मज़हब के नाम पर जहां लोग एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे रहते हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सिर्फ़ इंसानियत को ही तरजीह देते हैं. ऐसे लोग ही समाज का आदर्श होते हैं। ऐसा ही एक वाक़िया है, जो किसी फ़िल्मी कहानी जैसा लगता है, मगर है बिल्कुल हक़ीक़त. इसमें एक ग़रीब मुस्लिम व्यक्ति को रास्ते में एक अनाथ हिन्दू बच्ची मिलती है और वह उसे अपनी बेटी की तरह पालता है, उसके युवा होने पर पुलिस को इसकी ख़बर लग जाती है और वे लड़की को ले जाती है. फिर बूढ़ा मुस्लिम पिता अपनी हिन्दू बेटी को पाने के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाता है. सबसे अहम बात यह है कि उसे अदालत से अपनी बेटी मिल जाती है और फिर दोनों ख़ुशी-ख़ुशी साथ रहने लगते हैं.
ग़ौरतलब है कि गुजरात के भड़ूच के समीपवर्ती गांव तनकरिया में रहने वाले क़रीब 60 वर्षीय जादूगर सरफ़राज़ क़ादरी वर्ष 1995 में मध्यप्रदेश के इटारसी शहर में जादू का खेल दिखाने गए थे. वहां से लौटते वक़्त उन्हें रेलवे स्टेशन पर रोती हुई एक बच्ची मिली. जब उन्होंने बच्ची से उसका नाम और पता पूछा तो वह कुछ भी बताने में असमर्थ रही. उन्हें उस बच्ची पर तरह आ गया और वे उसे अपने साथ घर ले आए. बच्ची के मिलने से कुछ साल पहले ही उनकी पत्नी, बच्चों एक बेटी और एक बेटे की मौत हो चुकी थी. उन्हें इस बच्ची में के रूप में अपनी ही बेटी नज़र आई. चुनांचे उन्होंने इस बच्ची को पालने का फ़ैसला ले लिया. बच्ची से मिलने के कुछ साल बाद ही उनके पास जादू का खेल सीखने के लिए एक लड़का और उसकी बहन आए. वे उनके ही घर रहने लगे. मगर दोनों ने अपने परिवार वालों को इसकी जानकारी नहीं दी. बच्चों के पिता ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी. इस पर पुलिस क़ादरी के घर पहुंच गई. जांच के दौरान पुलिस को मुन्नी पर भी शक हुआ. पूछताछ में मामला सामने आने के बाद पुलिस मुन्नी को अपने साथ ले गई. इसके बाद क़ादरी ने 25 अगस्त 2008 को अदालत में एक याचिका दायर कर वर्षा पटेल उर्फ़ मुन्नी को वापस दिलाने की मांग की, लेकिन अदालत द्वारा क़ादरी का आवेदन ठुकराए जाने के बाद मुन्नी को महिला संरक्षण गृह में रखा गया.
क़ादरी ने अदालत में कहा था कि उन्होंने मुन्नी को बेटी की तरह पाला है, इसलिए उन्हें ही उसका संरक्षण मिलना चाहिए. अदालत का कहना था कि नाबालिग़ लड़की मिलने पर पुलिस को इसकी सूचना या उसके हवाले किया जाना चाहिए, जो क़ादिर ने नहीं किया. वह लड़की को भले ही अपनी बेटी मानता हो, लेकिन उसके पास इसका कोई सबूत नहीं है.
तमाम परेशानियों के बावजूद क़ादरी ने हार नहीं मानी और आख़िर उनकी मेहनत रंग लाई. 14 दिसंबर 2008 में भड़ूच की एक फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश एचके घायल ने मुख्य न्यायायिक मजिस्ट्रेट के फ़ैसले को पलटते हुए क़ादरी को मुन्नी के पालन-पोषण का ज़िम्मा सौंपने का आदेश दिया. अदालत ने पाया कि क़ादरी का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और मुन्नी अपनी मर्ज़ी से ही क़ादरी के साथ ही रह रही है. अदालत में दिए बयान में मुन्नी ने कहा था कि वह अपने पिता क़ादरी के साथ ही रहना चाहती है. उसका यह भी कहना था कि उसके अपने पिता का नाम जगदीश भाई के रूप में याद है, लेकिन मां का नाम उसे याद नहीं है. उसने यह भी कहा कि वह 18 साल की हो चुकी है.
यह वाक़िया उन लोगों के लिए नज़ीर है, जो नफ़रत को बढ़ावा देते हैं. कभी मज़हब के नाम पर, कभी भाषा के नाम पर तो कभी प्रांत विशेष के नाम पर बेक़सूर लोगों का ख़ून बहाकर अपनी जय-जयकार कराते हैं. कुछ भी हो, आख़िर में जीत तो इंसानियत की ही होती है.
13 Comments:
कादरी भाई को नमन !
बहुत ही भावमय प्रस्तुति ।
ऐसे लोग ही तो सच्चे अर्थों में धार्मिक हैं।
प्रणाम
aisi baaton ko jaan kar man khush ho jata hay..
kuchh na kuchh to aisa hay jo insaniyat ko jinda rakhe hue hay nahi to ham insan hamesh lad marne ko taiyaar baithe hayn.
aapka post bahut shandaar hay.
काश, इंसानियत ऐसे ही जीतती रहे।
प्रेरणात्मक प्रस्तुति. आभार.
कादरी जैसे लोंग मिलना मुश्किल होता जा रहा है ...सच्चा धर्म तो यही है ...
यह वाक़िया उन लोगों के लिए नज़ीर है,
जो नफ़रत को बढ़ावा देते हैं।
सच कहा आपने...
लेकिन ये समाज जाने कब सबक लेगा.
कादरी भाई ने स्तुत्य कार्य किया है।
ईश्वर ने सिर्फ इंसान बनाये थे, लेकिन हम सब ने बना दिए हिन्दू , मुस्लिम वगैरह . अगर हमारी जन्म की पहचान ही न हो पाए तो फिर रिश्ता सिर्फ इंसानियत का ही हो सकता है . कादरी साहब ने एक इंसान जैसा ही उदहारण पेश किया . जरूरत है आज लाखों कादारियों की .
यही तो रोना है कि सब लोग ऐसा नहीं सोचते...
काश कि सभी लोग ऐसा सोच सकते..
फिरदोस आपके विचार पड़ कर बहुत अच्छा लगा हम दुआ करेंगे की आप हर बुलन्दियो को छुए !
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