Wednesday, December 8, 2010

दर्द तो मर्दों को भी होता है...फ़िरदौस ख़ान

अंग्रेज़ी में कहावत है कि 'बॉयज़ डोंट क्रा'ई यानी लड़के नहीं रोते... मतलब रोती तो लड़कियां हैं. मगर ऐसा नहीं है... दुख, दर्द तकलीफ़ तो मर्दों को भी होता है... दिल पर चोट पहुंचने पर वे भी रोते हैं, तड़पते हैं, कराहते हैं...

 अमूमन बचपन से ही लड़कों के मन में यह बात बैठा दी जाती है कि लड़के मज़बूत होते हैं, ताक़तवर होते, हिम्मत वाले होते हैं... इसलिए उन्हें ख़ुद को कमज़ोर नहीं समझना है... इसी ज़हनियत के चलते मर्द अपने दुख-दर्द दूसरों के साथ नहीं बांट पाते और मन ही मन सबकुछ झेलते रहते हैं...

मर्द अपनी भावनाएं व्यक्त करने में झिझकते हैं... वे डरते हैं कि कहीं उन्हें कमज़ोर न समझ लिया जाए...और फिर उनका मज़ाक़ न उड़ाया जाए...वे कभी नहीं चाहते कि कोई भी उन्हें कमज़ोर या दब्बू समझे...ऐसे में घर, दफ़्तर या समाज में उनकी 'इमेज' का क्या होगा...?  

हक़ीक़त यही है कि मर्दों को भी उतने ही प्यार और देखभाल  की ज़रूरत होती है, जितनी लड़कियों को... जब किसी लड़की पर कोई परेशानी आती है तो पूरा परिवार सब कुछ छोड़कर उसके बारे में ही सोचने लग जाता है, मगर मर्दों को यह कहकर उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है कि वे ख़ुद सक्षम है... ऐसे में वे ख़ुद को बेहद अकेला महसूस करते हैं... 

कुछ ख़ास बातें मर्दों के बारे में
  • अध्ययनों की मानें तो मर्दों में औरतों के मुक़ाबले जनरल इंटेलिजेंस तीन फ़ीसदी कम होता है.
  • मर्द ऐसे ग्रीटिंग कार्ड पसंद करते हैं, जिनमें संदेश बड़े शब्दों में लिखा हुआ हो.
  • मर्दों के बात करने से पहले ही बता दें कि वे आपकी बात ध्यान से सुने., साथ ही बात का विषय भी पहले ही बताना होगा. उनसे एक बार में एक विषय ही विषय पर बात करें, वह
    भी सीधे व सरल शब्दों में.
  • मर्द जब अपने कारोबार को लेकर परेशान होते हैं तो वे अपने रिश्तों पर ध्यान नहीं दे पाते.
  • मर्द जब किसी वजह से परेशान होते हैं तो वे अकेले रहना ही पसंद करते हैं. ऐसे में उन्हें प्रेमिका का साथ भी पसंद नहीं आता.
  • मर्द प्यार के मामले में पहल करते हुए भी डरते हैं कि कहीं लड़की मना न कर दे... अगर लड़की ने मना दिया तो वो बर्दाश्त नहीं कर पाते...
    क्योंकि इससे  उनके अहं को चोट पहुंचती है...
औरतों के बारे में कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें मर्द कभी समझ नहीं पाते... मसलन-
  • जब महिलाओं को दो दिन के लिए भी कहीं बाहर जाना होता है तो वे सूटकेस भरकर कपड़े क्यों लेकर जाती हैं.
  • महिलाएं ऐसी फ़िल्में देखना क्यों पसंद करती हैं, जिन्हें देखकर रोना आए.
  • गहने या महंगे कपड़े ख़रीदते वक़्त महिलाओं के चेहरे पर ज़्यादा रौनक़ होती है, जबकि कोई और सामान ख़रीदने पर उनके चेहरे पर ऐसी ख़ुशी नहीं दिखाई देती.




33 Comments:

बाल भवन जबलपुर said...

बात सौ टका सच्ची है.

अविनाश वाचस्पति said...

पर इनके कारण कहां मिलेंगे
क्‍योंकि यह सब सच है

फिर भी बेदर्दी
मर्दों के हिस्‍से में आती क्‍यूं है ?
जानना चाहूंगा।

shikha varshney said...

अच्छा शोध किया है ..@उनसे एक बार में एक ही विषय पर बात करें, वह सीधे व सरल शब्दों में
"जबकी महिलाये "दे जस्ट गो राउंड द बुश" मैंने कहीं पढ़ा था" कि एक मीटिंग में एक लेडी बहुत खूबसूरती से प्रेजेंटेशन दे रही थी जब खतम हुआ तो सभी मर्दों ने खूब तालियाँ बजाईं,हालाँकि उन्हें उसका सार भी समझ में नहीं आया ..उन्होंने तालियाँ सिर्फ इसलिए बजाईं कि कहीं उन्हें बेबकूफ न समझ लिया जाये :)

फ़िरदौस ख़ान said...

शिखा जी
@एक मीटिंग में एक लेडी बहुत खूबसूरती से प्रेजेंटेशन दे रही थी जब खतम हुआ तो सभी मर्दों ने खूब तालियाँ बजाईं,हालाँकि उन्हें उसका सार भी समझ में नहीं आया ..उन्होंने तालियाँ सिर्फ इसलिए बजाईं कि कहीं उन्हें बेबकूफ न समझ लिया जाये
हा हा हा

बीच में कोई दूसरी बात कह दो तो बुरा मान जाते हैं... हा हा हा

Anonymous said...

बहन फिरदौस किसने तुमसे पंगा ले लिया? और बदला हम सबसे क्यों ले रही हो?

वैसे मस्त रहा ये भी।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत अच्छा शोध किया है ....अच्छी पोस्ट

पंकज कुमार झा. said...

कभी एक चलताऊ सा डायलाग सुना था ...मर्द के सीने में दर्द नहीं होता...फिरदौस जी ने उसे झूठा साबित कर दिया...देखिएगा कहीं मर्द फिल्म वाले मुकदमा न कर दे.... मर्दों के शक्तिकरण, मर्द मुक्ति के इस आंदोलन की अग्रदूत बनेंगी आप...आपको साधुवाद...लेकिन फोटो का क्या राज है हुजुर? दर्द दिल में हुआ, और महाशय को आपने थमा दिया दिमाग?? चलिए कम से कम शिखा जी के उलट आपने ये तो माना कि दिमाग होता है हम बेचारों में भी....आपने ये बिलकुल सही लिखा है कि.......'मर्द प्यार के मामले में पहल करते हुए भी डरते हैं कि कहीं लड़की मना न कर दे... अगर लड़की ने मना कर दे तो वो बर्दाश्त नहीं कर पाते...उनके अहं को चोट पहुंचती है...' आशा है ऐसे किसी अवसर पर आप मर्द के अहं की रक्षा कर देंगी....हा हा हा ....अच्छी पोस्ट..बधाई.

केवल राम said...

फ़िरदौस ख़ान जी
सादर प्रणाम
आपका शोध तथ्यपरक है और काफी हद तक वैज्ञानिक भी ...बहुत कुछ पता चला ...बहुत आभार ...शुभकामनायें

अविनाश वाचस्पति said...

एट जय

उसका आशय यह है कि
दिमाग तो पहले से ही न था
और अब ....

बुरा मत मानें, गर ब्‍लॉगवाणी बंद हो गया है और चिट्ठाजगत खफा है

ABHISHEK MISHRA said...

आप के दिए हुए तत्थ्यो से पूर्णतया सहमत
एक दम सही कहा
एक सर्वेक्षण के मुताबिक स्त्रियों की गणित पुरुषो के मुकाबले कमजोर होती है और उन को इस विषय में रूचि भी कम होती है . ये ईश्वर की दी हुई प्रकति ही है की वे भावुक ज्यादा होती है और श्र्जनात्मक कला भी उन में ज्यादा होती है .
मैंने कई जगह पढ़ा था की औरतो का जनरल इंटेलिजेंस पुरुषो के मुकाबले ज्यादा होता है पर मुझे कुछ बाते समझ में नही आती
(१) पंचायत करने में उन को इतना मज़ा क्यों आता है?????????????
(२) टेलीविजन पर वो वही बेवकूफी से भरे धारावाहिक सास बहु और शाजिश क्यों देखती है .
(३)आम तौर वे चटोरी क्यों होती है ???????
(४) समझने वाली हर बात से इंकार करती है और कहती है आप तो कुछ समझते ही नही .

Archana Chaoji said...

ये बिलकुल सही है कि--- मर्दों को भी उतने ही प्यार और देखभाल की ज़रूरत होती है, जितनी लड़कियों को..बल्कि उससे ज्यादा...

एक बात और--मर्द ये भी चाहते हैं कि उनकी गलती हुई हो तो उन्हें बता दिया जाये..(चाहे वे माने या न माने)

Satish Saxena said...

कमाल है सब कुछ डिसक्लोज़ कर दिया ...अब ?

Unknown said...

मोहतरमा फ़िरदौस साहिबा
आपको हर विधा में महारत हासिल है...... वो गीत, ग़ज़ल हो, नज़्म हो, कहानी हो या लेख. आपकी लेखन शैली ज़बरदस्त है....... हम तो बरसों से आपकी क़लम का लोहा मानते आए हैं......
अब सबसे पहले तो मुबारकबाद कुबूल कीजिए....... आप मर्दों के बारे में बहुत अच्छा लिख रही हैं......
@हक़ीक़त यही है कि मर्दों को भी उतने ही प्यार और देखभाल की ज़रूरत होती है, जितनी लड़कियों को...

आपसे सहमत हैं......

Unknown said...

आपको देखकर हम मानने लगे हैं कि ख़ूबसूरत लड़कियां दानिशमंद भी होती हैं.......
Beauty with brains इसी को कहते हैं.......

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi sateek avam prabhavshali abhivykti.
ekdam dil me utar gai aapki baat,bilkul yatharth.
poonam

अजित गुप्ता का कोना said...

फिरदौस, क्‍या अध्‍ययन किया है? एक बात का तो मैं पूरजोर समर्थन करती हूँ कि आदमी के अन्‍दर रोना बसा हुआ होता है। मैंने ऐसे कितने ही पुरुष देखें हैं जो बात बात में रोते हैं। उनके सामने कोई बात करना भी मुश्किल होता है। जबकि मैंने एक भी महिला ऐसी नहीं देखी जो भावुकता में इस प्रकार रोती हो। उनका रोना-धोना अलग प्रकार का होता है। लेकिन काहे को इतनी छिछालेदार कर रही हो? सब कुछ दबा ढका ही रहने दो ना। ज्‍यादा पोल खुल जाएगी तो भावुकता में ज्‍यादा रोने लगेंगे।

Unknown said...

आपने मर्दों के बारे में इतना सोचा तो . वरना आज तो महिलाएं नारीवाद का झंडा उठाये हुए मर्दों को सिर्फ़ ज़ालिम ही मानती हैं.
आपका लिए आभार.

Unknown said...

जय जी!
यह बात एकदम सच है कि दर्द तो मर्द को भी होता है, लेकिन वह कह नहीं पाता. आप भली-भाँति समझते होंगे. फ़िरदौस जी का पिछ्ला लेख भी सच के इतने ही निकट था, जितना यह लेख है.

Unknown said...

अभी-अभी एक कमेण्ट "नारी" ब्लॉग पर किया है उसे रिपीट कर रहा हूं इधर क्योंकि सब्जेक्ट से जुड़ा है -

यह बात साइंटिफ़िकली भी साबित हो चुकी है कि महिलाएं, पुरुषों के मुकाबले मजबूत होती हैं (मानसिक रुप से), इसलिये सामान्यतः माना जाता है कि नारी ही पुरुष की अच्छी तरह से देखभाल कर सकती है, और ऐसा होता भी है।

पुरुष सिर्फ़ शारीरिक रुप से ही महिला से मजबूत होते हैं, लेकिन अन्य सामाजिक और मानसिक दबावों को वे ठीक प्रकार से नहीं झेल पाते हैं, इसीलिये हार्ट अटैक की संख्या पुरुषों में अधिक पाई जाती है। पुरुषों की कथित मजबूती, देखते-देखते हवा हो जाये, यदि उन्हें एक बार गर्भवती होकर बच्चे को जन्म देने को कहा जाये… :)

बल्कि मेरा तो शुरु से यह स्पष्ट मत रहा है कि जनसंख्या में कमी लाने का एक प्रभावी उपाय यह भी है कि बच्चे के जन्म के समय पुरुष (यानी पति) की भी लेबर-रुम में उपस्थिति अनिवार्य कर दी जाये… :) पत्नी के कष्ट देखकर दो मिनट में सारी मर्दानगी का मुगालता दूर हो जायेगा… दूसरा बच्चा पैदा करने से पहले कई बार सोचेगा "मर्द"।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

तुमसे कितनी बार कहा है फ़िरदौस.... मेरी पोल मत खोलो.... और तुम हो कि बाज़ ही नहीं आ रही हो... तुम्हे मज़ा आता है क्या मेरे बारे में लिख कर... ? वैसे मैं बहुत डेर्रिंग-डू हूँ.... बस अब और पोल मत खोलो यार....

प्रवीण पाण्डेय said...

दर्द सबको होता है।

Anonymous said...

he he he....mard to aakhir mard hai....mard hi rehna chahiye

vandana gupta said...

दर्द पर किसी का एकाधिकार थोडे होता है……………अच्छा शोध किया है।

Taarkeshwar Giri said...

Wah!, main to kanhi bhi ro du. Lekin ek bat hai. Ladkiyan sabkuch nahi batati hain, kuch naa kuch chupati bhi hain

Mithilesh dubey said...

जब किसी लड़की पर कोई परेशानी आती है तो पूरा परिवार सब कुछ छोड़कर उसके बारे में ही सोचने लग जाता है, मगर मर्दों को यह कहकर उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है कि वे ख़ुद सक्षम है... ऐसे में वे ख़ुद को बेहद अकेला महसूस करते हैं...

एसा इसलिए है कि मर्द मजबूत होते हैं ।।

P.N. Subramanian said...

अच्छी विवेचना की है.

Unknown said...

darde dil ke waste paida kiya insan ko , barana ibadat ke liye kya fariste km the .

महेन्‍द्र वर्मा said...

हमारे दर्द को आपने समझा और शब्दों में तबदील किया ...शुक्रिया।

हरकीरत ' हीर' said...

जब महिलाओं को दो दिन के लिए भी कहीं बाहर जाना होता है तो वे सूटकेस भरकर कपड़े क्यों लेकर जाती हैं.
महिलाएं ऐसी फ़िल्में देखना क्यों पसंद करती हैं, जिन्हें देखकर रोना आए.
गहने या महंगे कपड़े ख़रीदते वक़्त महिलाओं के चेहरे पर ज़्यादा रौनक़ होती है, जबकि कोई और सामान ख़रीदने पर उनके चेहरे पर ऐसी ख़ुशी नहीं दिखाई देती.
हा...हा...हा....बहुत खूब ....!!

प्रेम सरोवर said...

आप मर्दों के बारे में क्यों परेशान हैं!समझ में नही आता है। आखिर मर्द तो मर्द ही रहेगा। एक अच्छी जानकारी के लिए आप धन्यवाद की पात्र हैं। मैं आपके टिप्पणी के लिए प्रतीक्षारत हू क्योंकि आपने लिखा है कि एक पल का पागलपन पढने के बाद टिप्पणी दूंगा। सादर।

ASHOK BAJAJ said...

दर्द पर बढ़िया आलेख ; बधाई !

उपेन्द्र नाथ said...

तथ्यपरक प्रस्तुति। मगर कुछ तो अपवाद होँगे जैसे कि मैँ।

Abhay said...

क्या बात है आपने तो मेरी दिल की बात कह दी अरे दर्द किसे नहीं होता है मुझे भी हुआ था और बहुत रोया था शुक्रिया आपका फ़िरदौस जी

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