फ़िरदौस ख़ान
देश के उत्तरी राज्यों में किसान ज़ीरो टिलेज को अपना रहे हैं. ज़ीरो टिलेज पारंपरिक खेती से अलग कृषि की एक नई विधा है, जिसमें खेत की जुताई के बिना बुआई की जा सकती है. यह इसके फायदों को देखते हुए सरकार द्वारा भी इसमें इस्तेमाल होने वाले यंत्र पर किसानों को 50 फ़ीसदी सब्सिडी दी जा रही है, ताकि इस विधा को बढ़ावा मिल सके. इतना ही नहीं कृषि वैज्ञानिक भी किसानों को इसी के ज़रिये खेती करने की सलाह दे रहे हैं.
इस साल आई बाढ़ के बाद अनेक गांव पानी में डूब गए थे और किसानों के सामने कम समय में रबी की फसल की बुआई का संकट था. ऐसी हालत में कृषि वैज्ञानिकों ने बुआई के लिए जीरो टिलेज को ही उपयुक्त करार दिया था. कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर कैथल ज़िले के गांव काठवाड़ के किसानों ने इस विधा के ज़रिये बुआई की. सीवन गांव के किसान लक्ष्मी आनंद बताते हैं कि वह पिछले कई वर्षों से ज़ीरो टिलेज के माध्यम से ही खेती कर रहे हैं. उन्होंने इसके फायदों को देखते हुए इसे अपनाने का फ़ैसला किया और आज वह अपने इस निर्णय से बेहद खुश हैं. इसी तरह छतर सिंह, रामेश्वर आर्य, रणबीर सिंह श्योकंद, आनंद मुजाल आदि किसान भी पिछले एक दशक से जीरो टिलेज के माध्यम से खेती कर रहे हैं. वे बताते हैं कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने उन्हें इस बारे में जानकारी दी थी. अब वे भी अन्य किसानों को इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं. रोहतक ज़िले का भैंसी एक ऐसा गांव है, जहां की समूची कृषि भूमि पर ज़ीरो टिलेज के ज़रिये ही बुआई की जाती है. इस गांव के किसानों की देखा-देखी आसपास के गांवों के किसानों ने भी इसे अपना लिया है.
गौरतलब है कि ख़रीफ़ यानि धान की कटाई के बाद किसानों को रबी की फसल गेहूं आदि के लिए खेत तैयार करने पड़ते हैं. गेहूं के लिए किसानों को अमूमन 5-7 जुताइयां करनी पड़ती हैं. ज्यादा जुताइयों की वजह से किसान समय पर गेहूं की बिजाई नहीं कर पाते, जिसका सीधा असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ता है. इसके अलावा इसमें लागत भी ज़्यादा आती है. ऐसे में किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता. ज़ीरो टिलेज से किसानों का वक़्त तो बचता ही है, साथ ही लागत भी कम आती है, जिससे किसानों का मुनाफ़ा काफ़ी बढ़ जाता है. ज़ीरो टिलेज के ज़रिये खेत की जुताई और बिजाई दोनों ही काम एक साथ हो जाते हैं. इस विधा से बुआई में प्रति हेक्टेयर किसानों को क़रीब 2000-2500 रुपए की बचत होती है. बीज भी कम लगता है और पैदावार क़रीब 15 फ़ीसदी बढ़ जाती है. खेत की तैयारी में लगने वाले श्रम व सिंचाई के रूप में भी क़रीब 15 फ़ीसदी बचत होती है. इसके अलावा खरपतवार भी ज़्यादा नहीं होता, जिससे खरपतवार नाशकों का ख़र्च भी कम हो जाता है. समय से बुआई होने से पैदावार भी अच्छी होती है. किसान अगेती फ़सल की बुआई भी कर सकते हैं.
ज़ीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल मशीन में लगे कुंड बनाने वाले फरो-ओपरन पतले धातु की मजबूत शीट से बने होते हैं, जो जुते खेत में एक कूड़ बनाते हैं. इसी कूड़ में खाद और बीज एक साथ उसी वक़्त डाल दिया जाता है. यह सीड ड्रिल 9 और 11 फरो-ओपेनर आकार में उपलब्ध हैं. इसमें फरो-ओपेनर इस तरह लगाए गए हैं कि उनके बीच की दूरी को कम या ज़्यादा किया जा सकता है. यह मशीन गेहूं और धान के अलावा दलहन फ़सलों के लिए भी बेहद उपयोगी है. इससे दो घंटे में एक हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की जा सकती है. इस मशीन को 35 हॉर्स पॉवर शक्ति के ट्रैक्टर से चलाया जा सकता है.
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मशीन में फाल की जगह लगे दांते मानक गहराई तक मिट्टी को चीरते हैं. इसके साथ ही मशीन के अलग-अलग चोंगे में रखा खाद और बीज कूंड़ में गिरता जाता है. साथ ही वे कहते हैं कि इससे बिजाई करते वक़्त गहराई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इसके इस्तेमाल से पहले कुछ सावधानियां बरतनी चाहिएं. खेत समतल और साफ़-सुथरा होना चाहिए. खेत समतल और साफ़ होना चाहिए. कंबाइन से कटे धान से बिखरे हुए पुआल को हटा देना चाहिए, वरना यह मशीन में फंसकर खाद-बीज के बराबर से गिरने में बाधक हो सकते हैं. धान की फ़सल को जमीन जड़ के पास से काटना चाहिए, ताकि बाद में डंठल खड़े न रह जाएं. इन डंठलों को हटाने में काफ़ी वक़्त बर्बाद हो जाता है. बुआई के वक़्त मिट्टी में नमी का होना बेहद ज़रूरी है. अगर नमी कम है तो बुआई से कुछ दिन पहले खेत में हल्का पानी छिड़क लें. बुआई के वक़्त दानेदार उर्वरकों का ही इस्तेमाल करें, ताकि वे ठीक से गिर सके. इसके अलावा सीड ड्रिल को चलाते समय ही उठाना या गिराना चाहिए, वरना फरो-ओपनर में मिट्टी भर जाती है, जिससे कार्य प्रभावित होता है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत ज़ीरो टिलेज सहित कई कृषि यंत्रों पर अनुदान दिया जाता है. ज़ीरो टिलेज मशीन पर 15 हज़ार रुपए, रोटावेटर पर 30 हज़ार रुपए, स्ट्रा रीपर पर 40 हज़ार रुपए, धान रोपाई मशीन पर 50 हज़ार रुपए, लेजर लैंड लेवलर पर 50 हज़ार रुपए, स्ट्रा बालर पर एक लाख रुपए, मल्टी क्राप प्लांटर पर 15 हज़ार रुपए, बिजाई मशीन पर 15 हज़ार रुपए, पावर टीलर, पावर विडर और रीपर बाइंडर पर 40 हज़ार रुपए का अनुदान दिया जाता है.
कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिए किसान को प्रार्थना-पत्र अपने इलाके के संबंधित कृषि विकास अधिकारी के पास जमा करना होता है. पत्र के साथ जिस यंत्र की अनुदान राशि 15 हज़ार तक है उस पर 2500 रुपए का और जिस पर अनुदान राशि 15 हज़ार रुपए है उसके लिए पांच हज़ार रुपए का ड्राफ्ट कृषि विभाग द्वारा अधिकृत फार्म के नाम लगाना होगा. योग्यता प्रमाण-पत्र एक हफ़्ते के भीतर दिया जाएगा. इसके बाद किसान संबंधित फर्म से कृषि यंत्र खरीदेगा और दस दिन के अंदर यंत्र का बिल सहायक कृषि अभियंता के कार्यालय में जमा कराना होगा. कृषि विभाग की टीम यंत्र का निरीक्षण करेगी. फिर उसके बाद ही किसान के नाम अनुदान राशि का चेक जारी किया जाएगा. इस मशीन की कीमत 30 हज़ार रुपए है और सरकार इस पर 50 फ़ीसदी राशि अनुदान के तौर पर देती है.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से अगस्त 2007 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन नामक योजना शुरू की थी. इस योजना का मक़सद गेहूं, चावल और दलहन की उत्पादकता को बढ़ाना है, ताकि देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति को सुनिश्चित किया जा सके. साथ ही समुन्नत प्रौद्योगिकी के प्रसार एवं कृषि प्रबंधन पहल के माध्यम से इन फ़सलों के उत्पादन में व्याप्त अंतर को दूर करना है.
कृषि मंत्रालय के कृषि व सहकारिता विभाग के मुताबिक़ इस योजना के तीन घटक हैं-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-चावल जिसके तहत देश के 14 राज्यों के 136 ज़िलों को शामिल किए जाने का प्रावधान है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कनार्टक, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-गेहूं, जिसके तहत देश के नौ राज्यों के 141 ज़िलों को शामिल करने का प्रावधान है. इन राज्यों में बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इसी तरह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- दलहन, जिसके तहत 14 राज्यों के 171 ज़िले शामिल करने का प्रावधान है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इस योजना के तहत इन ज़िलों के 20 मिलियन हेक्टेयर धान के क्षेत्र, 13 मिलियन हेक्टेयर गेहूं के क्षेत्र और 4.5 मिलियन हेक्टेयर दलहन के क्षेत्र शामिल किए गए हैं, जो धान व गेहूं के कुल बुआई क्षेत्र का 50 फ़ीसदी है. दलहन के लिए 20 फ़ीसदी और क्षेत्र का सृजन किया जाएगा.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि (2007-08 से 2011-12) के लिए 4882.48 करोड़ रुपए बजट रखा गया है. इसके लिए पात्र किसान उस कृषि भूमि पर शुरू की गई गतिविधियों पर आने वाली कुल लागत का 50 फ़ीसदी ख़र्च वहन करेंगे, बाकी ख़र्च सरकार देगी. इसके तहत पात्र किसान बैंक से क़र्ज़ भी ले सकते हैं. ऐसी स्थिति में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी की राशि बैंकों को जारी की जाएगी. इस योजना के क्रिन्यानवयन के परिणामस्वरूप् वर्ष 2011-12 तक चावल के उत्पादन में 10 मिलियन टन, गेहूं के उत्पादन में 8 मिलियन टन व दलहन के उत्पादन में 2 मिलियन टन की बढ़ोतरी होगी. साथ ही यह अतिरिक्त रोज़गार के अवसर भी पैदा करेगा.
देश में ज़ीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल मशीन की बढ़ती मांग को देखते हुए चीन की कंपनियों ने भी इनकी बिक्री शुरू कर दी है. ये उपकरण नेपाल के समीपवर्ती इलाकों में आसानी से मिल जाते हैं. इनकी क़ीमत भारतीय कृषि यंत्रों से कम होने की वजह से किसान इन्हें खरीद रहे हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. ज़ीरो टिलेज से संबंधित अधिक जानकारी के लिए किसान अपने इलाक़े के कृषि अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं.
19 Comments:
सार्थक लेख. इससे से किसानों को काफ़ी फायदा होगा. आभार
आपके ब्लॉग से कृषि के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है.
एक रोचक और ज्ञानवर्धक आलेख.
यह लेख कल हमने अमर उजाला में पढ़ा था. ज़ीरो टिलेज के बारे में जानकारी मिली.
ज्ञानवर्धक लेख के लिए आभार.
बहुत सुंदर लिखा है किसानो को पढाना चाहिए सारे किसान आपके दीवाने हो जायेंगे
bahut hi rochak jankari..mai bhi try kerta hu.
फिरदौस जी ज्ञानवर्धक लेख़ ..
बहुत अच्छी जानकारी देता लेख ...निश्चय ही जो कृषि क्षेत्र से जुड़े होंगे उनको फायदा होगा ...
इस नयी विधा से अवगत कराने के लिए आभार.
यह तो सच में बहुत अच्छी विधि है, शीघ्र ही प्रचार प्रसार हो।
धटते कृषि जोत क्षेत्रों वाले इस महान देश में इस विधि से किसानों में कृषि के प्रति आस्था जागृत हो, यही कामना है। इस विधि के संबंध में साथ ही अनुदान के संबंध में जानकारी देने के लिये आभार.
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मैं ये जानना चाहता हूँ कि किसान लोग जुताई क्यों करते हैं या दुसरे शब्दों में कहें तो जुताई ना करने के क्या नुकसान हो सकते हैं.
मैने दो साल पहले इसका इस्तेमाल किया था . और यह के.वी.के ने लग्भग १५ साल पहले इसका प्रदर्शन किया था
छोटे किसान तो हर चीज से महरूम हैं. चाहे वह तक्नोलोजी हो या फिर कोई योजना// इन सब का फायदा बड़ी जोत के किसान ही उठा पाते हैं>.
बहुत ही जानकारी परख लेख. शायद इससे कृषि में कुछ सुधार हो सके..........
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उपेन्द्र
सृजन - शिखर पर ( राजीव दीक्षित जी का जाना )
इस बारे में बहुत कम जानकारी थी। पहली बार आपही से इतने विस्तार से जाना। काम आएंगे। आभार।
nice post congrats
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