Sunday, July 24, 2011

वह तो झांसी वाली रानी थी...


टाइम मैगजीन ने भारतीय वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को पति के बचाव में दीवार बनकर खड़ी होने वाली दुनिया की 10 जांबाज़  पत्नियों की फ़ेहरिस्त में शामिल किया है. लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को  में वाराणसी हुआ था. उनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था. उनका बचपन का नाम 'मणिकर्णिका' रखा गया, लेकिन प्यार से मणिकर्णिका को मनु पुकारा जाता था. अपनी मां की मौत के बाद वह पिता के साथ बिठूर आ गई थीं. उसके पिता मोरोपंत तांबे एक साधारण ब्राह्मण और अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के सेवक थे.बाजीराव मनु को प्यार से छबीली कहते थे.पेशवा बाजीराव के बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक आते थे. मनु भी उन्हीं बच्चों के साथ पढ़ने लगी. मनु ने यहां किताबी शिक्षा के साथ-साथ सैन्य शिक्षा हासिल की. उनका विवाह 1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव निवालकर के साथ हुआ था. विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया.  सन 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया,लेकिन  चार महीने बाद उसकी मौत हो गई.  सन 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ने पर दरबारियों ने उन्हें पुत्र गोद लेने की सलाह दी. अपने ही परिवार के पांच साल के एक बच्चे को उन्होंने गोद लिया और उसे अपना दत्तक पुत्र बनाया. इस बालक का नाम दामोदर राव रखा गया.  पुत्र गोद लेने के बाद राजा गंगाधर राव की दूसरे ही दिन 21 नवंबर 1853 में मौत हो गई. ईस्ट इंडिया कंपनी झांसी का शासन छीन लेना चाहता थी.
 इसलिए अंग्रेजों ने  दत्तक-पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और रानी के पत्र लिख भेजा कि राजा का अपना कोई पुत्र नहीं है, इसीलिए झांसी पर अब अंग्रेज़ों का अधिकार होगा. लक्ष्मीबाई ने ऐलान कर दिया की वह किसी भी हाल में झांसी पर अंग्रेज़ों का क़ब्ज़ा नहीं होने देंगी. इस पर अंग्रेज़ों झांसी पर हमला कर दिया. झांसी के सेना ने अंग्रेज़ों का मुकाबला किया. अंग्रेज़ सेनापति ह्यूराज ने  कूटनीति का इस्तेमाल कर झांसी के ही एक विश्वासघाती सरदार दूल्हा सिंह को अपने पक्ष में कर लिया. सरदार ने क़िले का दक्षिणी दरवाज़ा खोल दिया, जिससे अंग्रेज़ सेना क़िले में घुस गई और उने क़त्लेआम और लूटपाट शुरू कर दी. यह देख लक्ष्मीबाई ने पुत्र को पीठ से बांधकर क़िले से निकल गई. अंग्रेज़ों ने उसका पीछा किया और उसे ज़ख़्मी कर दिया.  लक्ष्मीबाई के विश्वासपात्र पठान सरदार गौस ख़ान ने रानी को अंग्रेज़ों से बचाया और ग्वालियर स्थित बाबा गंगादास की कुटिया तक ले आया.  18 जून 1858  को रानी ने अंतिम सांस ली. उसी कुटिया में उनका न्तिम संस्कार किया गया. उनके पुत्र दामोदर राव ने मुखाग्नि दी.

रानी लक्ष्मीबाई के अलावा अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा, पूर्व अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट की पत्नी इलानोर रूजवेल्ट, स्पेन की रानी इजाबेल, मिस्र की चर्चित साम्राज्ञी क्लीयोपेट्रा भी इस फ़ेहरिस्त में शामिल हैं. मीडिया मुगल रूपर्ट मडरेक की पत्नी वेंडी डेंग का अपने पति को हमलावर से बचाने के लिए उस पर टूट पड़ने की हाल ही में हुई साहसिक घटना के मद्देनज़र पत्रिका ने 10 ऐसी पत्नियों की फ़ेहरिस्त जारी की है. हालांकि पत्रिका ने इसकी जानकरी नहीं दी है कि किस आधार पर इन महिलायों का चयन किया गया है.

इस फ़ेहरिस्त में झांसी की अरानी लक्ष्मीबाई को  आठवें स्थान पर रखा गया है, जबकि पहले पहले नंबर  पर इलानोर रूजवेल्ट और दूसरे पर स्पेन की रानी इजाबेल हैं. तीसरे पर कार्टर कैश, चौथे पर मिस्र की रानी क्लीयोपेट्रा, पांचवे पर अलास्का की पूर्व गवर्नर साराह पालिन, छठे पर इलेन डी गेनेरेस और पोर्सियो डी रोसी, सातवें पर  मिशेल ओबामा, नौवें पर  मिलिंडा गेट्स बिल गेट्स की पत्नी मिलिंडा गेट्स और दसवें पर वुड्स की पत्नी इलिन नोरड्रेगेन हैं.

Sunday, July 10, 2011

राहुल की मेहनत रंग लाएगी...


फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी एक परिपक्व राजनेता हैं. इसके बावजूद उन्हें अमूल बेबी कहना उनके ख़िलाफ़ एक साज़िश का हिस्सा ही कहा जा सकता है. भूमि अधिग्रहण मामले को ही लीजिए. राहुल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर जिस तरह पदयात्रा की, वह कोई परिपक्व राजनेता ही कर सकता है. हिंदुस्तान की सियासत में ऐसे बहुत कम नेता रहे हैं, जो सीधे जनता के बीच जाकर उनसे संवाद करते हैं. नब्बे के दशक में बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम ने गांव-गांव जाकर पार्टी को मज़बूत करने का काम किया था, जिसका फल बसपा को सत्ता के रूप में मिला. चौधरी देवीलाल ने भी इसी तरह हरियाणा में आम जनता के बीच जाकर अपनी एक अलग पहचान बनाई थी. दक्षिण भारत में भी कई राजनेताओं ने पद यात्रा के ज़रिये जनता मेंअपनी पैठ बनाई और सत्ता हासिल की.

जब भ्रष्टाचार और महंगाई के मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का चौतरफ़ा विरोध हो रहा है, ऐसे वक़्त में राहुल गांव-गांव जाकर जनमानस से एक भावनात्मक रिश्ता क़ायम कर रहे हैं. राहुल लोगों से मिलने का कोई मौक़ा नहीं छो़ड रहे हैं. बीती पांच जुलाई को वह भट्टा-पारसौल गांव गए. उन्होंने आसपास के गांवों का भी दौरा कर ग्रामीणों से बात की, उनकी समस्याएं सुनीं और उनके समाधान का आश्वासन भी दिया- इससे पहले भी 11 मई की सुबह वह मोटरसाइकिल से भट्टा-पारसौल गांव जा चुके हैं. उस वक़्त मायवती ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया था. इस बार भी वह गुपचुप तरीक़े से ही गांव गए. न तो प्रशासन को इसकी ख़बर थी और न ही मीडिया को इसकी भनक लगने दी गई. हालांकि उनके दौरे के बाद प्रशासन सक्रिय हो गया. बीती 29 जून को वह लखीमपुर में पीड़ित परिवार के घर गए और उन्हें इंसाफ़ दिलाने का वादा किया.

भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी द्वारा निकाली गई पदयात्रा से सियासी हलक़ों में चाहे जो प्रतिक्रिया हो रही हो, लेकिन यह हक़ीक़त है कि राहुल गांधी ने ग्रेटर नोएडा के ग्रामीणों के साथ जो वक़्त बिताया, उसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे. इन लोगों के लिए यह किसी सौग़ात से कम नहीं है कि उन्हें कांग्रेस के युवराज के साथ वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिला. अपनी पदयात्रा के दौरान पसीने से बेहाल राहुल ने शाम होते ही गांव बांगर के किसान विजय पाल की खुली छत पर स्नान किया. फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद उन्होंने घर पर बनी रोटी, दाल और सब्ज़ी खाई. ग्रामीणों ने उन्हें पूड़ी-सब्ज़ी की पेशकश की, लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया. गांव में बिजली की क़िल्लत रहती है, इसलिए ग्रामीणों ने जेनरेटर का इंतज़ाम किया, लेकिन राहुल ने पंखा भी बंद करवा दिया. वह एक आम आदमी की तरह ही बांस और बांदों की चारपाई पर सोये. यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब राहुल गांधी इस तरह एक आम आदमी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. इससे पहले भी वह रोड शो कर चुके हैं और उन्हें इस तरह के माहौल में रहने की आदत है. कभी वह किसी दलित के घर भोजन करते हैं तो कभी किसी मज़दूर के  साथ ख़ुद ही परात उठाकर मिट्टी ढोने लगते हैं. राहुल का आम लोगों से मिलने-जुलने का यह जज़्बा उन्हें लोकप्रिय बना रहा है. राहुल जहां भी जाते हैं, उन्हें देखने के लिए, उनसे मिलने के लिए लोगों का हुजूम इकट्ठा हो जाता है. यह भीड़ वोटों में कितना बदल पाती है, यह तो इस बात पर निर्भर करेगा कि राहुल लोगों की समस्याओं को किस हद तक हल करवा पाते हैं.

राहुल समझ चुके हैं कि जब तक वह आम आदमी की बात नहीं करेंगे, तब तक वह सियासत में आगे नहीं ब़ढ पाएंगे. इसके लिए उन्होंने वह रास्ता अख्तियार किया, जो बहुत कम लोग चुनते हैं. वह भाजपा की तरह एसी कल्चर की राजनीति नहीं करना चाहते. राहुल का कहना है कि उन्होंने किसानों की असल हालत को जानने के लिए पदयात्रा शुरू की, क्योंकि दिल्ली और लखनऊ के एसी कमरों में बैठकर किसानों की हालत पर सिर्फ़ तरस खाया जा सकता है, उनकी समस्याओं को न तो जाना जा सकता है और न ही उन्हें हल किया जा सकता है.