन, ट्राइएनर्जिक आदि दवाएं पौष्टिक आहार कहकर बेची जाती हैं, जबकि प्रयोगों ने यह साबित कर दिया है कि इनसे बच्चों की हड्डियों का विकास रुक जाता है. इनके सेवन लड़कियों में मर्दानापन आ जाता है.

जलनशोथ आदि से बचने के लिए दी जाने वाली चाइमारोल तथा खांसी रोकने के लिए दी जाने वाली बेनाड्रिल, एविल, केडिस्टिन, साइनोरिल, कोरेक्स, डाइलोसिन व एस्कोल्ड आदि दवाएं स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालती हैं. इसी तरह एंसिफैड्रिल आदि का मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है. एक चिकित्सक के मुताबिक़ दवाओं के दुष्प्रभाव का सबसे बड़ा कारण बिना शारीरिक परीक्षण किए हुए दी जाने वाली दवाओं की निर्धारित मात्रा से अधिक ख़ुराक है. अनेक चिकित्सक अपनी दवाओं का जल्दी प्रभाव दिखाने के लिए प्राइमरी की बजाय थर्ड जेनेरेशन दे देते हैं, जो अक्सर कामयाब तो हो जाती हैं, लेकिन दूसरे असर छोड़ जाती हैं. दवाओं के साइड इफ़ेक्ट भी होते हैं, जिनसे अन्य रोग उत्पन्न हो जाते हैं.

हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल का कहना है कि स्वस्थ्य रहने के लिए ज़रूरी है कि लोग अपनी सेहत का विशेष ध्यान रखें जैसे अपना ब्लड कोलेस्ट्रॉल 160 एमजी प्रतिशत से कम रखें. कोलेस्ट्रॉल में एक प्रतिशत की भी कमी करने से हृदयाघात में 2 फ़ीसदी की कमी होती है. अनियंत्रित मधुमेह और रक्त चाप से हृदयाघात का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए इन पर काबू रखें. कम खाएं, ज्यादा चलें. नियमित व्यायाम करना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है. वॉगिंग सबसे बढ़िया व्यायाम है जो तेज गति से भी अधिक तेज चलने को कहा जाता है. सोया के उत्पाद स्वास्थ्य के लिए फ़ायदेमंद होते हैं. खुराक में इन्हें ज़रूर लिया जाना चाहिए. जूस की जगह साबुत फल लेना बेहतर होता है. ब्राउन राइस पॉलिश्ड राइस से और सफ़ेद चीनी की जगह गुड़ लेना कहीं अच्छा माना जाता है. फाइबर से भरपूर खुराक लें. शराब पीकर कभी भी गाड़ी न चलाएं. गर्भवती महिलाएं तो शराब बिल्कुल न पिएं. इससे होने वाले बच्चे को नुकसान होता है. साल में एक बार अपने स्वास्थ्य की जांच करवाएं. ज़्यादा नमक से परहेज़ करें.

लोगों को अपने स्वास्थ्य के संबंध में काफ़ी सचेत एवं जागरूक रहने की ज़रूरत है, वरना रोग का इलाज कराते-कराते वे किसी दूसरे रोग का शिकार हो जाएंगे. शरीर में स्वयं रोगों से मुक्ति पाने की क्षमता है. बीमारी प्रकृति के साधारण नियमों के उल्लंघन की सूचना मात्र है. प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने से बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है. प्रतिदिन नियमित रूप से व्यायाम करने तथा पौष्टिक भोजन लेने से मानसिक व शारीरिक संतुलन बना रहता है.