Monday, February 22, 2016

जाट आंदोलन


जाटों ने आरक्षण के लिए आंदोलन किया... हज़ारों करोड़ों की सरकारी संपत्ति का नुक़सान किया... आम लोगों की संपत्ति का भी ख़ूब नु़क़सान किया...
सरकार अवाम पर टैक्स लगाकर अपने नुक़सान की वसूली कर लेगी... ये टैक्स ग़ैर जाटों से ज़्यादा वसूला जाएगा, क्योंकि उनकी आबादी जाटों के मुक़ाबले ज़्यादा है...
इन ग़ैर जाटों का क्या क़ुसूर था ?
और वो लोग क्या करें, जिनके ख़ून-पसीने से बनाई संपत्ति का नुक़सान हो गया...
जब ’मज़बूत’ सरकार को झुकना ही था, तो पहले ही झुक जाती... इतना स्यापा तो न होता, इतना नुक़सान तो न होता...

Friday, February 12, 2016

अब्राहम लिंकन : इंसानियत की मिसाल


फ़िरदौस ख़ान
आज अब्राहम लिंकन की सालगिरह है.
अब्राहम लिंकन को अमेरिका के प्रभावशाली राष्ट्रपतियों में गिना जाता है. उनकी ज़िन्दगी बड़ी जद्दोजहद के बाद मिली कामयाबी की दास्तान बयान करती है. उनका कार्यकाल 1861 से 1865 तक था. उन्होंने अमेरिका को उसके सबसे बड़े संकट यानी गृहयुद्ध से पार लगाया. अमेरिका में अमानवीय दास प्रथा को ख़त्म करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है.

अब्राहम लिंकन का जन्म 12 फ़रवरी 1809 को अमेरिका के हार्डिन केंटकी में एक अश्वेत परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम थॉमस और मां का नाम नैंसी हैंक्स लिंकन था. उनकी दो ही संतानें थीं, बेटी सारा और बेटा अब्राहम. उनके पिता को कारोबार में नुक़सान हुआ और वह रोज़गार की तलाश में इंडियाना के पेरी काउंटी में आ गए और फिर यहीं बस गए. अब्राहम लिंकन जब सिर्फ़ नौ साल के थे, उनकी मां की मौत हो गई. उनके पिता ने विधवा सारा बुश जॉनसन से शादी कर ली और उसके तीन बच्चों के सौतेले पिता बन गए. अब्राहम को सौतेली मां ने उन्हें सगी मां की ही तरह प्यार दिया.

अब्राहम लिंकन का परिवार बहुत ग़रीब था. उनकी पढ़ाई बहुत ही मुश्किल से हुई. किताबें ख़रीदने के लिए उन्हें दिन-रात मेहनत करनी पड़ती थी. साल 1830 में वह परिवार के साथ इलिनोइस आ गए. उन्होंने यहां भी ख़ूब मेहनत की. खेतों में काम किया, दुकान पर काम किया, पोस्ट मास्टर का काम किया और भी न जाने कितने ही काम किए.  वह जल्द ही सियासत में आ गए और 25  साल की उम्र में इलिनोइस विधानमंडल में एक सीट जीती. वह इलिनोइस राज्य विधानमंडल के लिए कई बार चुने गए.  इस दौरान उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और बतौर वकील काम भी शुरू कर दिया.

अब्राहम लिंकन ने साल 1842 में  मैरी टोड से विवाह किया. उनके चार बेटे हुए, जिनमें से 1843 में जन्मा रॉबर्ट टोड वयस्कता तक पहुंच सका, बाक़ी सभी बच्चों की मौत हो गई. अब्राहम लिंकन ने साल 1845 में अमेरिकी कांग्रेस के लिए चुनाव लड़ा. वह चुनाव जीते और एक कार्यकाल के लिए एक कांग्रेसी नेता के तौर पर काम किया. फिर उन्होंने अमेरिकी सीनेट के लिए चुनाव लड़ा. वह चुनाव हार गए, लेकिन बहस के दौरान ग़ुलाम प्रथा के ख़िलाफ़ अपने तर्क से राष्ट्रीय स्तर पर एक ख़ास पहचान हासिल कर ली. उन्होंने साल 1860 में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए चुनाव लड़ा. वह न्यू रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य थे, जिसने दक्षिणी राज्यों में से किसी को भी अलग करने की अनुमति का सख़्ती से विरोध किया. रिपब्लिकन भी ग़ुलाम प्रथा के ख़िलाफ़ थे. अब्राहम लिंकन चुनाव जीत गए और 1861 के मार्च में राष्ट्रपति बने.
दक्षिणी राज्य नहीं चाहते थे कि अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति बनें, इसलिए उनके ख़िलाफ़ दक्षिण कैरोलिना सहित छह राज्यों ने साथ मिलकर एक नया महासंघ बना लिया. अब्राहम लिंकन के राष्ट्रपति का दायित्व संभालने के महज़ एक महीने बाद ही 12 अप्रैल 1861 को  दक्षिण कैरोलिना में फ़ोर्ट सम्टर में गृह युद्ध शुरू हो गया. अब्राहम लिंकन ने राज्यों के ’संघ’ को बनाए रखना तय किया हुआ था. अमेरिका में चार साल गृहयुद्ध चला, लेकिन अपनी कुशलता से वह देश को एकजुट रखने में कामयाब रहे. आख़िर 9 अप्रैल 1865 को गृह युद्ध ख़त्म हो गया. मगर एक नये ख़ुशहाल अमेरिका को देखने के लिए वह ज़िन्दा न रहे. वह 14 अप्रैल 1865 फ़ोर्ड थियेटर में एक नाटक देख रहे थे, तभी जॉन विल्केस बूथ नाम के एक अभिनेता ने उन्हें गोली मार दी और अगले दिन 15 अप्रैल 1865 को उनकी मौत हो गई.

अब्राहम लिंकन ने 1 जनवरी, 1863 को अमेरिका को ग़ुलाम प्रथा से आज़ाद करने का ऐलान किया. यह संघीय राज्यों में ग़ुलामों को आज़ाद करने का एक आदेश था. हालांकि सभी ग़ुलाम फ़ौरन आज़ाद नहीं हुए थे. इसने 13 वें संशोधन के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जिसके तहत संयुक्त राज्य अमेरिका में कुछ साल बाद सभी ग़ुलाम आज़ाद होंगे. अब्राहम लिंकन 1 नवंबर, 1863 को गेटिसबर्ग में दिए अपने एक संक्षिप्त भाषण के लिए याद किए जाते हैं. यह गेटिसबर्ग उद्बोधन कहलाता है. यह छोटा ज़रूर था, लेकिन यह अमेरिकी इतिहास में महान भाषणों में से एक माना जाता है.

अमेरिका के राष्ट्रपति बनने से पहले अब्राहम लिंकन ने बीस साल तक वकालत की. इस दौरान उन्होंने दौलत भले ही नहीं कमाई हो, लेकिन उन्हें लोगों का बहुत मान-सम्मान मिला. उनके वकालत के दिनों के सैंकड़ों क़िस्से उनकी दरियादिली ईमानदारी की गवाही देते हैं.  लिंकन अपने ग़रीब मुवक्किलों से ज़्यादा फ़ीस नहीं लेते थे. एक बार उनके एक मुवक्किल ने उन्हें पच्चीस डॉलर भेजे, तो उन्होंने उसमें से दस डॉलर यह कहकर लौटा दिए कि पंद्रह डॉलर काफ़ी हैं. अमूमन वह अपने मुवक्किलों को अदालत के बाहर ही राज़ीनामा करके मामला निपटा लेने की सलाह देते थे, ताकि दोनों पक्षों का वक़्त और पैसे मुक़दमेबाज़ी में बर्बाद होने से बच जाएं. हालांकि ऐसा करने से उन्हें नुक़सान ही होता था और उन्हें न के बराबर ही फ़ीस मिलती थी. एक शहीद सैनिक की विधवा को उसकी पेंशन के 400 डॉलर दिलाने के लिए एक पेंशन एजेंट 200 डॉलर फ़ीस में मांग रहा था. लिंकन ने उस महिला के लिए न सिर्फ़ मुफ़्त में वकालत की, बल्कि उसके होटल में रहने का ख़र्च और घर वापसी का किराया भी ख़ुद ही दिया. एक बार लिंकन और उनके सहयोगी वकील ने एक मानसिक रोगी महिला की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने वाले व्यक्ति को अदालत से सज़ा दिलवाई. मामला अदालत में सिर्फ़ पंद्रह मिनट ही चला. मुक़दमा जीतने के बाद फ़ीस बटवारे को लेकर उन्होंने अपने सहयोगी वकील को डांटा. सहयोगी वकील का कहना था कि उस महिला के भाई ने पूरी फ़ीस चुका दी थी और सभी अदालत के फ़ैसले से ख़ुश थे, मगर लिंकन का कहना था कि वह ख़ुश नहीं हैं. वह पैसा एक बेचारी मरीज़ महिला का है और वह ऐसा पैसा लेने की बजाय भूखे मरना पसंद करेंगे. इसलिए उनके हिस्से की फ़ीस की रक़म महिला के भाई को वापस कर दी जाए.

वह मानवता को सर्वोपरि मानते थे. मज़हब के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने अपने एक दोस्त को जवाब दिया था- “बहुत पहले मैं इंडियाना में एक बूढ़े आदमी से मिला, जो यह कहता था ‘जब मैं कुछ अच्छा करता हूं, तो अच्छा महसूस करता हूं और जब बुरा करता हूं तो बुरा महसूस करता हूं’. यही मेरा मज़हब है’.

अब्राहम लिंकन ने यह पत्र अपने बेटे के स्कूल प्रिंसिपल को लिखा था. लिंकन ने इसमें वे तमाम बातें लिखी थीं, जो वह अपने बेटे को सिखाना चाहते थे.
सम्माननीय महोदय,
मैं जानता हूं कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं. यह बात मेरे बेटे को भी सीखनी होगी, लेकिन मैं चाहता हूं कि आप उसे यह बताएं कि हर बुरे आदमी के पास भी अच्छा दिल होता है. हर स्वार्थी नेता के अंदर अच्छा रहनुमा बनने की क्षमता होती है. मैं चाहता हूं कि आप उसे सिखाएं कि हर दुश्मन के अंदर एक दोस्त बनने की संभावना भी होती है. ये बातें सीखने में उसे वक़्त लगेगा, मैं जानता हूं. लेकिन पर आप उसे सिखाइए कि मेहनत से कमाया गया एक रुपया, सड़क पर मिलने वाले पांच रुपये के नोट से ज़्यादा क़ीमती होता है.

आप उसे बताइएगा कि दूसरों से जलन की भावना अपने मन में ना लाए. साथ ही यह भी कि खुलकर हंसते हुए भी शालीनता बरतना कितना ज़रूरी है. मुझे उम्मीद है कि आप उसे बता पाएंगे कि दूसरों को धमकाना और डराना कोई अच्‍छी बात नहीं है. यह काम करने से उसे दूर रहना चाहिए.

आप उसे किताबें पढ़ने के लिए तो कहिएगा ही, पर साथ ही उसे आकाश में उड़ते पक्षियों को धूप, धूप में हरे-भरे मैदानों में खिले-फूलों पर मंडराती तितलियों को निहारने की याद भी दिलाते रहिएगा. मैं समझता हूं कि ये बातें उसके लिए ज़्यादा काम की हैं.
मैं मानता हूं कि स्कूल के दिनों में ही उसे यह बात भी सीखनी होगी कि नक़ल करके पास होने से फ़ेल होना अच्‍छा है. किसी बात पर चाहे दूसरे उसे ग़लत कहें, पर अपनी सच्ची बात पर क़ायम रहने का हुनर उसमें होना चाहिए. दयालु लोगों के साथ नम्रता से पेश आना और बुरे लोगों के साथ सख़्ती से पेश आना चाहिए. दूसरों की सारी बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीज़ों का चुनाव उसे इन्हीं दिनों में सीखना होगा.
आप उसे बताना मत भूलिएगा कि उदासी को किस तरह ख़ुशी में बदला जा सकता है. और उसे यह भी बताइएगा कि जब कभी रोने का मन करे, तो रोने में शर्म बिल्कुल ना करे. मेरा सोचना है कि उसे ख़ुद पर यक़ीन होना चाहिए और दूसरों पर भी, तभी तो वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा.

ये बातें बड़ी हैं और लंबी भी, लेकिन आप इनमें से जितना भी उसे बता पाएं उतना उसके लिए अच्छा होगा. फिर अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है और बहुत प्यारा भी.
आपका
अब्राहम लिंकन

बहरहाल, अब्राहम लिंकन की ज़िन्दगी एक ऐसी मिसाल है, जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है.