Saturday, May 21, 2011

हिन्दुस्तान का शहज़ादा


हिन्दुस्तान का शहज़ादा

Wednesday, May 11, 2011

खेत में सिंदूर...



बिहार के भागलपुर ज़िले के गांव कजरैली की महिलाएं खेत में सिन्दूर उगा रही हैं...सिन्दूर के इन पौधों के फलों से बीज निकाल कर उन्हें हथेली पर मसलने पर उनमें से सिन्दूरी रंग निकलता है...इसी प्राकृतिक रंग को महिलाएं अपनी मांग में सजा रही हैं...इन महिलाओं  की देखा-देखी आसपास के गांवों की महिलाओं ने भी घरों में सिंदूर के पौधे लगाने शुरू कर दिए हैं...

भारतीय संस्कृति में सिन्दूर का बड़ा महत्व है...सिन्दूर के बिना सुगागन का श्रृंगार मुकम्मल नहीं होता... बाज़ार में बिकने वाले सिन्दूर में केमिकल होने की वजह से  यह त्वचा के लिए नुक़सानदेह माना जाता है... अमेरिका ने अपने देश में सिन्दूर पर पाबंदी लगाते हुए कहा था कि इसमें काफ़ी मात्र में सीसा होता है...और सीसा सेहत के लिए नुक़सानदेह है...सिंदूर लैड ऑक्साइड यानी पारा युक्त पदार्थ को पीसकर बनाया जाता है... सिंदूर पानी में नहीं घुलता और न किसी चीज पर रंग छोड़ता है... यह 400 से 500 रुपये प्रति किलो की दर से बाज़ार में उपलब्ध है...

दूसरी चीज़ों की ही तरह नक़ली सिंदूर भी धड़ल्ले से बाज़ार में बेचा जा रहा है... अरारोट के पाउडर में गिन्नार और नारंगी रंग मिलाया जाता है. फिर इस मिश्रण को छान लिया जाता है...इसके बाद इस सिंदूरी पाउडर को धूप में सुखाया जाता है...और इस तरह नक़ली या सस्ता सिंदूर बनाया जाता है...इसमें सस्ते रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जो त्वचा को नुक़सान पहुंचाते हैं... यह सिंदूर 50 से 60 रुपये प्रति किलो की दर से मिला जाता है... बाज़ार में इस सिंदूर की भारी मांग है... 

Thursday, May 5, 2011

...तो बात ही कुछ और होती

पिछले शनिवार को दिल्ली के हिंदी भवन में हिंदी साहित्य निकेतन ने अपनी पचास वर्ष की विकास यात्रा के उपलक्ष्य में एक समारोह का आयोजन किया... इस समारोह में ब्लॉगरों को सम्मानित भी किया गया... हमें भी इस समारोह के लिए आमंत्रित किया गया... मसरूफ़ियत की वजह से इस तरह के कार्यक्रमों में जाना नहीं हो पाता... दिन-रात बस ख़बरें और सिर्फ़ ख़बरें...वक़्त का पता ही नहीं चल पाता कि कब दोपहर आई और कब शाम हो गई... और जब कभी वक़्त मिलता है तो परिवार और दोस्तों की ही याद आती है... अरसा हो जाता है अपनों से मिले हुए...यह तो भला हो संचार क्रांति का, जिसकी वजह से दुआ-सलाम हो जाया करती है...ख़ैर, शनिवार की शाम को एक मीटिंग में जाना था...सोचा-सोचा दो-दो निमंत्रण पत्र आए हुए हैं...कुछ देर के लिए हिन्दी भवन जाया जाए, वहां कुछ पत्रकार साथियों से मुलाक़ात हो गई...समारोह में क़रीब दस मिनट गुज़ारने के बाद हम बाहर आ गए... 

यहां मुलाक़ात हुई लेखक लक्ष्मण राव जी से... वह हिंदी भवन के बाहर चाय बनाकर अपनी रोज़ी कमा रहे हैं... महाराष्ट्र के अमरावती ज़िले के गांव तडेगांव दशासर में 22 जुलाई 1954 को जन्मे लक्ष्मण राव किसी के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत हो सकते हैं...उन्होंने दिल्ली तिमारपुर पत्राचार विद्यालय से उच्चतर माध्यमिक व दिल्ली विश्वविधालय से बीए किया. उन्होंने दसवीं कक्षा पास करके महाराष्ट्र के अमरावती में सूत मिल में काम किया... कुछ वक़्त बाद मिल बंद हो गई. इसके बाद वह गांव चले गए और वहां खेतीबाड़ी करने लगे... यहां उनका मन नहीं लगा और वह भोपाल आ गए और यहां बेलदार का काम करने लगे... यहां भी उनका मन नहीं रमा और फिर उन्होंने दिल्ली आने का फ़ैसला किया... 30 जुलाई 1975 को वह दिल्ली आ गए और दो वक़्त की रोटी के लिए मेहनत मजदूरी करने लगे... 1977 में दिल्ली के आईटीओ के विष्णु दिगम्बर मार्ग पर वह पान और बीड़ी-सिगरेट बेचने लगे. उन्हें शुरू से ही किताबों से बहुत लगाव था... वह दरियागंज में रविवार को लगने वाले पुस्तक बाज़ार में जाते और कई किताबें ले आते... जब भी उन्हें वक़्त मिलता वह किताबें पढ़ते... किताबों के इसी शौक़ ने उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया... 

उन्होंने लिखना शुरू कर दिया...उनका पहला उपन्यास ' नई दुनिया की नई कहानी' 1979 में प्रकाशित हुआ... इसके बाद वह सुर्ख़ियों में आ गए... लोगों को यक़ीन नहीं हो पा रहा था कि पान और बीड़ी-सिगरेट बेचने वाला व्यक्ति भी उपन्यास लिख सकता है... फ़रवरी 1981 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया के संडे रिव्यू में उनका परिचय प्रकाशित हुआ...27 मई, 1984 को तीन मूर्ति भवन में उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने का मौक़ा मिला... उन्होंने इंदिरा गांधी से उनके जीवन पर किताब लिखने की ख्वाहिश ज़ाहिर की. इस पर इंदिरा गांधी ने उन्हें अपने प्रधानमंत्रित्व काल के बारे में किताब लिखने की सलाह दी... इसके बाद लक्ष्मण राव ने प्रधानमंत्री नामक एक नाटक लिखा. 1982 में उनका उपन्यास रामदास प्रकाशित हुआ... 2001 में नर्मदा (उपन्यास) और 2006 में परंपरा से जुड़ी भारतीय राजनीति नामक किताब प्रकाशित हुई... फिर 2008 में रेणु नामक किताब का प्रकाशन हुआ...

इनके अलावा वह कई और किताबें लिख चुके हैं, जिनमें शिव अरुणा, सर्पदंश, साहिल, पत्तियों की सरसराहट, प्रात: काल, नर्मदा, दृष्टिकोण, अहंकार, समकालीन संविधान, अभिव्यक्ति, मौलिक पत्रकारिता, प्रशासन, राष्ट्रपति (नाटक ) आत्मकथा साहित्य व्यासपीठ और स्वर्गीय राजीव गांधी की जीवनी संयम आदि शामिल है...

भारतीय अनुवाद परिषद सहित क़रीब 11 संस्थाएं उन्हें सम्मानित कर चुकी हैं, जिनमें भारतीय अनुवाद परिषद, कोच लीडरशिप सेंटर, इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती, निष्काम सेवा सोसायटी, अग्निपथ, अखिल भारतीय स्वतंत्र लेखक मंच, शिव रजनी कला कुंज, प्रागैतिक सहजीवन संस्थान, यशपाल जैन स्मृति, चिल्ड्रेन वैली स्कूल, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद शामिल हैं...

वह बताते हैं कि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उनका नवीनतम उपन्यास " रेणु" पढ़ने के बाद उन्हें राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित किया था...उन्हें इस बात का मलाल है कि उन्हें प्रकाशक नहीं मिला...इसलिए वह ख़ुद ही प्रकाशक बन गए...उन्होंने भारतीय साहित्य कला प्रकाशन शुरू किया... वह यह भी कहते हैं कि प्रकाशक बन्ने के लिए बड़े तामझाम की ज़रूरत नहीं... बस मज़बूत इरादा और लगन होनी चाहिए... वह ख़ुद साइकिल से विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में जाकर अपनी किताबें बेचते हैं... वह अपने नियमित ग्राहकों को हर किताब पर पचास फ़ीसदी की छूट भी देते हैं...

लक्ष्मण जी ने चाय बनाई... हम चाय पी रहे थे...और यहां-वहां की बातें चल रही थीं...कुछ साथी मौजूदा व्यवस्था से परेशान थे...वे एक और बग़ावत पर ज़ोर दे रहे थे...सब अपने-अपने कामों में मसरूफ़ थे...लक्ष्मण जी भी तल्लीनता से आने वालों को चाय बना-बनाकर दे रहे थे... हिन्दी भवन के सभागार से तालियों की आवाज़ें आ रही थीं...उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक पुरस्कार बांट रहे थे... और हम सोच रहे थे कि साहित्य पर भी सियासत और सत्ता ही भारी पड़ती है... काश निशंक की जगह लक्ष्मण राव ब्लॉगरों को सम्मानित कर रहे होते तो बात ही कुछ और होती और तब हम भी हिंदी भवन के बाहर न होकर अंदर रहकर उस खुशनुमा लम्हे को जी रहे होते...

Monday, May 2, 2011

ऑनर किलिंग पर इबरतनाक फ़ैसला...


फ़िरदौस ख़ान
उत्तर प्रदेश में ऑनर किलिंग मामले में दोषी को फांसी की सख्त सज़ा दिए जाने से इस तरह की दिल दहला देने वाली वारदातों पर कुछ अंकुश लगेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है. इस फ़ैसले ने जहां समाज को यह संदेश दिया है कि क़ानून से ऊपर कुछ भी नहीं है, वहीं  सामाजिक कुरीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे लोगों का मनोबल भी बढ़ाया है.

क़ाबिले-गौर है कि रामपुर ज़िले के गांव क्रमचा निवासी शौकत सैफ़ी की बेटी नसीम जहां गांव के ही अपने प्रेमी यासीन से निकाह करना चाहती थी. प्रेमी के भुर्जी बिरादरी का होने की वजह से शौकत को यह रिश्ता मंज़ूर नहीं था. इसलिए नसीम पिता का घर छोड़कर प्रेमी के घर चली गई. बाद में शौकत उसे वापस घर लाया और उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन जब वह मानी तो उसे धारदार हथियार से बेटी की गर्दन काट दी और पेट फाड़ डाला. नसीम की मौक़े पर ही मौत हो गई थी. यह मामला 19 जून 2009 का है. अपर सत्र न्यायाधीश कामिनी पाठक ने अपने फैसले में चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि बेटियां घर में ही सुरक्षित नहीं हैं और बेटी की हत्या करना बर्बरतापूर्ण कृत्य है. ऐसा करने वाले को फांसी देना ज़रूरी है.    

इससे पहले बीती मई में दिल्ली की एक अदालत ने ऑनर किलिंग को संपूर्ण नारीत्व के सम्मान पर हमला क़रार देते हुए एक ही परिवार के तीन सदस्यों को फांसी की सज़ा सुनाई थी. मामले के मुताबिक़ 1516 अक्टूबर 2007 को उर्मिला की तीन नाबालिग बच्चों की आंखों के सामने उसके पति सुरेंदर सिंह, सास और देवर ने हत्या कर दी थी. 

इसी तरह  इसी तरह बीते माह मई में सुप्रीम कोर्ट ने 'ऑनर किलिंग' के मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि इज़्ज़त के नाम पर हो रही हत्या राष्ट्र पर कलंक है और यह बर्बर और सामंती प्रथा है जिसे ख़त्म किया जाना चाहिए. उसने सभी अदालतों को निर्देश दिए कि ऑनर किलिंग को दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में रखा जाना चाहिए और मौत की सज़ा देनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसा असभ्य व्यवहार करने वालों के लिए ऐसे उपाय ज़रूरी हैं. जो भी व्यक्ति ऑनर किलिंग का षडयंत्र रचने जा रहा है उसे अंदाज़ा होना चाहिए कि फांसी का तख़्ता उसका इंतज़ार कर रहा है.

मामले के मुताबिक़ भगवान दास की अपनी बेटी से बहुत नाराज़ थे, क्योंकि उसने अपने पति को छोड़ दिया था और उसने अपने एक चचेरे भाई से संबंध बना लिए थे. इसकी वजह से 16 मई, 2006 को बिजली के तार से गला घोंटकर अपनी बेटी की हत्या कर दी थी. इस मामले में हाईकोर्ट ने उसे उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी. हाईकोर्ट के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को बरक़रार रखा और भगवान दास के इस तर्क को ख़ारिज कर दिया कि केवल परिस्थिति जन्य साक्ष्य के आधार पर सज़ा नहीं दी जा सकती.

बीते अप्रैल माह में भी सुप्रीम कोर्ट ने ऑनर किलिंग या इज्ज़त के नाम पर हत्याओं के ख़िलाफ़ सख़्त रूख अपनाते हुए कहा था कि इस कुप्रथा को बिना किसी रियायत के जड़ से उखाड़ फेंकना होगा.

पिछले साल हरियाणा के करनाल के सत्न न्यायालय ने मनोज-बबली हत्याकांड के पांच दोषियों को फांसी और एक को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी. अदालत ने 25 मार्च को इस मामले में तथाकथित खाप नेता गंगा राज और बबली के पांच परिजनों को क़त्ल का कसूरवार ठहराया था. कैथल ज़िले के करोडन गांव के मनोज ने क़रीब तीन साल पहले 18 मई 2007 को बबली के घरवालों के विरोध के बावजूद उससे शादी की थी. दोनों के समान गोत्न का होने के कारण खाप पंचायत ने इस विवाह का विरोध किया और मनोज के परिवार के सामाजिक बहिष्कार का फैसला सुना दिया. शादी के बाद मनोज और बबली करनाल में जाकर रहने लगे, लेकिन अब भी उनकी मुसीबतें अब भी कम नहीं उन्हें शादी तोड़ने के लिए कहा जाने लगा. जब उन्होंने इनकार कर दिया तो उन्हें धमकियां मिलने लगीं और 15 जून 2007 को उनकी बेरहमी से ह्त्या कर दी गई थी. इनके शव बाद में 23 जून को बरवाला ब्रांच नहर से बरामद हुए थे. क़रीब तीन साल तक चले इस मामले में लगभग 50 सुनवाइयां हुईं तथा इस दौरान 40 से ज्यादा गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे.

प्राचीनकाल से ही भारत में सामाजिक, राजनीतिक अन्य मामलों में पंचायत की अहम भूमिका रही है. पहले हर छोटे बड़े फ़ैसले पंचायत के ज़रिये ही निपटाए जाते थे. गांवों में आज भी पंचायतों का बोलबाला है. पंचायतों दो प्रकार की होती हैं. एक लोकतांत्रिक प्रणाली द्वारा चुनी गई पंचायतें और दूसरी खाप पंचायतें. दरअसल, खाप या सर्वखाप एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति है, जो भारत के उत्तर पश्चिमी प्रदेशों यथा उत्तर भारत विशेषकर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में प्रचलित हैं. ये पंचायतें पिछले काफ़ी वक़्त से अपने के फ़ैसलों को लेकर सुर्ख़ियों में रही हैं. बानगी देखिये :

20 मार्च 1994 को झज्जर ज़िले के नया गांव में मनोज आशा को मौत की सज़ा मिली. परिजनों ने खाप पंचायतों की हरी झंडी मिलने के बाद दोनों प्रेमियों को मौत की नींद सुला दिया. वर्ष 1999 में भिवानी के देशराज निर्मला को पंचायत के ठेकेदारों को ठेंगा दिखाकर प्रेम-प्रसंग जारी रखने की क़ीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी. दोनों की पत्थर मारकर हत्या कर दी गई.  

वर्ष 2000 में झज्जर ज़िले के जोणधी गांव में हुई पंचायत ने आशीष दर्शना को भाई-बहन का रिश्ता क़ायम करने का फ़रमान सुनाया, जबकि उनका एक बच्चा भी था. वर्ष 2003 में जींद ज़िले के रामगढ़ गांव में दलित युवती मीनाक्षी ने सिख समुदाय के लड़के से प्रेम विवाह कर लिया. चूंकि क़दम लड़की ने बढ़ाया था,

लिहाज़ा उसे पंचायती लोगों ने मौत की सज़ा सुना दी. साहसी प्रेमी जोड़े ने कोर्ट की शरण लेकर विवाह तो कर लिया, लेकिन उन्हें दूसरे राज्य में जाकर गुमनामी की जिंदगी गुज़ारनी पड़ी. वर्ष 2005 के दौरान झज्जर ज़िले के आसंडा गांव में रामपाल सोनिया को भी पति-पत्नी से भाई-बहन बनने का फ़रमान सुना दिया. राठी दहिया गोत्र के बीच अटका यह मामला भी लंबा खिंचा. आख़िर  रामपाल को अदालत की शरण लेनी पड़ी. क़रीब पौने तीन साल की अदालती लड़ाई के बाद रामपाल की जीत हुई, लेकिन खाप पंचायतों का खौफ़ उन्हें आज भी है. 

करनाल ज़िले के बल्ला गांव में भी 9 मई 2008 को एक प्रेमी जोड़े को पंचायत के ठेकेदारों की शह पर मौत के घात उतार दिया गया. जस्सा सुनीता भी एक ही गोत्र से थे. दोनों ने पंचायत की परवाह करते हुए शादी कर ली, मगर कुछ समय बाद ही दोनों की बेरहमी से हत्या कर दी गई.

अप्रैल 2009 के दौरान कैथल ज़िले के करोड़ गांव में विवाह रचाने वाले मनोज बबली को मौत की नींद सुला दिया गया. दोनों एक ही गोत्र के थे. उन्हें बुरा अंजाम भुगतने की धमकी दी गई थी, लेकिन इसकी परवाह करते हुए उन्होंने विवाह कर लिया था. बाद में दोनों को बस से उतारकर मार दिया गया.

अप्रैल 2009 के दौरान कैथल ज़िले के करोड़ गांव में विवाह रचाने वाले मनोज बबली को मौत की नींद सुला दिया गया. दोनों एक ही गोत्र के थे. उन्हें बुरा अंजाम भुगतने की धमकी दी गई थी, लेकिन इसकी परवाह करते हुए उन्होंने विवाह कर लिया था. बाद में दोनों को बस से उतारकर मार दिया गया. हिसार ज़िले के मतलौडा गांव में मेहर और सुमन की प्रेम करने की चेतावनी दी गई. कई दिनों तक लुका-छिपी चलती रही, लेकिन आख़िर में उन्हें भी मौत की नींद सुला दिया गया.  नारनौल ज़िले के गांव बेगपुर में गोत्र विवाद के चलते युवक के परिवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया. बाद में पंचायत ने फ़ैसला सुनाया कि नवदंपत्ति को सदैव के लिए गांव छोड़ना होगा. आख़िर विजय अपनी पत्नी रानी को लेकर हमेशा के लिए गांव से चला गया. जुलाई 2009 के दौरान जींद जिले के गांव सिंहवाल में अपनी पत्नी को लेने पहुंचे वेदपाल की कोर्ट के वारंट अफसर पुलिस की मौजूदगी में पीट-पीट कर हत्या कर दी गई. मट्टौर निवासी वेदपाल पर पंचायत ने आरोप लगाया था कि उसने गोत्र के ख़िलाफ़ जाकर सोनिया से शादी की है. 

झज्जर ज़िले के सिवाना गांव में भी अगस्त 2009 में गांव के ही युवक-युवती का प्रेम-प्रसंग पंचायत को बुरा लगा. एक दिन दोनों के शव पेड़ पर लटकते मिले. रोहतक ज़िले के खेड़ी गांव में शादी के साल बाद सतीश कविता को भाई-बहन बनने का फ़रमान सुना दिया गया. पति-पत्नी को अलग कर दिया गया और युवक के पिता आज़ाद सिंह के मुंह में जूता ठूंसा गया था. उनका एक बच्चा भी है. इस मुद्दे पर हाईकोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेते हुए सरकार को नोटिस जारी किया था. अदालत ने 11 फ़रवरी को उन पंचायतियों के नाम मांगे हैं, जिन्होंने यह फ़तवा जारी किया था. इस संबंध में कविता ने एसपी अनिल राव को शिकायत भी दर्ज करा दी थी. पुलिस ने विभिन्न धाराओं के तहत मामला भी दर्ज कर लिया है. हालांकि पुलिस ने अभी तक आरोपियों के नाम उजागर नहीं किए हैं. हालांकि पांच फरवरी को बेरवाल-बैनीवाल खाप की सांझा पंचायत के बाद सतीश-कविता का रिश्ता बहाल कर दिया था. जूता मुंह में दिए जाने की भी निंदा की गई थी. इस पंचायत ने भी कविता के गांव खेड़ी में प्रवेश पर रोक लगाई है. इस पंचायत ने कविता द्वारा पुलिस को की गई शिकायत वापस लेने के भी कहा था. दोनों पक्षों ने बेरवाल-बैनीवाल खाप पंचायत के फ़ैसले को स्वीकार करने की घोषणा कर दी थी. इसके बावजूद हाईकोर्ट के दख़ल के कारण इस मुद्दे पर अभी असंमजस की स्थिति बनी हुई है. इस माले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुकुल मुदगल जस्टिस जसबीर सिंह की खंडपीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा था-खाप पंचायतों को इस तरह का कोई अधिकार नहीं है कि वे किसी दंपत्ति को भाई-बहन बना दें और जो उसके आदेश का पालन करे, उसे मौत के घाट उतार दें.

यह एक सामाजिक बुराई है. इन खाप पंचायतों को समानांतर न्याय पालिका चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. वैसे खाप पंचायतों द्वारा दिए गए फ़ैसलों के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ का रुख़ सदा कड़ा ही रहा है. इस मामले में पहले भी हाईकोर्ट हरियाणा सरकार से यह पूछ चुका है कि वह क़ानून के ख़िलाफ़ काम करने वाली तुगलकी फ़रमान जारी करने वाली खाप पंचायतों के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं कर रही. हाईकोर्ट ने कहा था कि इन पंचायतों द्वारा इस तरह के आदेश जारी करना गैर क़ानूनी है. इस तरह के आदेश कंगारू ला की तरह हैं और उनको रोकना ज़रूरी है. यह अफ़गानिस्तान नही है, यह भारत है. यहां पर तालिबान कोर्ट को मान्यता नहीं दी जा सकती. चीफ जस्टिस ने यह बात उस वकील को कही थी जिसने कोर्ट में एक जवाब दाख़िल कर खाप पंचायतों के क़दम उनकी कार्रवाई को सही ठहराया था.


क़ाबिले-गौर है कि इस तरह के मुद्दे हमेशा से ही सरकार के लिए भी परेशानी का सबब बने हैं, क्योंकि वोट बैंक के चलते सियासी दल इन मामलों से दूर ही रहते हैं. राज्य में क़रीब 22 फ़ीसदी जाट वोट बैंक है. यही वजह कि राज्य सरकार किसी की भी हो खाप पंचायतों के आगे घुटने टेकती है. यही वजह है कि मौत तक के फ़रमान जारी हुए और उन पर अमल हुआ. पुलिस को गवाह तक ढूंढना मुश्किल होता है. ऊपर से सियासी दबाव अलग काम करता है. इसलिए  खाप पंचायतों की तानाशाही के सामने प्रशासन भी बेबस नज़र आता है. हरियाणा में इन पंचायतों का इतना खौफ़ है कि पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में परिजनों से जान का ख़तरा बताने वाले प्रेमी जोड़ों की याचिकाओं की तादाद दिनोदिन बढ़ रही है. पिछले साल 3739 याचिकाएं हाईकोर्ट में आईं और इस साल अभी 28 याचिकाएं चुकी हैं, जिनमें अपने परिजनों से ही जान का ख़तरा बताते हुए सुरक्षा की गुहार लगाई गई है.  खाप पंचायतों के फ़ैसले से आहत हुए सतीश और कविता का कहना था कि शादी के तीन साल बाद उन्हें भाई-बहन बनने के लिए कहा जा रहा है. मेरे ससुर के मुंह में जूता डाला जाता है, बेटे रौनक के 'दादा' को 'नाना' बनने के लिए कहा जाता है. खाप पंचायतों के फ़रमानों का ख़ामियाज़ा भुगतने वाले झज्जर के आसंडा निवासी रामपाल सोनिया का कहना था कि वक़्त के साथ पंचायतों को बदलना होगा. पंचायत ने हम दोनों को शादी के बाद भाई-बहन बनने का फ़रमान जारी कर दिया था. खाप पंचायतों के प्रतिनिधि परंपराओं के नाम पर ख़ुद के अहं को ऊपर रखते हैं.

उधर, खाप पंचायतों के प्रतिनिधि के भी ख़ुद को सही बताते हुए अनेक तर्क देते हैं. उनका कहना है कि हिन्दू मेरिज एक्ट में संशोधन होना चाहिए और एक गोत्र तथा एक गांव में शादी को क़ानून अनुमति नहीं मिलनी चाहिए. सर्व खाप महम चौबीसी के प्रधान रणधीर सिंह कहते हैं हिन्दू मेरिज एक्ट में ख़ासकर उत्तर हरियाणा की परंपराओं का कोई उल्लेख नहीं है. उन्हें प्रेम करने वालों से ऐतराज़ नहीं है, लेकिन जहां भाई-बहन का रिश्ता माना जाता है वहां पति-पत्नी का संबंध जोड़ना उचित नहीं है. इसलिए इससे बचा जाना चाहिए. अलग-अलग गांवों के युवा शादी करते हैं तो उन्हें दिक्क़त नहीं है. उन्होंने कहा कि सतीश और कविता के मामले में खाप पंचायत ने नरमी दिखाई है.

गौरतलब है कि गैर सरकारी संगठन लायर फार ह्यूमन राइट इंटरनेशनल ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाख़िल कर खाप पंचायतों द्वारा गैर क़ानूनी तानाशाही आदेश जारी करने के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने इन खाप पंचायतों पर रोक लगाने की मांग की है. साथ ही याचिका में कहा गया है कि सिंगवाल नरवाना में खाप पंचायत द्वारा मारे गए युवक वेदपाल के मामले की जांच के लिए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी की अगुवाई में एक एसआईटी बनाई जाए जो हाईकोर्ट की निगरानी में काम करे. इस मामले की सुनवाई के लिए एक स्पेशल कोर्ट भी बनाई जाए जो इस मामले में शामिल लोगों को जल्दी सज़ा दे सके. बहरहाल, खाप पंचायतों की तानाशाही फ़रमानों से परेशान प्रेमी जोड़ों को आस बंधी है कि वो ख़ुशी-ख़ुशी अपनी ज़िंदगी बसर कर सकते हैं.

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से उन लोगों को कुछ सबक ज़रूर मिलेगा, जो इज्ज़त के नाम पर महिलाओं पर ज़ुल्म ढहाते हैं.