फ़िरदौस ख़ान
देश की राजधानी दिल्ली में जिस तेज़ी से आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से बुनियादी सुविधाओं को जुटाना कोई आसान काम नहीं है. इस आबादी में देश के अन्य राज्यों से आए लोगों की भी एक बड़ी संख्या है. आबादी को रहने के लिए घर चाहिए, रोज़गार चाहिए, बिजली-पानी चाहिए, शैक्षिक, स्वास्थ्य व परिवहन की सुविधाएं चाहिएं. यानी घर-परिवार के लिए सभी बुनियादी सुविधाएं चाहिएं. जनता को ये सब सुविधाएं मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी सरकार की है, प्रशासन की है. इसके लिए एक योजना की ज़रूरत होती है, एक मास्टर प्लान की ज़रूरत होती है. किसी भी शहर के सतत योजनाबद्ध विकास का मार्गदर्शन करने के लिए एक योजना होती है. इस मास्टर प्लान को बनाते वक़्त इस बात का ख़्याल रखा जाता है कि जिस समयावधि के लिए यह बनाया जा रहा है, उस वक़्त शहर की आबादी कितनी होगी और उसकी ज़रूरतें क्या-क्या होंगी. मास्टर प्लान 2021 भी एक ऐसी ही योजना है, जिसके मुताबिक़ दिल्ली को एक ऐसा विश्वस्तरीय शहर बनाना है, जिसमें यहां के बाशिन्दों को तमाम सुविधाएं मुहैया हो सकें.
ग़ौरतलब है कि देश की राजधानी दिल्ली पिछले दिसम्बर माह से सीलिंग के साये में है. सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी के आदेश पर राजधानी में सीलिंग का काम चल रहा है. इस सीलिंग की वजह यही मास्टर प्लान 2021 है. ये मास्टर प्लान साल 2001 में आ जाना चाहिए था, लेकिन वह छह साल बाद 2007 में आया. दिल्ली विकास प्राधिकरण के मुताबिक़ हर पांच साल के बाद इस प्लान की समीक्षा की जानी थी. इसके तहत साल 2012 के शुरू माह जनवरी में इसमें बदलाव के लिए जनता से सुझाव मांगे गए थे. इस सुझावों के हिसाब से मैनेजमेंट एक्शन कमेटी का भी गठन किया गया. सुझावों को अमल में लाने के लिहाज़ से इनका विश्लेषण किया गया. इसी के आधार पर मास्टर प्लान में बदलाव किया गया. इसे दिल्ली विकास प्राधिकरण ने पास भी कर दिया. दिल्ली विकास प्राधिकरण के इस मास्टर प्लान में 18 क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिनमें भू-नीति, सार्वजनिक भागीदारी और योजना के कार्यान्वयन, पुनर्विकास, आश्रय, ग़रीबों के लिए आवास, पर्यावरण, अनधिकृत कॉलोनियों, मिश्रित उपयोग विकास, व्यापार और वाणिज्य, अनौपचारिक क्षेत्र, उद्योग, विरासत का संरक्षण, परिवहन, स्वास्थ्य, शैक्षणिक व खेल सुविधाएं, आपदा प्रबंधन आदि शामिल हैं.
दिल्ली विकास प्राधिकरण के मुताबि़क साल 2021 तक दिल्ली की आबादी 225 लाख तक पहुंच जाएगी. मास्टर प्लान के हिसाब से इसे 220 लाख से कम रखने की कोशिश की जाएगी. यह योजना इस आबादी को घर बनाने के लिए एक तीन-आयामी रणनीति को अपनाने पर ज़ोर देती है. इसके तहत लोगों को उपनगरों में स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करना, शहर की सीमा का विस्तार और मौजूदा क्षेत्रों की आबादी-धारण क्षमता को बढ़ाकर उनका पुनर्विकास किया जाएगा. इसके अलावा सरकार के मालिकाना हक़ वाली ख़ाली ज़मीनों का इस्तेमाल किया जाएगा. साल साल 2021 तक 60 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों की तादाद 24 लाख से ज़्यादा होने की उम्मीद है और वह कुल आबादी का 10.7 फ़ीसद हिस्सा होगा. ऐसे में उनके लिए भी विशेष सुविधाओं की ज़रूरत होगी. ग़ौरतलब है कि जब 2005 में सार्वजनिक सुझावों को आमंत्रित करने के लिए ड्राफ़्ट को अधिसूचित किया गया था, तब उसे सात हज़ार आपत्तियां और सुझाव मिले थे, जबकि 611 लोगों और संगठनों को इस पर व्यक्तिगत सुनवाई दी गई थी. केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने साल 2007 में इस योजना के मौजूदा रूप को मंज़ूरी दे दी थी. इलाक़ों के विकास के लिए नियम शहर के अन्य इलाक़ों से अलग होंगे. इसके मुताबिक़ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में कोई नया केंद्रीय और सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम कार्यालय नहीं बनाया जाएगा. दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या आबादी में बढ़ोतरी, शहरीकरण, जीवन शैली और उपभोग के तरीक़े और यहां से निकलने वाले कचरे से निपटने के लिए लैंडफ़िल की स्थापना का प्रस्ताव भी किया गया है. आवास के लिए बने इलाक़ों में ग़ैर-रिशायशी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए, योजनाओं में एक मिश्रित उपयोग नीति की परिकल्पना की गई है, जो दिल्ली को बेहतर शहर बनाने में मदद करेगी. हालांकि लुटियन के बंगला ज़ोन, सिविल लाइंस बंगला ज़ोन, सरकारी आवास, सार्वजनिक और निजी एजेंसियों की संस्थागत, स्टाफ़ आवास और विरासत संरक्षण समिति द्वारा सूचीबद्ध इमारतों, परिसरों में मिश्रित उपयोग की अनुमति नहीं दी गई है.
सीलिंग को लेकर राजधानी में क़हर बरपा है. भारतीय जनता पार्टी और सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज का कहना है कि सीलिंग की एक वजह फ़्लोर एरिया रेशियो भी है, जिसे मास्टर प्लान-2021 में संशोधन करके बढ़ाया जा सकता है और सीलिंग को रोका जा सकता है. चूंकि मास्टर प्लान-2021 दिल्ली विकास प्राधिकरण का है, इसीलिए वही इसमें संशोधन कर सकता है. दिल्ली विकास प्राधिकरण भारतीय जनता पार्टी शासित केंद्र सरकार के अधीन आता है और उपराज्यपाल ही इसकी अध्यक्षता करते हैं. इसका दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग से कोई लेना-देना नहीं है.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का आरोप है कि सीलिंग अभियान के ज़रिये भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) के लिए रास्ता बनाना चाहती है.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि दिल्ली में सीलिंग के मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप का नाटक बंद कर देना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी की मिलीभगत और फ़र्ज़ी लड़ाई में व्यापारियों को बहुत नुक़सान हो रहा है. दोनों पार्टियों को राजनीतिक रोटी सेंकने के बजाय इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान निकालना चाहिए.
केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि सीलिंग का हल ढूंढ लिया गया है. इस बाबत जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय में एक हल्फ़नामा दाख़िल किया जाएगा. इसमें मास्टर प्लान में संशोधन के क़ानूनी अधिकारों का का इस्तेमाल किया गया है. अगर सर्वोच्च न्यायालय मान जाता है, तो सीलिंग का मसला हल हो सकता है. इसके साथ ही दिल्ली सरकार द्वारा मिक्स लैंड यूज़ वाली 351 सड़कें भी जल्द ही अधिसूचित कर दी जाएंगी. ख़ैर, सीलिंग रोकने की नूराकुश्ती जारी है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है.
बहरहाल, सीलिंग की वजह से काराबोर ठप होकर रह गया है. बड़े व्यापारियों का तो नुक़सान हो ही रहा है, वहीं सड़क के किनारे बैठकर सामान बेचने वाले लोग भी परेशान हैं. दुकानों पर काम करने वाले लोग भी ख़ाली घूम रहे हैं. उनके समक्ष रोज़ी-रोटी का संकट अपिदा हो गया है. कंफ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने दिल्ली बाज़ार बंद का आह्वान किया था. इसके अलावा एक अन्य कारोबारी संगठन चैंबर ऑफ़ ट्रेड एंड इंडस्ट्री ने भी अलग से बाज़ार बंद की घोषणा की थी.
क़ाबिले-ग़ौर है कि व्यापारियों के सामने सीलिंग की आज जो सबसे बड़ी समस्या पैदा हो गई है, उसके लिए पूरी तरह से सरकार ही ज़िम्मेदार है. साल 1962 में राजधानी के लिए एक मास्टर प्लान बनाया गया था, लेकिन उस पर सहे तरीक़े से अमल नहीं किया गया. इसलिए लोगों को जहां जगह मिली, वे वहां मकान और दुकानें बनाते चले गए. यह काम कोई एक दिन में तो हुआ नहीं है, इसमें बरसों लग गए. दिल्ली नगर निगम और दिल्ली विकास प्राधिकरण की नाकामी की वजह से उतने व्यापारिक परिसर नहीं बन पाए, जितने बनने चाहिए थे. मास्टर प्लान 1962 पूरा हो नहीं पाया था कि उसके बाद मास्टर प्लान 1981 आ गया, जो नौ साल बाद 1990 में अमल में आया. फिर एक लम्बी जद्दो-जहद के बाद मास्टर प्लान 1921 आया. आज इसी मास्टर प्लान की वजह से दिल्ली के व्यापारिक प्रतिष्ठान सीलिंग के साये में हैं.
देश की राजधानी दिल्ली में जिस तेज़ी से आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से बुनियादी सुविधाओं को जुटाना कोई आसान काम नहीं है. इस आबादी में देश के अन्य राज्यों से आए लोगों की भी एक बड़ी संख्या है. आबादी को रहने के लिए घर चाहिए, रोज़गार चाहिए, बिजली-पानी चाहिए, शैक्षिक, स्वास्थ्य व परिवहन की सुविधाएं चाहिएं. यानी घर-परिवार के लिए सभी बुनियादी सुविधाएं चाहिएं. जनता को ये सब सुविधाएं मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी सरकार की है, प्रशासन की है. इसके लिए एक योजना की ज़रूरत होती है, एक मास्टर प्लान की ज़रूरत होती है. किसी भी शहर के सतत योजनाबद्ध विकास का मार्गदर्शन करने के लिए एक योजना होती है. इस मास्टर प्लान को बनाते वक़्त इस बात का ख़्याल रखा जाता है कि जिस समयावधि के लिए यह बनाया जा रहा है, उस वक़्त शहर की आबादी कितनी होगी और उसकी ज़रूरतें क्या-क्या होंगी. मास्टर प्लान 2021 भी एक ऐसी ही योजना है, जिसके मुताबिक़ दिल्ली को एक ऐसा विश्वस्तरीय शहर बनाना है, जिसमें यहां के बाशिन्दों को तमाम सुविधाएं मुहैया हो सकें.
ग़ौरतलब है कि देश की राजधानी दिल्ली पिछले दिसम्बर माह से सीलिंग के साये में है. सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी के आदेश पर राजधानी में सीलिंग का काम चल रहा है. इस सीलिंग की वजह यही मास्टर प्लान 2021 है. ये मास्टर प्लान साल 2001 में आ जाना चाहिए था, लेकिन वह छह साल बाद 2007 में आया. दिल्ली विकास प्राधिकरण के मुताबिक़ हर पांच साल के बाद इस प्लान की समीक्षा की जानी थी. इसके तहत साल 2012 के शुरू माह जनवरी में इसमें बदलाव के लिए जनता से सुझाव मांगे गए थे. इस सुझावों के हिसाब से मैनेजमेंट एक्शन कमेटी का भी गठन किया गया. सुझावों को अमल में लाने के लिहाज़ से इनका विश्लेषण किया गया. इसी के आधार पर मास्टर प्लान में बदलाव किया गया. इसे दिल्ली विकास प्राधिकरण ने पास भी कर दिया. दिल्ली विकास प्राधिकरण के इस मास्टर प्लान में 18 क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिनमें भू-नीति, सार्वजनिक भागीदारी और योजना के कार्यान्वयन, पुनर्विकास, आश्रय, ग़रीबों के लिए आवास, पर्यावरण, अनधिकृत कॉलोनियों, मिश्रित उपयोग विकास, व्यापार और वाणिज्य, अनौपचारिक क्षेत्र, उद्योग, विरासत का संरक्षण, परिवहन, स्वास्थ्य, शैक्षणिक व खेल सुविधाएं, आपदा प्रबंधन आदि शामिल हैं.
दिल्ली विकास प्राधिकरण के मुताबि़क साल 2021 तक दिल्ली की आबादी 225 लाख तक पहुंच जाएगी. मास्टर प्लान के हिसाब से इसे 220 लाख से कम रखने की कोशिश की जाएगी. यह योजना इस आबादी को घर बनाने के लिए एक तीन-आयामी रणनीति को अपनाने पर ज़ोर देती है. इसके तहत लोगों को उपनगरों में स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करना, शहर की सीमा का विस्तार और मौजूदा क्षेत्रों की आबादी-धारण क्षमता को बढ़ाकर उनका पुनर्विकास किया जाएगा. इसके अलावा सरकार के मालिकाना हक़ वाली ख़ाली ज़मीनों का इस्तेमाल किया जाएगा. साल साल 2021 तक 60 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों की तादाद 24 लाख से ज़्यादा होने की उम्मीद है और वह कुल आबादी का 10.7 फ़ीसद हिस्सा होगा. ऐसे में उनके लिए भी विशेष सुविधाओं की ज़रूरत होगी. ग़ौरतलब है कि जब 2005 में सार्वजनिक सुझावों को आमंत्रित करने के लिए ड्राफ़्ट को अधिसूचित किया गया था, तब उसे सात हज़ार आपत्तियां और सुझाव मिले थे, जबकि 611 लोगों और संगठनों को इस पर व्यक्तिगत सुनवाई दी गई थी. केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने साल 2007 में इस योजना के मौजूदा रूप को मंज़ूरी दे दी थी. इलाक़ों के विकास के लिए नियम शहर के अन्य इलाक़ों से अलग होंगे. इसके मुताबिक़ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में कोई नया केंद्रीय और सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम कार्यालय नहीं बनाया जाएगा. दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या आबादी में बढ़ोतरी, शहरीकरण, जीवन शैली और उपभोग के तरीक़े और यहां से निकलने वाले कचरे से निपटने के लिए लैंडफ़िल की स्थापना का प्रस्ताव भी किया गया है. आवास के लिए बने इलाक़ों में ग़ैर-रिशायशी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए, योजनाओं में एक मिश्रित उपयोग नीति की परिकल्पना की गई है, जो दिल्ली को बेहतर शहर बनाने में मदद करेगी. हालांकि लुटियन के बंगला ज़ोन, सिविल लाइंस बंगला ज़ोन, सरकारी आवास, सार्वजनिक और निजी एजेंसियों की संस्थागत, स्टाफ़ आवास और विरासत संरक्षण समिति द्वारा सूचीबद्ध इमारतों, परिसरों में मिश्रित उपयोग की अनुमति नहीं दी गई है.
सीलिंग को लेकर राजधानी में क़हर बरपा है. भारतीय जनता पार्टी और सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज का कहना है कि सीलिंग की एक वजह फ़्लोर एरिया रेशियो भी है, जिसे मास्टर प्लान-2021 में संशोधन करके बढ़ाया जा सकता है और सीलिंग को रोका जा सकता है. चूंकि मास्टर प्लान-2021 दिल्ली विकास प्राधिकरण का है, इसीलिए वही इसमें संशोधन कर सकता है. दिल्ली विकास प्राधिकरण भारतीय जनता पार्टी शासित केंद्र सरकार के अधीन आता है और उपराज्यपाल ही इसकी अध्यक्षता करते हैं. इसका दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग से कोई लेना-देना नहीं है.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का आरोप है कि सीलिंग अभियान के ज़रिये भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) के लिए रास्ता बनाना चाहती है.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि दिल्ली में सीलिंग के मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप का नाटक बंद कर देना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी की मिलीभगत और फ़र्ज़ी लड़ाई में व्यापारियों को बहुत नुक़सान हो रहा है. दोनों पार्टियों को राजनीतिक रोटी सेंकने के बजाय इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान निकालना चाहिए.
केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि सीलिंग का हल ढूंढ लिया गया है. इस बाबत जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय में एक हल्फ़नामा दाख़िल किया जाएगा. इसमें मास्टर प्लान में संशोधन के क़ानूनी अधिकारों का का इस्तेमाल किया गया है. अगर सर्वोच्च न्यायालय मान जाता है, तो सीलिंग का मसला हल हो सकता है. इसके साथ ही दिल्ली सरकार द्वारा मिक्स लैंड यूज़ वाली 351 सड़कें भी जल्द ही अधिसूचित कर दी जाएंगी. ख़ैर, सीलिंग रोकने की नूराकुश्ती जारी है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है.
बहरहाल, सीलिंग की वजह से काराबोर ठप होकर रह गया है. बड़े व्यापारियों का तो नुक़सान हो ही रहा है, वहीं सड़क के किनारे बैठकर सामान बेचने वाले लोग भी परेशान हैं. दुकानों पर काम करने वाले लोग भी ख़ाली घूम रहे हैं. उनके समक्ष रोज़ी-रोटी का संकट अपिदा हो गया है. कंफ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने दिल्ली बाज़ार बंद का आह्वान किया था. इसके अलावा एक अन्य कारोबारी संगठन चैंबर ऑफ़ ट्रेड एंड इंडस्ट्री ने भी अलग से बाज़ार बंद की घोषणा की थी.
क़ाबिले-ग़ौर है कि व्यापारियों के सामने सीलिंग की आज जो सबसे बड़ी समस्या पैदा हो गई है, उसके लिए पूरी तरह से सरकार ही ज़िम्मेदार है. साल 1962 में राजधानी के लिए एक मास्टर प्लान बनाया गया था, लेकिन उस पर सहे तरीक़े से अमल नहीं किया गया. इसलिए लोगों को जहां जगह मिली, वे वहां मकान और दुकानें बनाते चले गए. यह काम कोई एक दिन में तो हुआ नहीं है, इसमें बरसों लग गए. दिल्ली नगर निगम और दिल्ली विकास प्राधिकरण की नाकामी की वजह से उतने व्यापारिक परिसर नहीं बन पाए, जितने बनने चाहिए थे. मास्टर प्लान 1962 पूरा हो नहीं पाया था कि उसके बाद मास्टर प्लान 1981 आ गया, जो नौ साल बाद 1990 में अमल में आया. फिर एक लम्बी जद्दो-जहद के बाद मास्टर प्लान 1921 आया. आज इसी मास्टर प्लान की वजह से दिल्ली के व्यापारिक प्रतिष्ठान सीलिंग के साये में हैं.
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