Friday, September 4, 2015

इंसानियत को शर्मसार करते दहशतगर्द


फ़िरदौस ख़ान
दहशतगर्दों ने इंसानियत को शर्मसार करके रख दिया है. दुनियाभर के कई देश दहशतगर्दी से जूझ रहे हैं और कई अन्य देशों पर इसका सीधा असर पड़ रहा है. दहशतगर्दों को किसी की जान लेते हुए ज़रा भी रहम नहीं आता. अपनी ख़ूनी प्यास बुझाने के लिए ये दहशतगर्द कितने ही घरों के चिराग़ों को बुझा डालते हैं, कितनी ही मांओं की गोद सूनी कर देते हैं और बच्चों को यतीम बना देते हैं. तीन साल का एलन कुर्दी भी दहशतगर्दों की वजह से ही मारा गया. वह अपने पांच साल के भाई गालेब और मां रिहाना के साथ समुद्र में डूब गया. पूरा परिवार कुछ अन्य लोगों के साथ जंग से जूझ रहे सीरिया से निकलकर यूरोप जा रहा था. किश्ती समुद्र में पलट गई. लहरों ने इसमें से एक पांच साल के बच्चे को तुर्की के समुद्र टक पर फेंक दिया. वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने बच्चे को उठाया और अस्पताल ले गए, लेकिन चिकित्सीय जांच में पता चला कि उसकी मौत हो चुकी है.

एलन के पिता अब्दुल्ला ने कहा कि उनके दोनों बच्चे बहुत ख़ूबसूरत थे. वे उनकी गोद में सिमटे थे कि किश्ती डूब गई. उन्होंने बच्चों को बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे हाथों से फिसलकर आंखों के सामने समुद्र में समा गए. वे चाहते हैं कि पूरी दुनिया की नज़र इस हादसे पर जाए, ताकि दोबारा ऐसा किसी और के साथ न हो. अब्दुल्ला का कहना है कि उन्होंने अपने परिवार को ग्रीस ले जाने के लिए तस्करों को दो बार पैसे दिए, लेकिन उनकी हर कोशिश नाकाम रही. इसके बाद उन्होंने एक किश्ती पर सवार होकर पहुंचने की कोशिश की. किश्ती के पानी में जाने के चार मिनट बाद ही कैप्टन ने बताया कि वह डूबने वाली है. तेज़ लहरों की वजह से किश्ती पलट गई. वे अंधेरे में चीख़ रहे थे. उनकी आवाज़ उनकी पत्नी और बच्चे नहीं सुन सके. अब्दुल्ला अपने बेटे की लाश के साथ शुक्रवार को सीरिया के शहर कोबान पहुंचे. आईएसआईएस और कुर्दिश विद्रोहियों के बीच जंग की वजह से पूरा शहर तबाह हो चुका है. तीन महीने पहले ही अब्दुल के परिवार के 11 लोगों को आईएसआईएस के दहशतगर्दों ने क़त्ल कर दिया था. इसी शहर के कब्रिस्तान में एलन, उसकी मां और भाई को दफ़नाया गया.

ग़ौरतलब है कि तस्वीर के सामने आते ही दुनियाभर में एलन की तस्वीर छापने और न छापने पर बहस छिड़ गई. कई अख़बारों में छपा भी. ला-रिपब्लिका (इटली) ने शीर्षक दिया- ‘दुनिया को ख़ामोश करती एक उदास तस्वीर.’ इंग्लैंड के द सन ने लिखा ‘ये ज़िन्दगी और मौत है।’ डेली मिरर ने ‘असहनीय हक़ीक़त’ बताया. मेट्रो ने लिखा- ‘यूरोप बचा नहीं सका.’ द टाइम्स ने कहा- ‘बंटे हुए यूरोप का चेहरा.’ डेली मेल ने लिखा- ‘मानवीय आपदा का मासूम शिकार.’ अवाम के साथ-साथ सरकारों के बीच भी इस तस्वीर को लेकर बहस छिड़ी हुई है. जर्मनी ने कहा है कि यूरोप के सभी देश शरणार्थियों को जगह देने से इंकार करने लगेंगे, तो इससे ‘आइडिया ऑफ़ यूरोप’ ही ख़त्म हो जाएगा. ये बच्चा बच सकता था, अगर यूरोप के देश इन लोगों को शरण देने से इंकार नहीं करते. तुर्की के प्रेसिडेंट रीसेप अर्डान ने जी20 समिट में यहां तक कह दिया कि इंसानियत को इस मासूम की मौत की ज़िम्मेदारी लेनी होगी. जर्मनी और फ्रांस ने ऐलान किया कि शरणार्थियों के लिए यूरोपीय देशों का कोटा तय होगा. मौजूदा नियम में भी ढील दी जाएगी, ताकि लोगों का आना आसान हो सके.  यूएन रिपोर्ट के मुताबिक़ एक साल में 1.60 लाख लोग समुद्र के रास्ते ग्रीस आ चुके हैं. जनवरी से अब तक तीन हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है.

एलन की तस्वीर लेने वाले फ़ोटोग्राफ़र निलुफेर देमीर ने कहा है कि उन्होंने बच्चे को तट पर देखा. उन्हें लगा कि इस बच्चे में अब ज़िन्दगी नहीं बची है, तो उन्होंने तस्वीर लेने की सोची, ताकि दुनिया को बताया जा सके कि हालात कितने ख़राब हो चुके हैं. वाक़ई इस तस्वीर ने दहशतगर्दी पर एक बार फिर से सबका ध्यान खींचा है. अब देखना यह है कि इस मुद्दे पर क्या कोई सार्थक पहल होती है या फिर हमेशा की तरह ही बयानबाज़ी के बाद इसे फिर से ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा. इस मुद्दे पर अरब देशों की ख़ामोशी बेहद शर्मनाक है.

हालांकि यूरोपियन यूनियन ने आगामी 16 सितंबर को होने वाली बैठक में इस संकट से निकलने के रास्ते पर विचार करने का फ़ैसला किया है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा है कि वे हज़ारों शरणार्थियों को अपनाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने शरण दिए जाने को लेकर देश के क़ानून की समीक्षा के आदेश दे दिए हैं. हालांकि इस मुद्दे पर सभी देशों की एक राय नहीं बन पाई है. कोटा सिस्टम रिजेक्ट किया जा चुका है. यूरोपीय देशों में आपस में ही मतभेद सामने आ रहे हैं. इसकी वजह यह है कि कुछ देश इस संकट से ज़्यादा प्रभावित हैं. उनके यहां बहुत ज़्यादा शरणार्थी पहुंच रहे हैं, इसलिए इन पर शरणार्थियों के साथ सख़्ती करने का दबाव बन रहा है. हंगरी ने सर्बिया के बॉर्डर पर 175 किलोमीटर लंबी बाड़ लगाई है. वहीं, ब्रिटेन ने जनवरी 2014 के बाद से महज़ 216 सीरियाई शरणार्थियों को अपनाया है. तुर्की ने 20 लाख लोगों को शरण दी है. वहीं, पूरे यूरोप ने बीते चार साल में महज़ दो लाख शरणार्थियों को अपनाया है. तुर्की के प्रेसिडेंट ने तो यहां तक कह दिया कि 28 देश मिलकर यह विचार-विमर्श कर रहे हैं कि 28 हज़ार शरणार्थियों को आपस में कैसे बांटा जाए. इस साल जुलाई तक चार लाख 38 हज़ार लोग यूरोपीय देशों में शरण मांग चुके हैं. बीते साल ही पांच लाख 71 हज़ार लोग यूरोप में शरण ले चुके हैं. शरणार्थियों की यह बढ़ती तादाद यूरोपीय देशों ख़ासकर तौर पर शेंगेन देशों के लिए संकट का सबब बन गई है. शेंगेन इलाक़े के तहत कुल 26 यूरापीय देश आते हैं, जिन्होंने कॉमन बॉर्डर पर पासपोर्ट और दूसरे क़िस्म के बॉर्डर कंट्रोल हटा लिए हैं. कॉमन वीज़ा पॉलिसी के तहत यह पूरा इलाक़ा एक देश की तरह काम करता है. यहां लोगों की आवाजाही पर पाबंदी नहीं है. यूरोपीय देशों में शरण लेने की कोशिश करने वाले लोग ज़्यादातर भूमध्य सागर के ज़रिये वहां पहुंचने की कोशिश करते हैं. जिन देशों में ये जाते हैं, वहां इनके लिए खाना, छत और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने में सरकार को परेशानी होती हैं.

ग़ौरतलब है कि ये शरणार्थी पश्चिमी एशिया और नॉर्थ अफ्रीका के जंग से प्रभावित इलाक़ों और ग़रीब यूरोपीय देशों से हैं. ज़्यादातर लोग सीरिया और लीबिया से पहुंच रहे हैं, जहां पिछले चार साल से गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है. यहां आतंकवादी संगठन आईएसआईएस ने लोगों का जीना दुश्वार कर रखा है. इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ और नाइजीरिया से भी लोग ग़रीबी और जंग से परेशान होकर यूरोप जाना चाहते हैं. यूरोप से आने वाले शरणार्थियों में कोसोवो और सर्बिया जैसे देशों के लोग शामिल हैं. इस साल ग्रीस के बॉर्डर पर सबसे ज़्यादा लोग शरण लेने पहुंचे. इनमें से ज़्यादातर सीरिया के नागरिक थे, जो तुर्की तक किश्तियों में सवार होकर पहुंचे. लोग छोटी-छोटी किश्तियों में बैठकर ये ट्यूनीशिया या लीबिया से इटली पहुंचने की कोशिश करते हैं. क्षमता से ज़्यादा लोग इन किश्तियों पर सवार होने की वजह से कई बार बड़े हादसे होते रहते हैं. कुछ किश्तियां लीबिया तट तक पहुंचने से पहले ही डूब गईं. कुछ लालची लोग इन लोगों की जान की परवाह न करते हुए इन्हें रबर की बनी किश्तियों में यूरोप भेजने की कोशिश करते हैं और बदले में लाखों रुपये कमाते हैं. ये किश्तियां पानी पर तैरते ताबूत बनकर रह गई  हैं. अब तक 3200 से ज़्यादा लोगों इन किश्तियों के डूबने की वजह से मारे जा चुके हैं और ये सिलसिला बदस्तूर जारी है.

दरअसल, दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ माहौल बनाना होगा. अगर अब भी इसे उतनी संजीदगी से नहीं लिया गया, जितना लिया जाना चाहिए, तो एक दिन ये पूरी दुनिया को तबाह कर देगा. जब तक दुनिया के सभी देश मिलकर ईमानदारी से दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ सख़्ती नहीं बरतेंगे, तब तक न जाने कितने मासूम इसी तरह अपनी जान गंवाते रहेंगे.

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