Saturday, December 4, 2010

मर्द ऐसे क्यों होते हैं...फ़िरदौस ख़ान

अमूमन देखने में आता है कि ज़्यादातर महिलाओं के बारे में लिखा जाता है... मर्दों के बारे में बहुत कम पढ़ने को मिलता है... इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि मर्द लेखक महिलाओं के बारे में ही लिखना पसंद करते हैं...महिलाएं भी ख़ुद महिलाओं के बारे में ही लिखने को तरजीह देती हैं...एक पत्रकार साथी से इस बारे में बात हो रही थी तो उन्होंने कहा कि शुक्र है तुमने मदों के बारे में कुछ सोचा तो... ख़ैर, मर्दों के बारे में लिखने का आगाज़ एक हलकी-फुल्की पोस्ट से कर रहे हैं... बाद में कुछ गंभीर लेख भी मर्दों के बारे में लिखेंगे... अगर किसी को कोई बात बुरी लगे तो दिल पर न लीजिएगा, यही गुज़ारिश है...
आज हम बात कर रहे हैं...मर्दों की कुछ आदतों के बारे में...जिन्हें लेकर लड़कियों को अकसर उनसे शिकायत रहती है...
  • अगर आप उनसे ज़्यादा सुन्दर हैं तो वे हीन भावना का शिकार हो जाएंगे. अगर वे आपसे ज़्यादा सुन्दर हैं तो वे ख़ुद को दुनिया का सबसे सुन्दर व्यक्ति समझेंगे.
  • अगर आप उनके साथ अच्छी तरह बात करेंगी तो वे समझेंगे कि आप उनसे प्यार करती हैं. अगर आप ऐसा नहीं करेंगी तो वे कहेंगे की आप बहुत घमंडी हैं.
  • जब भी आप कोई बेहद ख़ूबसूरत लिबास पहने हों तो वे समझेंगे कि आप उन्हें लुभाना चाहती हैं. अगर आपका लिबास कुछ ख़ास नहीं है तो वे समझेंगे कि आप गंवार हैं.
  • अगर आप उनसे किसी बात पर बहस करेंगी तो वे समझेंगे कि आप ज़िद्दी हैं. अगर आप ख़ामोश रहेंगी तो वे समझेंगे कि आपके पास दिमाग़ नाम की कोई चीज़ है ही नहीं.
  • अगर आप उन्हें प्यार नहीं करेंगी तो वे आपको डॉमिनेट करने की कोशिश करेंगे. अगर आप उनसे प्यार का इज़हार करेंगी तो वे ज़ाहिर करेंगे कि उन पर बहुत लड़कियां मरती हैं.
  • जब कभी आप उन्हें कोई समस्या बताएंगी तो वे आपको ही सबसे बड़ी समस्या समझेंगे. अगर आप उन्हें अपनी समस्या नहीं बताएंगी तो वे कहेंगे कि आप उन पर यक़ीन नहीं करतीं.
  • अगर आप उन्हें किसी बात पर डांटेंगी तो वे बुरा मान जाएंगे. अगर वे आपको डांटेंगे तो कहेंगे कि वे आपकी बहुत परवाह करते हैं.
  • अगर आप उनसे किया कोई वादा तोड़ दें तो वे आप पर से यक़ीन तोड़ देंगे. अगर वे आपसे किया वादा तो दें तो आप पर हक़ जताएंगे.
  • अगर आप किसी चीज़ में कामयाब हो जाएं तो वे इसे आपकी क़िस्मत कहेंगे. अगर ख़ुद कामयाब हो जाएं तो इसे अपनी क़ाबिलियत क़रार देंगे.
  • अगर आप उन्हें कोई तकलीफ़ पहुंचाने की कोशिश करेंगी तो आपको ज़ालिम कहेंगे. अगर वे आपको दुख पहुंचाएं तो कहेंगे कि आप बहुत जज़्बाती हो.
  • अगर आप उन्हें कॉल करेंगी तो यह ज़ाहिर करेंगे कि वे बहुत मसरूफ़ हैं. अगर कॉल नहीं करेंगी तो कहेंगे कि आप उन्हें याद ही नहीं करतीं.

85 Comments:

mohd maqsud inamdar said...

मर्दों के बारे में पढ़कर अच्छा लगा. अगले लेख का इंतज़ार रहेगा.

mohd maqsud inamdar said...

आप सही कहती हैं-मर्दों के बारे में बहुत कम लिखा जाता है. आपका आभार

mohd maqsud inamdar said...

आप सही कहती हैं-मर्दों के बारे में बहुत कम लिखा जाता है. आपका आभार

umarathwada said...

मर्दों की आदतों के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा. अकसर ऐसा ही होता है. मगर यह भी सच है कि लड़के बुद्धिमान लड़कियों को ज़्यादा पसंद करते हैं. सुन्दरता उनके लिए इतनी महत्वपूर्ण नहीं होती.

Sunil Kumar said...

फिरदोस जी आपके व्लाग पर यह मेरी पहली हाज़िरी है किसी हद तक मै आपसे इत्तफाक रखता हूँ चलिए किसी ने मर्दों पर कुछ लिख तो , धन्यवाद

पंकज कुमार झा. said...

अच्छी पोस्ट...चुटकुलेदार और मजेदार भी. सबसे पहले तो साधुवाद कि कोई तो मर्दों के शोषित पीड़ित ज़मात के बारे में सोचना चाहा. अन्यथा इस गरीब 'आधा दुनिया' को पूछता कौन है....!
लेकिन पहली ही बात गलत है....सामान्यतया हर मर्द अपने से कम बुद्धिमान और ज्यादा खूबसूरत लड़की को पसंद करता है. वह किसी दुसरे की ज्यादे सुन्दर गर्ल फ्रेंड को देख कर तो हीन भावना का शिकार हो सकता सकता है लेकिन खुद से सुन्दर अपनी मित्र को देख कर बिलकुल नहीं. हां ये सही है कि अगर मर्द लड़की से सुन्दर हुआ तो वो ज़रूर खुद को दुनिया का सबसे सुन्दर व्यक्ति समझेगा.
आपका इस विषय पर सोचा पहला पोस्ट भले ही हलकी-फुल्की हो लेकिन विषय ज़ोरदार और मौलिक है. उम्मीद है अगले पोस्ट में 'गंभीरली' कुछ विमर्श करेंगी.

Unknown said...

मोहतरमा फ़िरदौस साहिबा!
आप सही कहती हैं कि मर्दों के बारे में बहुत कम लिखा जाता है....... आपने मर्दों के बारे में इतना सोचा तो, इसके लिए हम आपके शुक्रगुज़ार हैं.......हमेशा की तरह आपके अगले लेख का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.......

Unknown said...

मोहतरमा फ़िरदौस साहिबा!
बुद्धिमान मर्द हमेशा अक़लमंद लड़की को पसंद करता है.......मर्द चाहता है कि लड़की उसकी साथी बनकर रहे, सही मायनों में उसकी साथी....... बुद्धिमान मर्द लड़की की "सुन्दरता" नहीं उसकी "सीरत" देखेगा.......अच्छी सीरत वाली लड़की ही उसकी ज़िन्दगी को खुशियों से भर सकती है........ जिस्मानी ख़ूबसूरती तो कुछ वक़्त की ही होती है, लेकिन मन की सुन्दरता हमेशा बनी रहती है....... अगर कोई आपकी तरह हो तो फिर कहने ही क्या....... यानि
Beauty with brains

(अगर कुछ बुरा लगे तो मुआफ़ कर दीजिएगा)

Amit Chandra said...

सुन्दर आलेख। हमारा समाज पुरूष प्रधान है इसलिए ऐसा होना लाजिमी है। क्योंकि आज भी अधिकतर मर्द यही समझते है कि औरते उनसे नीचे है।

Amit Chandra said...

सुन्दर आलेख। हमारा समाज पुरूष प्रधान है इसलिए ऐसा होना लाजिमी है। क्योंकि आज भी अधिकतर मर्द यही समझते है कि औरते उनसे नीचे है।

कुमार राधारमण said...

मेरे पास मुंह छिपाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा!

वीना श्रीवास्तव said...

फिरदौस जी इस पहल के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद....यह पुरूष प्रधान समाज की मानसिकता है...कि महिला को क्रैडिट नहीं मिलता... सारि वाहवाही पुरूषों के लिए है।..अच्छा लगा पढ़कर

http://veenakesur.blogspot.com/

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सिक्के को एक ही पहलू है ये..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अपने साथ तो ऐसी नौबत आई ही नहीं..

RAIS FATIMA said...

यह तो सच है
व्यंग्य कहॉं है ?

shikha varshney said...

अगर आप उनसे किसी बात पर बहस करेंगी तो वे समझेंगे कि आप ज़िद्दी हैं. अगर आप ख़ामोश रहेंगी तो वे समझेंगे कि आपके पास दिमाग़ नाम की कोई चीज़ है ही नहीं
हा हा हा एकदम सही.

परमजीत सिहँ बाली said...

;))

Anonymous said...

बाप रे मर्दों पर लेख का आगाज़ इतना खतरनाक, लगता है कि मैच के पहले ही गेंद पर छक्का पिट गया हो।

anoop joshi said...

koi sarm nahi is baat ko swikaar karne me kyonki sahi me hum mard is kuntha se bhara rahta hai. mene kahi padha tha ki har mard ke andar talibaani bhwanye chupi rahti hai bus wo byakt nahi karta,,,

सुज्ञ said...

भई मान गये आपकी पारखी नज़र्……।

यदि यह सच है कहता हूँ तो पहचान लिया जाता हूँ………
और यह बात गलत है कहता हूँ तो आप बुरा मान जायेगी।:)

Sushil Bakliwal said...

मैं पं. डी के शर्मा वत्सजी और परमजीतसिंहजी बाली से इत्तेफाक रखता हूँ ।

फ़िरदौस ख़ान said...

सुज्ञ जी
इस पोस्ट से नाराज़ तो कोई हमसे भी हो जाएगा... यह बात अलग है कि उसने अब तक यह पोस्ट देखी नहीं...

फ़िरदौस ख़ान said...

शिखा जी
हमने वही लिखा है जो होता है...यह सब बातें सभी जानते हैं...बस फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि कोई मान लेता है और कोई नहीं...

monali said...

Hahaha...very interesting..jab aagaz ka ye aalam h to anjaam k manzar kya hoga... m to 100 feesdi ittefaaq rakhti hu aapse.. :)

Archana Chaoji said...

ह्म्म्म्म्म एक बात और ........
कुछ भी बोल देंगे हमे बिना समझे और हमे बुरा लग जाये तो कहेंगे मजाक कर रहे थे और लड़कियों को बहुत जल्दी बुरा लग जाता है....

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

फिरदौस जी, आपने लोगों को करीब से देखा है। मेरा अपना मानना है कि हर व्‍यक्ति का अपना एक ऐटीट्यूड होता है और हर व्‍यक्ति एक जैसा नहीं होता।


---------
ईश्‍वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्‍होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।

फ़िरदौस ख़ान said...

अर्चना जी
हम आपके तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हैं कि आपने एक बात और रखी...

subhash Bhadauria said...

मोहतरमा फ़िरदौस साहिबा,
1-हम अपने पूरे होशोहवाश में ये कह रहे हैं कि दुनियां में सबसे ज़्यादा अक्लमंद,धैर्यवान,बहादुर, मादा है वो मात्र मनुष्य जाति में ही नहीं, पशु-पक्षी आदि में भी अव्वल है.
2- हां जिस तरह लक्ष्मी ,सरस्वती में बैर है ठीक उसी तरह रूप और बुद्धि में भी बैर है.सुंदरियां प्राया अंहकारी फरेबी होती हैं कभी कभी इसके अपवाद मिलते हैं ये बात हम अपने वर्षो के अनुभव से कह रहे हैं.
3- बिचारे पुरुष हमारे जैसे सीधे सादे उनका शिकार बनते हैं और फिर ज़िन्दगी भर ग़ज़लें लिखकर ग़म ग़लत करते हैं.
आपने बर्र के छते में हाथ डाला है.

honesty project democracy said...

जिस तरह सभी औरत एक जैसी नहीं होती उसी तरह सारे मर्द एक जैसे नहीं होते.......वैसे आपने इस पोस्ट में सिर्फ अवगुण को ही लिखा है..........अवगुण तो मर्द औरत दोनों में होता है जो वक्त और हालात के अनुसार बदलता रहता है......इसलिए इसे स्थायी मान लेना ठीक नहीं.....

रचना said...

aaj kal tumhare paas time faltu haen kyaa ?? yaa vishyo ki kamii haen ? !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

vandana gupta said...

शायद काम्पलैक्स होता है शायद तभी ऐसे होते हैं………………हा हा हा।

अजित गुप्ता का कोना said...

अच्‍छी जानकारी है। जारी रखिए।

फ़िरदौस ख़ान said...

डॉ.सुभाष भदौरिया
बहुत दिनों बाद आप ब्लॉग पर आए...स्वागत है...

फ़िरदौस ख़ान said...

@honesty project democracy
ज़ाहिर है, मर्द भी महिलाओं के बारे में ऐसे ही कुछ विचार रखते होंगे... कोशिश करेंगे कि उन्हें भी पोस्ट करें... हमने पहले ही कहा है कि इसे इतनी गंभीरता से न लीजिए... यह कुछ वो शिकायतें हैं जो लड़कियों को मर्दों से होती हैं...

शूरवीर रावत said...

शायद ये राय मर्द औरतों के बारे में भी रखते हों फिरदौस जी, ........ फिर भी इतना जरूर कहूँगा कि आपका चिंतन मौलिक और यथार्त है............सुन्दर आलेख के लिए साधुवाद.

फ़िरदौस ख़ान said...

रचना जी
यह भी एक विषय ही है... यह बात अलग है कि यह गंभीर विषय नहीं हैं...शायद आपको इसलिए अजीब लग रहा होगा कि हम हमेशा गंभीर विषयों पर ही लिखते हैं...जल्द ही गंभीर विषयों पर भी लेख पोस्ट करेंगे...बस थोड़ा इंतज़ार कीजिए...

फ़िरदौस ख़ान said...

वन्दना जी
शायद आप सही कहती हैं... हा हा हा

Taarkeshwar Giri said...

फिरदौश जी , आपने तो पूरी पोल खोल दी है मर्दों की, लेकिन नहीं हम ऐसे भी नहीं होते हाँ. थोडा तो तारीफ करती.

फ़िरदौस ख़ान said...

गिरी जी
हम कोई पुरुष विरोधी नहीं हैं...अगली पोस्ट का थोड़ा इंतज़ार कीजिए...आपकी शिकायत दूर हो जाएगी...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

काफी शोधपरक लेख लिखा है ....बढ़िया ...

फ़िरदौस ख़ान said...

जय जी
आपसे क्या कहें...आप बेहतर समझते होंगे...

Kunwar Kusumesh said...

वाह फिरदौस जी,
कहने को तो न ये कहानी है न कविता,मगर फिर भी बहुत कुछ है इसमें
I can say it is wonderful and very interesting.

नवीन प्रकाश said...

अभी तक तो किसी लड़की से पाला ही नहीं पड़ा जो हमारे बारे में इतना और इस तरह से सोंचे या शिकायत करे .
खैर पहले ही जानकारी देने के लिए धन्यवाद शायद भविष्य में काम आये .
:)

प्रेम सरोवर said...

Blkul sarthak post.Mere blog par aapka nimantran hai.Intajar rahega.

प्रेम सरोवर said...

Vicharniya post hai.Plz, visit my blog.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

मुझे इस पोस्ट से शिकायत है.... मेरी पोल क्यूँ खोली गयी है इसमें... ?

उपेन्द्र नाथ said...

फिरदौस जी, बहुत सच लिखा है आपने..... कोई भी बात काटने लायक नहीं.

प्रवीण said...

.
.
.
फिरदौस जी,

अब जाने भी दीजिये, 'मर्द' जैसे भी हैं... दो बातें तो तय है... पहली कि वह रहेंगे वैसे ही... दूसरी इन तमाम बातों के बावजूद हरपल औरतों के दिलो-दिमाग पर छाये भी रहेंगे... :)

बाई द वे, यह मर्दों की महानता ही मानिये कि ऊपर लगे फोटो पर आपत्ति नहीं की किसी ने... :))


...

Unknown said...

फ़िरदौस साहिबा!
आपने महफूज़ साहब को नाराज़ कर दिया.......यह बहुत ही बुरी बात है.......

रचना जी को पोस्ट से क्या शिकायत है.......समझ से परे हैं....

anshumala said...

एक बात और है जब उनके पास महिलाओ के सवालो का जवाब नहीं होता है तो कह देते है तुम्हे क्या समझाये तुम लोगों को समझ आयेगा नहीं या तुम लोगों से क्या फजूल में बहस की जाये तुम लोगों को कुछ समझ तो आने वाला नहीं है | :-)

सतीश पंचम said...

फिरदौस जी, गिरिजेश जी ने यही बात एक कविता के माध्यम से मई महीने में उठाया था कि -

आज कल एक प्रश्न बहुत सता रहा है - पुरुष शरीर पर उतनी कविताएँ क्यों नही हैं जितनी नारी शरीर पर ?
तुलसी टाइप नहीं ..ऐसी जो
बबूल के काँटों का राग रचें,
बाहु मांसपेशियों में मचलती मछलियों की रवानी के छ्न्द गढें,
मुक्त अट्टाहस में गूँजते प्रलय रव को सुनें सुनाएँ,
वक्ष की रोमावलियों पर कोमलता को सँभालती रुक्षता को पखावज नाद दें
.. क्यों नहीं हैं?


मैं पुरुष शरीर पर ऐसा कुछ रचना चाहता हूँ:
शत घूर्णावर्त तरंग भंग उठते पहाड़
जल राशि राशि पर चढ़ता खाता पछाड़
तोड़ता बन्ध प्रतिसंध धरा हो स्फीत वक्ष
दिग्विजय अर्थ प्रतिपल समर्थ बढ़ता समक्ष

(निराला, राम की शक्ति पूजा)

जाने कब हो पाएगा ?
दिनकर ! तुम्हारी उर्वशी के छ्न्द कब इस आकाश में उतरेंगे?

यह रहा लिंक - http://kavita-vihangam.blogspot.com/2010/05/blog-post_04.html

अच्छी और भिन्न विषय वाली पोस्ट है। बढ़िया।

अविनाश वाचस्पति said...

विचारों की खान
फिरदौस खान
अब पोस्‍ट पढ़ ली हैं
तो आओ बंधु, गोरी के गांव चलें

Unknown said...

फ़िरदौस जी !
मैं इसलिए तो आपकी प्रशंसा नहीं करूँगा कि आपने बहुत उम्दा सोचा क्योंकि ये सब बातें सोचने का काम सुरेन्द्र मोहन पाठक अच्छे से कर लेता है और वहां से बहुत लोग अपनी अपनी सामग्री उठा लेते हैं ...मैं तो प्रशंसा इसलिए करूँगा कि आपने एक रोचक और मनोरंजक पोस्ट लगाई है जिसमे छेड़छाड़ का स्वर है पूर्वाग्रह का तांडव नहीं
कुल मिला कर आदमी को थोड़ा मज़ा आ जाये तो पोस्ट सार्थक है वरना कित्ती भी बड़ी बात कित्ते भी गहरे कलम लिख लो , नतीजा सिफ़र रहता है

आपके लिए शुभकामनाएँ
जय हो !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

चलिए शिकायतें ही सही पर आपने कुछ लिखा तो है ..

Anonymous said...

बहुत कुछ पहले से ही कहा जा चुका है... बस एक लिंक दे रहा हूँ...

असुरक्षा पुरुषों में भी .. ...

और हाँ इस बार मेरे ब्लॉग पर...

पहचान कौन चित्र पहेली ...

Unknown said...

आपकी यह हल्की फुल्की पोस्ट पसन्द आई!

रचना said...

रचना जी को पोस्ट से क्या शिकायत है.......समझ से परे हैं....

itnae sarey exclamation marks {!!!} shikaayat kae liyae lagaaaye jaatey haen

फ़िरदौस ख़ान said...

अंशुमाला जी
आप सही कहती हैं... मर्दों के बारे में एक और बात बताने के लिए हम आपके तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हैं...

फ़िरदौस ख़ान said...

सतीश जी
आपके विचार अच्छे हैं...मर्दों पर कुछ लिखिए...शुभकामनाएं...

फ़िरदौस ख़ान said...

अविनाश वाचस्पति जी
आप हमारे ब्लॉग पर आए...शुक्रिया आपका...

फ़िरदौस ख़ान said...

अलबेला जी
कुछ साथी कहते हैं कि तुम हमेशा गंभीर ही क्यों लिखती हो...? फिर सोचा कि कुछ मनोरंजक भी लिखा जाए... यह कोशिश कामयाब भी हुई... आप हमारे ब्लॉग पर आए...शुक्रिया...

रवि रतलामी said...

यह तो मर्दों के लिए मरफ़ी के 'नए', एकदम फ़िट नियम हैं! :)

सतीश पंचम said...

फिरदौस जी,

ये कविता और उसमें उपजा प्रश्न गिरिजेश जी के ब्लॉग से है। उन्होंने ही इसे मई महीने में लिखा था। मैंने तो केवल यहां उसे प्रस्तुत किया है।

हां, विचार मेरे भी कुछ कुछ वही हैं कि क्यों मर्दों पर इतना कुछ नहीं लिखा जाता जितना कि नारी पर।

दीपक 'मशाल' said...

फिरदौस जी, अब्बल तो माफी चाहता हूँ लेकिन फिर भी मेरा मानना है कि अब ऐसा नहीं कि पुरुषों के बारे में लिखा ना जाता हो. ऑनलाइन टाइम्स ऑफ़ इंडिया देखेंगीं तो पाएंगीं कि Life & style section का लगभग हर दूसरा-तीसरा आर्टिकिल 'what woman wants?' के अलावा 'what a man wants' भी मिल जाता है. इस तरह कह सकते हैं कि आवृत्ति थोड़ी सी कम जरूर है, संभव है कि हिन्दी में अभी भी कम लिखा जाता हो.
इस सब के इतर मैंने इस पोस्ट को सिर्फ पढ़ा नहीं बल्कि हर पंक्ति को गहराई में जाके सोचा कि मैंने ऐसा कब किया या फिर कब से नहीं किया और फिर लगा कि अभी तक के जीवन में इनमे से इक्का-दुक्का बातें ही शायद कभी मुझपर लागू रहीं हों... मजाक में ठीक लगीं पर गंभीरता से सबको सच नहीं कहा जा सकता. अब इस सबका यही निष्कर्ष निकलता दिखता है कि अगर ये सब 'खूबियाँ' एक मर्द में होती हैं तो शायद मैं मर्द ही ना होऊं. अपनी मर्दानगी पर शक पैदा करा दिया आपने... :)
खैर लेख आकर्षक है इसमें कोई दो राय नहीं. इसे सिर्फ मेरे अपने अनुभव से निकली राय मानियेगा और कृपया मेरी बातों को हलके से लीजियेगा.

फ़िरदौस ख़ान said...

दीपक जी
आप सही कहते हैं...हम भी यही मानते हैं कि हर बात हर व्यक्ति पर लागू नहीं होतीं... यक़ीन मानिए हमने इसमें बहुत कुछ वो लिखा है, जो होता है... कई महिलाओं ने कुछ बातों की तस्दीक भी की है... आप इस पोस्ट को गंभीरता से क्यों लेते हैं... ये तो ज़िन्दगी के नोक-झोंक वाले वो लम्हे होते हैं, जिन्हें जीकर ख़ुशी ही हासिल होती है...
एक लड़की अपने महबूब को कॉल करती है तो जनाब कहते हैं कि मैं तुम्हें कॉल करता हूं...बस 10 मिनट दो... फिर 1 घंटे बाद याद आती है... कॉल न करो तो कहते हैं कि तुम तो मुझे याद ही नहीं करतीं...क्या किसी मर्द का दिल नहीं होता कि उसकी महबूबा उसे कॉल करे... अब आप बताइए... ऐसे लड़के का क्या किया जाए...? शायद आपका जवाब कुछ काम आ जाए... हा हा हा

किलर झपाटा said...

आप बहुत ख़राब हो फ़िरदौस। जाओ हम आप से बात नहीं करते। अभी ऐसा ही औरतों के लिए लिख दिया जाए तो झगड़ने लग जाएंगी सब की सब। अच्छी बातें लिखा कीजिए यार। चलिए बाय। एक बात कहें कुछ भी हो पर लिखा तो आपने बहुत सही है। हा हा हा हा......

दीपक 'मशाल' said...

:) शुक्रिया फिरदौस जी,
वैसे कल मैंने भी किसी से कहा था कि ५-१० मिनट में बात करता हूँ, मेरे चाचा जी के यहाँ गृहप्रवेश है और उनसे बात करनी है. रात ज्यादा हो जाने की वजह से उनसे तो बात ना हो सकी मगर दी से २० मिनट के करीब बात हुई. उसके बाद ही वापस फोन कर पाया. लेकिन ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है अगर दूसरी तरफ भी कभी कोई जरूरी काम हो या घर के किसी सदस्य या दोस्त से बात करनी हो तो समय लग सकता है, ऐसा दोनों ही सोच सकते हैं परेशानी वाली कोई बात ही नहीं... आपसी समझ होनी चाहिए बस.. व्यस्तता किसी को भी कभी भी हो सकती है ऐसी बातों को गंभीरता से लेकर बेवजह जीवन में कड़वाहट घोलने के क्या माने???
वो ग़ज़ल है ना कि-
'बेसबब बात बढ़ाने की जरूरत क्या है,
हम खफा कब थे मनाने की जरूरत क्या है...'

PRATUL said...

.

एक बात जुड़ने से रह गई है :
अगर आप रोयेंगी तो वे समझेंगे कि आप घड़ियाली आँसू बहाते हैं. और यदि वे बामुश्किल खुद रोयेंगे भी तो आपसे चाहेंगे कि उन्हें भी भावुक समझा जाये.
भावुक मतलब नारी-ह्रदय.

फिरदौस जी, ........ आपका समीक्षात्मक सूक्ष्म-चिंतन बेहद पसंद आया.

.

कडुवासच said...

firdaus ji
... kyaa baat hai ... shaandaar-jaandaar post ... badhaai !!!

ABHISHEK MISHRA said...

व्यक्ति विशेष के गुण और अवगुण होते है अतः पुरुषो ने ये लक्षण है कहना पूर्णतया गलत है . इन में से बहुत सी बाते महोलाओ पर भी लागू होती है . क्यों की आप महिला है इस लिए आप का ये नजरिया है अगर आप पुरुष होती तो इन में से काफी सारी बाते महिलाओ के लिए लिखती .
मैं मानता हू की व्यक्तित्व से ही पहचान है न की महिला और पुरुष से

sarfaraz saifi said...

dil sai mubark ji.....aap nai bahout accha likha

निर्मला कपिला said...

हा हा हा चित भी मेरी और पट भी मेरी। बिलकुल सही कहा आपने। बधाई इस पोस्ट के लिये।

अरुण चन्द्र रॉय said...

शायद काम्पलैक्स होता है शायद तभी ऐसे होते हैं……...

लोकेन्द्र सिंह said...

फिरदौस जी, शुक्र है कि अपुन आपकी कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरे.... हा हा हा....
वैसे सही बताउं तो आप सच्चाई के काफी करीब हैं..... और लिखए मजा आया पढ़कर। मर्दों के बारे में.........
हां एक और बात......... कुछ बातें मुझ पर लागू होती हैं कुछ नहीं।

Ganesh Prasad said...

:) बहुत अच्छा ! ह्म्म्मम्म्म्म कुछ तो बात होगी.....
बहुत बधाई लिक से हट कर लिखने की.

कुछ और लिखे तो जाने ........

मुकेश कुमार सिन्हा said...

BECHARA MARD...!!
Biwi par hath uthaye to Jaleel, aur pite to Buzdil,

naukri se roke to Shakki Mijaz, Na rokey to biwi ki kamai khanewala,

Biwi ko kisi ke 7 dekh ker ladai kare to jealous, Chup rahe to be-gairat,

Ghar se bahar rahe to Awara, Ghar me rahe to Nakara,

Maa ki mane to Maa ka Chamcha, Biwi ki sune to Joru ka Gulam ...


Na Jane Kab Aayega, "HAPPY MEN'S DAY"

aap bhi batana......:P
waisechhha laga, ab follow kar raha hoon to barabar aapke darshan honge....

मुकेश कुमार सिन्हा said...

आरम्भ के १४वर्ष जब तक की वो बालक होता है उसे छोड़ दे तो उसके baad
७-८ वर्ष तक काग दृष्टी वको ध्यानं करना पड़ता है की अच्छी नौकरी मिल जाये
और जो पाकिट मनी मिलता है उसे नयी नयी बनी महिला मित्र लोग हड़प कर जाती है (बेचारगी का आरम्भ)
और जैसे ही कमाना आरम्भ हुआ नहीं की विवाह
और विवाहित होना अर्थात अधिकृत taur पर महिलाओं द्वारा दोहन का आरम्भ (बेचारगी की jawani)
और विवाहोपरांत जब बाल गोपाल हो गए तो बेचारगी की पराकास्था हो जाती है
पहले के ७ वर्ष बन्दर की भाँती उचल कूद करता है
अगले ७ वर्ष शेर बनने का प्रयास
अगले ७ वर्ष कन्यों को लुभाने मे
अगले ७ वर्ष उनको मानाने मे
उसके बाद .........


तो हुआ की नहीं मर्द ... बेचारा

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

फ़िरदौस साहिबा,
एक लफ़ज़ में कहा जाए तो...
मज़ेदार.

फ़िरदौस ख़ान said...

मुकेश जी
जिस मर्द की नेक बीवी है उसके लिए हर दिन ही "HAPPY MEN'S DAY" है...

इसी तरह जिस औरत का नेक शौहर है उसके लिए भी हर दिन अच्छा है...

ख़ुशी बाहरी नहीं हुआ करती, उसे घर में ही तलाशना चाहिए...अमूमन होता यह है कि लोग घर के बाहर ख़ुशी तलाशते हैं... इसलिए वो खुशियों से और ज़्यादा दूर होते चले जाते हैं...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

हा...हा...हा...हा...अब हम कहें भी क्या कहें....इस पर फिरदौस.....पहले पढ़ा होता तो कहते.....तब हम भूत हुआ करते थे.....और अब मर्द हैं (मर्द माने गाली नहीं यार...!!)

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

हा...हा...हा...हा...अब हम कहें भी क्या कहें....इस पर फिरदौस.....पहले पढ़ा होता तो कहते.....तब हम भूत हुआ करते थे.....और अब मर्द हैं (मर्द माने गाली नहीं यार...!!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

फिरदौस जी,
इतनी हिम्मत का काम करने के लिए बधाई स्वीकार करें !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

प्रेम सरोवर said...

आपका मेरे व्लाग पर आना अच्छा लगा-लेकिन कमेंट नही आने के कारण अव अच्छा नही लग रहा है। Waiting for your comment Firdaus.

G.N.SHAW said...

khair mardo ko ye to jarur aabhas ho gai hogi ki ladakiya bhi kya sonchati hai.waise ladakiyo ko mardo ke bare me apani sobch jahir karani chahiye,kamayab ank.

GGShaikh said...

फ़िरदौस जी,
यह तो सरासर एक तरफ़ा (one sided) ज्यादतियाँ है
मर्दों पर... :(

(itni tippaniyaan ! wow !)

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