फ़िरदौस ख़ान
कहते हैं जब तरक़्क़ी मिलती है, तो उसके साथ ही ज़िम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं. उन्हें पार्टी का अध्यक्ष पद मिल गया है और इसके साथ ही उन्हें ढेर सारी चुनौतियां भी मिली हैं, जिसका सामना उन्हें क़दम-क़दम पर करना है. राहुल गांधी ऐसे वक़्त में पार्टी के अध्यक्ष बने हैं, जब कांग्रेस देश की सत्ता से बाहर है. ऐसी हालत में उन पर दोहरी ज़िम्मेदारी आन पड़ी है. पहली ज़िम्मेदारी पार्टी संगठन को मज़बूत बनाने की है और दूसरी खोई हुई हुकूमत को फिर से हासिल करने की है. राहुल गांधी पर इससे बड़ी भी एक ज़िम्मेदारी है और वह है देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी, देश में चैन-अमन क़ायम करने की ज़िम्मेदारी. देश में ऐसा माहौल बनाने की ज़िम्मेदारी, जिसमें सभी मज़हबों के लोग चैन-अमन के साथ मिलजुल कर रह सकें. पिछले तीन-चार सालों में देश में जो सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं, उनकी वजह से न सिर्फ़ देश का माहौल ख़राब हुआ है, बल्कि विदेशों में भी भारत की छवि धूमिल हुई है. ऐसी हालत में देश को, अवाम को राहुल गांधी से बहुत उम्मीदें हैं.
देश के कई राज्यों में जहां पहले कांग्रेस की हुकूमत हुआ करती थी, अब वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. लगातार बढ़ती महंगाई, नोटबंदी, जीएसटी और सांप्रदायिक घटनाओं को लेकर लोग भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ नज़र आ रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के पास अच्छा मौक़ा है. वह जन आंदोलन चलाकर भारी जन समर्थन जुटा सकती है, अपना जनाधार बढ़ा सकती है, पार्टी को मज़बूत कर सकती है. इसके लिए राहुल गांधी को देशभर के सभी राज्यों में युवा नेतृत्व को आगे लाना होगा. इसके साथ ही कांग्रेस के शासनकाल में हुए विकास कार्यों को भी जनता के बीच रखना होगा. जनता को बताना होगा कि कांग्रेस और भाजपा के शासन में क्या फ़र्क़ है. कांग्रेस ने मनरेगा, आरटीआई और खाद्य सुरक्षा जैसी अनेक कल्याणकारी योजनाएं दीं, जिनका सीधा फ़ायदा जनता को हुआ. लेकिन कांग्रेस के नेता चुनावों में इनका कोई भी फ़ायदा नहीं ले पाए. यह कांग्रेस की बहुत बड़ी कमी रही, जबकि भारतीय जनता पार्टी जनता से कभी पूरे न होने वाले लुभावने वादे करके सत्ता तक पहुंच गई.
ये कांग्रेस की ख़ासियत है कि वह जन हित की बात करती है, जनता की बात करती है. कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है, जो बिना किसी भेदभाव के सभी तबक़ों को साथ लेकर चलती है. कांग्रेस ने देश के लिए बहुत कुछ किया है. जिन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है, उनमें कांग्रेस के ही नेता सबसे आगे रहे हैं, चाहे वह पंडित जवाहरलाल नेहरू हों या फिर श्रीमती इंदिरा गांधी या उनके बेटे राजीव गांधी. कांग्रेस की अध्यक्ष रहते हुए श्रीमती सोनिया गांधी ने पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया. उन्होंने एक दशक तक देश को मज़बूत और जन हितैषी सरकार दी. अब बारी राहुल गांधी की है. मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि आज देश को राहुल गांधी जैसे ईमानदार नेता की ज़रूरत है, जो मक्कारी और फ़रेब की सियासत नहीं करते. वे बेबाक कहते हैं, 'मैं झूठे वादे नहीं करता. इससे मुझे नुक़सान भी होता है. अगर कोई मुझसे कहे कि आप झूठ बोल कर राजनीति करो, तो मैं यह नहीं कर सकता." राहुल गांधी की यही ईमानदारी उन्हें क़ाबिले-ऐतबार बनाती है, उन्हें लोकप्रिय बनाती है. सनद रहे कि एक सर्वे में विश्वसनीयता के मामले में दुनिया के बड़े नेताओं में राहुल गांधी को तीसरा दर्जा मिला हैं, यानी दुनिया भी उनकी ईमानदारी का लोहा मानती है. उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस कामयाबी की बुलंदियों को छुये, ऐसी उम्मीद उनसे की जा सकती है.
राहुल गांधी पर यह भी ज़िम्मेदारी रहेगी कि युवाओं को आगे लाने के साथ-साथ वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी साथ लेकर चलें. वरिष्ठ नेताओं के अनुभव की रौशनी में युवा नेताओं का जोश और मेहनत पार्टी को मज़बूती दे सकती है. इसके साथ ही उन्हें अंदरूनी कलह से भी चो-चार होना पड़ेगा. पार्टी का नया संगठन खड़ा होना है, ऐसे में जिन लोगों को उनकी पसंद का पद नहीं मिलेगा, वे पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं. इतना ही नहीं, पार्टी को रणनीति पर भी ख़ास ध्यान देना होगा. एक छोटी-सी ग़लती भी बड़े नुक़सान की वजह बन जाया करती है. मिसाल के तौर पर मणिपुर और गोवा को ही लें, इन दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन सियासी रणनीति सही नहीं होने की वजह से कांग्रेस सरकार बनाने में नाकाम रही. इतना ही नहीं, बिहार के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भी कांग्रेस सरकार को संभाल नहीं पाई और सत्ता भारतीय जनता पार्टी ने हथिया ली. यहां भी कांग्रेस को बड़ी नाकामी मिली. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस की नैया डुबोने में पार्टी के खेवनहारों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. राहुल गांधी को इस बात को भी मद्देनज़र रखते हुए आगामी रणनीति बनानी होगी. कांग्रेस के कुछ नेताओं ने पार्टी को अपनी जागीर समझ रखा है और सत्ता के मद में चूर वे कार्यकर्ताओं और जनता से दूर होते चले गए, जिसका ख़ामियाज़ा कांग्रेस को पिछले आम चुनाव और विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ा. पार्टी की अंदरूनी कलह, आपसी खींचतान, कार्यकर्ताओं की बात को तरजीह न देना कांग्रेस के लिए नुक़सानदेह साबित हुआ. हालत यह रही कि अगर कोई कार्यकर्ता पार्टी के नेता से मिलना चाहे, तो उसे वक़्त नहीं दिया जाता था. कांग्रेस में सदस्यता अभियान के नाम पर भी सिर्फ़ ख़ानापूर्ति ही की गई. इसके दूसरी तरफ़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाने के लिए दिन-रात मेहनत की. भाजपा का जनाधार बढ़ाने पर ख़ासा ज़ोर दिया. संघ और भाजपा ने ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पार्टी से जोड़ा. केंद्र में सत्ता में आने के बाद भी भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है. कांग्रेस को भी अपना जनाधार बढ़ाने और उसे मज़बूत करने पर ध्यान देना चाहिए.
राहुल गांधी पिछड़ों और दलितों को पार्टी से जोड़ने का काम कर रहे हैं, इसका उन्हें फ़ायदा होगा. उन्हें अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुसलमानों को भी कांग्रेस से जोड़ने के लिए काम शुरू करना चाहिए. वैसे तो मुस्लिम कांग्रेस के कट्टर समर्थक रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ बरसों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाई है. इससे मुस्लिम वोट का बंटवारा हो गया, जिसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा भारतीय जनता पार्टी को होता है.
साल 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं. इससे पहले आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे, जिनमें कर्नाटक, मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा और नगालैंड शामिल हैं. कर्नाटक, मेघालय और मिज़ोरम में कांग्रेस की हुकूमत है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता है. इन राज्यों में कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी से कड़ा मुक़ाबला करना होगा. इसके लिए कांग्रेस को अभी से तैयारी शुरू करनी होगी. गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे इन राज्यों को कितना प्रभावित करते हैं, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.
बहरहाल, राहुल गांधी को अपनी पार्टी के नेताओं, सांसदों, विधायकों, कार्यकर्ताओं और समर्थकों से ऐसा रिश्ता क़ायम करना होगा, जिसे बड़े से बड़ा लालच भी तोड़ न पाए. इसके लिए उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से संवाद करना होगा, आम लोगों से मिलना होगा, उनके मन की बात सुननी होगी. राहुल गांधी ने पार्टी संगठन को मज़बूत कर लिया, तो बेहतर नतीजों की उम्मीद की जा सकती है. उन्हें चाहिए कि वे पार्टी के आख़िरी कार्यकर्ता तक से संवाद करें. उनकी पहुंच हर कार्यकर्ता तक हो और कार्यकर्ता की पहुंच राहुल गांधी तक होनी चाहिए. अगर ऐसा हो गया तो कांग्रेस को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाएगा और आने वाला वक़्त कांग्रेस का होगा. राहुल गांधी के पास वक़्त है, मौक़ा है, वे चाहें तो इतिहास रच सकते हैं.
कहते हैं जब तरक़्क़ी मिलती है, तो उसके साथ ही ज़िम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं. उन्हें पार्टी का अध्यक्ष पद मिल गया है और इसके साथ ही उन्हें ढेर सारी चुनौतियां भी मिली हैं, जिसका सामना उन्हें क़दम-क़दम पर करना है. राहुल गांधी ऐसे वक़्त में पार्टी के अध्यक्ष बने हैं, जब कांग्रेस देश की सत्ता से बाहर है. ऐसी हालत में उन पर दोहरी ज़िम्मेदारी आन पड़ी है. पहली ज़िम्मेदारी पार्टी संगठन को मज़बूत बनाने की है और दूसरी खोई हुई हुकूमत को फिर से हासिल करने की है. राहुल गांधी पर इससे बड़ी भी एक ज़िम्मेदारी है और वह है देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी, देश में चैन-अमन क़ायम करने की ज़िम्मेदारी. देश में ऐसा माहौल बनाने की ज़िम्मेदारी, जिसमें सभी मज़हबों के लोग चैन-अमन के साथ मिलजुल कर रह सकें. पिछले तीन-चार सालों में देश में जो सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं, उनकी वजह से न सिर्फ़ देश का माहौल ख़राब हुआ है, बल्कि विदेशों में भी भारत की छवि धूमिल हुई है. ऐसी हालत में देश को, अवाम को राहुल गांधी से बहुत उम्मीदें हैं.
देश के कई राज्यों में जहां पहले कांग्रेस की हुकूमत हुआ करती थी, अब वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. लगातार बढ़ती महंगाई, नोटबंदी, जीएसटी और सांप्रदायिक घटनाओं को लेकर लोग भारतीय जनता पार्टी के ख़िलाफ़ नज़र आ रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के पास अच्छा मौक़ा है. वह जन आंदोलन चलाकर भारी जन समर्थन जुटा सकती है, अपना जनाधार बढ़ा सकती है, पार्टी को मज़बूत कर सकती है. इसके लिए राहुल गांधी को देशभर के सभी राज्यों में युवा नेतृत्व को आगे लाना होगा. इसके साथ ही कांग्रेस के शासनकाल में हुए विकास कार्यों को भी जनता के बीच रखना होगा. जनता को बताना होगा कि कांग्रेस और भाजपा के शासन में क्या फ़र्क़ है. कांग्रेस ने मनरेगा, आरटीआई और खाद्य सुरक्षा जैसी अनेक कल्याणकारी योजनाएं दीं, जिनका सीधा फ़ायदा जनता को हुआ. लेकिन कांग्रेस के नेता चुनावों में इनका कोई भी फ़ायदा नहीं ले पाए. यह कांग्रेस की बहुत बड़ी कमी रही, जबकि भारतीय जनता पार्टी जनता से कभी पूरे न होने वाले लुभावने वादे करके सत्ता तक पहुंच गई.
ये कांग्रेस की ख़ासियत है कि वह जन हित की बात करती है, जनता की बात करती है. कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है, जो बिना किसी भेदभाव के सभी तबक़ों को साथ लेकर चलती है. कांग्रेस ने देश के लिए बहुत कुछ किया है. जिन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है, उनमें कांग्रेस के ही नेता सबसे आगे रहे हैं, चाहे वह पंडित जवाहरलाल नेहरू हों या फिर श्रीमती इंदिरा गांधी या उनके बेटे राजीव गांधी. कांग्रेस की अध्यक्ष रहते हुए श्रीमती सोनिया गांधी ने पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया. उन्होंने एक दशक तक देश को मज़बूत और जन हितैषी सरकार दी. अब बारी राहुल गांधी की है. मौजूदा हालात को देखते हुए यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि आज देश को राहुल गांधी जैसे ईमानदार नेता की ज़रूरत है, जो मक्कारी और फ़रेब की सियासत नहीं करते. वे बेबाक कहते हैं, 'मैं झूठे वादे नहीं करता. इससे मुझे नुक़सान भी होता है. अगर कोई मुझसे कहे कि आप झूठ बोल कर राजनीति करो, तो मैं यह नहीं कर सकता." राहुल गांधी की यही ईमानदारी उन्हें क़ाबिले-ऐतबार बनाती है, उन्हें लोकप्रिय बनाती है. सनद रहे कि एक सर्वे में विश्वसनीयता के मामले में दुनिया के बड़े नेताओं में राहुल गांधी को तीसरा दर्जा मिला हैं, यानी दुनिया भी उनकी ईमानदारी का लोहा मानती है. उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस कामयाबी की बुलंदियों को छुये, ऐसी उम्मीद उनसे की जा सकती है.
राहुल गांधी पर यह भी ज़िम्मेदारी रहेगी कि युवाओं को आगे लाने के साथ-साथ वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी साथ लेकर चलें. वरिष्ठ नेताओं के अनुभव की रौशनी में युवा नेताओं का जोश और मेहनत पार्टी को मज़बूती दे सकती है. इसके साथ ही उन्हें अंदरूनी कलह से भी चो-चार होना पड़ेगा. पार्टी का नया संगठन खड़ा होना है, ऐसे में जिन लोगों को उनकी पसंद का पद नहीं मिलेगा, वे पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं. इतना ही नहीं, पार्टी को रणनीति पर भी ख़ास ध्यान देना होगा. एक छोटी-सी ग़लती भी बड़े नुक़सान की वजह बन जाया करती है. मिसाल के तौर पर मणिपुर और गोवा को ही लें, इन दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया था, लेकिन सियासी रणनीति सही नहीं होने की वजह से कांग्रेस सरकार बनाने में नाकाम रही. इतना ही नहीं, बिहार के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भी कांग्रेस सरकार को संभाल नहीं पाई और सत्ता भारतीय जनता पार्टी ने हथिया ली. यहां भी कांग्रेस को बड़ी नाकामी मिली. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस की नैया डुबोने में पार्टी के खेवनहारों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. राहुल गांधी को इस बात को भी मद्देनज़र रखते हुए आगामी रणनीति बनानी होगी. कांग्रेस के कुछ नेताओं ने पार्टी को अपनी जागीर समझ रखा है और सत्ता के मद में चूर वे कार्यकर्ताओं और जनता से दूर होते चले गए, जिसका ख़ामियाज़ा कांग्रेस को पिछले आम चुनाव और विधानसभा चुनावों में उठाना पड़ा. पार्टी की अंदरूनी कलह, आपसी खींचतान, कार्यकर्ताओं की बात को तरजीह न देना कांग्रेस के लिए नुक़सानदेह साबित हुआ. हालत यह रही कि अगर कोई कार्यकर्ता पार्टी के नेता से मिलना चाहे, तो उसे वक़्त नहीं दिया जाता था. कांग्रेस में सदस्यता अभियान के नाम पर भी सिर्फ़ ख़ानापूर्ति ही की गई. इसके दूसरी तरफ़ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाने के लिए दिन-रात मेहनत की. भाजपा का जनाधार बढ़ाने पर ख़ासा ज़ोर दिया. संघ और भाजपा ने ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को पार्टी से जोड़ा. केंद्र में सत्ता में आने के बाद भी भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है. कांग्रेस को भी अपना जनाधार बढ़ाने और उसे मज़बूत करने पर ध्यान देना चाहिए.
राहुल गांधी पिछड़ों और दलितों को पार्टी से जोड़ने का काम कर रहे हैं, इसका उन्हें फ़ायदा होगा. उन्हें अल्पसंख्यकों ख़ासकर मुसलमानों को भी कांग्रेस से जोड़ने के लिए काम शुरू करना चाहिए. वैसे तो मुस्लिम कांग्रेस के कट्टर समर्थक रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ बरसों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाई है. इससे मुस्लिम वोट का बंटवारा हो गया, जिसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा भारतीय जनता पार्टी को होता है.
साल 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं. इससे पहले आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे, जिनमें कर्नाटक, मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा और नगालैंड शामिल हैं. कर्नाटक, मेघालय और मिज़ोरम में कांग्रेस की हुकूमत है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता है. इन राज्यों में कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी से कड़ा मुक़ाबला करना होगा. इसके लिए कांग्रेस को अभी से तैयारी शुरू करनी होगी. गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजे इन राज्यों को कितना प्रभावित करते हैं, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.
बहरहाल, राहुल गांधी को अपनी पार्टी के नेताओं, सांसदों, विधायकों, कार्यकर्ताओं और समर्थकों से ऐसा रिश्ता क़ायम करना होगा, जिसे बड़े से बड़ा लालच भी तोड़ न पाए. इसके लिए उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं से संवाद करना होगा, आम लोगों से मिलना होगा, उनके मन की बात सुननी होगी. राहुल गांधी ने पार्टी संगठन को मज़बूत कर लिया, तो बेहतर नतीजों की उम्मीद की जा सकती है. उन्हें चाहिए कि वे पार्टी के आख़िरी कार्यकर्ता तक से संवाद करें. उनकी पहुंच हर कार्यकर्ता तक हो और कार्यकर्ता की पहुंच राहुल गांधी तक होनी चाहिए. अगर ऐसा हो गया तो कांग्रेस को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाएगा और आने वाला वक़्त कांग्रेस का होगा. राहुल गांधी के पास वक़्त है, मौक़ा है, वे चाहें तो इतिहास रच सकते हैं.
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