किसी भी इंसान का बर्ताव उसके संस्कारों का परिचय देता है. संस्कार विरासत में मिलते हैं, घर से मिला करते हैं. संस्कार बाज़ार में नहीं मिलते. ज़्यादा पैसा या बड़ा पद मिलने से संस्कार नहीं मिल जाते. राहुल गांधी को देखें, वो अपने विरोधियों का नाम भी सम्मान के साथ लेते हैं, उनके नाम के साथ जी लगाते हैं, जबकि उनके विरोधी भले ही वे देश के बड़े से बड़े पद पर हों, उनके लिए ग़लत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. दरअसल, किसी का अपमान करना या उसके लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करके इंसान सामने वाला का अपमान नहीं करता, बल्कि अपने ही संस्कारों का प्रदर्शन करता है.
और जहां तक गणतंत्र दिवस समारोह में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल को छठी क़तार में बिठाने की बात है, तो उनके विरोधियों को समझना होगा कि जो अवाम के दिलों में बसते हैं, उन्हें इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उन्हें किस क़तार में बिठाया गया. राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, उन्हें पहली क़तार में जगह मिलनी चाहिए थी, लेकिन उन्हें छठी क़तार में जगह दी गई. उनके साथ राज्यसभा में पार्टी के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद बैठे थे. इसी दीर्घा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पहली क़तार में और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी दूसरी क़तार में नज़र आ रही थीं.
राहुल गांधी का कहना है कि उन्हें छठी की जगह, साठवीं क़तार में जगह दी जाए, तब भी वे समारोह में शिरकत करेंगे, क्योंकि उनके लिए राष्ट्रीय पर्व अहमियत रखता है, न कि बैठने की जगह. हालांकि कांग्रेस ने उन्हें पहली कतार में जगह नहीं दिए जाने पर सवाल उठाया था.
कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्विटर पर लिखा, "कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी को गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व पर अहंकारी शासकों ने सारी परंपराओं को दरकिनार करके पहले चौथी पंक्ति और फिर छठी पंक्ति में जानबूझकर बिठाया. हमारे लिए संविधान का उत्सव ही सर्वप्रथम है."
पहले राहुल गांधी के लिए चौथी कतार में जगह दिए जाने की बात सामने आई थी, लेकिन बाद में उन्हें छठी क़तार में जगह दी गई.
दरअसल, राहुल गांधी को पीछे जगह देकर केन्द की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अपनी ही छवि धूमिल की है. इस वाक़िये से राहुल गांधी की गरिमा और ज़्यादा बढ़ गई है.
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