Sunday, September 20, 2015

रोज़गार


कभी किसी का रोज़गार नहीं छीनना चाहिए, क्योंकि इससे उसका पूरा ख़ानदान मुतासिर होता है... ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके घरों में चूल्हा तभी जलता है, जब वे मेहनत-मज़दूरी करके कुछ पैसे कमाते हैं...

अफ़सोस, मीडिया में ये बात बहुत आम है, जब कोई संपादक या ऐसे ही किसी अन्य पद पर आता है, तो वह वहां काम कर रहे लोगों को निकालकर अपने लोग रखने लगता है... इससे बहुत से लोग बेरोज़गार हो जाते हैं... इंसान अगर किसी को रोज़गार नहीं दे सकता, तो किसी से उसकी रोज़ी भी नहीं छीननी चाहिए...

1 Comments:

रचना दीक्षित said...

सच फिरदौस जी. यह व्यथा तो वही सझता है जिस पर गुजरती है. अफ़साने बनाने वाले तो मज़े करते हैं.

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