Wednesday, September 16, 2015

ईद-उल-अज़हा


ईद-उल-अज़हा का महीना शुरू हो चुका है... जो लोग साहिबे-हैसियत हैं, वो बक़रीद पर क़्रुर्बानी करते हैं...ऐसे भी घर हैं, जहां तीन दिन तक कई-कई क़ुर्बानियां होती हैं... इन घरों में गोश्त भी बहुत होता है... एक-दूसरे के घरों में क़ुर्बानी का गोश्त भेजा जाता है... जब गोश्त ज़्यादा हो जाता है, तो लोग गोश्त लेने से मना करने लगते हैं...
ऐसे बहुत से घर होते हैं, जहां क़ुर्बानी नहीं होती... ऐसे भी बहुत से घर होते हैं, जो त्यौहार के दिन भी गोश्त की एक बोटी तक से महरूम रहते हैं... ’राहे-हक़’ से जुड़े साथी गोश्त इकट्ठा करके ऐसे लोगों तक पहुंचाते रहे हैं, जो ग़रीबी की वजह से गोश्त से महरूम रहते हैं...
आपसे ग़ुज़ारिश है कि आप भी क़ुर्बानी के गोश्त को उन लोगों तक ज़रूर पहुंचाएं, जिनके घरों में त्यौहार पर भी गोश्त नहीं आता... आपकी ये कोशिश किसी के त्यौहार को ख़ुशनुमा बना सकती है...
-फ़िरदौस ख़ान

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