Friday, August 22, 2008

अंधेरे में रौशनी की किरण टप्पू का गर्ल्स स्कूल


फ़िरदौस ख़ान
बिहार के किशनगंज ज़िले के टप्पू नामक अति पिछड़े ग़ांव में स्थित मिल्ली गर्ल्स स्कूल साम्प्रदायिक सद्भावना की एक ज़िंदा मिसाल है. दिल्ली की ऑल इंडिया तालिमी वा मिल्ली फाउंडेशन द्वारा स्थापित इस स्कूल के निर्माण में मुसलमान ही नहीं, हिन्दुओं की भी अहम भूमिका रही. दिलचस्प बात यह है कि स्कूल के लिए फाउंडेशन को एक इंच भी ज़मीन ख़रीदनी नहीं पड़ी. ग़ांव के बाशिंदे अब्दुल हफ़ीज़, मेरातुल हक़, गुलतनलाल पंडित, मास्टर सुखदेव और मुखिया किशनलाल दास ने फाउंडेशन को यह भूमि दान में दी. क़रीब 35 लाख रुपए से साढ़े तीन एकड़ में बने इस स्कूल में खेल का मैदान भी है. स्कूल की इमारत के समीप ही दो मंज़िला होस्टल और स्टाफ क्वार्टर भी बनाए गए हैं.

आठ दिसंबर 2002 को इस स्कूल की विधिवत् शुरुआत की गई. उस समय स्कूल में केवल 35 छात्राएं थीं, लेकिन अब इनकी तादाद बढक़र 355 हो गई है. स्कूल में हिन्दू लडक़ियां भी पढ़ रही हैं. दूर-दराज के इलाकों से यहां आकर शिक्षा ग्रहण करने वाली 160 छात्राएं हॉस्टल में रहती हैं जिनमें नौ हिन्दू लडक़ियां शामिल हैं. सीबीएससी से मान्यता प्राप्त सातवीं कक्षा तक के इस स्कूल का उद्देश्य गरीब लड़कियों को शिक्षित करना है. इसलिए हर छात्रा से ट्यूशन फ़ीस के मात्र एक सौ रुपए लिए जाते हैं और हॉस्टल में रहने वाली छात्राओं से सात सौ रुपए लिए जाते हैं. जिनके अभिभावक यह फीस देने में समर्थ नहीं होते उन लडक़ियों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है. इस समय स्कूल में 109 ऐसी छात्राएं हैं, जिनसे फ़ीस नहीं ली जाती. स्कूल में लडक़ियों के स्वास्थ्य का भी विशेष ध्यान रखा जाता है. नाश्ते और भोजन में पौष्टिक तत्वों से भरपूर व्यंजन दिए जाते हैं. हफ्ते में एक दिन मांसाहारी भोजन परोसा जाता है जिसमें अंडा, मछली, चिकन और मटन शामिल है. चूंकि हॉस्टल में हिन्दू लडक़ियां भी रहती हैं, इसलिए 'बड़े' क़ा मीट यहां वर्जित है. स्कूल में शिक्षा के साथ सांस्कृतिक गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया जाता है.

दिल्ली की संस्था ने स्कूल बनाने के लिए आखिर इतनी दूर बिहार के किशनगंज ज़िले के टप्पू गांव को ही क्यों चुना? इसकी भी एक रोचक दास्तां है. फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद इसरारुल हक़ क़ासिमी बताते हैं कि 1996 में मुसलमानों में शिक्षा की हालत को लेकर एक सर्वे आया था जिसके मुताबिक़ बिहार के मुसलमानों में शिक्षा का प्रतिशत बहुत कम था. सर्वे में कहा गया था कि किशनगंज ज़िले में मुसलमानों की आबादी करीब 65 फ़ीसदी है. एक बड़ा वोट बैंक होने के कारण अमूमन सभी सियासी दल यहां से मुसलमानों को ही अपना उम्मीदवार बनाकर चुनाव मैदान में उतारते हैं. नतीजतन, यहां से मुसलमान ही सांसद चुने जाते रहे हैं. इसके बावजूद यहां के मुसलमानों की हालत बेहद दयनीय है. रिपोर्ट के मुताबिक़ यहां केवल 37 फ़ीसदी मुसलमान ही शिक्षित थे. इनमें भी अधिकांश प्राइमरी स्तर तक ही शिक्षा हासिल करने वाले थे, जबकि दसवीं तक आते-आते यह आंकडा इकाई अंक तक नीचे आ गया. इनमें सबसे बुरी हालत महिलाओं की थी. यहां सिंर्फ 0.2 फ़ीसदी यानि एक फ़ीसदी से भी कम महिलाएं साक्षर थीं. यहां महिलाओं में उच्च शिक्षा की कल्पना करना तो अमावस की रात में सूरज तलाशने जैसा था. बस, इसी सर्वे की रिपोर्ट को पढक़र मौलाना साहब के ज़हन में किशनगंज के किसी गांव में ही स्कूल खोलने का विचार आया. मगर धन के अभाव में वे ऐसा नहीं कर पाए. वर्ष 2000 में उन्होंने ऑल इंडिया तालिमी वा मिल्ली फाउंडेशन का गठन कर शिक्षा के क्षेत्र में काम शुरू किया. फाउंडेशन को लोगों का भरपूर सहयोग मिला. फाउंडेशन ने जगह-जगह स्कूल खोले. इस समय बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में फाउंडेशन 63 स्कूल चला रही है. उनकी योजना स्कूल को बारहवीं कक्षा तक करने की है. इसके अलावा शिक्षा की .ष्टि से पिछड़े इलाकों में इसी तरह के तीन और स्कूल खोलने के प्रयास जारी हैं.

फाउंडेशन की यह कोशिश अशिक्षा के अंधेरे में रौशनी की किरण बनकर फूटी है. इसी तरह ज्ञान के दीप जलते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब इस इलांके से निरक्षरता का अभिशाप हमेशा के लिए मिट जाएगा और हर तरफ़ शिक्षा का उजाला होगा.
(विभिन्न समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित)

2 Comments:

Udan Tashtari said...

आभार जानकारी के लिए.

ePandit said...

बहुत अच्छा प्रयास, इस तरह के प्रयास ही समाज में नारी को इज्जत और हक दिलायेंगे। शास्त्र में शिक्षा के विषय में एक बहुत सुन्दर बात कही गयी है:-

माता शत्रु पिता वैरी येन बालो न पाठितः।

अर्थात वो माता-पिता बच्चे के शत्रु हैं जिन्होंने उसे पढ़ाते नहीं। यह श्लोक शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालता है। नारी शिक्षित होगी तो अपने अधिकारों के प्रति जागरुक होगी। इस तरह के प्रयास इस उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में मील का पत्थर हैं।

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