Friday, June 10, 2016

देश इस वक़्त बहुत बुरे दौर से

फ़िरदौस ख़ान
देश इस वक़्त बहुत बुरे दौर से गुज़र रहा है. अवाम बेहाल है. उसे दोहरी मार पड़ रही है, एक क़ुदरत की मार और दूसरी सरकार की मार. सूखे के हालात बने हुए हैं. देश के बारह राज्यों में सूखे का क़हर बरपा है, जिनमें उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, ओड़िशा, झारखंड, बिहार, हरियाणा और छत्तीसगढ़ शामिल हैं. सूखे की वजह से इन राज्यों के 33 करोड़ लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. लोग पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं. खेत सूख चुके हैं. नदियां सूखी पड़ी हैं. कुओं का पानी भी नदारद है, तालाब सूखे पड़े हैं, बावड़ियां भी सूखी हैं. नल भी सूने हैं. भूमिगत पानी भी बहुत नीचे चला गया है. किसानों की हालत तो और भी ज़्यादा बुरी है. किसान सूखे से हल्कान हैं. सूखे की वजह से उनकी खेतों में खड़ी फ़सलें सूख गई हैं. सूखे ने खेत तबाह कर दिए और किसानों को बर्बाद कर दिया. हालात इतने बदतर हो गए कि अन्नदाता किसान ख़ुद दाने-दाने को मोहताज हो गए. क़र्ज़ के बोझ तले दबे किसान अपने घरबार छोड़कर दूर-दराज के इलाक़ों में काम की तलाश में निकल रहे हैं. सूखे से बर्बाद हुए किसानों की ख़ुदकुशी करने की ख़बरें भी आ रही हैं.

इतना ही नहीं, रोज़-रोज़ लगातार आसमान छू रही महंगाई ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है. पहली जून से फिर तेल कंपनियों ने पेट्रोल और डीज़ल के दाम में बढ़ोत्तरी कर दी, पेट्रोल के दामों में 2.58 रुपये और डीज़ल के क़ीमत में 2.26 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई है. इससे पहले 16 मई को पेट्रोल और डीज़ल के दामों में इज़ाफ़ा किया गया था. तेल व गैस विपणन कंपनियों ने बिना सब्सिडी वाले रसोई गैस सिलेंडर के दाम में 21 रुपये की बढ़ोतरी की है. आईओसीएल के मुताबिक़ दिल्ली में बिना सब्सिडी वाला 14.2 किलो का रसोई गैस सिलेंडर अब 527.50 रुपये की जगह 548.50 रुपये का मिलेगा. एक महीने में रसोई गैस के दाम में लगातार दो बार में 39 रुपये का इज़ाफ़ा किया गया है. इससे पहले एक मई को इसकी क़ीमत 18 रुपये बढ़ाई गई थी.
कर योग्य सभी सेवाओं पर आधा फ़ीसद की दर से नया कृषि कल्याण उपकर (केकेसी) प्रभावी हो गया. इसके लागू होने से कुल सेवा कर बढ़कर 15 फ़ीसद हो गया है. इसकी वजह से रेस्त्रां में खाना खाना, मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल, हवाई और रेल यात्रा, बैंक ड्राफ़्ट, फ़ंड ट्रांसफ़र के लिए आईएमपीएस, एसएमएस अलर्ट, फ़िल्म देखना, माल ढुलाई, पंडाल, इवेंट, कैटरिंग, आईटी, स्पा-सैलून, होटल जैसी सेवाएं महंगी हो गईं. नई कार, घर, हेल्थ पॉलिसी ले रहे हैं या उसे रीन्यू करा रहे हैं, तो भी बढ़ा हुआ सेवा कर देना पड़ेगा. बढ़ती महंगाई की वजह से लोगों के पास पैसा नहीं है. ऐसे में वे ख़रीददारी नहीं कर पा रहे हैं. बाज़ार में भी मंदी छाई है. दुकानदार दिन भर ग्राहकों की बाट जोहते रहते हैं. छोटे काम-धंधे करने वालों के काम ठप्प होकर रह गए हैं. बेरोज़गारी कम होने की बजाय बढ़ रही है.

जब देश की अवाम त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है, ऐसे में केंद्र की भाजपा सरकार दो साल पूरे होने पर जश्न मनाते हुए अपनी कथित उपलब्धियां गिनवा रही है. करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं. भाजपा अपने जश्न को लेकर कांग्रेस ही नहीं, बल्कि अपने सहयोगी दल शिवसेना के निशाने पर भी है. शिवसेना का कहना है कि मोदी सरकार महंगाई पर लगाम लगाने, सीमा पार से आतंकवाद को रोकने और इस दौरान शुरू की गई योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने में नाकाम रही है. शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में लिखे संपादकीय में शिवसेना ने प्रधानमंत्री पर अकसर विदेशी दौरे को लेकर निशाना साधते हुए कहा कि पहले उन्हें फ़ैसला करना होगा कि वह देश में रहते हैं या विदेश में. आम आदमी पार्टी का कहना है कि राजग के दो साल के शासनकाल में केवल ‘भ्रष्टाचार’ और ‘उपद्रव’ हुए. प्रधानमंत्री का कार्यालय महज़ ‘अंतरराष्ट्रीय ट्रैवल एजेंसी’ बनकर रह गया है. कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने भाजपा के दावों के ख़िलाफ़ 'प्रगति की थम गई रफ़्तार, दो साल देश का बुरा हाल' नाम की एक बुकलेट जारी की है. उनका कहना है कि सरकार नये रोज़गार देने और कृषि उत्पादन बढ़ाने में फ़ेल हो गई है. चिदंबरम ने कहा कि देश में मुद्रास्फ़ीति उफ़ान पर है और देश की आर्थिक हालत गंभीर है. ऐसे में सरकार का जश्न मनाना समझ से परे है.

आख़िर अवाम को किन चीज़ों की ज़रूरत होती है. देश में चैन अमन का माहौल हो, रहने को मकान हो, खाने को भोजन हो, पीने को पानी हो, रोज़गार हो.  अपना ख़ुद का काम-धंधा न हो, तो कोई नौकरी ही हो, ताकि ज़िन्दगी आराम से बसर हो सके. इसके साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क, यातायात जैसी बुनियादी सुविधाएं जनता को चाहिए. पिछले दो साल में मज़हब और जाति के नाम पर समाज में वैमन्य बढ़ा है. देश का चैन-अमन प्रभावित हुआ है. इसका सीधा असर रोज़गार पर पड़ा है. दादरी के अख़्लाक हत्याकांड से मज़हबी कटुता बढ़ी, जबकि हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर चले आंदोलन की वजह से जातिगत वैमन्य बढ़ा. इसके अलावा बहुत से कारोबार भी ठप्प हो गए. राशन महंगा हुआ है. दालों की क़ीमत इतनी ज़्यादा बढ़ चुकी है कि ग़रीब और मध्य वर्ग की थाली में अब दाल नज़र नहीं आती. ईंधन और अन्य सुविधाएं भी बहुत महंगी हो चुकी हैं. हालत ये है कि अवाम का जीना दूभर होता जा रहा है.

तक़रीबन ढाई साल पहले जब भाजपा ने जनता को सब्ज़ बाग़ दिखाए थे, तब लोगों को लगता था कि देश में ऐसा शासन आएगा, जिसमें सब मालामाल होंगे, कहीं कोई कमी या अभाव नहीं होगा. मगर जब केंद्र में भाजपा की सरकार बन गई और महंगाई ने अपना रंग दिखाना शुरू किया, तो लोगों को लगा कि इससे तो पहले ही वे सुख से थे. अच्छे दिन आने वाले नहीं, बल्कि जाने वाले थे. ऐसा नहीं है कि अच्छे दिन नहीं आए हैं, अच्छे दिन आए हैं, लेकिन मुट्ठी भर लोगों के लिए.  और इन लोगों का जश्न मनाता तो बनता ही है.

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