Thursday, October 8, 2009

फ्रांस की टूरिज़्म कंपनी ने ख़रीदा बापू का अफ़्रीकी घर

फ़िरदौस ख़ान
दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में स्थित महात्मा गांधी के ऐतिहासिक घर को फ्रांस की एक टूरिज़्म कंपनी ने खरीद लिया है...भारत सरकार ने महात्मा गांधी के जोहानिसबर्ग मकान के सूथेबी नीलामी घर के ज़रिये एक फ्रांसीसी कंपनी के हाथ में चले जाने पर अफ़सोस ज़ाहिर किया है. साथ ही कहा है कि सरकार एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी के ज़रिये इस विरासत को हासिल करने की कवायद जारी रखेगी.

कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा है कि यह राष्ट्रीय भावनाओं से जुड़ा मामला है और इस ऐतिहासिक संपत्ति को हासिल करने और इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित करवाने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाएगा. कोयला मंत्रालय के तहत आने वाले कोल इंडिया लि. ने इस मकान को हासिल करने के लिए इसके मालिक से संपर्क किया था और मंत्रालय इसके लिए कोई भी क़ीमत चुकाने को तैयार था. इसके लिए बातचीत जारी थी, लेकिन एक महीने की मोहलत दिए जाने के बावजूद उन्होंने सीआईएल से संपर्क नहीं किया. उन्होंने कहा कि सीआईएल निदेशक मंडल ने यह तय किया है कि इस बापू की इस विरासत को हासिल करने के लिए इसके कर्मचारी अपने एक दिन का वेतन देंगे, जबकि वे एक माह का वेतन देंगे, साथ ही अन्य स्रोतों से धन इकट्ठा करेंगे. जायसवाल ने बताया कि इस साल अगस्त में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के दौरान उन्होंने इस मकान का मुआयना किया था.

गौरतलब है कि पुरानी शैली के खपरैल की छत वाले इस मकान में गांधी जी 1908 से 1910 तक रहे थे. उन्होंने यहां से सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व किया था. इस घर को उस वक़्त के मशहूर आर्किटेक्ट हरमन क्लेनबाक ने डिज़ाइन किया था. जोहांसबर्ग में बापू जुड़े कई अन्य यादगार स्थल भी हैं. इनमें मध्य जोहांसबर्ग में स्थित गांधी स्क्वायर, जोहांसबर्ग जेल, जहां बापू को एक बार कैद किया गया था, द विक्ट्री हाउस जहां वह वकालत किया करते थे. यहां हिंदुओं का अंतिम संस्कार गृह भी है, जिसे बापू ने बनवाया था. इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका के डरबन और पीटरमारित्जबर्ग में भी बापू जुड़े कई अन्य स्थल भी हैं, जो भारतीयों के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र हैं.

बताया जाता है कि पेरिस स्टाक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनी वायजेयू द मांड ने जोहानिसबर्ग के उपनगरीय क्षेत्र स्थित द कराल नामक इस मकान को बिक्री के लिए मांगे गए तीन लाख 77029 डॉलर की क़ीमत से दोगुनी रक़म चुकाकर इसे हासिल किया है.

बापू की इस विरासत को हासिल करने की सरकार की कवायद का क्या नतीजा निकलेगा, यह तो आने वाले वाला वक़्त ही बताएगा...फ़िलहाल तो यह विरासत सरकार के हाथ से निकल ही चुकी है...

2 Comments:

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया इस जानकारी के लिए

अतुल मिश्र said...

Firdaus Ji, Aapke Lekhon Per Comments Ke Liye Shabdon Ka Abhaav Ho Jaata Hai !! Berhaal, Kaafi Informations Mil Jaati Hain..... Vo Bhi Aapki Qalam Ki Khoobsoorti Se !!

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