फ़िरदौस ख़ान
आज जहां बंजर भूमि के क्षेत्र में लगातार हो रही बढ़ोतरी ने पर्यावरण और कृषि विशेषज्ञों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं, वहीं अरावली पर्वत की तलहटी में बसे गांवों के बालू के धोरों में उगती सब्ज़ियां मन में एक ख़ुशनुमा अहसास जगाती हैं. हरियाणा के मेवात ज़िले के गांव नांदल, खेडी बलई, शहजादपुर, वाजिदपुर, शकरपुरी और सारावडी आदि गांवों की बेकार पड़ी रेतीली ज़मीन पर उत्तर प्रदेश के किसान सब्ज़ियों की काश्त कर रहे हैं. अपने इस सराहनीय कार्य के चलते ये किसान हरियाणा के अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने हुए हैं.
सिंचाई जल की कमी और बालू होने के कारण कभी यहां के किसान अपनी इस ज़मीन की तरफ़ नज़र उठाकर भी नहीं देखते थे. मगर अब यही ज़मीन उनकी आमदनी का एक बेहतर ज़रिया बन गई है. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश से आए भूमिहीन किसान भी इस रेतीली ज़मीन पर सब्ज़ियों की काश्त कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं. नांगल गांव में खेती कर रहे अब्दुल हमीद क़रीब पांच साल पहले यहां आए हैं. उत्तर प्रदेश के फ़र्रूख़ाबाद के बाशिंदे अब्दुल हमीद बताते हैं कि इससे पहले वे राजस्थान के अलवर में खेतीबाड़ी क़ा काम करते थे, मगर जब वहां के ज़मींदारों ने उनसे ज़मीन के ज़्यादा पैसे वसूलने शुरू कर दिए, तो वे हरियाणा आ गए. उनका सब्ज़ियों की काश्त करने का अपना विशेष तरीक़ा है.
वे कहते हैं कि इस विधि में मेहनत तो ज़्यादा लगती है, लेकिन पैदावार अच्छी होती है. इन किसानों को मेवात में ज़मींदार से नौ से दस हज़ार रुपये प्रति एकड़ क़े हिसाब से छह महीने के लिए ज़मीन मिल जाती है. इस रेतीली ज़मीन पर कांटेदार झाड़ियां उगी होती हैं. किसानों का आगे का काम इस ज़मीन की साफ़-सफ़ाई से ही शुरू होता है. पहले इस ज़मीन को समतल बनाया जाता है और फिर इसके बाद खेत में तीन गुना तीस फुट के आकार की डेढ़ से दो फुट गहरी बड़ी-बड़ी नालियां बनाई जाती हैं. इन नालियों में एक तरफ़ बीज बो दिए जाते हैं. नन्हे पौधों को तेज़ धूप या पाले से बचाने के लिए बीजों की तरफ़ वाली नालियों की दिशा में पूलें लगा दी जाती हैं.
जब बेलें बड़ी हो जाती हैं तो इन्हें पूलों के ऊपर फैला दिया जाता है. बेलों में फल लगने के समय पूलों को जमीन में बिछाकर उन पर करीने से बेलों को फैलाया जाता है, ताकि फल को कोई नुकसान न पहुंचे। ऐसा करने से फल साफ भी रहते हैं. इस विधि में सिंचाई के पानी की कम खपत होती है, क्योंकि सिंचाई पूरे खेत की न करके केवल पौधों की ही की जाती है. इसके अलावा खाद और कीटनाशक भी अपेक्षाकृत कम ख़र्च होते हैं, जिससे कृषि लागत घटती है और किसानों को ज़्यादा मुनाफ़ा होता है.
शुरू से ही उचित देखरेख होने की वजह से पैदावार अच्छी होती है. एक पौधे से 50 से 100 फल तक मिल जाते हैं. हर पौधे से तीन दिन के बाद फल तोडे ज़ाते हैं. उत्तर प्रदेश के ये किसान तरबूज, खरबूजा, लौकी, तोरई और करेला जैसी बेल वाली सब्जियों की ही काश्त करते हैं. इसके बारे में उनका कहना है कि गाजर, मूली या इसी तरह की अन्य सब्ज़ियों के मुक़ाबले बेल वाली सब्ज़ियों में उन्हें ज़्यादा फ़ायदा होता है. इसलिए वे इन्हीं की काश्त करते हैं. खेतीबाड़ी क़े काम में परिवार के सभी सदस्य हाथ बंटाते हैं. यहां तक कि महिलाएं भी दिनभर खेत में काम करती हैं.
अनवारुन्निसा, शमीम बानो और आमना कहतीं हैं कि वे सुबह घर का काम निपटाकर खेतों में आ जाती हैं और फिर दिनभर खेतीबाड़ी क़े काम में जुटी रहती हैं. ये महिलाएं खेत में बीज बोने, पूलें लगाने और फल तोड़ने आदि के कार्य को बेहतर तरीक़े से करतीं हैं. मेवात के इन गांवों की सब्ज़ियों को गुडग़ांव, फ़रीदाबाद और देश की राजधानी दिल्ली में ले जाकर बेचा जाता है. दिल्ली में सब्ज़ियों की ज़्यादा मांग होने के कारण किसानों को फ़सल के यहां वाजिब दाम मिल जाते हैं. इस्माईल, हमीदुर्रहमान और जलालुद्दीन बताते हैं कि उनकी देखादेखी अब मेवात के किसानों ने भी उन्हीं की तरह खेती करनी शुरू कर दी है.
उत्तर प्रदेश के बरेली, शहजादपुर, पीलीभीत और फ़र्रूख़ाबाद के क़रीब 70 परिवार अकेले नगीना तहसील में आकर बस गए हैं. उत्तर प्रदेश के किसान, पंजाब, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में जाकर भी सब्ज़ियों की काश्त करते हैं. इन किसानों का कहना है कि अगर सरकार बेकार पड़ी ज़मीन उन्हें कम दामों पर काश्त करने के लिए दे दे, तो इससे जहां उन्हें ज़्यादा कीमत देकर भूमि नहीं लेनी पडेग़ी, वहीं रेतीली सरकारी ज़मीन भी कृषि क्षेत्र में शामिल हो सकेगी.
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि बालू रेत में इस तरह सब्जियों की काश्त करना वाक़ई सराहनीय कार्य है. उपजाऊ क्षमता के लगातार ह्रास से ज़मीन के बंजर होने की समस्या आज देश ही नहीं विश्व के सामने चुनौती बनकर उभरी है. ग़ौरतलब है कि अकेले भारत में हर साल छह सौ करोड़ टन मिट्टी कटाव के कारण बह जाती है, जबकि अच्छी पैदावार योग्य मिट्टी की एक सेंटीमीटर मोटी परत बनने में तीन सौ साल लगते हैं. उपजाऊ मिट्टी की बर्बादी का अंदाज़ा इसी बात से ही लगाया जा सकता है कि हर साल 84 लाख टन पोषक तत्व बाढ़ आदि के कारण बह जाते हैं.
इसके अलावा कीटनाशकों के अंधाधुध इस्तेमाल के कारण हर साल एक करोड़ चार लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की उपजाऊ शक्ति नष्ट हो रही है. बाढ, लवणीयता और क्षारपन आदि के कारण भी हर साल 270 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का बंजर होना भी निश्चित ही गंभीर चिंता का विषय है. अत्यधिक दोहन के कारण भी भू-जल स्तर में गिरावट आने से भी बंजर भूमि के क्षेत्र में बढ़ोतरी हो रही है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में पिछले पांच दशकों में भू-जल स्तर के इस्तेमाल में 125 गुना बढ़ोतरी हुई है. पहले एक तिहाई खेतों की सिंचाई भू-जल से होती थी, लेकिन अब क़रीब आधी कृषि भूमि की सिंचाई के लिए किसान भू-जल पर ही निर्भर है.
वर्ष 1947 में देश में एक हज़ार ट्यूबवेल थे, जो 1960 में बढ़कर एक लाख हो गए थे. समय के साथ-साथ इनकी संख्या में में वृध्दि होती गई. नतीजतन देश के देश के विभिन्न प्रदेशों के 360 ज़िलों के भू-जल स्तर में ख़तरनाक गिरावट आई है. हालत यह है कि 7928 जल मूल्यांकन इकाइयों में से 425 काली सूची में आ चुकी हैं और 673 मूल्यांकन इकाइयां अति संवेदनशील घोषित की गई हैं
लिहाज़ा, बंजर भूमि को खेती के लिए इस्तेमाल करने वाले किसानों को पर्याप्य प्रोत्साहन मिलना और भी ज़रूरी हो जाता है.
29 Comments:
सराहनीय कार्य
अच्छी रिपोर्ट के लिये धन्यवाद
प्रणाम
कितना शकुन देने वाला समाचार है यह! पहली दृष्टि में असम्भव लगने वाला काम इन लोगों ने सूझबूझ से सम्भव कर दिया है। यह तो किसानो और कृषि-विशेषज्ञों दोनो ही के लिये विचारणीय और अनुकरणीय है।
अच्छी रिपोर्ट
बहुत बढ़िया रिपोर्ट। वैकल्पिक माडल का अच्छा उदाहरण।
आश्चर्य की बात है एक तरफ हरियाणा के किसान इधर छत्तीसगढ़ में घूम घूम कर खेत खरीद रहे हैं या रेग में लेकर खेती कर रहे हैं. उधर उनकी जमीन में उत्तर प्रदेश के किसान सोना उगा रहे हैं.
रिपोर्टिंग के लिए धन्यवाद.
बहुत बढ़िया रिपोर्ट।
बेहतरीन जानकारी पूर्ण लेख !
ज्ञानवर्धक जानकारी दी है आपने.
कौन है श्रेष्ठ ब्लागरिन
पुरूषों की कैटेगिरी में श्रेष्ठ ब्लागर का चयन हो चुका है। हालांकि अनूप शुक्ला पैनल यह मानने को तैयार ही नहीं था कि उनका सुपड़ा साफ हो चुका है लेकिन फिर भी देशभर के ब्लागरों ने एकमत से जिसे श्रेष्ठ ब्लागर घोषित किया है वह है- समीरलाल समीर। चुनाव अधिकारी थे ज्ञानदत्त पांडे। श्री पांडे पर काफी गंभीर आरोप लगे फलस्वरूप वे समीरलाल समीर को प्रमाण पत्र दिए बगैर अज्ञातवाश में चले गए हैं। अब श्रेष्ठ ब्लागरिन का चुनाव होना है। आपको पांच विकल्प दिए जा रहे हैं। कृपया अपनी पसन्द के हिसाब से इनका चयन करें। महिला वोटरों को सबसे पहले वोट डालने का अवसर मिलेगा। पुरूष वोटर भी अपने कीमती मत का उपयोग कर सकेंगे.
1-फिरदौस
2- रचना
3 वंदना
4. संगीता पुरी
5.अल्पना वर्मा
6 शैल मंजूषा
आपको इस लेख के लिये और किसानों को उनकी हिम्मत के लिये बधाई..
जिंदगी अपना रास्ता खोज ही लेती है।
कैसे लिखेगें प्रेमपत्र 72 साल के भूखे प्रहलाद जानी।
मोहतरमा, आप नए नए विषयों पर लिख रही हैं। पिछला लेख और ये वाला दोनों ही बढ़िया हैं। कृषि मेरा प्रिय विषय है। मैंने दिल्ली में ही आठवी कक्षा तक कृषि विषय का अध्ययन किया है। काश मैं इसे आजीविका के तौर पर अपना पाता। चलिए कोई बात नहीं आप यूँ ही नए विषयों पर लिख कर हमारा ज्ञानवर्धन करती रहें। धन्यवाद।
@VICHAAR SHOONYA
शुक्रिया आप हमारे ब्लॉग पर आए...
कृषि भी हमारा विषय रहा है... यह बात अलग है कि हमने ब्लॉग को कभी ज़्यादा तवज्जो नहीं दी, लेकिन अब हमने विभिन्न विषयों से संबंधित लेख ब्लॉग पर प्रकाशित करने शुरू किए हैं... हमारे ब्लॉग पर आपको अलग-अलग विषयों पर लेख पढ़ने को मिलते रहेंगे...
@Kumar Jaljala
हम नहीं जानते कि आप कौन हैं और यह टिप्पणी आपने किस मक़सद से की है... अगर यह मज़ाक़ है तो बहुत ही वाहियात है...
फिरदौस जी आपने एक बहुत आनंददायी लेख लिखा है चुकी मैं पेशे से एक कृषक हूँ कृषि पर कोई भी ज्ञानवर्धक लेख पढ़ने को मिलता है तो मन प्रफुल्लित हो उठता है
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत सुंदर और उपयोगी पोस्ट है।
श्रेष्ठता वाली बात आप से सहमत हूँ।
ज्ञानवर्धक और सुन्दर रिपोर्ट
बहुत खूब
बेहतरीन जानकारी पूर्ण लेख !
...प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
बढ़िया रिपोर्ट है...आपको बधाई.
______________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है !!
सादर वन्दे !
परवल की खेती भी शायद रेत में ही होती है| बहुत ही उपजाऊ पोस्ट |
रत्नेश त्रिपाठी
आप इन वाहियात लोगों पर ध्यान ना दिया करें, इनका काम है भोकना, सब यैसे लोगों से परिचित हैं.
जानकरीं से परिपूर्ण लाजवाब पोस्ट लगी , आभार आपका ।
बेहतरीन पोस्ट ...आप समग्रता की ओर बढ़ रही हैं फिरदौस ..यह कितना सुखद है !
फिरदौस जी , एक बात और ..
जलजले सज्जन /दुर्जन की बात मजाक हो भी तब भी ..जरा गौर करें, इस समय आप शिखर पर इंगित हैं .....इसमें कई और नाम हैं जिनको लेकर किया मजाक भले ही पूरी पोस्ट को घटिया मजाक की श्रेणी में रखता हो मगर अंतर्निहित सच्चाई को देखने की अंतर्दृष्टि साफ़ साफ़ कुछ बाया कर रही है ....आप शिखर पर हैं यह मजाक नहीं है ....आपकी साफगोई ,निडरता ,कहनी और करनी की अभेदता ,अप्रायोजित स्वच्छंद लेखन ,पंथ निरपेक्षता आपको विशिष्ट बनाती है -आप यहाँ हैं तो किसी के रहमों करम पर नहीं और न ही किसी जैवीय आकर्षण के खिचे आते पतंगों के कारण ....आप को कोई डिगा नहीं सकता ....ऐसा मुझे लगता है -शुभकामनाएं !
उतम पोस्ट
जानकारी से युक्त एक बहुत ही अच्छी पोस्ट!
हिन्दी ब्लोगिंग में ऐसे ही लेखों की अत्यन्त आवश्यकता है।
उम्दा रपट.आपको बधाई.
@ फिर भी देशभर के ब्लागरों ने एकमत से जिसे श्रेष्ठ ब्लागर घोषित किया है वह है.................
कमाल है...हम को और हमारे जानने वाले किसी भी ब्लोगर को ना मत का पता ना मतदान का..ना चुनाव का ना अधिकारी का......
जानकर अच्छा लगा कि हम इतने भी ब्लोगर नहीं हैं...
:)
:)
Post a Comment