Saturday, January 28, 2012

राहुल ने दिखाया विकास का सपना


फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार की बागडोर संभाले हुए हैं. अपनी जनसभाओं में वह जिस तरह सांप्रदायिकता, जातिवाद, भ्रष्टाचार और अपराध को लेकर भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी को निशाना बनाए हुए हैं, उससे सभी दलों के होश उड़े हुए हैं. कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी विपक्षियों पर सधे राजनीतिक अंदाज़ में हमले कर रहे हैं. एक संजीदा वक्ता की तरह तार्किक ढंग से वह विरोधी दलों की चुन-चुन कर व्यंग्यात्मक लहजे में जवाब दे रहे हैं. उनके इसी अंदाज़ से विपक्षी दलों में बौखलाहट पैदा हो गई है. वे समझ नहीं पा रहे हैं कि राहुल के ‘आम आदमी’ का कौन सा तोड़ निकालें.

राहुल गांधी भाजपा के 'इंडिया शाइनिंग' और लोकपाल पर उसके चरित्र की जमकर बखिया उधेड़ रहे हैं. वह भाजपा द्वारा बाबू सिंह कुशवाहा जैसे भ्रष्टाचारी नेताओं से हाथ मिलाने पर लोगों से सवाल करते हैं, तो उन्हें भीड़ से खुलकर जवाब भी मिलते हैं. उन्हीं जवाबों को आगे बढ़ाते हुए मंच से राहुल गांधी लोगों को बताते हैं कि ग़रीबों का मसीहा बनने वाले विपक्षी नेता कहते हैं कि राहुल गांधी पागल हो गया है, और इसके बाद वह आक्रामक हो जाते हैं. अपनी आस्तीनें चढ़ाकर हमलावर अंदाज़ में कहते हैं- ‘‘हां, मैं ग़रीबों का दुख-दर्द देखकर, प्रदेश की दुर्दशा देखकर पागल हो गया हूं. कोई कहता है कि राहुल गांधी अभी बच्चा है, वह क्या जाने राजनीति क्या होती है. तो मेरा कहना है कि हां, मुझे उनकी तरह राजनीति करनी नहीं आती. मैं सच्चाई और साफ़ नीयत वाली राजनीति करना चाहता हूं. मुझे उनकी राजनीति सीखने का शौक़ भी नहीं है. मायावती कहती हैं राहुल नौटंकीबाज़ है. तो मेरा कहना है कि अगर ग़रीबों का हाल जानना, उनके दुख-दर्द को समझना, नाटक है तो राहुल गांधी यह नाटक ताउम्र करता रहेगा.’’

राहुल गांधी अपनी पाठशाला में उत्तर प्रदेश को दो दशकों के राजनीतिक पिछड़ेपन, बदहाली से निकालने के लिए युवाओं से साथ का हाथ बढ़ाते हैं. इस दौरान राहुल यह बताना नहीं भूलते कि वह यहां चुनाव जीतने नहीं, उत्तर प्रदेश को  बदलने आए हैं. यह उनकी इस साफ़गोई का सपा, बसपा और भाजपा के पास कोई जवाब नहीं है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राहुल गांधी की बातों में दम है. उत्तर प्रदेश में अभी तक जितने भी काम हुए मसलन बुनकरों को राहत देने के लिए बुनकर पैकेज का ऐलान हो, बुंदेलखंड को दुर्दशा से निकालने के लिए बुंदेलखंड पैकेज का भारी-भरकम पैसा उपलब्ध कराना हो या फिर उत्तर प्रदेश के युवाओं के लिए राजनीति के दरवाज़े खोलने के लिए एशिया की सर्वोत्तम यूनिवर्सिटी बीएचयू में युवा राजनीति का अखाड़ा छात्र संघ बहाली का प्रयास हो, इन सब में राहुल की कोशिश और उनकी ईमानदारी के कारण ही कामयाबी मिली है.

यह हक़ीक़त है कि पिछले पांच सालों में वह हवाई नेताओं की तरह आसमान में नहीं उड़े और न ही किसी पंचतारा सेलिब्रिटी की तरह रथ पर चढ़कर ज़िलों का दौरा किया. उन्होंने खाटी देसी अंदाज़ में गांवों में रात रात बिताई. पगडंडियों पर कीचड़ की परवाह किए बिना चले और आम आदमी से बेलाग संवाद स्थापित करने की कोशिश की. आम आदमी को नज़दीक से जानने-समझने और अपना हाथ उसके हाथ में देने की पहल की.

राहुल गांधी एक परिपक्व राजनेता हैं. इसके बावजूद उन्हें अमूल बेबी कहना उनके ख़िलाफ़ एक साज़िश का हिस्सा ही कहा जा सकता है. भूमि अधिग्रहण मामले को ही लीजिए. राहुल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर जिस तरह पदयात्रा की, वह कोई परिपक्व राजनेता ही कर सकता है. हिंदुस्तान की सियासत में ऐसे बहुत कम नेता रहे हैं, जो सीधे जनता के बीच जाकर उनसे संवाद करते हैं. नब्बे के दशक में बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम ने गांव-गांव जाकर पार्टी को मज़बूत करने का काम किया था, जिसका फल बसपा को सत्ता के रूप में मिला. चौधरी देवीलाल ने भी इसी तरह हरियाणा में आम जनता के बीच जाकर अपनी एक अलग पहचान बनाई थी. दक्षिण भारत में भी कई राजनेताओं ने पद यात्रा के ज़रिये जनता में अपनी पैठ बनाई और सत्ता हासिल की.

कुल मिलाकर राहुल गांधी ऐसे क़द्दावर नेताओं की फ़ेहरिस्त में शुमार हो चुके हैं, जिनके तूफ़ान से विपक्षी सियासी दलों के  हौसले  पस्त हो जाते हैं. हालत यह हो गई है कि कोई सियासी दल दाग़ी को ले रहा है, तो कोई दग़ाबाज़ी को सहारा बना रहा है. अब कोई चारा न देखकर कुछ सियासी दल राहुल पर व्यक्तिगत प्रहार करने में जुट गए हैं.  मगर इससे राहुल गांधी को कोई नुक़सान नहीं होगा, क्योंकि राजनीति की विरासत को संभालने वाला यह युवा नेता अब युवाओं, और अन्य वर्गों के साथ-साथ बुजुर्गों का भी चहेता बन चुका है. राहुल गांधी की जनसभाओं में दूर-दूर से आए बुज़ुर्ग यही कहते हैं कि लड़का ठीक ही तो कह रहा है, यही कुछ करेगा. महिलाओं में तो राहुल गांधी लेकर काफ़ी क्रेज है. यह बात तो विरोधी दलों के नेता भी बेहिचक क़ुबूल  करते हैं. वे तो मज़ाक़ के लहजे में यहां तक कहते हैं कि अगर महिलाओं को किसी एक नेता को वोट देने को कहा जाए तो सभी राहुल गांधी को ही देकर आएंगी. राहुल युवाओं ही नहीं बच्चों से भी घुलमिल जाते हैं. कभी किसी मदरसे में जाकर बच्चों से बात करते हैं, तो कभी किसी मैदान में खेल रहे बच्चों के साथ बातचीत शुरू कर देते हैं. यहां तक कि गांव-देहात में मिट्टी में खेल रहे बच्चों तक को गोद में उठाकर उसके साथ बच्चे बन जाते हैं.

जब भ्रष्टाचार और महंगाई के मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का चौतरफ़ा विरोध हो रहा था, ऐसे वक़्त में राहुल गांव-गांव जाकर जनमानस से एक भावनात्मक रिश्ता क़ायम कर रहे थे. राहुल लोगों से मिलने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते. पिछले साल में वह भट्टा-पारसौल गांव गए. उन्होंने आसपास के गांवों का भी दौरा कर ग्रामीणों से बात की, उनकी समस्याएं सुनीं और उनके समाधान का आश्वासन भी दिया- इससे पहले भी 11 मई की सुबह वह मोटरसाइकिल से भट्टा-पारसौल गांव जा चुके हैं. उस वक़्त मायवती ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया था. इस बार भी वह गुपचुप तरीक़े से ही गांव गए. न तो प्रशासन को इसकी ख़बर थी और न ही मीडिया को इसकी भनक लगने दी गई. हालांकि उनके दौरे के बाद प्रशासन सक्रिय हो गया. इसी तरह बीती 29 जून को वह लखीमपुर में पीड़ित परिवार के घर गए और उन्हें इंसाफ़ दिलाने का वादा किया.

भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी द्वारा निकाली गई पदयात्रा से सियासी हलक़ों में चाहे जो प्रतिक्रिया हो रही हो, लेकिन यह हक़ीक़त है कि राहुल गांधी ने ग्रेटर नोएडा के ग्रामीणों के साथ जो वक़्त बिताया, उसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे. इन लोगों के लिए यह किसी सौग़ात से कम नहीं है कि उन्हें कांग्रेस के युवराज के साथ वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिला. अपनी पदयात्रा के दौरान पसीने से बेहाल राहुल ने शाम होते ही गांव बांगर के किसान विजय पाल की खुली छत पर स्नान किया. फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद उन्होंने घर पर बनी रोटी, दाल और सब्ज़ी खाई. ग्रामीणों ने उन्हें पूड़ी-सब्ज़ी की पेशकश की, लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया. गांव में बिजली की क़िल्लत रहती है, इसलिए ग्रामीणों ने जेनरेटर का इंतज़ाम किया, लेकिन राहुल ने पंखा भी बंद करवा दिया. वह एक आम आदमी की तरह ही बांस और बांदों की चारपाई पर सोये. यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब राहुल गांधी इस तरह एक आम आदमी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. इससे पहले भी वह रोड शो कर चुके हैं और उन्हें इस तरह के माहौल में रहने की आदत है. कभी वह किसी दलित के घर भोजन करते हैं तो कभी किसी मज़दूर के  साथ ख़ुद ही परात उठाकर मिट्टी ढोने लगते हैं. राहुल का आम लोगों से मिलने-जुलने का यह जज़्बा उन्हें लोकप्रिय बना रहा है. राहुल जहां भी जाते हैं, उन्हें देखने के लिए, उनसे मिलने के लिए लोगों का हुजूम इकट्ठा हो जाता है. हालत यह है कि लोगों से मिलने के लिए वह अपना सुरक्षा घेरा तक तोड़ देते हैं.

राहुल समझ चुके हैं कि जब तक वह आम आदमी की बात नहीं करेंगे, तब तक वह सियासत में आगे नहीं ब़ढ पाएंगे. इसके लिए उन्होंने वह रास्ता अख्तियार किया, जो बहुत कम लोग चुनते हैं. वह भाजपा की तरह एसी कल्चर की राजनीति नहीं करना चाहते. राहुल का कहना है कि उन्होंने किसानों की असल हालत को जानने के लिए पदयात्रा शुरू की, क्योंकि दिल्ली और लखनऊ के एसी कमरों में बैठकर किसानों की हालत पर सिर्फ़ तरस खाया जा सकता है, उनकी समस्याओं को न तो जाना जा सकता है और न ही उन्हें हल किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता रामकुमार भार्गव कहते हैं कि राहुल गांधी को भारी जनसमर्थन मिल रहा है, जिससे पार्टी कार्यकर्ता बहुत उत्साहित हैं. दरअसल, राहुल गांधी कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं. हर उम्मीदवार यही चाहता है कि वह उसके लिए जनसभा को संबोधित करें. उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों में भी वह चुनाव प्रचार कर रहे हैं.  

बहरहाल, उत्तर प्रदेश के सियासी माहौल से तो यही लग रहा है कि जनता अब बदलाव चाहती है. लोग कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश के विकास के सपने को सच करने के लिए कितना उनका साथ दे पाते हैं, यह तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन इतना ज़रूर है कि इस युवराज ने यहां के बाशिंदों को विकास एक ऐसा सपना ज़रूर दिखा दिया है, जिसमें पलायन के लिए कोई जगह नहीं है.

7 Comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

पूरे देश में कितना विकास हुआ है, कितना भ्रष्टाचार हुआ है और कहाँ इसकी जड़ है, सबको पता है. आपका यह प्रयास राहुल जी को अच्छा लगेगा.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

राहुल एक उत्साही नौजवान हैं, कामयाबी के लिए दिन रात एक किए हुए हैं, राहुल सच्चे और अच्छे इंसान हो सकते हैं, पर इनमें सियासत की बुनियादी जरूरतें जो एक सियासतदां में होनी चाहिए वो नहीं है। अगर आपको कांग्रेस की सरकार यूपी में चाहिए तो अभी बहुत इंतजार करना होगा।
मैं चुनावी सफर में ही हूं, करीब 70 से ज्यादा सीटों पर जा चुका हूं, लेकिन कांग्रेस के लिए कहीं से अच्छी खबर नहीं है।

रचना दीक्षित said...

राहुल ने उत्तर प्रदेश में मेहनत तो की है अब यह तो परिणाम ही बताएँगे कि उनकी बातों का लोगों पर कितना असर होता है. यद्यपि लगभग सभी सर्वेक्षण समाजवादी पार्टी या बसप की सरकार की तरफ ही इशारा करते हैं फर्क सिर्फ इतना है कि कांग्रेस के बिना इस बार सरकार बनाना संभव नहीं होगा.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सार्थक चिंतन।

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..ये हैं की-बोर्ड वाली औरतें।

Ramesh Chandra srivastava said...

shares responsibility for Congress defeat in UP
romesh
lucknow

Ramesh Chandra srivastava said...

shares responsibility for Congress defeat in UP

Ramesh Chandra srivastava said...

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romesh
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