Thursday, November 25, 2010

किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं कुशलपाल सिरोही

फ़िरदौस ख़ान
कुछ लोग जिस क्षेत्र में काम करते हैं, उसमें नित-नए प्रयोग कर इतनी कामयाबी हासिल कर लेते हैं कि दूसरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन जाते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं, हरियाणा के कैथल ज़िले के चंदाना गांव के निवासी व कैथल के प्रगतिशील किसान क्लब के प्रधान कुशलपाल सिरोही, जिन्होंने खेतीबाड़ी के कार्य में इतनी प्रगति की है कि आज वह कृषि जगत के लिए जाना माना नाम बन गए हैं।

श्री सिरोही ने अपने तीस साल के अनुभव के आधार पर कृषि को स्वावलंबी और बेहतर आमदनी प्रदान करने वाला व्यवसाय बनाने का प्रयास किया। अपनी इस कोशिश में वह काफी हद तक कामयाब भी हुए और इसके लिए उन्हें कई ऐसे पुरस्कार मिले जिन्हें हासिल करना किसी भी किसान का सपना हो सकता है। उन्हें पूर्व उपप्रधानमंत्री स्व. चौधरी देवीलाल की स्मृति में दिए जाने वाले वर्ष 2001-02 और 2002-03 के राज्यस्तरीय किसान पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें वर्ष 2002 के लिए जगजीवन राम किसान पुरस्कार दिया गया और भारतीय किसान अनुसंधान परिषद ने भी 2002 के लिए चौधरी चरण सिंह कृषक शिरोमणि पुरस्कार से उन्हें नवाजा। इसके अलावा भी उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

श्री सिरोही ने बागवानी, कृषि वानिकी, मछली पालन, मधुमक्खी पालन और पशुपालन को अपनाकर एक-दूसरे के ज़रिये लाभ को बढ़ाया। साथ ही डीप इरीगेशन, ऑर्गेनिक फार्मिंग, रोग व कीट नियंत्रण, मृदा संरक्षण, उन्नत कृषि, फ़सल चक्र, ज़ीरो टिलेज, कार्बनिक खाद, उन्नत बीजों का इस्तेमाल, कृषि यंत्रों का बेहतर उपयोग कर उन्होंने सराहनीय कृषि प्रदर्शन किया। उन्हें औषधीय पौधे, गन्ना, सोयाबीन, गुलाब, अमरूद, नींबू व मशरूम के रिकॉर्ड उत्पादन के लिए कई प्रमाण-पत्र मिल चुके हैं। उन्होंने अपने फ़ार्म पर एक बायोगैस संयंत्र, सौर ऊर्जा संयंत्र, पॉली हाउस और ग्रीन हाउस स्थापित किए हैं।

कैथल से करीब दस किलोमीटर दूरी पर स्थित सिरोही फार्म के मालिक कुशलपाल सिरोही बताते हैं कि उनके द्वारा अपनाई गई कृषि तकनीक न केवल परिस्थितियों के लिए अनूकूल है, बल्कि वातावरण के लिए उपयुक्त और कम खर्चीली होने के साथ-साथ किसानों को अतिरिक्त आमदनी देने वाली है। वह जब भी किसी किस्म को उगाने की प्रक्रिया शुरू करते हें तो एक-एक पौधे पर पैनी नजर रखते हैं और विभिन्न किस्मों व पौधों में तुलनात्मक अनुसंधान से पता लगाते हैं कि कहां क्या कमी है तथा कौन-सी किस्म बेहतरीन है।

देश-विदेश के कृषि विशेषज्ञ उनके फार्म का दौरा कर चुके हैं। सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग और नेपाल में कृषि संबंधी कार्यों का तुलनात्मक अध्ययन कर रहे श्री सिरोही ने अपने फार्म पर गुलाब के फूलों का तेल (अर्क) निकालने का एक यंत्र लगाया है। इसके लिए वह विशेष किस्म के फूल भी खुद ही उगाते हैं, जिनसे पहले गुलाब जल बनाया जाता है। फिर उससे तेल बनाया जाता है। वे कहते हैं कि इसके लिए उपकरण उन्होंने उत्तर प्रदेश के कन्नौज शहर से खरीदे हैं। वैसे ये उपकरण दिल्ली और मुंबई में भी मिलते हैं। उन्होंने कृषि के क्षेत्र में किसानों को जागरूक करने के लिए 12 किसानों के साथ मिलकर 1999 में प्रगतिशील किसान क्लब का गठन किया। वे समय-समय पर बैठकों का आयोजन कर कृषि क्षेत्र में नई संभावनाओं के बारे में विचार-विमर्श करते हैं। साथ ही अपने फार्म पर किसानों को कृषि की नई तकनीकों की जानकारी भी देते हैं। क्लब का दल महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश का दौरा कर वहां के किसानों से मिल चुका है। उनका कहना है कि कृषि का क्षेत्र अत्यधिक गहन क्षेत्र है। यहां निरंतर कुछ न कुछ सीखने को मिलता है और अपेक्षाकृत बेहतर आमदनी का आधार बनता है।

17 Comments:

Unknown said...

आपका यह लेख अमर उजाला में पढ़ा था. आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है. हमारे देश में किसान बहुत सराहनीय कार्य कर रहे हैं. ऐसे चेहरों को सामने लाने लिए आभार

Unknown said...

आपका यह लेख अमर उजाला में पढ़ा था. आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है. हमारे देश में किसान बहुत सराहनीय कार्य कर रहे हैं. ऐसे चेहरों को सामने लाने लिए आभार.

सरफ़राज़ ख़ान said...

बहुत अच्छी जानकारी दी है आभार

असलम ख़ान said...

बहुत अच्छी जानकारी है. आभार

असलम ख़ान said...

बहुत अच्छी जानकारी है. आभार

Anonymous said...

kisno ke desh me pahli bar kisi ne kisno ki baat ki hogi.
bahut badiya.achha laga

निर्मला कपिला said...

ाच्छी जानकारी है। धन्यवाद।

ABHISHEK MISHRA said...

इतने प्रेरणादायक व्यक्तित्व का परिचय करने के लिए आप को धन्यवाद

Anonymous said...

मोहतरमा! अपने बहुत अच्छी जानकारी दी है. ऐसे योग्य किसानों के बारे में ज़्यादा से यादा किसानों को मालूम होना चाहिए, ताकि वो भी कम साधनों में ज़्यादा आमदनी हासिल कर सकें. घटती कृषि भूमि को देखते हुए कम ज़मीं से ज़्यादा उत्पादन लेना वक़्त की ज़रूरत भी है. शुक्रिया

Anonymous said...

मोहतरमा!
एक बात और, आप अख़बारों में प्रकाशित अपने लेखों की कटिंग्स भी ब्लॉग पर दिया करें.

फ़िरदौस ख़ान said...

सभी टिप्पणीकारों का शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्होंने एक किसान के काम को सराहा.

@मौसम
सलाह के लिए शुक्रिया...मगर हम अपने लेखों की कटिंग्स ब्लॉग में नहीं दे सकते, क्योंकि हम पिछले 15 बरसों से भी ज़्यादा वक़्त से लिख रहे हैं...यानि स्कूल के दिनों से... इस लंबे अरसे में हमारे लेख और अन्य रचनाएं हज़ारों मर्तबा शाया हो चुकी हैं. अख़बारों और पत्रिकाओं का अंबार है हमारे पास... कई बरस पहले से अख़बार और पत्रिकाएं भी संभाल कर रखना छोड़ दिया है... शुरू-शुरू में इस सबका शौक़ होता है...

प्रवीण पाण्डेय said...

अनुकरणीय प्रयास सिरोही जी का।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सार्थक लेख ..अच्छी जानकारी देता हुआ ...आभार

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत अच्छा लगा. लेकिन पुरुस्कार जहां मिल जाता है, वहां शंका होने लगती है. क्योंकि हमारे पुरुस्कारों का सिस्टम ही ऐसा है..

शूरवीर रावत said...

राजनीति, फिल्म, क्रिकेट और उद्योगपतियों की भांति यदि सरकार और मीडिया किसानों और कृषि से सम्बंधित ख़बरों को भी तवज्जो दे तो कृषि क्षेत्र में भी भारत तरक्की कर सकता है और पूरी तरह आत्म निर्भर हो सकता है. इस दिशा में आपका प्रयास सराहनीय है.....आभार.

प्रेम सरोवर said...

Suchnanaprad jankari mili. Plz. visit my blog.

Anurag Anant said...

FIRDAUSS JI AAP KE LEKHAN MAIN MAATI KI KHUSHBU HAI .

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