Thursday, July 23, 2015

क़ुरान के शायद सबसे पुराने वर्क़


ब्रिटेन के बर्मिंघम विश्वविद्यालय में क़ुरआन करीम के शायद सबसे पुराने वर्क़ मिले हैं. पन्नों की रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक की जांच से पता चला कि क़ुरआन के ये पन्ने कम से कम 1370 साल पुराने हैं. भेड़ या बकरी की खाल पर लिखे गए क़ुरान के इन पन्नों की जांच से कई तारीख़े मिलती हैं, इसलिए 95 फ़ीसद संभावना है कि ये पन्ने 568 ईस्वी से 645 ईस्वी के बीच के हैं.
शोधकर्ताओं ने इस बात की भी संभावना जताई है कि जिस शख़्स ने क़ुरआन के ये पन्ने लिखे होंगे, वो पैग़म्बर हज़रत मुहम्‍मद (सल्‍लललाहु अलैहि वसल्‍लम) से मिला हो. विश्वविद्यालय में ईसाइयत और इस्लाम के प्रोफ़ेसर डेविड थॉमस कहते हैं, यह दस्तावेज़ हमें इस्लाम की स्थापना के कुछ सालों के अंतराल में पहुंचा सकते हैं. मुस्लिम मान्यताओं के मुताबिक़ पैग़म्बर हज़रत मुहम्‍मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्‍लम) को अल्लाह का पैग़ाम 610 से 632 के बीच ही मिला था, जो क़ुरआन का आधार बना.

साभार बीबीसी

Sunday, July 12, 2015

खाना


हम खाना खाते वक़्त हज़ार नख़रे करते हैं... हमें ये सब्ज़ी पसंद नहीं, हमें वो सब्ज़ी पसंद नहीं... दूध पीने के मामले में भी सौ नख़रे... मां से कितनी ही मिन्नतें करवाने के बाद दूध पीते हैं...  अमूमन हर आम घर की ये कहानी है...
लेकिन हम ये नहीं जानते कि इस दुनिया में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें न तो पेट भरने के लिए रोटी मिलती है और न ही पीने के लिए साफ़ पानी... करोड़ों लोग हर रोज़ भूखे पेट सोते हैं... दुनिया भर में लोग भूख से मर रहे हैं...
लाखों बच्चों को दूध तो क्या, पीने के लिए पेटभर उबले चावल का पानी तक नसीब नहीं होता... और भूख से बेहाल बच्चे दम तोड़ देते हैं...
अल्लाह ने जो दिया है, उसका शुक्र अदा करके उसे ख़ुशी-ख़ुशी खा लेना चाहिए... क्या हुआ अगर एक दिन घर में हमारी पसंद की सब्ज़ी नहीं बनी है तो...
फ़िरदौस ख़ान

Thursday, July 9, 2015

रोटी बैंक...


फ़िरदौस ख़ान
इंसान चाहे, तो क्या नहीं कर सकता. उत्तर प्रदेश के महोबा ज़िले के बाशिन्दों ने वो नेक कारनामा कर दिखाया है, जिसके लिए इंसानियत हमेशा उन पर फ़ख़्र करेगी.  बुंदेली समाज के अध्यक्ष हाजी मुट्टन चच्चा और संयोजक तारा पाटकर ने कुछ लोगों के साथ मिलकर एक ऐसे बैंक की शुरुआत की है, जो भूखों को रोटी मुहैया कराता है.
बीती 15 अप्रैल से शुरू हुए इस बैंक में हर घर से दो रोटियां ली जाती हैं. शुरू में इस बैंक को सिर्फ़ 10 घरों से ही रोटी मिलती थी, लेकिन रफ़्ता-रफ़्ता इनकी तादाद बढ़ने लगी और अब 400 घरों से रोटियां मिलती हैं. इस तरह हर रोज़ बैंक के पास 800 रोटियां जमा हो जाती हैं,  जिन्हें पैकेट बनाकर ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जाता है. इस वक़्त 40 युवा और पांच वरिष्ठ नागरिक इस मुहिम को चला रहे हैं.
शाम को युवा घर-घर जाकर रोटी और सब्ज़ी जमा करते हैं. फिर इनके पैकेट बनाकर इन्हें उन लोगों को पहुंचाते हैं, जिनके पास खाने का कोई इंतज़ाम नहीं है. पैकिंग का काम महिलाएं करती हैं. इस काम में तीन से चार घंटे का वक़्त लगता है. फ़िलहाल बैंक एक वक़्त का खाना ही मुहैया करा रहा है, भविष्य में दोनों वक़्त का खाना देने की योजना है.
इस नेक काम में लगे लोग बहुत ख़ुश हैं. अगर देशभर में इस तरह के रोटी बैंक खुल जाएं, तो फिर कोई भूखा नहीं सोएगा.

Monday, July 6, 2015

अंगदान


एक मुसलमान शख़्स की दोनों किडनियां ख़राब हो चुकी हैं... उसका भाई उसे अपनी एक किडनी देना चाहता है, ताकि उसकी जान बचाई जा सके...
मज़हबी लोगों का कहना है कि इस्लाम अंगदान की इजाज़त नहीं देता... क्या उस शख़्स को मौत के मुंह में जाते हुए देखना सही है...?

बीबीसी के मुताबिक़ ब्रिटेन में पिछले साल किडनी ट्रांसप्लांट का इंतज़ार कर रहे एशियाई मूल के 70 मरीज़ों की मौत हो गई. इसकी एक वजह ये है कि कई मुसलमानों को लगता है कि अंगदान इस्लाम के ख़िलाफ़ है. लेकिन ब्रिटेन में एक मुहिम चलाकर बताया जा रहा है कि अगर किसी की ज़िन्दगी बचाने के लिए ऐसा करना हो, तो इस्लाम में उसकी इजाज़त है.