फ़िरदौस ख़ान
लोकसभा चुनाव क़रीब हैं. इस समर को जीतने के लिए कांग्रेस दिन-रात मेहनत कर रही है. इसके मद्देनज़र पार्टी संगठन में भी लगातार बड़े बदलाव किए जा रहे हैं. सियासत के लिहाज़ से देश के सबसे महत्वपूर्ण प्रांत उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की कमान प्रियंका गांधी को सौंपी गई है. ग़ौरतलब है कि बीती 23 जनवरी को प्रियंका गांधी को कांग्रेस महासचिव बनाया गया था और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश के 41 लोकसभा क्षेत्रों की ज़िम्मेदारी दी गई थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया को महासचिव बनाने के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया गया था. उन्हें 39 लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को जिताने का दायित्व दिया गया था. अब इन दोनों नेताओं की मदद के लिए तीन-तीन सचिव नियुक्त किए गए हैं. नव नियुक्त पार्टी सचिव जुबेर ख़ान, कुमार आशीष और बाजीराव खाडे प्रियंका गांधी की मदद करेंगे, जबकि राणा गोस्वामी, धीरज गुर्जर और रोहित चौधरी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ काम करेंगे. कांग्रेस उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से ज़्यादा से ज़्यादा जीत लेना चाहती है.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कमज़ोर होने की कई वजहें रही हैं, जिनमें मज़बूत क्षेत्रीय नेतृत्व की कमी सबसे अहम वजह है. हालांकि कांग्रेस के सभी बड़े नेता उत्तर प्रदेश से ही चुनाव लड़ते रहे हैं, जिनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी शामिल हैं. लेकिन इनका दख़ल दिल्ली की सियासत में ज़्यादा रहा. मज़बूत नेतृत्व के अभाव में कांग्रेस कमज़ोर पड़ने लगी और लगातार राज्य की सत्ता से दूर होती गई. इसकी वजह से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटने लगा. ऐसे में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मज़बूत हुई. अब कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी खोई ज़मीन फिर से पाना चाहती है. इसके लिए वह ख़ासी मशक्क़त कर रही है.
कांग्रेस देश की माटी में रची-बसी है. देश का मिज़ाज हमेशा कांग्रेस के साथ रहा है और आगे भी रहेगा. कांग्रेस जनमानस की पार्टी रही है. कांग्रेस का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है. इस देश की माटी उन कांग्रेस नेताओं की ऋणी है, जिन्होंने अपने ख़ून से इस धरती को सींचा है. देश की आज़ादी में महात्मा गांधी के योगदान को भला कौन भुला पाएगा. देश को आज़ाद कराने के लिए उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी समर्पित कर दी. पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने देश के लिए, जनता के लिए बहुत कुछ किया. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने विकास की जो बुनियाद रखी, इंदिरा गांधी ने उसे परवान चढ़ाया. राजीव गांधी ने देश के युवाओं को आगे बढ़ने की राह दिखाई. उन्होंने युवाओं के लिए जो ख़्वाब संजोये, उन्हें साकार करने में सोनिया गांधी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. अब कांग्रेस की अगली पीढ़ी के नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कंधों पर ज़िम्मेदारी है कि वे अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ाएं और अवाम को वह हुकूमत दें, जिसमें सभी लोग मिलजुल रहा करते हैं. पिछले कुछ बरसों से लोग ‘अच्छे दिनों’ के लिए तरस रहे हैं. समाज में फैले नफ़रत और अविश्वास के इस दौर में कांग्रेस ही देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने का काम कर सकती है. जनता को कांग्रेस से उम्मीदें हैं, क्योंकि राहुल गांधी किसी ख़ास तबक़े के नेता न होकर जन नेता हैं. वे कहते हैं, "जब भी मैं किसी देशवासी से मिलता हूं. मुझे सिर्फ़ उसकी भारतीयता दिखाई देती है. मेरे लिए उसकी यही पहचान है. अपने देशवासियों के बीच न मुझे धर्म, ना वर्ग, ना कोई और अंतर दिखता है."
जनता को ऐसी सरकार चाहिए, जो जनहित की बात करे, जनहित का काम करे. बिना किसी भेदभाव के सभी तबक़ों को साथ लेकर चले. कांग्रेस ने जनहित में बहुत काम किए हैं. ये अलग बात है कि वे अपने जन हितैषी कार्यों का प्रचार नहीं कर पाई, उनसे कोई फ़ायदा नहीं उठा पाई, जबकि भारतीय जनता पार्टी लोक लुभावन नारे देकर सत्ता तक पहुंच गई. बाद में ख़ुद प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी के चुनावी वादों को’ जुमला’ क़रार दे दिया. आज देश को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे नेताओं की ज़रूरत है, जो छल और फ़रेब की राजनीति नहीं करते. राहुल गांधी कहते हैं, ''मैं गांधीजी की सोच से राजनीति करता हूं. अगर कोई मुझसे कहे कि आप झूठ बोल कर राजनीति करो, तो मैं यह नहीं कर सकता. मेरे अंदर ये है ही नहीं. इससे मुझे नुक़सान भी होता है. 'मैं झूठे वादे नहीं करता. " क़ाबिले-ग़ौर है कि एक सर्वे में विश्वसनीयता के मामले में दुनिया के बड़े नेताओं में राहुल गांधी को तीसरा दर्जा मिला है, यानी दुनिया भी उनकी विश्वसनीयता का लोहा मानती है.
फ़िलहाल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कंधों पर दोहरी ज़िम्मेदारी है. उन्हें पार्टी को मज़बूत बनाने के साथ-साथ खोई हुई हुकूमत को भी हासिल करना है. उन्हें चाहिए कि वे देश भर के सभी राज्यों में युवा नेतृत्व ख़ड़ा करें. इस बात में कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस की नैया डुबोने में इसके खेवनहारों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. राहुल गांधी को इस बात को भी समझना होगा और इसी को मद्देनज़र रखते हुए आगामी रणनीति बनानी होगी. वैसे अब राहुल गांधी अंदरूनी कलह, ख़ेमेबाज़ी और बग़ावत को लेकर काफ़ी सख्त़ हुए हैं. प्रियंका गांधी ने तो साफ़ कह दिया है कि जो नेता पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए जाएंगे, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.
दरअसल, पार्टी के कुछ नेताओं ने कांग्रेस को अपनी जागीर समझ लिया था और सत्ता के मद में चूर वे कार्यकर्ताओं से भी दूर होते गए. नतीजतन, जनमानस ने कांग्रेस को सबक़ सिखाने की ठान ली और उसे सत्ता से बदख़ल कर दिया. वोटों के बिखराव और सही रणनीति की कमी की वजह से कांग्रेस को ज़्यादा नुक़सान हुआ. लेकिन इसका यह मतलब क़तई नहीं कि कांग्रेस का जनाधार कम हुआ है. पिछले लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ा है. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया और कई राज्यों में सत्ता में वापसी की. इससे पार्टी नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं में भी भारी उत्साह है. भारतीय जनता पार्टी व अन्य सियासी दलों के नेता भी कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं.
आज़ादी के बाद से देश में सबसे ज़्यादा वक़्त तक हुकूमत करने वाली कांग्रेस के लोकसभा में अब भले ही कम सांसद हैं, लेकिन कई मामलों में वे भारतीय जनता पार्टी की बहुतमत वाली सरकार पर भारी पड़े हैं. सत्ताधारी पार्टी ने कई बार ख़ुद कहा है कि कांग्रेस के सांसद उसे काम नहीं करने दे रहे हैं.
बहरहाल, कांग्रेस के पास अब ज़्यादा वक़्त नहीं बचा है. कांग्रेस को चाहिए कि वह कार्यकर्ताओं के ज़रिये घर-घर तक पहुंचे. उन्हें पार्टी के क्षेत्रीय नेताओं से लेकर पार्टी के आख़िरी कार्यकर्ता तक अपनी पहुंच बनानी होगी. बूथ स्तर पर पार्टी को मज़बूत करना होगा. साफ़ छवि वाले जोशीले युवाओं को ज़्यादा से ज़्यादा पार्टी में शामिल करना होगा. कांग्रेस की मूल नीतियों पर चलना होगा, ताकि पार्टी को उसका खोया हुआ वर्चस्व मिल सके. साथ ही ऐसे बयानों और घोषणाओं से बचना होगा, जिससे वोटों में बिखराव आने के अंदेशा हो.
कांग्रेस को अपनी चुनावी रणनीति बनाते वक़्त कई बातों को ज़ेहन में रखना होगा. उसे सभी वर्गों का ध्यान रखते हुए अपने पदाधिकारी तय करने होंगे. टिकट बंटवारे में भी एहतियात बरतनी होगी. क्षेत्रीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी विश्वास में लेना होगा, क्योंकि जनता के बीच तो इन्हीं को जाना है. कांग्रेस नेताओं को चाहिए कि वे पार्टी के आख़िरी कार्यकर्ता तक से संवाद करें. उनकी पहुंच हर कार्यकर्ता तक और कार्यकर्ता की पहुंच उन तक होनी चाहिए, फिर कांग्रेस को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाएगा. अराजकता के इस दौर में अवाम को कांग्रेस की बेहद ज़रूरत है. बक़ौल शहरयार-
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का
लोकसभा चुनाव क़रीब हैं. इस समर को जीतने के लिए कांग्रेस दिन-रात मेहनत कर रही है. इसके मद्देनज़र पार्टी संगठन में भी लगातार बड़े बदलाव किए जा रहे हैं. सियासत के लिहाज़ से देश के सबसे महत्वपूर्ण प्रांत उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की कमान प्रियंका गांधी को सौंपी गई है. ग़ौरतलब है कि बीती 23 जनवरी को प्रियंका गांधी को कांग्रेस महासचिव बनाया गया था और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश के 41 लोकसभा क्षेत्रों की ज़िम्मेदारी दी गई थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया को महासचिव बनाने के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त किया गया था. उन्हें 39 लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को जिताने का दायित्व दिया गया था. अब इन दोनों नेताओं की मदद के लिए तीन-तीन सचिव नियुक्त किए गए हैं. नव नियुक्त पार्टी सचिव जुबेर ख़ान, कुमार आशीष और बाजीराव खाडे प्रियंका गांधी की मदद करेंगे, जबकि राणा गोस्वामी, धीरज गुर्जर और रोहित चौधरी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ काम करेंगे. कांग्रेस उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से ज़्यादा से ज़्यादा जीत लेना चाहती है.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कमज़ोर होने की कई वजहें रही हैं, जिनमें मज़बूत क्षेत्रीय नेतृत्व की कमी सबसे अहम वजह है. हालांकि कांग्रेस के सभी बड़े नेता उत्तर प्रदेश से ही चुनाव लड़ते रहे हैं, जिनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी शामिल हैं. लेकिन इनका दख़ल दिल्ली की सियासत में ज़्यादा रहा. मज़बूत नेतृत्व के अभाव में कांग्रेस कमज़ोर पड़ने लगी और लगातार राज्य की सत्ता से दूर होती गई. इसकी वजह से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटने लगा. ऐसे में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मज़बूत हुई. अब कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी खोई ज़मीन फिर से पाना चाहती है. इसके लिए वह ख़ासी मशक्क़त कर रही है.
कांग्रेस देश की माटी में रची-बसी है. देश का मिज़ाज हमेशा कांग्रेस के साथ रहा है और आगे भी रहेगा. कांग्रेस जनमानस की पार्टी रही है. कांग्रेस का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है. इस देश की माटी उन कांग्रेस नेताओं की ऋणी है, जिन्होंने अपने ख़ून से इस धरती को सींचा है. देश की आज़ादी में महात्मा गांधी के योगदान को भला कौन भुला पाएगा. देश को आज़ाद कराने के लिए उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी समर्पित कर दी. पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने देश के लिए, जनता के लिए बहुत कुछ किया. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने विकास की जो बुनियाद रखी, इंदिरा गांधी ने उसे परवान चढ़ाया. राजीव गांधी ने देश के युवाओं को आगे बढ़ने की राह दिखाई. उन्होंने युवाओं के लिए जो ख़्वाब संजोये, उन्हें साकार करने में सोनिया गांधी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. अब कांग्रेस की अगली पीढ़ी के नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कंधों पर ज़िम्मेदारी है कि वे अपनी सियासी विरासत को आगे बढ़ाएं और अवाम को वह हुकूमत दें, जिसमें सभी लोग मिलजुल रहा करते हैं. पिछले कुछ बरसों से लोग ‘अच्छे दिनों’ के लिए तरस रहे हैं. समाज में फैले नफ़रत और अविश्वास के इस दौर में कांग्रेस ही देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने का काम कर सकती है. जनता को कांग्रेस से उम्मीदें हैं, क्योंकि राहुल गांधी किसी ख़ास तबक़े के नेता न होकर जन नेता हैं. वे कहते हैं, "जब भी मैं किसी देशवासी से मिलता हूं. मुझे सिर्फ़ उसकी भारतीयता दिखाई देती है. मेरे लिए उसकी यही पहचान है. अपने देशवासियों के बीच न मुझे धर्म, ना वर्ग, ना कोई और अंतर दिखता है."
जनता को ऐसी सरकार चाहिए, जो जनहित की बात करे, जनहित का काम करे. बिना किसी भेदभाव के सभी तबक़ों को साथ लेकर चले. कांग्रेस ने जनहित में बहुत काम किए हैं. ये अलग बात है कि वे अपने जन हितैषी कार्यों का प्रचार नहीं कर पाई, उनसे कोई फ़ायदा नहीं उठा पाई, जबकि भारतीय जनता पार्टी लोक लुभावन नारे देकर सत्ता तक पहुंच गई. बाद में ख़ुद प्रधानमंत्री ने अपनी पार्टी के चुनावी वादों को’ जुमला’ क़रार दे दिया. आज देश को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे नेताओं की ज़रूरत है, जो छल और फ़रेब की राजनीति नहीं करते. राहुल गांधी कहते हैं, ''मैं गांधीजी की सोच से राजनीति करता हूं. अगर कोई मुझसे कहे कि आप झूठ बोल कर राजनीति करो, तो मैं यह नहीं कर सकता. मेरे अंदर ये है ही नहीं. इससे मुझे नुक़सान भी होता है. 'मैं झूठे वादे नहीं करता. " क़ाबिले-ग़ौर है कि एक सर्वे में विश्वसनीयता के मामले में दुनिया के बड़े नेताओं में राहुल गांधी को तीसरा दर्जा मिला है, यानी दुनिया भी उनकी विश्वसनीयता का लोहा मानती है.
फ़िलहाल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कंधों पर दोहरी ज़िम्मेदारी है. उन्हें पार्टी को मज़बूत बनाने के साथ-साथ खोई हुई हुकूमत को भी हासिल करना है. उन्हें चाहिए कि वे देश भर के सभी राज्यों में युवा नेतृत्व ख़ड़ा करें. इस बात में कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस की नैया डुबोने में इसके खेवनहारों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. राहुल गांधी को इस बात को भी समझना होगा और इसी को मद्देनज़र रखते हुए आगामी रणनीति बनानी होगी. वैसे अब राहुल गांधी अंदरूनी कलह, ख़ेमेबाज़ी और बग़ावत को लेकर काफ़ी सख्त़ हुए हैं. प्रियंका गांधी ने तो साफ़ कह दिया है कि जो नेता पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए जाएंगे, उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.
दरअसल, पार्टी के कुछ नेताओं ने कांग्रेस को अपनी जागीर समझ लिया था और सत्ता के मद में चूर वे कार्यकर्ताओं से भी दूर होते गए. नतीजतन, जनमानस ने कांग्रेस को सबक़ सिखाने की ठान ली और उसे सत्ता से बदख़ल कर दिया. वोटों के बिखराव और सही रणनीति की कमी की वजह से कांग्रेस को ज़्यादा नुक़सान हुआ. लेकिन इसका यह मतलब क़तई नहीं कि कांग्रेस का जनाधार कम हुआ है. पिछले लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ा है. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया और कई राज्यों में सत्ता में वापसी की. इससे पार्टी नेताओं के साथ-साथ कार्यकर्ताओं में भी भारी उत्साह है. भारतीय जनता पार्टी व अन्य सियासी दलों के नेता भी कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं.
आज़ादी के बाद से देश में सबसे ज़्यादा वक़्त तक हुकूमत करने वाली कांग्रेस के लोकसभा में अब भले ही कम सांसद हैं, लेकिन कई मामलों में वे भारतीय जनता पार्टी की बहुतमत वाली सरकार पर भारी पड़े हैं. सत्ताधारी पार्टी ने कई बार ख़ुद कहा है कि कांग्रेस के सांसद उसे काम नहीं करने दे रहे हैं.
बहरहाल, कांग्रेस के पास अब ज़्यादा वक़्त नहीं बचा है. कांग्रेस को चाहिए कि वह कार्यकर्ताओं के ज़रिये घर-घर तक पहुंचे. उन्हें पार्टी के क्षेत्रीय नेताओं से लेकर पार्टी के आख़िरी कार्यकर्ता तक अपनी पहुंच बनानी होगी. बूथ स्तर पर पार्टी को मज़बूत करना होगा. साफ़ छवि वाले जोशीले युवाओं को ज़्यादा से ज़्यादा पार्टी में शामिल करना होगा. कांग्रेस की मूल नीतियों पर चलना होगा, ताकि पार्टी को उसका खोया हुआ वर्चस्व मिल सके. साथ ही ऐसे बयानों और घोषणाओं से बचना होगा, जिससे वोटों में बिखराव आने के अंदेशा हो.
कांग्रेस को अपनी चुनावी रणनीति बनाते वक़्त कई बातों को ज़ेहन में रखना होगा. उसे सभी वर्गों का ध्यान रखते हुए अपने पदाधिकारी तय करने होंगे. टिकट बंटवारे में भी एहतियात बरतनी होगी. क्षेत्रीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी विश्वास में लेना होगा, क्योंकि जनता के बीच तो इन्हीं को जाना है. कांग्रेस नेताओं को चाहिए कि वे पार्टी के आख़िरी कार्यकर्ता तक से संवाद करें. उनकी पहुंच हर कार्यकर्ता तक और कार्यकर्ता की पहुंच उन तक होनी चाहिए, फिर कांग्रेस को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक पाएगा. अराजकता के इस दौर में अवाम को कांग्रेस की बेहद ज़रूरत है. बक़ौल शहरयार-
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
यही तो वक़्त है सूरज तेरे निकलने का
0 Comments:
Post a Comment