फ़िरदौस ख़ान
दरअसल, किसी के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करके इंसान सामने वाला का अपमान नहीं करता, बल्कि अपने ही संस्कारों का प्रदर्शन करता है...
संस्कार विरासत में मिलते हैं, घर से मिला करते हैं... संस्कार बाज़ार में नहीं मिलते... ज़्यादा पैसा या बड़ा पद मिलने से संस्कार नहीं मिल जाते...
राहुल गांधी को देखें, वो अपने विरोधियों का नाम भी सम्मान के साथ लेते हैं, उनके नाम के साथ जी लगाते हैं... जबकि उनके विरोधी भले ही वे देश के बड़े से बड़े पद पर हों, राहुल गांधी के लिए ग़लत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं...दरअसल, किसी के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करके इंसान सामने वाला का अपमान नहीं करता, बल्कि अपने ही संस्कारों का प्रदर्शन करता है...
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