Tuesday, December 21, 2010

छोटी प्याज़ ने बड़ों-बड़ों को रुलाया

फ़िरदौस ख़ान
आख़िर एक बार फिर प्याज़ अवाम को महंगाई के आंसू रुला रही है. अभी दो दिन पहले देशभर की मंडियों में प्याज़ 20 रुपये किलो मिल रही थी. लेकिन जैसे ही ख़बरिया चैनलों ने चिल्ला-चिल्लाकर बताना शुरू किया कि देश की राजधानी दिल्ली में प्याज़ 80 से 100 किलो रुपये बिक रही है तो कुछ ही घंटों में देशभर में प्याज़ की क़ीमत आसमान छूने लगी. आड़तियों ने प्याज़ की जमाखोरी शुरू कर दी.

गौरतलब है कि देशभर में प्याज़ की क़ीमतें पिछले कुछ दिनों में भारी इज़ाफ़ा हुआ है. महाराष्ट्र का नासिक जो प्याज़ का सबसे बड़ा उत्पादन केंद्र है वहां भी प्याज़ 70 रुपये किलो बिक रही है, जबकि राजधानी दिल्ली में प्याज़ की क़ीमतें 80 से सौ रुपये तक पहुंच गई है. क़ाबिले-गौर है कि 1998 में प्याज़ की आसमान बढ़ी क़ीमतों ने दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था.

सनद रहे प्याज़ निर्यात की प्रक्रिया न्यूनतम निर्यात मूल्य के आधार पर नियंत्रित होती है. ये मूल्य नाफ़ेड दूसरी कंपनियों के साथ मिलकर तय करता है. प्याज़ के निर्यात के लिए निर्यातकों को नाफ़ेड से प्रमाण-पत्र लेना होता है. केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय कृषि सहकारिता वितरण फ़ेडरेशन (नाफ़ेड) से कहा है कि वो निर्यातकों को प्याज़ निर्यात करने की मंज़ूरी न दे. सरकार ने प्याज़ का न्यूनतम निर्यात मूल्य 525 डॉलर प्रति टन से बढ़ाकर 1200 डॉलर प्रति टन यानी क़रीब 54 हज़ार रुपए प्रति टन कर दिया गया है, ताकि नाफ़ेड से प्रमाण-पत्र व्यापारी देश से बाहर प्याज़ न भेज पाएं.

हालांकि सोमवार को बुलाई आपात बैठक में केंद्र सरकार फ़िलहाल प्याज़ का निर्यात बंद करने का फ़ैसला कर चुकी है. सरकार 15 जनवरी तक निर्यात परमिट जारी नहीं करेगी. कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि प्याज़ की क़ीमतें अभी कुछ दिनों तक और ऐसी ही बढ़ी हुई रह सकती हैं. और प्याज़ के दामों में अगले 3 हफ़्ते में सुधार होगा. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और राजस्थान में मॉनसून में भारी बारिश की वजह से प्याज़ की पैदावार पर बुरा असर पड़ा है. वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि प्याज़ के दाम जमाखोरी की वजह से बढ़े हैं.

पिछले माह नवंबर में हुई बेमौसम की बरसात की वजह से प्याज़ के उत्पादन में गिरावट आई है. देश की कई कृषि उत्पादन बाजार समितियों में प्याज़ का भाव 7100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है. प्याज़ उत्‍पादन के मामले में देश में महाराष्‍ट्र सबसे आगे है. यहां नासिक प्याज़ का सबसे बड़ा बाजार है. महाराष्‍ट्र की लासलगांव मंडी एशिया की सबसे बड़ी प्याज़ मंडी है. आज यहां प्याज़ के दाम 6299 रुपये प्रति क्विंटल, उमराने में 7100 रुपये, पिम्‍पलगांव में 6263 रुपये, मनमाड़ में 6450 रुपये और नंदगांव में 5000 रुपये हो गए हैं. फ़िलहाल हालात से निपटने के लिए पड़ौसी मुल्क पकिस्तान से प्याज़ मंगाई गई है. अमृतसर में सीमा शुल्क विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी मुताबिक़ पाकिस्तान से प्याज़ के कई ट्रक भारत आ चुके हैं. एक ट्रक में पांच से 15 टन प्याज़ है. पाकिस्तान से यहां तक प्याज़ के आने की लागत 18 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम होती है, जिसमें सीमा शुल्क, उपकर, परिवहन और हैंडलिंग की लागत शामिल है.

नाफ़ेड ने राजधानी दिल्ली के बाशिंदों को राहत देने के लिए में प्याज़ की बिक्री 35 से 40 रुपए प्रति किलोग्राम की क़ीमत पर करने का ऐलान कर दिया है. राष्ट्रीय राजधानी में नाफ़ेड और एनसीसीएफ के 25 स्टोर हैं. देश के दूसरे राज्यों की अवाम का क्या होगा? प्याज़ के दाम बढ़ने से जहां होटल वाले परेशान हैं, वहीं गृहिणियों का बजट भी बिगड़ गया है. शाकाहारी तो बिना प्याज़ के कुछ दिन काम चला सकते हैं, लेकिन मांसाहारियों के लिए प्याज़ के बिना एक दिन भी गुज़ारना मुश्किल है.

फ़िलहाल, प्याज़ की बढ़ी क़ीमतों पर क़ाबू पाने की सरकारी कवायद जारी है. जमाखोरी के मद्देनज़र छापामारी के भी निर्देश दिए गए हैं. उधर दूसरी तरफ़ प्याज़ को लेकर सियासी रोटियां भी सेंकी जाने लगी है. भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने प्याज़ की क़ीमतों में हुई भारी वृद्धि के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की आर्थिक नीतियों को मुख्य रूप से ज़िम्मेदार ठहराया है. उनका आरोप है कि सरकार द्वारा समय रहते एहतियाती क़दम न उठाए जाने की वजह से प्याज़ की क़ीमतें आसमान छू रही हैं. बहरहाल प्याज़ क्या-क्या रंग दिखाती है, देखते रहिए.

Saturday, December 18, 2010

बेदर्द, निर्मोही और संगदिल नहीं हैं मर्द...



फ़िरदौस ख़ान
अमूमन मर्दों को संगदिल समझा जाता है...संगदिल मानकर उन्हें बेदर्द, निर्मोही जैसे संबोधन दे दिए जाते हैं... कथा -कहानियों में भी नायिकाएं अपने प्रीतम को ऐसे ही नाम से संबोधित करते हुए शिकायत करती हैं... माना जाता है कि महिलाएं ही बेहद जज़्बाती होती हैं...और किसी भी रिश्ते का टूटने का दर्द सबसे ज़्यादा उन्हें ही होता है...जबकि ऐसा नहीं है, मर्द भी रिश्तों को लेकर इतने ही भावुक होते हैं...यह बात अलग है कि वे अपने जज़्बात को बयान नहीं कर पाते...

ब्रिटेन में हाल ही में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि दर्द सहन करने की क्षमता उम्र के साथ विकसित होती है. कम उम्र के मर्द इतने मज़बूत नहीं होते कि वे टूटे हुए रिश्ते के दर्द को बर्दाश्त कर सकें... मर्द अपनी भावनाएं दूसरों के साथ नहीं बांटते हैं, क्योंकि उनकी परवरिश ही ऐसी होती है...उन्हें बचपन से ही यह बताया जाता है कि लड़कियों के मुक़ाबले वे ज़्यादा मज़बूत हैं... इस मानसिकता के चलते वे अपनी भावनाओं को अपने भीतर ही समेटे रहते हैं...वे अपनी भावनाएं केवल प्रेमिका या साथी के साथ बांटते हैं ऐसे में उनके दूर हो जाने पर वे भावनात्मक तौर पर बेहद कमज़ोर हो जाते हैं...

लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज की समाजशास्‍त्री प्रोफेसर मिलैनी बर्टले के मुताबिक़ मर्द भी महिलाओं जैसा ही नाज़ुक दिल रखते हैं... लेकिन महिलाओं के पास अपने दुख-दर्द बांटने के लिए परिवार और दोस्त होते हैं, जबकि मर्दों के बीच प्रतियोगिता ज़्यादा होती है और वे एक-दूसरे की भावनाओं का क़द्र नहीं करते हैं...रिश्ते मर्दों को भावनात्मक मज़बूती देते हैं, इसलिए रिश्ते टूटने पर वे गहरे अवसाद में चली जाते हैं...

दर्द तो मर्दों को भी होता है...फ़िरदौस ख़ान
मर्द ऐसे क्यों होते हैं...फ़िरदौस ख़ान  

Friday, December 10, 2010

भ्रष्टाचार : हम किसी से कम नहीं...फ़िरदौस ख़ान

फ़िरदौस ख़ान
पिछले काफ़ी अरसे से देश की जनता भ्रष्टाचार से जूझ रही है और भ्रष्टाचारी मज़े कर रहे हैं. पंचायतों से लेकर संसद तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है. सरकारी दफ़्तरों के चपरासी से लेकर आला अधिकारी तक बिना रिश्वत के सीधे मुंह बात तक नहीं करते. संसद के अन्दर भ्रष्टाचार को लेकर हौ-हल्ला होता है तो बाहर जनता धरने-प्रदर्शन कर अपने गुस्से का इज़हार करती है. हालांकि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर भी तमाम दावे कर औपचारिकता पूरी कर ली जाती है, लेकिन नतीजा वही 'ढाक के तीन पात' ही रहता है. अब तो हालत यह हो गई है कि हमारा देश भ्रष्टाचार के मामले में भी लगातर तरक्क़ी कर रहा है. विकास के मामले में भारत दुनिया में कितना ही पीछे क्यों न हो, मगर भ्रष्टाचार के मामले में चौथे नंबर पर पहुंच गया है.

गौरतलब है कि जर्मनी के बर्लिन स्थित गैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (टीआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले साल भारत में काम कराने के लिए 54 फ़ीसदी लोगों को रिश्वत देनी पड़ी. जबकि पूरी दुनिया की चौथाई आबादी घूस देने को मजबूर है. इस संगठन एनजीओ ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे में दुनियाभर के 86 देशों में 91 हज़ार लोगों से बात करके रिश्वतखोरी से संबंधित आंकड़े जुटाए हैं. 2010 के ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर के मुताबिक़ पिछले 12 महीनों में हर चौथे आदमी ने 9 संस्थानों में से एक में काम करवाने के लिए रिश्वत दी. इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस विभाग से लेकर अदालतें तक शामिल हैं.

भ्रष्टाचार के मामले में अफ़गानिस्तान, नाइजीरिया इराक़ और भारत सबसे ज़्यादा भ्रष्ट देशों की फ़ेहरिस्त में शामिल किये गए हैं.इन देशों में आधे से ज़्यादा लोगों ने रिश्वत देने की बात स्वीकार की. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 74 फ़ीसदी लोगों का कहना है कि देश में पिछले तीन बरसों में रिश्वतखोरी में ख़ासा इज़ाफ़ा हुआ है, बाक़ी दुनियाभर के 60 फ़ीसदी लोग ही ऐसा मानते हैं. इस रिपोर्ट पुलिस विभाग को सबसे ज़्यादा भ्रष्ट करार दिया गया है. पुलिस से जुड़े 29 फ़ीसदी लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्हें अपना काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ी है. संस्था के वरिष्ठ अधिकारी रॉबिन होंडेस का कहना है कि यह तादाद पिछले कुछ सालों में बढ़ी है और 2006 के मुक़ाबले दोगुनी हो गई है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन (79वें), भारत (84वें), पाकिस्तान और बांग्लादेश (139वें) में भ्रष्टाचार तेज़ी से फैल रहा है. हालत यह है कि धार्मिक संगठनों में भी भ्रष्टाचार बढ़ा है.

क़ाबिले-गौर है कि ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल 2003 से हर साल भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट जारी कर रही है. वर्ष 2009 की रिपोर्ट में सोमालिया को सबसे भ्रष्ट देश बताया गया है, जबकि इस साल भारत इस स्थान रहा है. देश में पिछले छह महीनों में आदर्श हाउसिंग घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलों में धांधली, और 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में घोटाले ने भ्रष्टाचार की पोल खोल कर रख दी है. जब ऊपरी स्तर पर यह हाल है तो ज़मीनी स्तर पर क्या होता होगा, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

टीआई की रिपोर्ट में न्यूज़ीलैंड, डेनमार्क, सिंगापुर, स्वीडन और स्विटज़रलैंड को दुनिया के सबसे ज़्यादा साफ़-सुथरे देश बताया गया है. गौरतलब है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का अंतरराष्ट्रीय सचिवालय बर्लिन में स्थित है और दुनियाभर के 90 देशों में इसके राष्ट्रीय केंद्र हैं. विभिन्न देशों में भ्रष्टाचार का स्तर मापने के लिए टीआई दुनिया के बेहतरीन थिंक टैंक्स, संस्थाओं और निर्णय श्रमता में दक्ष लोगों की मदद लेता है. यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट की ओर से घोषित अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस के मौक़े पर जारी की जाती है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल की 191 देशो की फ़ेहरिस्त में भारत को 178वें स्थान पर रखा गया था. करेप्शन प्रेसेप्शन इंडेक्स में भारत 87 वें पायदान पर है. संसद में बैठे नेताओं में से क़रीब एक चौथाई पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं. 1948 से 2008 तक अवैध तरीक़े से हमारे देश से क़रीब 20 लाख करोड़ रुपए बाहर भेजे गए हैं, जो देश की आर्थिक विकास दर (जीडीपी) का चालीस फ़ीसदी है.

विभिन्न संगठनों के संघर्ष के बाद भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए 12 अक्टूबर 2005 को देशभर में सूचना का अधिकार क़ानून भी लागू किया गया. इसके बावजूद रिश्वत खोरी कम नहीं हुई. अफ़सोस तो इस बात का है कि भ्रष्टाचारी ग़रीबों, बुजुर्गों और विकलांगों तक से रिश्वात मांगने से बाज़ नहीं आते. वृद्धावस्था पेंशन के मामले में भी भ्रष्ट अधिकारी लाचार बुजुर्गों के आगे भी रिश्वत के लिए हाथ फैला देते हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने भ्रष्टाचार को स्वीकार करते हुए कहा था कि सरकार की तरफ़ से जारी एक रुपए में से जनता तक सिर्फ़ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं. ज़ाहिर है बाक़ी के 85 पैसे सरकारी अफ़सरों की जेब में चले जाते हैं. जिस देश का प्रधानमंत्री रिश्वतखोरी को स्वीकार कर रहा हो, वहां जनता की क्या हालत होगी कहने की ज़रूरत नहीं. मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मानते हैं कि मौजूदा समय में देश में भ्रष्टाचार और गरीबी बड़ी समस्याएं हैं. हक़ीक़त में जनता के कल्याण के लिए शुरू की गई तमाम योजनाओं का फ़ायदा तो नेता और नौकरशाह ही उठाते हैं. आख़िर में जनता तो ठगी की ठगी ही रह जाती है. शायद यही उसकी नियति है.

बहरहाल, भ्रष्टाचार पर कैसे रोक लगाई जाए, इस पर गंभीरता से बरते जाने की ज़रूरत है. साथ इस बात की भी ज़रूरत है की भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ सख्त कानूनी कारवाई की जाए, क्योंकि सिर्फ़ भाषणबाज़ी से कुछ होने वाला नहीं है.

Wednesday, December 8, 2010

दर्द तो मर्दों को भी होता है...फ़िरदौस ख़ान

अंग्रेज़ी में कहावत है कि 'बॉयज़ डोंट क्रा'ई यानी लड़के नहीं रोते... मतलब रोती तो लड़कियां हैं. मगर ऐसा नहीं है... दुख, दर्द तकलीफ़ तो मर्दों को भी होता है... दिल पर चोट पहुंचने पर वे भी रोते हैं, तड़पते हैं, कराहते हैं...

 अमूमन बचपन से ही लड़कों के मन में यह बात बैठा दी जाती है कि लड़के मज़बूत होते हैं, ताक़तवर होते, हिम्मत वाले होते हैं... इसलिए उन्हें ख़ुद को कमज़ोर नहीं समझना है... इसी ज़हनियत के चलते मर्द अपने दुख-दर्द दूसरों के साथ नहीं बांट पाते और मन ही मन सबकुछ झेलते रहते हैं...

मर्द अपनी भावनाएं व्यक्त करने में झिझकते हैं... वे डरते हैं कि कहीं उन्हें कमज़ोर न समझ लिया जाए...और फिर उनका मज़ाक़ न उड़ाया जाए...वे कभी नहीं चाहते कि कोई भी उन्हें कमज़ोर या दब्बू समझे...ऐसे में घर, दफ़्तर या समाज में उनकी 'इमेज' का क्या होगा...?  

हक़ीक़त यही है कि मर्दों को भी उतने ही प्यार और देखभाल  की ज़रूरत होती है, जितनी लड़कियों को... जब किसी लड़की पर कोई परेशानी आती है तो पूरा परिवार सब कुछ छोड़कर उसके बारे में ही सोचने लग जाता है, मगर मर्दों को यह कहकर उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है कि वे ख़ुद सक्षम है... ऐसे में वे ख़ुद को बेहद अकेला महसूस करते हैं... 

कुछ ख़ास बातें मर्दों के बारे में
  • अध्ययनों की मानें तो मर्दों में औरतों के मुक़ाबले जनरल इंटेलिजेंस तीन फ़ीसदी कम होता है.
  • मर्द ऐसे ग्रीटिंग कार्ड पसंद करते हैं, जिनमें संदेश बड़े शब्दों में लिखा हुआ हो.
  • मर्दों के बात करने से पहले ही बता दें कि वे आपकी बात ध्यान से सुने., साथ ही बात का विषय भी पहले ही बताना होगा. उनसे एक बार में एक विषय ही विषय पर बात करें, वह
    भी सीधे व सरल शब्दों में.
  • मर्द जब अपने कारोबार को लेकर परेशान होते हैं तो वे अपने रिश्तों पर ध्यान नहीं दे पाते.
  • मर्द जब किसी वजह से परेशान होते हैं तो वे अकेले रहना ही पसंद करते हैं. ऐसे में उन्हें प्रेमिका का साथ भी पसंद नहीं आता.
  • मर्द प्यार के मामले में पहल करते हुए भी डरते हैं कि कहीं लड़की मना न कर दे... अगर लड़की ने मना दिया तो वो बर्दाश्त नहीं कर पाते...
    क्योंकि इससे  उनके अहं को चोट पहुंचती है...
औरतों के बारे में कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें मर्द कभी समझ नहीं पाते... मसलन-
  • जब महिलाओं को दो दिन के लिए भी कहीं बाहर जाना होता है तो वे सूटकेस भरकर कपड़े क्यों लेकर जाती हैं.
  • महिलाएं ऐसी फ़िल्में देखना क्यों पसंद करती हैं, जिन्हें देखकर रोना आए.
  • गहने या महंगे कपड़े ख़रीदते वक़्त महिलाओं के चेहरे पर ज़्यादा रौनक़ होती है, जबकि कोई और सामान ख़रीदने पर उनके चेहरे पर ऐसी ख़ुशी नहीं दिखाई देती.




Saturday, December 4, 2010

मर्द ऐसे क्यों होते हैं...फ़िरदौस ख़ान

अमूमन देखने में आता है कि ज़्यादातर महिलाओं के बारे में लिखा जाता है... मर्दों के बारे में बहुत कम पढ़ने को मिलता है... इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि मर्द लेखक महिलाओं के बारे में ही लिखना पसंद करते हैं...महिलाएं भी ख़ुद महिलाओं के बारे में ही लिखने को तरजीह देती हैं...एक पत्रकार साथी से इस बारे में बात हो रही थी तो उन्होंने कहा कि शुक्र है तुमने मदों के बारे में कुछ सोचा तो... ख़ैर, मर्दों के बारे में लिखने का आगाज़ एक हलकी-फुल्की पोस्ट से कर रहे हैं... बाद में कुछ गंभीर लेख भी मर्दों के बारे में लिखेंगे... अगर किसी को कोई बात बुरी लगे तो दिल पर न लीजिएगा, यही गुज़ारिश है...
आज हम बात कर रहे हैं...मर्दों की कुछ आदतों के बारे में...जिन्हें लेकर लड़कियों को अकसर उनसे शिकायत रहती है...
  • अगर आप उनसे ज़्यादा सुन्दर हैं तो वे हीन भावना का शिकार हो जाएंगे. अगर वे आपसे ज़्यादा सुन्दर हैं तो वे ख़ुद को दुनिया का सबसे सुन्दर व्यक्ति समझेंगे.
  • अगर आप उनके साथ अच्छी तरह बात करेंगी तो वे समझेंगे कि आप उनसे प्यार करती हैं. अगर आप ऐसा नहीं करेंगी तो वे कहेंगे की आप बहुत घमंडी हैं.
  • जब भी आप कोई बेहद ख़ूबसूरत लिबास पहने हों तो वे समझेंगे कि आप उन्हें लुभाना चाहती हैं. अगर आपका लिबास कुछ ख़ास नहीं है तो वे समझेंगे कि आप गंवार हैं.
  • अगर आप उनसे किसी बात पर बहस करेंगी तो वे समझेंगे कि आप ज़िद्दी हैं. अगर आप ख़ामोश रहेंगी तो वे समझेंगे कि आपके पास दिमाग़ नाम की कोई चीज़ है ही नहीं.
  • अगर आप उन्हें प्यार नहीं करेंगी तो वे आपको डॉमिनेट करने की कोशिश करेंगे. अगर आप उनसे प्यार का इज़हार करेंगी तो वे ज़ाहिर करेंगे कि उन पर बहुत लड़कियां मरती हैं.
  • जब कभी आप उन्हें कोई समस्या बताएंगी तो वे आपको ही सबसे बड़ी समस्या समझेंगे. अगर आप उन्हें अपनी समस्या नहीं बताएंगी तो वे कहेंगे कि आप उन पर यक़ीन नहीं करतीं.
  • अगर आप उन्हें किसी बात पर डांटेंगी तो वे बुरा मान जाएंगे. अगर वे आपको डांटेंगे तो कहेंगे कि वे आपकी बहुत परवाह करते हैं.
  • अगर आप उनसे किया कोई वादा तोड़ दें तो वे आप पर से यक़ीन तोड़ देंगे. अगर वे आपसे किया वादा तो दें तो आप पर हक़ जताएंगे.
  • अगर आप किसी चीज़ में कामयाब हो जाएं तो वे इसे आपकी क़िस्मत कहेंगे. अगर ख़ुद कामयाब हो जाएं तो इसे अपनी क़ाबिलियत क़रार देंगे.
  • अगर आप उन्हें कोई तकलीफ़ पहुंचाने की कोशिश करेंगी तो आपको ज़ालिम कहेंगे. अगर वे आपको दुख पहुंचाएं तो कहेंगे कि आप बहुत जज़्बाती हो.
  • अगर आप उन्हें कॉल करेंगी तो यह ज़ाहिर करेंगे कि वे बहुत मसरूफ़ हैं. अगर कॉल नहीं करेंगी तो कहेंगे कि आप उन्हें याद ही नहीं करतीं.

Friday, December 3, 2010

विकलांग व्‍यक्तियों के सशक्तिकरण की दरकार

फ़िरदौस ख़ान
दुनियाभर में 65 करोड़ लोग विकलांगता के शिकार हैं. वर्ष 2001 में हुई जनगणना के मुताबिक भारत में 2.19 करोड़ लोग विकलांग हैं जो कुल आबादी के 2.13 फ़ीसदी हैं. इसमें दृष्टि 29 फ़ीसदी श्रवण 6 फ़ीसदी, वाणी 7 फ़ीसदी, गति 28 फ़ीसदी और मानसिक 10 फ़ीसदी शामिल हैं. राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन (एनएसएसओ) के 2002 की रिपोर्ट के मुताबिक़ कुल विकलांगों में दृष्टि 14 फ़ीसदी श्रवण 15 फ़ीसदी, वाणी 10 फ़ीसदी, गति 51 फ़ीसदी और मानसिक 10 फ़ीसदी हैं. 75 फ़ीसदी विकलांग ग्रामीण इलाकों में रहते हैं, 49 फ़ीसदी विकलांग निरक्षर हैं और 34 फ़ीसदी रोज़गार प्राप्त हैं. पूर्व में चिकित्सकीय पुनर्वास पर दिए बल की बजाए अब सामाजिक पुनर्वास पर ध्यान दिया जा रहा है. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत विकलांगता विभाग, विकलांग व्यक्तियों की मदद करता है, जिनकी संख्या वर्ष 2001 में हुई जनगणना के मुताबिक़ 2.19 करोड़ थी जो देश की कुल आबादी का 2.13 फ़ीसदी था. इनमें दृष्टि, श्रवण, वाणी, गति तथा मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति शामिल थे.

हर साल 3 दिसम्‍बर को अंतर्राष्‍ट्रीय विकलांगता दिवस मनाया जाता है. 1981 से मनाए जा रहे इस दिन का मक़सद विकलांग व्‍यक्तियों के प्रति बेहतर समझ क़ायम करना और उनके अधिकारों पर ध्‍यान देने के साथ-साथ उन्‍हें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक जीवन में मिलने वाले लाभ दिलाना है. विकलांगों से संबंधित विश्‍व कार्यकलाप कार्यक्रम ने विकलांगों की समाज में संपूर्ण और कारगर भागीदारी का लक्ष्‍य निर्धारित किया था जिसे संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने 1982 में स्‍वीकार कर लिया. संयुक्‍त राष्‍ट्र ने विकलांगों के लिए पूर्ण और कारगर भागीदारी की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की, जिसे 2006 में मंज़ूर विकलांगता के शिकार लोगों के नवगठित अधिकार समझौते में और मज़बूती प्रदान की गई. भारत ने 30 मार्च 2007 को संयुक्‍त राष्‍ट्र समझौते पर हस्‍ताक्षर किए. भारत सरकार विकलांग लोगों की पूर्ण भागीदारी, उनके अधिकारों की रक्षा और उन्‍हें समान अवसर प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है. भारत की अधिकांश आबादी गांवों में रहती है और स्‍वास्‍थ्‍य और पुनर्वास सेवा तक पहुंच हमेशा से चुनौती का विषय रहा है. इस तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए हमारी सरकार ने सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर विभिन्‍न कार्यक्रमों के ज़रिये उन लोगों तक पहुंचने के लिए अनेक क़दम उठाए हैं जिन तक पहुंचा नहीं जा सका.

सामाजिक न्‍याय और अधिकारिता मंत्रालय हर साल 3 दिसम्‍बर को विकलांगों के सशक्तिकरण के लिए राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार प्रदान करता है. इन पुरस्‍कारों की शुरुआत 1969 में विकलांगों को नौकरी देने वाले सर्वश्रेष्‍ठ मालिकों और सर्वश्रेष्‍ठ कर्मचारी को पुरस्‍कृत करने के लिए की गई थी. बदलते परिदृश्‍य को ध्‍यान में रखते हुए राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार योजना की समीक्षा की गई और समय समय पर इसमें बदलाव करते हुए पुरस्‍कारों की विभिन्‍न नई श्रेणियां शुरू की गईं. राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों की वर्तमान योजना के मुताबिक़ विकलांगों के सशक्तिकरण के लिए 13 श्रेणियों में 63 पुरस्‍कार दिए जाएंगे, जिनमें सर्वश्रेष्‍ठ कर्मचारी/ स्‍व रोज़गार विकलांग, सर्वश्रेष्‍ठ मालिक और नौकरी देने वाले अधिकारी/विकलांगों को नौकरी देने वाली एजेंसी, विकलांगों के लिए काम करने वाले सर्वश्रेष्‍ठ व्‍यक्ति और संस्‍थान, अनुकरणीय व्‍यक्ति, विकलांगों का जीवन बेहतर बनाने के उद्देश्‍य से सर्वश्रेष्‍ठ व्‍यावहारिक अनुसंधान/नवपरिवर्तन/उत्‍पादों का विकास, विकलांगों के लिए अवरोध मुक्‍त वातावरण तैयार करने की दिशा में श्रेष्‍ठ कार्य, पुनर्वास सेवाएं देने वाला श्रेष्‍ठ ज़िला, राष्‍ट्रीय विश्‍वास की स्‍थानीय स्‍तर की समिति, राष्‍ट्रीय विकलांगता, वित्‍त् और विकास निगम को दिशा देने वाले सर्वश्रेष्‍ठ राज्‍य, सर्वश्रेष्‍ठ सृजनशील वयस्‍क विकलांग व्‍यक्ति, सर्वश्रेष्‍ठ सृजनशील विकलांग बच्‍चा, सर्वश्रेष्‍ठ ब्रेल प्रेस और सर्वश्रेष्‍ठ सुगम्‍य वेबसाइट शामिल हैं.

आधिकारिक जानकारी के मुताबिक़ देशभर के विभिन्‍न प्राधिकारों को पत्र लिखकर नामांकन मांगे गए. इसके अलावा मंत्रालय की वेबसाइट में विज्ञापन देने के अलावा देशभर के विभिन्‍न लोकप्रिय क्षेत्रीय दैनिक समाचार-पत्रों में भी विज्ञापन दिये गए. जो सिफ़ारिशें प्राप्‍त हुईं उनमें से स्‍क्रीनिंग समिति ने संक्षिप्‍त सूची तैयार की और राष्‍ट्रीय चयन समिति ने पुरस्‍कारों को अंतिम रूप दिया. हर साल 3 दिसम्‍बर को अंतर्राष्‍ट्रीय विकलांगता दिवस के अवसर पर यह पुरस्‍कार दिए जाते हैं., भारतीय पुनर्वास परिषद् के मुताबिक़ निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 के अन्तर्गत विकलांग व्यक्तियों को अनेक अधिकार दिए गए हैं. अविकलांग व्यक्तियों की तरह समान अवसर का अधिकार, विकलांगजनों के कानूनी अधिकारों की सुरक्षा और जीवन के कार्यों में अविकलांग व्यक्तियों के बराबर पूर्ण भागीदारी का अधिकार दिया गया है. इस अधिनियम द्वारा विकलांगजनों को क़ानूनी तौर पर मान्यता दी गई है और विभिन्न विकलांगताओं को क़ानूनी परिभाषा दी गई है.

इस अधिनियम से विकलांगजनों को यह अधिकार है कि उनकी देखभाल की जाए और जीवन की मुख्यधारा में उन्हें पुनर्वासित किया जाए और सरकार तथा इस अधिनियम द्वारा कवर किए गए प्राधिकरणों और अन्य प्राधिकरण और स्थापनाओं का यह दायित्व है कि वे इस अधिनियम के प्रावधानों के मद्देनज़र विकलांगजनों के प्रति अपने कर्त्तव्यों को पूरा करें. केन्द्रीय और राज्य सरकारों का यह कर्त्तव्य है कि वे रोकथाम संबंधी उपाय करें, ताकि विकलांगताओं को रोका जा सके. प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर कर्मचारियों को प्रशिक्षित करें, स्वास्थ्य और सफ़ाई संबंधी सेवाओं में सुधार करें. वर्ष में कम से कम एक बार बच्चों की जांच करें, जोखिम वाले मामलों की पहचान करें. प्रसवपूर्व और प्रसव के बाद मां और शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल करें और विकलांगता की रोकथाम के लिए विकलांगता के कारण और बचाव के  उपायों के बारे में जनता को जागरूक करें. प्रत्येक विकलांग बच्चे को 18 वर्ष की आयु तक उपयुक्त वातावरण में निःशुल्क शिक्षा का अधिकार है.

सरकार को विशेष शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष स्कूल स्थापित करने चाहिए, सामान्य स्कूलों में विकलांग छात्रों के एकीकरण को बढ़ावा देना चाहिए और विकलांग बच्चों के व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए अवसर मुहैया कराने चाहिए. पांचवीं कक्षा तक पढाई कर चुके विकलांग बच्चे मुक्त स्कूल या मुक्त विश्वविद्यालयों के माध्यम से अंशकालिक छात्रों के रुप में अपनी शिक्षा जारी रख सकते हैं और सरकार से विशेष पुस्तकें और उपकरणों को निःशुल्क प्राप्त करने का उन्हें अधिकार है. सरकार का यह कर्त्तव्य है कि वह नए सहायक उपकरणों, शिक्षण सहायक साधनों और विशेष शिक्षण सामग्री का विकास करे ताकि विकलांग बच्चों को शिक्षा में समान अवसर प्राप्त हों. विकलांग बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार को शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने हैं, विस्तृत शिक्षा संबंधी योजनाएं बनानी हैं. विकलांग बच्चों को स्कूल जाने-आने के लिए परिवहन सुविधाएं देनी हैं, उन्हें पुस्तकें, वर्दी और अन्य सामग्री, छात्रवृत्तियां, पाठ्यक्रम और नेत्रहीन छात्रों को लिपिक की सुविधाएं देना है. दृष्टिहीनता, श्रवण विकलांग और प्रमस्तिष्क अंगघात से ग्रस्त विकलांगजनों की प्रत्येक श्रेणी के लिए पदों का आरक्षण होगा. इसके लिए प्रत्येक तीन वर्षों में सरकार द्वारा पदों की पहचान की जाएगी. भरी न गई रिक्तियों को अगले साल के लिए ले जाया जा सकता है.

विकलांगजनों को रोजगार देने के लिए सरकार को विशेष रोज़गार केन्द्र स्थापित करने हैं. सभी सरकारी शैक्षिक संस्थान और सहायता प्राप्त संस्थान सीटों को विकलांगजनों के लिए आरक्षित रखेंगे. रिक्तियों को गरीबी उन्मूलन योजनाओं में आरक्षित रखना है. नियोक्ताओं को प्रोत्साहन भी देना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके द्वारा लगाए गए कुल कर्मचारियों में से 5 व्यक्ति विकलांग हैं. आवास और पुनर्वास के उद्देश्यों के लिए विकलांग व्यक्ति रियायती दर पर जमीन के तरजीही आबंटन के हक़दार होंगे. विकलांग व्यक्तियों के साथ परिवहन सुविधाओं, सड़क पर यातायात के संकेतों या निर्मित वातावरण में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा. सरकारी रोजगार के मामलों में विकलांग व्यक्तियों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा. सरकार विकलांग व्यक्तियों या गंभीर विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों के संस्थानों की मान्यता निर्धारित करेगी. मुख्य आयुक्त और राज्य आयुक्त विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित शिकायतों के मामलों की जांच करेंगे. सरकार और स्थानीय प्राधिकरण विकलांग व्यक्तियों के पुनर्वास का कार्य करेंगे, गैर-सरकारी संगठनों को सहायता देंगे, विकलांग कर्मचारियों के लिए बीमा योजनाएं बनाएंगे और विकलांग व्यक्तियों के लिए बेरोजगारी भत्ता योजना भी बनाएंगे. छलपूर्ण तरीक़े से विकलांग व्यक्तियों के लाभ को लेने वालों या लेने का प्रयास करने वालों को 2 साल की सज़ा या 20 हज़ार रुपए तक का जुर्माना होगा.

राष्ट्रीय न्यास अधिनियम, 1999 के अन्तर्गत विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों को भी अनेक अधिकार दिए गए हैं. इस अधिनियम के अनुसार केन्द्रीय सरकार का यह दायित्व है कि वह ऑटिज्म, प्रमस्तिष्क अंगघात, मानसिक मंदता और बहु विकलांगता ग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण के लिए, नई दिल्ली में राष्ट्रीय न्यास का गठन करें. केन्द्रीय सरकार द्वारा स्थापित किए गए राष्ट्रीय न्यास को यह सुनिश्चित करना होता है कि इस अधिनियम की धारा 10 में वर्णित उद्देश्यों पूरे हों. राष्ट्रीय न्यास के न्यासी बोर्ड का यह दायित्व है कि वे वसीयत में उल्लिखित किसी भी लाभग्राही के समुचित जीवन स्तर के लिए आवश्यक प्रबंध करें और विकलांगजनों के लाभ हेतु अनुमोदित कार्यक्रम करने के लिए पंजीकृत संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करें. इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार, विकलांग व्यक्तियों को स्थानीय स्तर की समिति द्वारा नियुक्त संरक्षक की देखरेख में, रखे जाने का अधिकार है. नियुक्त किए गए ऐसे संरक्षकों उस व्यक्ति और विकलांग प्रतिपाल्यों की संपत्ति के लिए ज़िम्मेदार और उत्तरदायी होंगे.

यदि विकलांग व्यक्ति का संरक्षक उसके साथ दुप्र्यवहार कर रहा है या उसकी उपेक्षा कर रहा है या उसकी संपत्ति का दुरुपयोग कर रहा है तो विकलांग व्यक्ति को अपने संरक्षक को हटा देने का अधिकार है. जहां न्यासी बोर्ड कार्य नहीं करता या इसने सौंपे गए कार्यों के कार्यनिष्पादन में लगातार चूक की है, वहां विकलांग व्यक्तियों हेतु पंजीकृत संगठन, न्यासी बोर्ड को हटाने/इसका पुनर्गठन करने के लिए केन्द्रीय सरकार से शिकायत कर सकता है. इस अधिनियम के उपबन्ध राष्ट्रीय न्यास पर जवाबदेही, मॉनीटरिग, वित्त, लेखा और लेखा-परीक्षा के मामले में बाध्यकारी होंगे.

भारतीय पुनर्वास अधिनियम, 1992 के अंतर्गत निःशक्त व्यक्तियों को भी अधिकार दिए गए हैं. इस अधिनियम के तहत परिषद द्वारा रखे जा रहे रजिस्टरों में जिन प्रशिक्षित और विशेषज्ञ व्यावसायिकों के नाम दर्ज हैं, उनके द्वारा विकलांगजनों को लाभ पहुंचाना. शिक्षा के उन न्यूनतम मानकों को बनाए रखने की गारंटी जो भारत में विश्वविद्यालयों या संस्थानों द्वारा पुनर्वास अर्हता की मान्यता के लिए अपेक्षित हैं. शिक्षा के उन न्यूनतम मानकों को बनाए रखने की गारंटी जो भारत में विश्वविद्यालयों या संस्थानों द्वारा पुनर्वास अर्हता की मान्यता के लिए अपेक्षित हैं. केन्द्र सरकार के नियंत्रणाधीन और अधिनियम द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर किसी सांविधिक परिषद द्वारा पुनर्वास व्यावसायिकों के व्यवसाय के विनियम की गारंटी.

मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987 के अंतर्गत विकलांगों को अनेक अधिकार दिए गए हैं. मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्तियों के उपचार और देखभाल के लिए सरकार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा स्थापित या अनुरक्षित किए जा रहे किसी मनश्चिकित्सीय अस्पताल या मनश्चिकित्सीय नर्सिग होम या स्वास्थ्य लाभ गृह (सरकारी सार्वजनिक अस्पताल या नर्सिग होम के अलावा) में भर्ती होने, उपचार करवाने या देखभाल करवाने का अधिकार. मानसिक रुप से रुग्ण कैदी और नाबालिग को भी सरकारी मनश्चिकित्सीय अस्पताल या मनश्चिकित्सीय नर्सिग होम्स में इलाज करवाने का अधिकार है. 16 वर्ष से कम आयु के नाबालिगों, व्यवहार में परिवर्तन कर देने वाले अल्कोहल या अन्य व्यवसनों के आदी व्यक्ति और वे व्यक्ति जिन्हें किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, को सरकार द्वारा स्थापित या अनुरक्षित किए जा रहे अलग मनश्चिकित्सीय अस्पतालों या नर्सिग होम में भर्ती होने, उपचार करवाने या देखरेख करवाने का अधिकार है. मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों को सरकार से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को विनियमित, निर्देशित और समन्वित करवाने का अधिकार है.

सरकार का दायित्व इस अधिनियम के अंतर्गत स्थापित केन्द्रीय प्राधिकरणों और राज्य प्राधिकरणों के माध्यम से मनश्चिकित्सीय अस्पतालों और नर्सिग होमों को स्थापित और अनुरक्षित करने के लिए ऐसे विनियमनों और लाइसेंसों को जारी करने का है. इन सरकारी अस्पतालों और नर्सिग होमों में इलाज अन्तःरोगी या बाह्य रोगी के रुप में हो सकता है. मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति ऐसे अस्पतालों या नर्सिग होमों में अपने आप भर्ती होने के लिए अनुरोध कर सकते हैं और नाबालिग अपने संरक्षकों के द्वारा भर्ती होने के लिए अनुरोध कर सकते हैं. मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों के रिश्तेदारों द्वारा भी रुग्ण व्यक्तियों की ओर से भर्ती होने के लिए अनुरोध किया जा सकता है. भर्ती आदेशों को मंज़ूर करने के लिए स्थानीय मजिस्ट्रेट को भी आवेदन किया जा सकता है. पुलिस का दायित्व है कि भटके हुए या उपेक्षित मानसिक रुग्ण व्यक्ति को सुरक्षात्मक हिफाजत में लें, उसके संबंधी को सूचित करें और ऐसे व्यक्ति के भर्ती आदेशों को जारी करवाने हेतु उसे स्थानीय मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित करें.

मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों को इलाज होने के बाद अस्पताल से डिस्चार्ज होने का अधिकार है और अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार वह छुट्टी का हक़दार है. जहां कहीं मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति भूमि सहित अपनी अन्य संपत्तियों की स्वयं देखरेख नहीं कर सकते वहां, जिला न्यायालय आवेदन करने पर ऐसी संपत्तियों के प्रबंधन की रक्षा और सुरक्षा ऐसे मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों के संरक्षकों की नियुक्ति करने के द्वारा या ऐसी संपत्ति के प्रबंधकों की नियुक्ति द्वारा प्रतिपालय न्यायालय को सौंप कर करनी पड़ती है. सरकारी मनश्चिकित्सीय अस्पताल या नर्सिग होम में अंतःरोगी के रूप में भर्ती हुए मानसिक रुप से रुग्ण व्यक्ति के उपचार का ख़र्च, जब तक कि मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति की ओर से उसके संबंधी या अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसे ख़र्च को वहन करने की सहमति न दी गई हो, संबंधित राज्य सरकार द्वारा ख़र्च का वहन किया जाएगा और इस तरह के अनुरक्षण के लिए प्रावधान ज़िला न्यायालय के आदेश द्वारा दिए गए हैं. इस तरह का खर्च मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति की संपत्ति से भी लिया जा सकता है. इलाज करवा रहे मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों के साथ किसी भी प्रकार का असम्मान (चाहे यह शारीरिक हो या मानसिक) या क्रूरता नहीं की जाएगी और न ही मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति का प्रयोग उसके रोग-निदान या उपचार को छोड़कर, अनुसंधान के उद्देश्य से या उसकी सहमति से नहीं किया जाएगा. सरकार से वेतन, पेंशन, ग्रेच्यूटी या अन्य भत्तों के हकदार मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों (जैसे सरकारी कर्मचारी, जो अपने कार्यकाल के दौरान मानसिक रूप से रुग्ण हो जाते हैं), को ऐसे भत्तों की अदायगी से मना नहीं किया जा सकता है. मजिस्ट्रेट से इस आशय का तथ्य प्रमाणित होने के बाद, मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति की देखरेख करने वाला व्यक्ति या मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति के आश्रित ऐसी राशि को प्राप्त करेंगे. यदि मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्ति कोई वकील नहीं कर सकता या कार्यवाहियों के संबंध में उसकी परिस्थितियों की ऐसी अपेक्षा हो तो अधिनियम के अंतर्गत उसे मजिस्ट्रेट या ज़िला न्यायालय के आदेश द्वारा वकील की सेवाओं को लेने का अधिकार है.

विकलांगों के कल्याण के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है. विकलांगों के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति की इस योजना के तहत प्रत्येक वर्ष 500 नई छात्रवृत्ति ऐसे प्रतिभागियों को दी जाती है जो 10वीं के बाद 1 साल से अधिक अवधि वाले व्यावसायिक या तकनीकी पाठ्यक्रमों में अध्ययन करते हैं. हालांकि मानसिक पक्षाघात, मानसिक मंदता, बहु-विकलांगता तथा गंभीर श्रवण हानि से ग्रस्त छात्रों की स्थिति में छात्रवृत्ति 9वीं कक्षा से छात्र-छात्राओं को अध्ययन पूरा करने के लिए दी जाती है. छात्रवृत्ति के लिए प्रार्थनापत्र आमंत्रित करने की विज्ञप्ति प्रमुख राष्ट्रीय/क्षेत्रीय समाचारपत्रों में जून के महीने में दी जाती है तथा इसे मंत्रालय की वेबसाइट पर भी प्रकाशित किया जाता है. राज्य सरकारों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन से इस योजना के व्यापक विज्ञापन के लिए अनुरोध किया जाता है.

ऐसे छात्र जो 40 फ़ीसदी या ज़्यादा विकलांग की श्रेणी में आते हैं और जिनके परिवार की आय 15 हज़ार रुपए से ज़्यादा न हो, वे भी इस योजना के तहत आते हैं. स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर के तकनीकी या व्यावसायिक पाठ्यक्रमों वाले छात्रों को प्रति माह 700 रुपए की राशि सामान्य स्थिति में तथा 1,000 रुपए की राशि छात्रावास में रहने वाले छात्रों को दी जाती है. डिप्लोमा तथा सर्टिफिकेट स्तर के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों वाले छात्रों को प्रति माह 400 रुपए की राशि सामान्य स्थिति में तथा 700 रुपए की राशि छात्रावास में रहने वाले छात्रों को दी जाती है. छात्रवृत्ति के अलावा छात्रों को पाठ्यक्रम की फ़ीस भी दी जाती है जिसकी राशि वार्षिक 10,000 रुपए तक है. इस योजना के तहत अंधे /बहरे स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों को व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को पूरा करने के लिए सॉफ्ट्वेयर के साथ कंप्यूटर के लिए भी आर्थिक सहायता दी जाती है. यह सहायता मानसिक पक्षाघात से ग्रस्त छात्रों को आवश्यक सॉफ्टवेयर की उपलब्धता के लिए भी दी जाती है.

सिर्फ़ योजनायें बनाने से विकलांगों का सशक्तिकरण होने वाला नहीं है. इसके लिए ज़रूरी है कि सरकारी योजनाओं का फ़ायदा ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचे. इसके लिए जागरूकता की ज़रूरत है. आम लोगों को भी चाहिए कि अगर उनके आस-पास ऐसा कोई व्यक्ति या बच्चा है तो उसके परिजनों को सरकारी योजनाओं की जानकारी मुहैया कराएं. यक़ीन मानिए हमारी ज़रा सी मदद से किसी की ज़िन्दगी की दिशा बदल सकती है. उसे जीने की एक नई राह मिल सकती है. मौक़ा मिलने पर विकलांग व्यक्ति भी विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी की इबारत लिख सकते हैं.

Tuesday, November 30, 2010

उत्तर भारत में बढ़ा ज़ीरो टिलेज का क्रेज


फ़िरदौस ख़ान
देश के उत्तरी राज्यों में किसान ज़ीरो टिलेज को अपना रहे हैं. ज़ीरो टिलेज पारंपरिक खेती से अलग कृषि की एक नई विधा है, जिसमें खेत की जुताई के बिना बुआई की जा सकती है. यह इसके फायदों को देखते हुए सरकार द्वारा भी इसमें इस्तेमाल होने वाले यंत्र पर किसानों को 50 फ़ीसदी सब्सिडी दी जा रही है, ताकि इस विधा को बढ़ावा मिल सके. इतना ही नहीं कृषि वैज्ञानिक भी किसानों को इसी के ज़रिये खेती करने की सलाह दे रहे हैं.

इस साल आई बाढ़ के बाद अनेक गांव पानी में डूब गए थे और किसानों के सामने कम समय में रबी की फसल की बुआई का संकट था. ऐसी हालत में कृषि वैज्ञानिकों ने बुआई के लिए जीरो टिलेज को ही उपयुक्त करार दिया था. कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर कैथल ज़िले के गांव काठवाड़ के किसानों ने इस विधा के ज़रिये बुआई की. सीवन गांव के किसान लक्ष्मी आनंद बताते हैं कि वह पिछले कई वर्षों से ज़ीरो टिलेज के माध्यम से ही खेती कर रहे हैं. उन्होंने इसके फायदों को देखते हुए इसे अपनाने का फ़ैसला किया और आज वह अपने इस निर्णय से बेहद खुश हैं. इसी तरह छतर सिंह, रामेश्वर आर्य, रणबीर सिंह श्योकंद, आनंद मुजाल आदि किसान भी पिछले एक दशक से जीरो टिलेज के माध्यम से खेती कर रहे हैं. वे बताते हैं कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने उन्हें इस बारे में जानकारी दी थी. अब वे भी अन्य किसानों को इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं. रोहतक ज़िले का भैंसी एक ऐसा गांव है, जहां की समूची कृषि भूमि पर ज़ीरो टिलेज के ज़रिये ही बुआई की जाती है. इस गांव के किसानों की देखा-देखी आसपास के गांवों के किसानों ने भी इसे अपना लिया है.

गौरतलब है कि ख़रीफ़ यानि धान की कटाई के बाद किसानों को रबी की फसल गेहूं आदि के लिए खेत तैयार करने पड़ते हैं. गेहूं के लिए किसानों को अमूमन 5-7 जुताइयां करनी पड़ती हैं. ज्यादा जुताइयों की वजह से किसान समय पर गेहूं की बिजाई नहीं कर पाते, जिसका सीधा असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ता है. इसके अलावा इसमें लागत भी ज़्यादा आती है. ऐसे में किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता. ज़ीरो टिलेज से किसानों का वक़्त तो बचता ही है, साथ ही लागत भी कम आती है, जिससे किसानों का मुनाफ़ा काफ़ी बढ़ जाता है. ज़ीरो टिलेज के ज़रिये खेत की जुताई और बिजाई दोनों ही काम एक साथ हो जाते हैं. इस विधा से बुआई में प्रति हेक्टेयर किसानों को क़रीब 2000-2500 रुपए की बचत होती है. बीज भी कम लगता है और पैदावार क़रीब 15 फ़ीसदी बढ़ जाती है. खेत की तैयारी में लगने वाले श्रम व सिंचाई के रूप में भी क़रीब 15 फ़ीसदी बचत होती है. इसके अलावा खरपतवार भी ज़्यादा नहीं होता, जिससे खरपतवार नाशकों का ख़र्च भी कम हो जाता है. समय से बुआई होने से पैदावार भी अच्छी होती है. किसान अगेती फ़सल की बुआई भी कर सकते हैं.

ज़ीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल मशीन में लगे कुंड बनाने वाले फरो-ओपरन पतले धातु की मजबूत शीट से बने होते हैं, जो जुते खेत में एक कूड़ बनाते हैं. इसी कूड़ में खाद और बीज एक साथ उसी वक़्त डाल दिया जाता है. यह सीड ड्रिल 9 और 11 फरो-ओपेनर आकार में उपलब्ध हैं. इसमें फरो-ओपेनर इस तरह लगाए गए हैं कि उनके बीच की दूरी को कम या ज़्यादा किया जा सकता है. यह मशीन गेहूं और धान के अलावा दलहन फ़सलों के लिए भी बेहद उपयोगी है. इससे दो घंटे में एक हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की जा सकती है. इस मशीन को 35 हॉर्स पॉवर शक्ति के ट्रैक्टर से चलाया जा सकता है.

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मशीन में फाल की जगह लगे दांते मानक गहराई तक मिट्टी को चीरते हैं. इसके साथ ही मशीन के अलग-अलग चोंगे में रखा खाद और बीज कूंड़ में गिरता जाता है. साथ ही वे कहते हैं कि इससे बिजाई करते वक़्त गहराई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इसके इस्तेमाल से पहले कुछ सावधानियां बरतनी चाहिएं. खेत समतल और साफ़-सुथरा होना चाहिए. खेत समतल और साफ़ होना चाहिए. कंबाइन से कटे धान से बिखरे हुए पुआल को हटा देना चाहिए, वरना यह मशीन में फंसकर खाद-बीज के बराबर से गिरने में बाधक हो सकते हैं. धान की फ़सल को जमीन जड़ के पास से काटना चाहिए, ताकि बाद में डंठल खड़े न रह जाएं. इन डंठलों को हटाने में काफ़ी वक़्त बर्बाद हो जाता है. बुआई के वक़्त मिट्टी में नमी का होना बेहद ज़रूरी है. अगर नमी कम है तो बुआई से कुछ दिन पहले खेत में हल्का पानी छिड़क लें. बुआई के वक़्त दानेदार उर्वरकों का ही इस्तेमाल करें, ताकि वे ठीक से गिर सके. इसके अलावा सीड ड्रिल को चलाते समय ही उठाना या गिराना चाहिए, वरना फरो-ओपनर में मिट्टी भर जाती है, जिससे कार्य प्रभावित होता है.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत ज़ीरो टिलेज सहित कई कृषि यंत्रों पर अनुदान दिया जाता है. ज़ीरो टिलेज मशीन पर 15 हज़ार रुपए, रोटावेटर पर 30 हज़ार रुपए, स्ट्रा रीपर पर 40 हज़ार रुपए, धान रोपाई मशीन पर 50 हज़ार रुपए, लेजर लैंड लेवलर पर 50 हज़ार रुपए, स्ट्रा बालर पर एक लाख रुपए, मल्टी क्राप प्लांटर पर 15 हज़ार रुपए, बिजाई मशीन पर 15 हज़ार रुपए, पावर टीलर, पावर विडर और रीपर बाइंडर पर 40 हज़ार रुपए का अनुदान दिया जाता है.

कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिए किसान को प्रार्थना-पत्र अपने इलाके के संबंधित कृषि विकास अधिकारी के पास जमा करना होता है. पत्र के साथ जिस यंत्र की अनुदान राशि 15 हज़ार तक है उस पर 2500 रुपए का और जिस पर अनुदान राशि 15 हज़ार रुपए है उसके लिए पांच हज़ार रुपए का ड्राफ्ट कृषि विभाग द्वारा अधिकृत फार्म के नाम लगाना होगा. योग्यता प्रमाण-पत्र एक हफ़्ते के भीतर दिया जाएगा. इसके बाद किसान संबंधित फर्म से कृषि यंत्र खरीदेगा और दस दिन के अंदर यंत्र का बिल सहायक कृषि अभियंता के कार्यालय में जमा कराना होगा. कृषि विभाग की टीम यंत्र का निरीक्षण करेगी. फिर उसके बाद ही किसान के नाम अनुदान राशि का चेक जारी किया जाएगा. इस मशीन की कीमत 30 हज़ार रुपए है और सरकार इस पर 50 फ़ीसदी राशि अनुदान के तौर पर देती है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से अगस्त 2007 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन नामक योजना शुरू की थी. इस योजना का मक़सद गेहूं, चावल और दलहन की उत्पादकता को बढ़ाना है, ताकि देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति को सुनिश्चित किया जा सके. साथ ही समुन्नत प्रौद्योगिकी के प्रसार एवं कृषि प्रबंधन पहल के माध्यम से इन फ़सलों के उत्पादन में व्याप्त अंतर को दूर करना है.

कृषि मंत्रालय के कृषि व सहकारिता विभाग के मुताबिक़ इस योजना के तीन घटक हैं-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-चावल जिसके तहत देश के 14 राज्यों के 136 ज़िलों को शामिल किए जाने का प्रावधान है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कनार्टक, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-गेहूं, जिसके तहत देश के नौ राज्यों के 141 ज़िलों को शामिल करने का प्रावधान है. इन राज्यों में बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इसी तरह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- दलहन, जिसके तहत 14 राज्यों के 171 ज़िले शामिल करने का प्रावधान है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इस योजना के तहत इन ज़िलों के 20 मिलियन हेक्टेयर धान के क्षेत्र, 13 मिलियन हेक्टेयर गेहूं के क्षेत्र और 4.5 मिलियन हेक्टेयर दलहन के क्षेत्र शामिल किए गए हैं, जो धान व गेहूं के कुल बुआई क्षेत्र का 50 फ़ीसदी है. दलहन के लिए 20 फ़ीसदी और क्षेत्र का सृजन किया जाएगा.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि (2007-08 से 2011-12) के लिए 4882.48 करोड़ रुपए बजट रखा गया है. इसके लिए पात्र किसान उस कृषि भूमि पर शुरू की गई गतिविधियों पर आने वाली कुल लागत का 50 फ़ीसदी ख़र्च वहन करेंगे, बाकी ख़र्च सरकार देगी. इसके तहत पात्र किसान बैंक से क़र्ज़ भी ले सकते हैं. ऐसी स्थिति में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी की राशि बैंकों को जारी की जाएगी. इस योजना के क्रिन्यानवयन के परिणामस्वरूप् वर्ष 2011-12 तक चावल के उत्पादन में 10 मिलियन टन, गेहूं के उत्पादन में 8 मिलियन टन व दलहन के उत्पादन में 2 मिलियन टन की बढ़ोतरी होगी. साथ ही यह अतिरिक्त रोज़गार के अवसर भी पैदा करेगा.

देश में ज़ीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल मशीन की बढ़ती मांग को देखते हुए चीन की कंपनियों ने भी इनकी बिक्री शुरू कर दी है. ये उपकरण नेपाल के समीपवर्ती इलाकों में आसानी से मिल जाते हैं. इनकी क़ीमत भारतीय कृषि यंत्रों से कम होने की वजह से किसान इन्हें खरीद रहे हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. ज़ीरो टिलेज से संबंधित अधिक जानकारी के लिए किसान अपने इलाक़े के कृषि अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं.


Friday, November 26, 2010

'वो' मासूम लड़कियों का खून मांगती है...

आप सबसे मुआफ़ी चाहते हैं कि इस पोस्ट को पढ़कर आपको कुछ तकलीफ़ ज़रूर होगी... यक़ीन मानिए पोस्ट लिखते हुए हमें भी बहुत तकलीफ़ हो रही है...मानो हमारी रूह भी लहुलुहान हो गई हो... किसी अपने को खोने से बड़ा कोई और दुख नहीं होता...जिसने भी किसी अपने को खोया है, वो इसे शिद्दत से महसूस कर सकता है...

कुछ वक़्त पहले दिल्ली में बचपन की एक सहेली से हमारी मुलाक़ात हुई...वो हमारे दिल के बहुत क़रीब थी...लड़की उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर की थी... हाल ही में उत्तराखंड के एक लड़के से उसका विवाह हुआ था... एक दिन ख़बर मिली कि उस लड़की की मौत हो गई है... वजह..., जिस लड़के के साथ उस लड़की की शादी हुई थी, उस लड़के के अपनी मां की उम्र की एक "आंटी" के साथ नाजायज़ ताल्लुक़ात थे... 'आंटी' के कहने पर लड़के ने अपनी पत्नी को ज़हर देकर मार डाला... 'आंटी' के बच्चे भी उस लड़के की उम्र के ही हैं... अपनी एक पूरी ज़िन्दगी जी चुकी 'महिला' ने अपनी हवस पूरी करने के लिए एक लड़की की सुहाग सेज को उसकी मौत की शय्या बना डाला... जिस लड़की के हाथों की मेहंदी अभी सूखी भी नहीं थी...वो क़ब्र की गहराइयों में दफ़न हो गई... जाने कितने अरमानों को अपने साथ लिए... उस लड़के के साथ अपनी ज़िन्दगी को तसव्वुर करके उसने कितने इंद्रधनुषी सपने बुने होंगे... जो अब कभी पूरे नहीं होंगे...

बेटी के सदमे से लड़की की मां का का बुरा हाल है... वो किसी को पहचान तक नहीं पा रही हैं... लड़की का पिता अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा है... लड़की की छोटी बहन का भी रो-रोकर बुरा हाल है...


हवस...एक ऐसी आग है, जो इंसान को जानवर बना देती है. हवस में अंधे होकर लोग सामाजिक मान-मर्यादा  तक को भूल जाते हैं. वे मां-बेटे और और भाई-बहन जैसे पाक रिश्तों को भी कलंकित कर देते हैं. ऐसे संबंधों में उनको तसल्ली रहती है कि कोई उन पर शक नहीं करेगा. दरअसल 'आधुनिकता' के नाम पर भी नाजायज़ रिश्तों का चलन बढ़ा है. ऐसे मामलों में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. कुछ साल पहले एक न्यूज़ चैनल ने एक स्टिंग ऑपरेशन दिखाया था, जिसमें महिलाएं अपनी बेटों की उम्र के लड़कों से 'सौदा' करती हैं. पुरुष वेश्या का किरदार निभा रहे एक रिपोर्टर ने जब महिला से उसके परिवार के बारे में पूछा तो महिला बताती है कि उसका पति है, जवान बच्चे हैं, जो जॉब करते हैं.रिपोर्टर ने जब महिला से पूछा कि पति के रहते उसे लड़का क्यों चाहिए? तो महिला का जवाब था-'टेस्ट' बदलने के लिए. यह है हमारे समाज का बदलता घिनौना (या यूं कहें कि तथाकथित आधुनिक चेहरा.  

पुलिस थानों में हर रोज़ ऐसे जाने कितने मामले आते हैं...जिन्हें अकसर दहेज प्रताड़ना का मामला कहकर पेश किया जाता है... कुछ साल पहले हरियाणा में एक महिला ने पहले अपने 'साथियों' के साथ मिलकर अपने पति की हत्या की...फिर बाद में अपने एक 'साथी' की पत्नी को जलाकर मार डाला...जब महिला की जवान बेटी ने मां का विरोध करना शुरू किया तो उसे भी ज़हर पिलाकर मौत की नींद सुला दिया... कुछ वक़्त पहले एक एक युवक ने अपनी मां की उम्र की महिला से अवैध संबंध के चलते अपनी पत्नी और दो मासूम बच्चों को जलाकर मौत की नींद सुला दिया...ऐसे कितने ही मामले मिल जाएंगे...कुछ लोगों की हवस कितनी ही ख़ुशहाल ज़िन्दगियों को निग़ल जाती है...

क़ानून किसी को उसके जुर्म की सज़ा तो दे सकता है, लेकिन किसी का चरित्र नहीं बदल सकता...यह तो अपने-अपने संस्कारों की बात होती है...इंसान के जैसे संस्कार होंगे, वो भी वैसा ही बनेगा...अच्छे संस्कार एक मां ही देती है... एक अच्छी बेटी ही एक अच्छी पत्नी साबित होती है...और एक अच्छी पत्नी ही एक अच्छी मां बनती है...लेकिन जो महिला ख़ुद ही किसी मासूम के क़त्ल की वजह हो, उसने अपने बच्चों को क्या संस्कार दिए होंगे कहने की ज़रूरत नहीं.
 
वो कहानी तो सुनी होगी, जिसमें राजकुमारी अपने राज्य में मेहमान के तौर पर आए राजकुमार के से साथ भाज जाना चाहती है...राजकुमार घोड़ा ख़रीदने जाता है...घोड़े वाले उसे घोड़े दिखाते हुए तेज़ दौड़ने वाली घोड़ी की क़ीमत बहुत कम बताता है. राजकुमार जब इसकी वजह पूछता है तो घोड़े वाला कहता है कि यह पानी देखकर रुक जाती है...इसी तरह इसकी मां और नानी भी पानी देखकर रुक जाया करती थी...यह सुनकर राजकुमार सोचता है कि आज राजकुमारी अपने पिता की गरिमा को धूल में मिलाकर मेरे साथ भाग जाना चाहती है...कल इसकी बेटी भी ऐसा ही करेगी...यह ख़्याल आते ही राजकुमार वापस अपने देश लौट जाता है...

उस महिला के शौहर और बच्चों पर क्या गुज़रती होगी...? तसव्वुर करके ही रूह कांप जाती है... क़ाबिले-गौर यह भी है कि यह सब "प्रेम-प्यार" के नाम पर होता है. जबकि ऐसे लोग प्रेम का मतलब तक नहीं जानते... 'वासना' को 'प्रेम' के आवरण से छुपाया नहीं जा सकता...प्यार तो राह दिखाता है, भटकाता नहीं है...मीडिया के लोग बख़ूबी जानते हैं कि हर रोज़ कितने ऐसे मामले आते हैं. यह मामले भी उस वक़्त सामने आते हैं, जब किसी किसी का क़त्ल हो जाता है... 

नाजायज़ रिश्तों को लेकर भारतीय समाज में पुरुषों पर तो सब अंगुलियां उठा देते हैं...मगर हवस की भूखी महिलाओं का क्या...? जिस देश में 'सीता-सावित्री' जैसी देवियां हुई हैं, उस देश में ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं जो अपने बेटे की उम्र के लड़कों के साथ अवैध संबंध रखती हैं...बेशर्मी की हद तो यह कि उन लड़कों से कहती हैं कि उनके लिए 'करवा चौथ' का व्रत रखा है...कभी सावित्री ने यह नहीं सोचा होगा कि इस 'पवित्र व्रत' के नाम पर इतना 'अधर्म' होगा...? 

कहते हैं- वेश्याएं भी मजबूरी में अपना जिस्म बेचती हैं...लेकिन ऐसी महिलाओं को क्या कहेंगे, जो अपनी हवस में अंधी होकर अपने बेटे की उम्र के लड़कों के साथ अवैध संबंध बनाती हैं...?
हवस की भूखी जो महिला अपने बेटे की उम्र के लड़के के साथ नाजायज़ रिश्ता बनाती है, अगर वो अपने सगे बेटे से भी ऐसा रिश्ता बना ले तो हैरानी नहीं... ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जब महिलाओं ने अपने ही सगे बेटों के साथ यौन संबंध बनाकर इंसानियत को शर्मसार किया है...  

पिछले साल जुलाई में अमेरिका के मिशिगन शहर में एक 36 वर्षीय महिला ने मां-बेटे के रिश्ते की सारी मर्यादा तोड़ते हुए अपने ही 14 साल बेटे के साथ यौन संबंध स्थापित किया. ये वो महिला है, जिसने अपने इसी बच्चे को दूसरों की झोली में डालने के प्रयास किए थेअमेरिका की एक अदालत में जब एमी एल स्वॉर्ड नाम की इस महिला को पेश किया गया तो उसने अपना जुर्म स्वीकार किया. उसके वकील ने कोर्ट में कहा, कि जब दो साल पहले जब उसका बेटा 14 साल का था, वे अपने बेटे के संपर्क में आई तो उसे मां-बेटे के बजाय गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड जैसा रिश्ता महसूस हुआ. आवेश में आकर उसने यौन संबंध स्थापित किए. यह घटना ग्रांड रैपिड होटल की है. उसके बाद कई बार घर पर भी उसने संबंध स्थापित किए. अदालत ने सभी दलीलें सुनते हुए इसे यौन उत्पीड़न का मामला क़रार  देते हुए एमी को 30 साल की सज़ा सुनाई है. एमी शादीशुदा है और पांच बच्चों की मां भी हैइस बात का पता तब चला जब काउंसलर ने उसके बेटे से पूछताछ की.
 
पिछले साल अक्टूबर में सिडनी की एक अदालत में भी एक ऐसा ही शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया, जिसमें एक दंपत्ति पर साल 2009 में जनवरी से नवंबर के बीच में अपने बेटे यौन शोषण करने के आरोप लगे. दंपति पर बेटे से यौन संबंध का वीडियो बनाकर ऑनलाइन करने का भी आरोप लगा. अदालत में सुनवाई के दौरान  47 वर्षीय आस्ट्रेलियाई महिला और 57 वर्षीय उसके पति ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपने बेटे के साथ यौन संबंध स्थापित किए हैं

नाजायज़ रिश्ते कई ज़िन्दगियों की खुशियों को लील जाते हैं.  सवाल यह भी है कि जो महिला अपने पति और बच्चों की हुई तो उस लड़के कि क्या होगी.? जिस महिला को अपनी और अपने परिवार की मान-मर्यादा का ख़्याल नहीं तो वह किसी और की इज्ज़त का क्या ख़्याल करेगी

नाजायज़ रिश्ते समाज के लिए नासूर हैं. जब तक ऐसे संबंध रहेंगे मासूमों की ज़िंदगियां, उनकी खुशियां तबाह होती रहेंगी. नाजायज़ रिश्तों की शुरुआत भले ही आकर्षण से हो, लेकिन इनका अंजाम बहुत ही घृणित होता है.


आओ दुआ करें कि ईश्वर हमारी बहन-बेटियों कोउनकी ज़िन्दगी को हवस के दरिन्दों (महिला हो या पुरुषसे बचाकर रखे... साथ ही यह भी दुआ करना कि उस दरिन्दे को उसके किए की सज़ा मिले...और हमारी सहेली की रूह को सुकून हासिल हो... आमीन