हमने अपनी पिछली पोस्ट में हिन्दुस्तानी शाश्त्रीय संगीत और पारंपरिक कलाओं में गुरु-शिष्य की परंपरा का ज़िक्र किया था...
बात उन दिनों की है जब हम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे... हर रोज़ सुबह फ़ज्र की नमाज़ के बाद रियाज़ शुरू होता था... सबसे पहले संगीत की देवी मां सरस्वती की वन्दना करनी होती थी... फिर... क़रीब दो घंटे तक सुरों की साधना... इस दौरान दिल को जो सुकून मिलता था... उसे शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है...
इसके बाद कॉलेज जाना और कॉलेज से ऑफ़िस... ऑफ़िस के बाद फिर गुरु जी के पास जाना... संध्या, सरस्वती की वन्दना के साथ शुरू होती और फिर वही सुरों की साधना का सिलसिला जारी रहता... हमारे गुरु जी, संगीत के प्रति बहुत ही समर्पित थे... वो जितने संगीत के प्रति समर्पित थे उतना ही अपने शिष्यों के प्रति भी स्नेह रखते थे... उनकी पत्नी भी बहुत अच्छे स्वभाव की गृहिणी थीं... गुरु जी के बेटे और बेटी हम सब के साथ ही शिक्षा ग्रहण करते थे... कुल मिलाकर बहुत ही पारिवारिक माहौल था...
हमारा बी.ए फ़ाइनल का संगीत का इम्तिहान था... एक राग के वक़्त हम कुछ भूल गए... हमारे नोट्स की कॉपी हमारे ही कॉलेज के एक सहपाठी के पास थी, जो उसने अभी तक लौटाई नहीं थी... अगली सुबह इम्तिहान था... हम बहुत परेशान थे कि क्या करें... इसी कशमकश में हमने गुरु जी के घर जाने का फ़ैसला किया... शाम को क़रीब सात बजे हम गुरु जी के घर गए...
वहां का मंज़र देखकर पैरों तले की ज़मीन निकल गई... घर के बाहर सड़क पर वहां शामियाना लगा था... दरी पर बैठी बहुत-सी औरतें रो रही थीं... हम अन्दर गए, आंटी (गुरु जी की पत्नी को हम आंटी कहते हैं) ने बताया कि गुरु जी के बड़े भाई की सड़क हादसे में मौत हो गई है... और वो दाह संस्कार के लिए शमशान गए हैं... हम उन्हें सांत्वना देकर वापस आ गए...
रात के क़रीब डेढ़ बजे गुरु जी हमारे घर आए... मोटर साइकल उनका बेटा चला रहा था और गुरु जी पीछे तबले थामे बैठे थे...
अम्मी ने हमें नींद से जगाया... हम कभी भी रात को जागकर पढ़ाई नहीं करते थे, बल्कि सुबह जल्दी उठकर पढ़ना ही हमें पसंद था...हम बैठक में आए...
गुरु जी ने कहा - तुम्हारी आंटी ने बताया था की तुम्हें कुछ पूछना था... कल तुम्हारा इम्तिहान भी है... मैंने सोचा- हो सकता है, तुम्हें कोई ताल भी पूछनी हो इसलिए तबले भी ले आया... गुरु जी ने हमें क़रीब एक घंटे तक शिक्षा दी...
गुरु जी अपने भाई के दाह संस्कार के बाद सीधे हमारे पास ही आ गए थे...ऐसे गुरु पर भला किसको नाज़ नहीं होगा...जिन्होंने ऐसे नाज़ुक वक़्त में भी अपनी शिष्या के प्रति अपने दायित्व को निभाया हो...
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काको लागूं पायं।
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो बताय।।
हमारे गुरु जी... गुरु-शिष्य परंपरा की जीवंत मिसाल हैं...
गुरु जी को हमारा शत-शत नमन...
34 Comments:
आज गुरु और शिष्य दोनों बाजार की दहलीज पर खड़े हैं ऐसे में आपके गुरु जी निश्चित ही इश्वर स्वरुप हैं जो हर मानव में स्वयं को पाते हैं और जीवन -मृत्यु के सत्य को जान चुके हैं . ऐसा करना बहुत हीं कठिन तप है . वैसे आप में भी एक सच्चे शिष्य की झलक उन्हें मिली होगी तभी तो दौड़े चले आये . भक्त की सच्ची भक्ति और प्रबल प्रेम के पाले पद कर तो प्रभु भी नंगे पाँव दौड़े चले आते हैं !
wawo salam guru ko.......
Aap apne guru ji mo mera namshakar kahiyega.
aaj ke jamane main is tarah ke guru milna namumkin ho gaya hai.
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....
इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हार्दिक आभार।
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गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आभार।
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गुफा में रहते हैं आज भी इंसान।
ए0एम0यू0 तक पहुंची ब्लॉगिंग की धमक।
आज के इस दौर में जहां गुरु-शिष्य रिश्ते दांव पर लगे हैं, एक अच्छा अनुभव आपने बांटा. लोग निश्चित ही इससे प्रेरणा लेंगे..
ऐसे गुरू को मेरा भी शत-शत नमन
और उनकी शिष्या को भी
गुरू जी के भाई शायद दूर किसी दूसरे शहर में रहते होंगें जी
प्रणाम स्वीकार करें
hmm....Inspirational !
guru mahan he
अद्भूत है गुरु और शिष्य की निष्ठा.
हिन्दुस्तान के इस परंपरा पर हमें गर्व है. ऐसे गुरुजन को नमन है.
सार्थक संस्मरणात्मक पोस्ट है आपकी.
आज के समय में ऐसे दुर्लभ गुरु होना वाकई सौभाग्य की ही बात है. ऐसे ही गुरु के लिए शायद कबीर दासजी ने गुरु की महिमा का बखान करते हुए कहाँ है
"यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान |
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान "
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः॥
गुरु घण्टाल जैसी कहावते भी कुछ सच पर बनी हैं ...पर यह भी हमने अपने अनुभव से जानी बात है कि यदि गुरु अच्छा मिल जाए तो शिष्य का भला होने से कोई नही रोक सकता।'तारे ज़मीन पर'जैसी फिल्म से यह बात पुष्ट ही होती है और आपके लेखन से भी :)
वैसे आप बहुत होनहार ही हैं क्योंकि हम तो हमेशा रात देर तक ही पढते थे।सुबह का अलार्म आज तक भी हमे सुनाई नही देता :(
एक बेहद मार्मिक अनुभव आपने हमें बताया!प्रेरणा दायक प्रसंग भी रहा ये!
कुंवर जी,
ऐसे गुरु को शत शत नमन।
घुघूती बासूती
गुरु से बढ़कर कौन है, वह भी ऐसा गुरू जो शिष्य के अंतर्मन को इस तरह पहचानता हो और उन की चिंता करता हो।
bhn aaj ka sb se bda snknt hi yh hai ki hm skaratmk baton ko prkash me nhi la rhe hain apitu anrgl ko hi ujagr krne me lge hain jis se burai dugni hoti ja rhi hai beshk achchhai km hai pr us ki sarthkta hai ydi hm achchhai ki bat krenge to vh bhi dugni hogi smaj me achchha vatavrn bnega
aap ne is ghtna ko ujagr kr ke smaj pr bhut bda upkar kiya haiaap sadhuvad ki patr hain kripya swikar kr len
dr. ved vyathit
ऐसे गुरू को शत-शत नमन
बेहद मार्मिक अनुभव
कलियुग में ऐसे गुरु दुर्लभ हैं ...आप खुशनसीब है ...!!
वह ज़माना क्या कभी लौट भी पायेगा ।
आने वाली पुश्तें, इन वाकये को गप्प से ज़्यादा की तरज़ीह न देंगी !
अब मैं क्या करूँ ?
मुझसे भी बड़े एक डॉक्टर साहब ने मुझे लिखने-कहने की आज़ादी पर किसी तरह की बँदिशों से दूर रहने की सलाहियत दी है ।
बराये मेहरबानी, आपके क़्द्र में हुई मेरी आज की बेवज़ह यह बदपरहेज़ी की ख़बर उन तक न पहुँचने पाये !
ऐसा गुरु पाना तो भ्याग्य की बात है ... आप खुशकिस्मत हैं ...
nice
"गुरु वही जो समय पे शिष्य का बने सहारा, कला वही जो मन को छू ले, विकृत हो तो विकार तुम्हारा!"-तिलक http://deshkimitti.feedcluster se sambaddha
http://rachnaakaarkaa.blogspot.com/ apka swagat karta hai v apke anubhavon ko vistar deta hai.Tilak sampadak yugdarpan 09911111611.
प्रेरणादायक संस्मरण , ऐसे गुरु जी को प्रणाम ।
गुरु के लिए शिष्य ही सम्पदा है ।
गुरू जी को हमरा भी प्रणाम
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत बढ़िया लगा! आप अपने गुरूजी को मेरा प्रणाम कहियेगा!
balihari guru aapne jin govind diyo bataye
बहुत अच्छा व प्रेरनादायी प्रसंग लिखा है आपने
बहुत अच्छा व प्रेरनादायी प्रसंग लिखा है आपने
फिरदौस धन्य हो जिसे ऐसा गुरु मिले। हमने जहां पढ़ाई की वहां भी गुरु ऐसे ही थे..दिल लगाकर औऱ खून जलाकर पढ़ाते थे....जिस कारण हम लोगो में से कोई अगर बुलंदियों को नहीं छू पाया तो नीचता में भी नहीं गिरा......
sahi me aise guru nahi miltey...
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