Thursday, November 21, 2013

मीडिया का स्याह चेहरा...

जिस मीडिया पर समाज को जागृत करने की ज़िम्मेदारी है, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता... उसका भी एक स्याह चेहरा है... वहां भी कई तरह का शोषण है... मीडिया कर्मियों को वक़्त पर तनख़्वाह देने के मामले भी अकसर सामने आते रहते हैं... महिलाओं के शोषण की ख़बरें भी आती हैं, लेकिन इन्हें दबा दिया जाता है...
दूसरी तरफ़ मीडिया में ऐसी ’महान’ लड़कियों की भी कमी नहीं है, जो सिर्फ़ ’टाइम पास’ और ’नाम’ के लिए ही दफ़्तर आती हैं, ताकि पास-पड़ौस और रिश्तेदारों को बता सकें कि फ़लां मीडिया हाऊस में काम करती हैं. ऐसी ’महान’ लड़कियों का दफ़्तर का काम दूसरी लड़कियों को करना पड़ता है. इन 'महान' लड़कियों को दफ़्तर से कई सुविधाएं मिलती हैं, छुट्टी करने पर तनख़्वाह नहीं कटती. इन्हें देर से आकर जल्दी जाने की छूट भी होती है. जब चाहें दस-बीस दिन के लिए अपने घर (दूसरे प्रदेश) जा सकती हैं. तनख़्वाह भी इन्हीं की ज़्यादा बढ़ती है. एक महिला ने हमें बताया कि काम का ज़्यादा बोझ होने से परेशान होकर जब उसने अपने सीनियर से शिकायत की, तो उसके सीनियर ने कहा- दफ़्तर में दस लोग काम करते हैं और दो लड़कियां काम न करने के लिए भी होती हैं.
इन ’महान’ लड़कियों की वजह से भी मीडिया का माहौल ख़राब हो रहा है. इनकी वजह से ही वाहियात लोग हर लड़की को इन्हीं ’महान’ लड़कियों की तरह ट्रीट करना चाहते हैं. ऐसे में अच्छे घरों की लड़कियों के लिए मुश्किलें पैदा हो रही हैं.

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