Thursday, April 23, 2015

ज़रा सोचिये...


फ़िरदौस ख़ान
जो लोग दूसरों का हक़ मार कर ऐशो-इशरत की ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं, वो अपने गुनाहों का बोझ कैसे उठाएंगे...? मेहनतकश किसानों से उनकी ज़मीनें छीनी जा रही हैं... ग़रीबों को बेघर करने वाले अपनी सालगिरह तक पर अरबों रुपये ख़र्च कर रहे हैं... क्या इन लोगों का ज़मीर बिल्कुल मर चुका है... ? क्या इन्हें ज़रा भी ख़ौफ़े-ख़ुदा नहीं है...?
हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं-
जो शख़्स दुनिया में कम हिस्सा लेता है, वो अपने लिए राहत का सामान बढ़ा लेता है. और जो दुनिया को ज़्यादा समेटता है, वो अपने लिए तबाहकुन चीज़ों का इज़ाफ़ा कर लेता है...

1 Comments:

रचना दीक्षित said...

विकास की जो राह हमने हमने चुनी है वह हमें जमीन से दूर करती जा रही है. इसके परिणाम तो धीरे धीरे ही पता चलेंगे तब तक शायद बहुत देर हो चुकी होगी.

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