फ़िरदौस ख़ान
रोटी, कपड़ा और मकान आम आदमी की बुनियादी ज़रूरतें हैं. हमारे देश में आज भी ऐसे लोगों की कमी नहीं हैं, जिन्हें दिन में एक बार भी भरपेट भोजन नहीं मिल पाता है. यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि देश के हर नागरिक को भरपेट अन्न मुहैया कराना यूपीए सरकार का सपना रहा है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश इस दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम साबित होगा. प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह कहते हैं कि उनकी पहली प्राथमिकता भारत की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं से निपटना है, ताकि ग़रीबी और कुपोषण का कम से कम समय में उन्मूलन किया जा सके. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने खाद्य सुरक्षा को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि हमने शिक्षा का अधिकार दिया, सूचना का अधिकार दिया, मनरेगा और पहचान का अधिकार आधार दिया. अब भोजना का अधिकार दे रहे हैं.
क़ाबिले-गौर है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश (एनएफएसओ) का मक़सद देश की तक़रीबन 67 फ़ीसद आबादी को तीन रुपये और दो रुपये की रियायती दरों पर गेहूं और चावल मुहैया कराना है. इस अध्यादेश का ऐलान 5 जुलाई, 2013 को किया गया था. यह अध्यादेश लाभार्थियों को खाद्यान्न प्राप्त करने का क़ानूनी अधिकार मुहैया कराता है. खाद्यान्न की आपूर्ति नहीं होने पर वे आर्थिक मुआवज़े का दावा कर सकते हैं.
खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के बारे में अकसर पूछे जाने वाले कुछ सवाल और उनके जवाब इस प्रकार हैं-
अध्यादेश के अनुसार, टीपीडीएस के तहत सिर्फ़ 67 फ़ीसद आबादी को इसको लाभ मिलेगा. इसका लाभ सभी लोगों को क्यों नहीं दिया जा सकता?
अध्यादेश में प्रस्तावित पात्रता हाल ही में हुए खाद्यान्नों के उत्पादन और इसकी सरकारी ख़रीद पर आधारित है. साल 2007-08 से 2011-12 तक औसतन हर साल तक़रीबन 60.24 मिलियन टन खाद्यान्न की सरकारी ख़रीद की गई है. इसकी तुलना में टीपीडीएस के तहत हर व्यक्ति को हर माह 5 किलो खाद्यान्न प्रदान करने के लिए 72.6 मिलियन टन खाद्यान्न की ज़रूरत होगी. इसके अलावा ओडब्ल्यूएस के लिए भी अतिरिक्त आवश्यकता है. खाद्यान्नों के वर्तमान स्तर पर उत्पादन और सरकारी ख़रीद को ध्यान में रखते हुए खाद्यान्नों की इस मांग को पूरा कर पाना मुमकिन नहीं होगा.
ग़रीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों को 5 किलो अनाज देने से उनको वर्तमान में टीपीडीएस के अंतर्गत मिलने वाले अनाज में कटौती होगी. इससे उनको नुक़सान नहीं होगा?
वर्तमान में टीपीडीएस के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे के 6.52 करोड़ परिवारों को अनाज दिया जाता है, जिसमें 2.50 करोड़ परिवार अंतोदय अन्न योजना (एएवाई) के परिवार भी शामिल हैं. इसके लिए भारत के महा रजिस्ट्रार के 1999-2000 के लिए आबादी के अनुमानों और योजना आयोग के साल 1993-94 के आधार पर निर्धन लोगों के 36 प्रतिशत होने को आधार माना गया है. शेष परिवारों को ग़रीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के अंतर्गत अनाज दिया जाता है. एएवाई और बीपीएल परिवारों को प्रति माह 35 किलो अनाज दिया जाता है. एपीएल परिवारों को अनाज उपलब्धता के आधार पर दिया जाता है. केंद्रीय वितरण मूल्य (सीआईपी) गेंहू/चावल प्रति किलो एएवाई को रुपये 2/3, बीपीएल परिवारों को 4.15/5.65 रुपये और एपीएल परिवारो को 6.10/8.30 रुपये की दर से दिया जाता है.
गौरतलब है कि वर्तमान में कुल प्रस्तावित परिवारों में से एक-चौथाई को ही 35 किलो प्रति परिवार के आधार पर नियत खाद्यान्न दिया जा रहा है. वहीं एनएफएसबी में अखिल भारतीय स्तर पर कुल आबादी के 67 फ़ीसद हिस्से को 5 किलो खाद्यान्न देने का प्रस्ताव किया गया है. इसमें एएवाई परिवारों को जो निर्धन में निधर्नतम हैं, को 35 किलो प्रति परिवार प्रति माह खाद्यान्न सुनिश्चित किया गया है. इसके साथ ही टीपीडीएस में अध्यादेश के तहत सभी परिवारों को वर्तमान के एएवाई मूल्यों के समान गेंहू 3 रुपये और चावल 2 रुपये की दर से दिया जाएगा. नतीजतन, वर्तमान में बीपीएल श्रेणी में आने वाले परिवार जिन्हें खाद्यान्न की मात्रा कम मिलेगी, उन्हें सब्सिडी दरों पर अनाज मिलने का फ़ायदा मिलेगा.
सभी को खाद्यान्न देने की योजना को केवल अनाजों तक ही सीमित क्यों रखा गया है और इसमें दालों और खाद्य तेलों आदि को क्यों शामिल नहीं किया गया है?
दालों और खाद्य तेलों की घरेलू मांगो को पूरा करने के लिए हम मुख्यत आयात पर निर्भर हैं. इसके साथ ही इस समय दालों और तिलहनों की ख़रीद के लिए आधारभूत ढांचा और संचालन प्रक्रिया भी मज़बूत नहीं है. घरेलू स्तर पर इसकी उपलबध्ता के सुनिश्चित न होने और ख़रीद प्रकिया के कमज़ोर होने के कारण इनकी क़ानूनी अधिकार के रूप में आपूर्ति कर पाना मुमकिन नहीं होगा. हांलाकि सरकार सस्ती दरों पर लक्षित लोगों को दालों और खाद्य तेल देने की योजना चला रही है, साथ ही साथ दालों और तिलहनों की ख़रीद को बढ़ाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं.
ऐसा लगता होता है कि विधेयक में केवल खाद्यान्नों को ज़रूरत पूरी करने पर ध्यान केंद्रित किया है और इसमें पोषकता पर कम ध्यान दिया है. इसलिए इसे खाद्य सुरक्षा प्रदान के लिए व्यापक कैसे कहा जा सकता है?
कुपोषणता एक गंभीर समस्या है जिसका पूरा देश सामना कर रहा है, लेकिन यह कहना ग़लत होगा कि विधेयक में इसे पूरी तरह से नकारा गया है. इसमें गर्भवती महिलाओं और बच्चों के बीच कुपोषण की समस्या पर ध्यान केंद्रित किया है, जो हमारी इस समस्या से सामने करने में केंद्रबिंदु होगा. महिलाओं और बच्चों को पोषण प्रदान करने पर विधेयक में ख़ास ध्यान दिया गया है. गर्भवती महिलाओं ओर दूध पिलाने वाली माताओं को निर्धारित पोषकता मानकों के तहत पौष्टिक भोजन का अधिकार देने के साथ-साथ कम से कम 6000 रुपये के मातृत्व लाभ भी मिलेंगे. 6 माह से 6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को घर भोजन ले जाने या निर्धारित पोषकता मानकों के तहत गर्म पका हुआ भोजन पाने का अधिकार होगा. इसी आयु वर्ग के कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए उच्च पोषकता मानक निर्धारित किए गए हैं. निचली और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों को निर्धारित पोषकता मानकों के तहत विद्यालयों में पोषक आहार दिया जाएगा.
क्या सरकार के पास विधेयक के नियमों के अंतर्गत पर्याप्त खाद्यान्न है?
हर साल अन्य लाभकारी योजनाओं के लिए खाद्यान्न की आवश्यकता जोड़कर कुल 612.3 लाख टन खाद्यान्न की ज़रूरत होगी. खाद्यान्नों की ख़रीद (गेंहू और चावल) जिसमें कुल मात्रा और उत्पादन का प्रतिशत शामिल है, उसमें हाल के हाल के वर्षों में प्रगति हुई है. खाद्यान्न की औसतन वार्षिक ख़रीद जो साल 2000-2001 से 2006-07 के दौरान कुल औसतन वार्षिक उत्पादन के 24.30 फ़ीसद के आधार पर 382.2 लाख टन थी, साल 2011-12 के दौरान औसतन वार्षिक उत्पादन 33.24 प्रतिशत होकर 602.4 लाख टन पर पंहुच गई. इसलिए वर्तमान में खाद्यान्नों के उत्पादन और इसकी ख़रीद के आधार पर ज़रूरत पूरी की जा सकेगी. यहां तक कि साल 2012-13 के दौरान खाद्यान्न के उत्पादन में हल्की कमी होने के अनुमान के बावजूद विधेयक की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकेगा.
ऐसा कहा जा रहा है कि इस विधेयक से किसानों, ख़ास तौर पर छोटे और सीमांत किसानों की खेती करने में कम रूचि कम होगी, क्योंकि उन्हें अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए सस्ती दरों पर अनाज का आश्वासन दिया जाएगा. इस संबध में आपका क्या कहना है?
खाद्यान्नों का उत्पादन किसानों के लिए आजीविका का एक माध्यम हैं, जिसके लिए उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता है. न्यूनतम समर्थन मूल्य की पहुंच हर साल बढ़ रही है और विधेयक के लागू होने के फलस्वरूप आवश्यकता बढ़ने के कारण ज़्यादा से ज़्यादा किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में आएंगे. इसलिए किसानों को हतोत्साहित करने के बजाय विधेयक किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करेगा. सस्ती दरों पर खाद्यान्न मिलने से छोटे किसानों की सीमित आमदनी पर बोझ कम होगा और वे बचाई हुई रक़म को अन्य आवश्यकताओं पर ख़र्च कर अपने जीवनस्तर में सुधार कर सकेंगे.
राज्य खाद्य सुरक्षा विधेयक के कारण उन पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को लेकर शिकायत कर रहे हैं? केंद्र सरकार इस बारे में राज्य सरकारों को अपने साथ कैसे जोड़ेगी, क्योंकि राज्यों को ही इस विधेयक को लागू करना है?
विधेयक का मुख्य वित्तीय प्रभाव खाद्य सब्सिडी पर पड़ेगा. प्रस्तावित क्षेत्र और पात्रता के अधिकार पर सालाना 612.3 लाख टन खाद्यान्न की ज़रूरत होने और साल 2013-14 आधार पर खाद्य सब्सिडी की लागत 1,24,747 करोड़ रुपये होने का अनुमान है. वर्तमान की टीपीडीएस और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए खाद्य सब्सिडी से तुलना करने पर सालाना 23,800 करोड़ रुपये की ज़्यादा ज़रूरत होगी. इस अतिरिक्त आवश्यकता को केंद्र सरकार पूर्ण रूप से वहन करेगी.
राज्यों ने ख़ुद पर पड़ने वाले बोझ ख़ास तौर पर शिकायतें दूर करने की प्रणाली, खाद्यान्नों की ढुलाई पर होने वाले व्यय और उचित मूल्य की दुकानों के डीलरों को दी जाने वाली अतिरिक्त राशि आदि मुद्दों पर अपनी शंकाए व्यक्त की हैं. ये शंकाए दिसंबर 2011 में लोकसभा में पेश किए गए मूल विधेयक के प्रावधानों पर आधारित हैं. हांलाकि स्थायी समिति की सिफ़ारिशों और राज्य सरकारों के विचारों को ध्यान में रखने के बाद विधेयक में अब केंद्र सरकार दवारा राज्यों को एक राज्य के भीतर खाद्यान्न की ढुलाई में होने वाले व्यय में सहायता देने, इसको संभालने और एफपीएस डीलरों को दिए जाने वाली अतिरिक्त राशि के संबध में नियमों के अनुसार देने के नियम निर्धारित किए गए हैं. इसके अलावा शिकायतें दूर करने के संबध में विधेयक में इस बारे में अलग से प्रणाली बनाने या वर्तमान में लागू प्रणाली को जारी करने के विकल्प राज्य सरकारों को दिए गए हैं.
एक केंद्रीय क़ानून में, राज्यों के ऊपर खाद्य सुरक्षा भत्ता देने की ज़िम्मेदारी डालना कितना जायज़ है?
यह कहना ग़लत है कि यह ज़िम्मेदारी सिर्फ़ राज्य सरकारों पर डाली गई है. इस संबध में राज्यों पर ज़िम्मेदारी केवल केंद्र सरकार द्वारा दिए गए खाद्यान्न या भोजन का वितरण ना कर पाने की स्थिति में ही होगी.
विधेयक के खंड 22 के तहत केंद्रीय भाग से राज्यों को खाद्यान्न की कम आपूर्ति होने पर केंद्र सरकार विधेयक के प्रावधानों के पूरा करने के लिए राज्य सरकारों को आर्थिक सहायता देगी. हांलाकि खंड 8 के तहत लाभकर्ताओं कों खाद्य सुरक्षा भत्ता देने की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की होगी, क्योंकि खाद्यान्न और भोजन की वितरण की ज़िम्मेदारी उनकी है.
इस विधेयक को राज्य सरकारों द्वारा कब लागू किया जाएगा?
विधेयक को कार्यान्वित करने से पहले कुछ शुरुआती काम किया जाना ज़रूरी है. मिसाल के लिए नियमावली के तहत टीपीडीएस के अंतर्गत प्रत्येक राज्य और संघ शासित प्रदेशों में घरों की वास्तविक पहचान की जानी है. इसलिए राज्य सरकारों को इनकी पहचान के लिए उचित मानक बनाने और उसके बाद पहचान का वास्तविक कार्य करने की आवश्यकता है. विधेयक के तहत लाभकर्ता घरों की पहचान पूरी होने के बाद ही खाद्यान्न का आवंटन और वितरण किया जा सकता है. इसलिए विधेयक में पहचान के कार्य के शुरू होने के बाद इसे 180 दिनों में पूरा किए जाने का प्रावधान किया गया है. यह अवधि हर राज्य में अलग-अलग हो सकती है और यदि कोई राज्य इसे पहले लागू करना चाहता है, तो उसे इसके लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. विधेयक को जारी करने के लिए इसमें वर्तमान में राज्य में लागू योजना और दिशा-निर्देश आदि के जारी रहने के अस्थायी प्रावधान किए गए हैं.
कोई भी विधेयक तभी कामयाब हो सकता है जब इसमें शिकायतें दूर करने के लिए स्वतंत्र शिकायत निवारण दूर करने की व्यवस्था हो. विधेयक में इस संबध में क्या प्रावधान किए गए हैं?
विधेयक में शिकायतें दूर करने के लिए ज़िला और राज्य स्तर पर एक प्रभावी और स्वतंत्र शिकायत निवारण प्रणाली का प्रावधान किया गया है. इसमें हर जिले के लिए पात्रता लागू करने और शिकायतों की जांच करने और दूर करने के लिए ज़िला शिकायत निवारण अधिकारी शामिल है. इसके अतिरिक्त पात्रता के उल्लंघन होने संबधी शिकायत प्राप्त होने या स्वंय से जांच करने के लिए राज्य खाद्य आयोग की स्थापना करने का भी प्रावधान है. आयोग डीजीआरओ के आदेशों के विरुद्ध सुनवाई करेगा और उसे दंड लगाने की शक्ति भी दी जाएगी. कोई भी शिकायतकर्ता इनसे मिल सकता है.
घरों की पहचान किए जाने का कार्य राज्यों से कराने का प्रावधान है. हर राज्य अलग-अलग मानदंड अपनाएगा और इससे एक राज्य में सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर लाभ पाने वाले परिवार को दूसरे राज्य में इसका लाभ नहीं मिलेगा, इसे कैसे रोका जाएगा?
लोकसभा में दिसंबर 2011 में विधेयक को प्रस्तुत करते समय पहचान के लिए दिशा-निर्देश राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित करने का प्रावधान किया गया था. राज्य सरकारों ने इस संबध में विचार-विमर्श के दौरान पहचान के मानदंड निर्धारित करने में अधिक भूमिका होने संबधी विचार प्रस्तुत किया था. इस संबध में स्थायी समिति ने भी राज्य सरकारों से परामर्श के बाद मानदंड निर्धारित करने की सिफ़ारिश की थी. इन विचारों और सिफ़ारिशों पर ध्यानपूर्वक विचार किया गया. सामाजिक-आर्थिक कारणों के संबध में अलग-अलग राज्यों में अंतर होने के कारण इस संबध में केंद्र सरकार द्वारा मानदंड बनाए के उचित न होने और इसकी आलोचना होने की शंका थी. इसके साथ ही मानदंड के मुददे पर राज्य सरकारों के साथ आम सहमति बनाना भी कठिन था. पहचान का कार्य अब राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है, जो इसके लिए ख़ुद अपने मानदंड बनाएंगे.
क्या राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश से ख़र्च बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 3 फ़ीसद के बराबर हो जाएगा?
मीडिया में कुछ इस तरह की ख़बरें आई हैं कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के लागू होने पर 3 लाख करोड़ से भी अधिक यानी सकल घरेलू उत्पाद के 3 फ़ीसद जितना ख़र्च आएगा. ये अनुमान ग़लत तुलना और अतिरंजित गणना पर आधारित हैं. अध्यादेश के प्रभाव के सही मूल्यांकन के लिए ख़र्च की तुलना सब्सिडी पर अनाज देने की सरकार की मौजूदा वचनबद्धता से की जानी चाहिए.
सरकार सब्सिडी मूल्य के आधार पर अनाज का आवंटन करती है. सरकार कर ख़र्च अनाज उठाने पर और सब्सिडी देने पर होता है. इस समय 2.43 करोड़ अन्त्योदय अन्न योजना (एएवाई) के लाभार्थियों सहित 6.5 करोड़ ग़रीबी रेखा से नीचे के (बीपीएल) परिवारों को और लगभग 11.5 करोड़ (ग़रीबी रेखा से ऊपर के (एपीएल) परिवारों को सब्सिडी मूल्य पर सरकार अनाज दे रही है. बीपीएल और एएवाई के परिवारों को हर महीने 35 किलोग्राम अनाज दिया जाता है, जबकि एपीएल परिवारों को उपलब्धता के आधार पर अनाज मिलता है. इस समय 22 राज्यों में 15 किलोग्राम प्रति महीने के हिसाब से और 13 विशेष श्रेणी वाले राज्यों में 35 किलोग्राम हर महीने के हिसाब से अनाज दिया जा रहा है. मौजूदा लाभार्थियों की संख्या के आधार पर लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत अनाज की कुल ज़रूरत तक़रीबन 498.7 लाख टन है. अगर इसमें समन्वित बाल विकास योजना (आईसीडीएस), मिड डे मील आदि जैसी कल्याण योजनाओं की 65 लाख टन अनाज की ज़रूरत को जोड़ा जाएं, तो कुल 563.7 लाख टन अनाज की ज़रूरत होगी और इस पर सब्सिडी तक़रीबन 1,00,953 करोड़ वार्षिक की होगी. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश लागू करने के लिए क़रीब 612 लाख टन अनाज की ज़रूरत होगी, जिस पर सब्सिडी का मूल्य 1,24,747 करोड़ रुपये होगा, यानी सब्सिडी पर 23,794 करोड़ रुपये का अतिरिक्त ख़र्च होगा.
एक नमूना सर्वेक्षण के निष्कर्षो के आधार पर सब्सिडी के लाभार्थियों की कुल संख्या और दिए जाने वाले अनाज की मात्रा पर सब्सिडी के ख़र्च का आकलन करना और इसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश के अंतर्गत होने वाले ख़र्च की अतिरंजित गणना के लिए आधार बनाना उचित नहीं होगा. सब्सिडी पर ख़र्च का आकलन केंद्र सरकार द्वारा आवंटित अनाज की मात्रा और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा उठाए गए अनाज के आधार पर होगा, न कि परिवारों की संख्या और प्रत्येक परिवार के लिए अनाज वितरण की मात्रा के आधार पर, जैसा कि नमूना सर्वेक्षण के ज़रिये आकलन लगाया गया है. हद से हद नमूना सर्वेक्षण सार्वजनिक वितरण प्रणाली से होने वाली अनाज की चोरी और दूसरी जगह बेचे जाने वाले अनाज की और इशारा करता है. इस तरह की चोरी को रोकने के उपाय किए जा रहे हैं और इस व्यवस्था को सूचना संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) उपकरणों और अन्य साधनों के बेहतर इस्तेमाल से सुदृढ़ बनाया जाएगा.
आमतौर पर कहा जाता है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बड़े सुधार की ज़रूरत है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश इस मुद्दे को कैसे हल करेगा?
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का संचालन केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त ज़िम्मेदारी है, जबकि केंद्र सरकार अनाज की ख़रीद और भंडारण तथा राज्यों को अनाजों के बड़ी मात्रा में आवंटन के लिए ज़िम्मेदार है. राज्यों में आवंटन सहित प्रणाली के संचालन, पात्र परिवारों की पहचान, राशन कार्ड जारी करना, उचित दर दुकानों आदि के संचालन और निगरानी की ज़िम्मेदारी राज्य सरकारों की है. इसके अनुसार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश में व्यवस्था है कि केंद्र और राज्य सरकारें लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आवश्यक सुधारों के लिए क़दम उठाएंगी, जैसे कि अनाज को उचित दर दुकानों तक पहुंचाना, अनाज के कहीं और इस्तेमाल को रोकने के लिए पूरी तरह कम्प्यूटर रिकॉर्ड रखना, पारदर्शिता, उचित दर दुकानों के लिए लाइसेंस देने में पंचायतों, स्वयं सहायता समूहों, सहकारी समितियों को प्राथमिकता देना, महिलाओं,उनके समूहों को प्रंबधन सौंपना आदि.
वितरण प्रणाली विभाग ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुचारू और मज़बूत बनाने के लिए कई उपाय शुरू किए हैं. इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली का पूरी तरह कंप्यूटर से संचालनः
राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को आवश्यक ढांचागत और वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए सरकार सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के संचालन के लिए पूरी तरह कम्प्यूटर के प्रयोग की योजना लागू कर रही है, जिसके ख़र्च में सरकार हिस्सा देगी. इस योजना के पहले भाग पर अनुमानतः884.07 करोड़ रुपये ख़र्च आएगा. इसमें राशन कार्डों/लाभार्थियों और डाटाबेसों का डिजिटीकरण, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन का कम्प्यूटरीकरण, पारदर्शिता पोर्टल की स्थापना और शिकायत निवारण व्यवस्था जैसे उपाय शामिल हैं.
लाभार्थियों का डाटाबेस बनने से राशन कार्डों के दोबारा बनने पर रोक लगाने में, जाली राशन कार्डों को समाप्त करने में और सब्सिडी राशि सही लोगों को दिलाने में मदद मिलेगी. आपूर्ति श्रृंखला के कम्प्यूटरीकरण से उचित दर दुकानों तक अनाज की आपूर्ति पर नज़र रखी जा सकती है और अनाज की चोरी तथा कहीं और भेजे जाने की समस्या से निपटा जा सकता है. पारदर्शिता पोर्टल से उचित दर दुकानों का कामकाज सुचारू रूप से चलेगा और विभिन्न स्तरों पर जवाबदेही सुनिश्चित होगी. लाभार्थी अपनी शिकायतें टॉल फ्री नम्बर के ज़रिये दर्ज करा सकते हैं और समाधान पा सकते हैं.
राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा किए जा रहे अन्य उपाय
जाली राशन कार्डों को समाप्त करने के लिए राज्यों द्वारा बीपीएल/एएवाई सूचियों की समीक्षा का अभियानः 31-3-2013 तक 28 राज्यों में कुल 364.01 लाख जाली/ग़लत राशन कार्डों को रद्द किया गया.
उचित दर दुकानों तक अनाज की आपूर्तिः उचित दर दुकानों तक अनाजों की आपूर्ति शुरू की गई, ताकि कोई चोरी न हो और अनाज कहीं और न भेजा जा सके.
उचित दर दुकानों के लाइसेंस स्वयं सहायता समूहों, ग्राम पंचायतों, सहकारी समितियों आदि को देनाः कुल संचालित लगभग 5.16 लाख उचित दर दुकानों में से करीब 1.21 उचित दर दुकानें 30 राज्यों में इन संगठनों द्वारा चलाई जा रही हैं.
उचित दर दुकानों के व्यापारियों के कमीशन की व्यवहार्यताः राज्यों से कहा गया है कि उचित दर दुकानों के व्यापारियों को दिए जा रहे कमीशन का पुनर्मूल्यांकन करें और उसे बढ़ाएं. 14 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों ने पुष्टि की है कि इन राज्यों में उचित दर दुकानें सार्वजनिक वितरण प्रणाली से अलग खाद्य तेल दालें, दूध, पाउडर, साबुन आदि भी बेच रही हैं.
भंडारण सुविधाओं के अभाव के कारण खाद्यान्नों के सड़ने के तमाम मामले सामने आए हैं. अधिक भंडार गृहों के निर्माण के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश में क्या प्रावधान किए गए हैं?
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश में प्रावधान किया गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें केंद्रीय और राज्य स्तर पर वैज्ञानिक भंडारण सुविधाओं के निर्माण और रख-रखाव के लिए क़दम उठाएंगी. एक तरफ़ केंद्र सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह केंद्रीय पूल में खाद्यान्नों के भंडारण के लिए सुरक्षित सुविधाएं तैयार करेगी, वहीं राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के लिए यह ज़रूरी होगा कि वे वितरण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न स्थानों पर खाद्यान्नों के भंडारण संबंधी सुविधाएं प्रदान करेगी.
अ. उपलब्ध भंडारण क्षमता और उसको बढ़ाने की पहलें
- 31 मई, 2013 तक भारतीय खाद्य निगम के पास ढंकी हुई तथा फ़र्श और छत वाली भंडारण क्षमता 397.02 लाख मीट्रिक टन है. खाद्यान्नों के केंद्रीय भंडारण संबंधी राज्य एजेंसियों के पास ढंकी हुई तथा फ़र्श और छत वाली भंडारण क्षमता तक़रीबन 431.35 लाख मीट्रिक टन है. इस तरह खाद्यान्नों के केंद्रीय भंडारण संबंधी क्षमता तक़रीबन 738 लाख मीट्रिक टन उपलब्ध थी, जो 30 जून, 2013 को 739 लाख मीट्रिक टन रही.
- सरकार ढंकी हुई भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए निजी उद्यम गांरटी योजना को कामयाबी के साथ क्रियान्वित कर रही है. इस योजना के तहत गोदामों के निर्माण के लिए निजी निवेश को आकर्षित किया जा रहा है. इसके संबंध में इस योजना के तहत निर्मित किए जाने वाले गोदामों को दस साल की अवधि के लिए किराये पर लिए जाने की गांरटी दी जाएगी. इस तरह निवेशकों को निवेश पर बेहतर लाभ सुनिश्चित किया जाएगा.
- 31 मई, 2013 तक तक़रीबन 203 लाख मीट्रिक टन क्षमता वाले गोदामों का निर्माण 19 राज्यों में किए जाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी गई है, जिनमें से 145.06 मीट्रिक टन क्षमता वाले गोदामों के निर्माण का अनुमोदन कर दिया गया है. योजना के तहत 31 मई, 2013 तक 71.08 लाख मीट्रिक टन की क्षमता पूरी कर ली गई है.
- दीर्घकालीन वैज्ञानिक भंडारण को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने 20 लाख मीट्रिक टन की भंडारण क्षमता तैयार करने की मंज़ूरी दे दी है, जो पीईजी योजना की कुल स्वीकृत क्षमता के दायरे में है.
- सरकार ने भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से अगले तीन से चार वर्षों के दौरान ख़ास तौर से पूर्वोत्तर में 5.40 लाख मीट्रिक टन की अतिरिक्त भंडारण क्षमता के निर्माण के लिए एक योजना को अंतिम रूप दिया है. पूर्वोत्तर क्षेत्र में इस तरह की क्षमता के निर्माण के बाद वहां क़रीब तीन से चार महीनों तक भंडारण आवश्यकताएं पूरी हो सकेंगी.
ब अनाजों का सड़ना
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदामों में अनाजों को जमा करने तथा रखने के दौरान नुक़सान को टालने के लिए गोदामों में अनाजों को वैज्ञानिक तरीके से स्टोर करके रखने और अनाजों की गुणवत्ता बनाए रखने की स्थापित व्यवस्था है. खाद्य और जन वितरण विभाग समय-समय पर सभी राज्य सरकारों/केंद्र शासित शासनों को उगाही, भंडारीकरण और वितरण के दौरान गुणवत्ता नियंत्रण व्यवस्था को उचित तरीक़े से लागू करने के लिए निर्देश जारी करता है. अनेक कारणों से कुछ मात्रा में अनाज नुक़सान हो सकते हैं. इन कारणों में भंडारों में कीटाणुओं का हमला, गोदामों में रिसाव, ख़राब स्टॉक की उगाही तथा भंडारण के लिए जगह की कमी, बाढ़ और संबद्ध अधिकारी की लापरवाही शामिल हैं.
गोदामों की पूरी श्रृंखला में डिलीवरी प्रणाली में लीकेज देखी जाती है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश कैसे भ्रष्टाचार मुक्त प्रणाली सुनिश्चित करेगा?
अनाजों की लीकेज और अनाजों को इधर-उधर करने जैसे काम पर काबू पाने के लिए निम्न उपाय कारगर साबित हो सकते हैं:-
- राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को घरों की पहचान करने के लिए पारदर्शी तौर-तरीक़े विकसित करने होंगे. वर्तमान सार्वजनिक वितरण प्रणाली में नाम शामिल होने और नाम हटाये जाने की समस्या का हल अधिकार आधारित व्यवस्था में हक़दारों को अनाज देने के लिए पारदर्शी तरीक़े से लाभार्थियों की पहचान करने से होगा.
- अनाजों की लीकेज और अनाजों को इधर-उधर करने के काम पर नियंत्रण पाने के लिए पूरी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के संचालन को प्रारंभ से अंत तक कम्प्यूटरीकृत करना होगा.
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश में लाभार्थी को उचित मात्रा में अनाज देने तथा लाभार्थियों की शिकायत की जांच और निवारण के लिए राज्य और जिला स्तर पर शिकायत निवारण अधिकारियों का प्रावधान है.
एहतियाती क़दम उठाने आदि-
निरंतर निगरानी और जानकारी के कारण भारतीय खाद्य निगम के गोदामों में अनाज नुक़सान मात्रा और प्रतिशत की दृष्टि से कम हुआ है और अब यह बहुत कम है. इसे नीचे दी गई तालिका से समझा जा सकता है-
साल
|
एफसीआई स्टॉक से अनाज उठान
(लाख टन)
|
नुक़सान की मात्रा
(लाख टन)
|
नुक़सान हुए अनाज का प्रतिशत
|
2007-08
|
324.50
|
0.34
|
0.10
|
2008-09
|
306.20
|
0.20
|
0.07
|
2009-10
|
371.06
|
0.07
|
0.02
|
2010-11
|
432.10
|
0.06
|
0.014
|
2011-12
|
473.59
|
0.03
|
0.006
|
2012-13
|
552.60
|
0.03
|
0.005
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देश में कोई भूखा न सोये, देश में कोई भूख से न मरे, बस यही एक छोटा सा सपना।
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