Wednesday, January 27, 2016

हक़


इंसान सोचता है कि वह दुखी है, परेशान है, तकलीफ़ में है... अगर वो उन लोगों को देख ले, जिनके सर पर छत होना तो दूर की बात है, उनके पास पेटभर खाना तक नहीं है, पीने के लिए साफ़ पानी तक नहीं है... य़क़ीनन उसे लगेगा कि वाक़ई वो बहुत ख़ुशहाल है...
इस दुनिया में जब तक एक भी इंसान भूखा है, बेघर है, हक़ीक़त में तब तक हम इंसान कहलाने के लायक़ नहीं हुए हैं...हमें इंसान बनना है अभी... हमारे खाने में, हमारी चीज़ों में उन लोगों का भी हक़ बनता है, जो बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों से महरूम हैं... हमें उनक़ा हक़ देना ही चाहिए...
फ़िरदौस ख़ान

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