Sunday, September 20, 2015

रोज़गार


कभी किसी का रोज़गार नहीं छीनना चाहिए, क्योंकि इससे उसका पूरा ख़ानदान मुतासिर होता है... ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके घरों में चूल्हा तभी जलता है, जब वे मेहनत-मज़दूरी करके कुछ पैसे कमाते हैं...

अफ़सोस, मीडिया में ये बात बहुत आम है, जब कोई संपादक या ऐसे ही किसी अन्य पद पर आता है, तो वह वहां काम कर रहे लोगों को निकालकर अपने लोग रखने लगता है... इससे बहुत से लोग बेरोज़गार हो जाते हैं... इंसान अगर किसी को रोज़गार नहीं दे सकता, तो किसी से उसकी रोज़ी भी नहीं छीननी चाहिए...

Saturday, September 19, 2015

तुम हो फ़िरऔन तो मूसा भी ज़रूर आएगा


चन्द ज़ालिम हाकिम और दहशतगर्द इस दुनिया को जहन्नुम बनाने पर आमादा हैं... बेशक, इस वक़्त ज़ालिम ताक़तवर हैं... लेकिन उन्हें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि फ़िरऔन भी ताक़तवर था... उसका क्या हश्र हुआ...
ख़ून-ए-मज़लूम ज़्यादा नहीं बहने वाला
ज़ुल्म का दौर बहुत दिन नहीं रहने वाला
इन अंधेरों का जिगर चीर के नूर आएगा
तुम हो फ़िरऔन तो मूसा भी ज़रूर आएगा... 

Wednesday, September 16, 2015

ईद-उल-अज़हा


ईद-उल-अज़हा का महीना शुरू हो चुका है... जो लोग साहिबे-हैसियत हैं, वो बक़रीद पर क़्रुर्बानी करते हैं...ऐसे भी घर हैं, जहां तीन दिन तक कई-कई क़ुर्बानियां होती हैं... इन घरों में गोश्त भी बहुत होता है... एक-दूसरे के घरों में क़ुर्बानी का गोश्त भेजा जाता है... जब गोश्त ज़्यादा हो जाता है, तो लोग गोश्त लेने से मना करने लगते हैं...
ऐसे बहुत से घर होते हैं, जहां क़ुर्बानी नहीं होती... ऐसे भी बहुत से घर होते हैं, जो त्यौहार के दिन भी गोश्त की एक बोटी तक से महरूम रहते हैं... ’राहे-हक़’ से जुड़े साथी गोश्त इकट्ठा करके ऐसे लोगों तक पहुंचाते रहे हैं, जो ग़रीबी की वजह से गोश्त से महरूम रहते हैं...
आपसे ग़ुज़ारिश है कि आप भी क़ुर्बानी के गोश्त को उन लोगों तक ज़रूर पहुंचाएं, जिनके घरों में त्यौहार पर भी गोश्त नहीं आता... आपकी ये कोशिश किसी के त्यौहार को ख़ुशनुमा बना सकती है...
-फ़िरदौस ख़ान

Friday, September 4, 2015

इंसानियत को शर्मसार करते दहशतगर्द


फ़िरदौस ख़ान
दहशतगर्दों ने इंसानियत को शर्मसार करके रख दिया है. दुनियाभर के कई देश दहशतगर्दी से जूझ रहे हैं और कई अन्य देशों पर इसका सीधा असर पड़ रहा है. दहशतगर्दों को किसी की जान लेते हुए ज़रा भी रहम नहीं आता. अपनी ख़ूनी प्यास बुझाने के लिए ये दहशतगर्द कितने ही घरों के चिराग़ों को बुझा डालते हैं, कितनी ही मांओं की गोद सूनी कर देते हैं और बच्चों को यतीम बना देते हैं. तीन साल का एलन कुर्दी भी दहशतगर्दों की वजह से ही मारा गया. वह अपने पांच साल के भाई गालेब और मां रिहाना के साथ समुद्र में डूब गया. पूरा परिवार कुछ अन्य लोगों के साथ जंग से जूझ रहे सीरिया से निकलकर यूरोप जा रहा था. किश्ती समुद्र में पलट गई. लहरों ने इसमें से एक पांच साल के बच्चे को तुर्की के समुद्र टक पर फेंक दिया. वहां मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने बच्चे को उठाया और अस्पताल ले गए, लेकिन चिकित्सीय जांच में पता चला कि उसकी मौत हो चुकी है.

एलन के पिता अब्दुल्ला ने कहा कि उनके दोनों बच्चे बहुत ख़ूबसूरत थे. वे उनकी गोद में सिमटे थे कि किश्ती डूब गई. उन्होंने बच्चों को बचाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे हाथों से फिसलकर आंखों के सामने समुद्र में समा गए. वे चाहते हैं कि पूरी दुनिया की नज़र इस हादसे पर जाए, ताकि दोबारा ऐसा किसी और के साथ न हो. अब्दुल्ला का कहना है कि उन्होंने अपने परिवार को ग्रीस ले जाने के लिए तस्करों को दो बार पैसे दिए, लेकिन उनकी हर कोशिश नाकाम रही. इसके बाद उन्होंने एक किश्ती पर सवार होकर पहुंचने की कोशिश की. किश्ती के पानी में जाने के चार मिनट बाद ही कैप्टन ने बताया कि वह डूबने वाली है. तेज़ लहरों की वजह से किश्ती पलट गई. वे अंधेरे में चीख़ रहे थे. उनकी आवाज़ उनकी पत्नी और बच्चे नहीं सुन सके. अब्दुल्ला अपने बेटे की लाश के साथ शुक्रवार को सीरिया के शहर कोबान पहुंचे. आईएसआईएस और कुर्दिश विद्रोहियों के बीच जंग की वजह से पूरा शहर तबाह हो चुका है. तीन महीने पहले ही अब्दुल के परिवार के 11 लोगों को आईएसआईएस के दहशतगर्दों ने क़त्ल कर दिया था. इसी शहर के कब्रिस्तान में एलन, उसकी मां और भाई को दफ़नाया गया.

ग़ौरतलब है कि तस्वीर के सामने आते ही दुनियाभर में एलन की तस्वीर छापने और न छापने पर बहस छिड़ गई. कई अख़बारों में छपा भी. ला-रिपब्लिका (इटली) ने शीर्षक दिया- ‘दुनिया को ख़ामोश करती एक उदास तस्वीर.’ इंग्लैंड के द सन ने लिखा ‘ये ज़िन्दगी और मौत है।’ डेली मिरर ने ‘असहनीय हक़ीक़त’ बताया. मेट्रो ने लिखा- ‘यूरोप बचा नहीं सका.’ द टाइम्स ने कहा- ‘बंटे हुए यूरोप का चेहरा.’ डेली मेल ने लिखा- ‘मानवीय आपदा का मासूम शिकार.’ अवाम के साथ-साथ सरकारों के बीच भी इस तस्वीर को लेकर बहस छिड़ी हुई है. जर्मनी ने कहा है कि यूरोप के सभी देश शरणार्थियों को जगह देने से इंकार करने लगेंगे, तो इससे ‘आइडिया ऑफ़ यूरोप’ ही ख़त्म हो जाएगा. ये बच्चा बच सकता था, अगर यूरोप के देश इन लोगों को शरण देने से इंकार नहीं करते. तुर्की के प्रेसिडेंट रीसेप अर्डान ने जी20 समिट में यहां तक कह दिया कि इंसानियत को इस मासूम की मौत की ज़िम्मेदारी लेनी होगी. जर्मनी और फ्रांस ने ऐलान किया कि शरणार्थियों के लिए यूरोपीय देशों का कोटा तय होगा. मौजूदा नियम में भी ढील दी जाएगी, ताकि लोगों का आना आसान हो सके.  यूएन रिपोर्ट के मुताबिक़ एक साल में 1.60 लाख लोग समुद्र के रास्ते ग्रीस आ चुके हैं. जनवरी से अब तक तीन हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है.

एलन की तस्वीर लेने वाले फ़ोटोग्राफ़र निलुफेर देमीर ने कहा है कि उन्होंने बच्चे को तट पर देखा. उन्हें लगा कि इस बच्चे में अब ज़िन्दगी नहीं बची है, तो उन्होंने तस्वीर लेने की सोची, ताकि दुनिया को बताया जा सके कि हालात कितने ख़राब हो चुके हैं. वाक़ई इस तस्वीर ने दहशतगर्दी पर एक बार फिर से सबका ध्यान खींचा है. अब देखना यह है कि इस मुद्दे पर क्या कोई सार्थक पहल होती है या फिर हमेशा की तरह ही बयानबाज़ी के बाद इसे फिर से ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा. इस मुद्दे पर अरब देशों की ख़ामोशी बेहद शर्मनाक है.

हालांकि यूरोपियन यूनियन ने आगामी 16 सितंबर को होने वाली बैठक में इस संकट से निकलने के रास्ते पर विचार करने का फ़ैसला किया है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा है कि वे हज़ारों शरणार्थियों को अपनाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने शरण दिए जाने को लेकर देश के क़ानून की समीक्षा के आदेश दे दिए हैं. हालांकि इस मुद्दे पर सभी देशों की एक राय नहीं बन पाई है. कोटा सिस्टम रिजेक्ट किया जा चुका है. यूरोपीय देशों में आपस में ही मतभेद सामने आ रहे हैं. इसकी वजह यह है कि कुछ देश इस संकट से ज़्यादा प्रभावित हैं. उनके यहां बहुत ज़्यादा शरणार्थी पहुंच रहे हैं, इसलिए इन पर शरणार्थियों के साथ सख़्ती करने का दबाव बन रहा है. हंगरी ने सर्बिया के बॉर्डर पर 175 किलोमीटर लंबी बाड़ लगाई है. वहीं, ब्रिटेन ने जनवरी 2014 के बाद से महज़ 216 सीरियाई शरणार्थियों को अपनाया है. तुर्की ने 20 लाख लोगों को शरण दी है. वहीं, पूरे यूरोप ने बीते चार साल में महज़ दो लाख शरणार्थियों को अपनाया है. तुर्की के प्रेसिडेंट ने तो यहां तक कह दिया कि 28 देश मिलकर यह विचार-विमर्श कर रहे हैं कि 28 हज़ार शरणार्थियों को आपस में कैसे बांटा जाए. इस साल जुलाई तक चार लाख 38 हज़ार लोग यूरोपीय देशों में शरण मांग चुके हैं. बीते साल ही पांच लाख 71 हज़ार लोग यूरोप में शरण ले चुके हैं. शरणार्थियों की यह बढ़ती तादाद यूरोपीय देशों ख़ासकर तौर पर शेंगेन देशों के लिए संकट का सबब बन गई है. शेंगेन इलाक़े के तहत कुल 26 यूरापीय देश आते हैं, जिन्होंने कॉमन बॉर्डर पर पासपोर्ट और दूसरे क़िस्म के बॉर्डर कंट्रोल हटा लिए हैं. कॉमन वीज़ा पॉलिसी के तहत यह पूरा इलाक़ा एक देश की तरह काम करता है. यहां लोगों की आवाजाही पर पाबंदी नहीं है. यूरोपीय देशों में शरण लेने की कोशिश करने वाले लोग ज़्यादातर भूमध्य सागर के ज़रिये वहां पहुंचने की कोशिश करते हैं. जिन देशों में ये जाते हैं, वहां इनके लिए खाना, छत और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने में सरकार को परेशानी होती हैं.

ग़ौरतलब है कि ये शरणार्थी पश्चिमी एशिया और नॉर्थ अफ्रीका के जंग से प्रभावित इलाक़ों और ग़रीब यूरोपीय देशों से हैं. ज़्यादातर लोग सीरिया और लीबिया से पहुंच रहे हैं, जहां पिछले चार साल से गृहयुद्ध छिड़ा हुआ है. यहां आतंकवादी संगठन आईएसआईएस ने लोगों का जीना दुश्वार कर रखा है. इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ और नाइजीरिया से भी लोग ग़रीबी और जंग से परेशान होकर यूरोप जाना चाहते हैं. यूरोप से आने वाले शरणार्थियों में कोसोवो और सर्बिया जैसे देशों के लोग शामिल हैं. इस साल ग्रीस के बॉर्डर पर सबसे ज़्यादा लोग शरण लेने पहुंचे. इनमें से ज़्यादातर सीरिया के नागरिक थे, जो तुर्की तक किश्तियों में सवार होकर पहुंचे. लोग छोटी-छोटी किश्तियों में बैठकर ये ट्यूनीशिया या लीबिया से इटली पहुंचने की कोशिश करते हैं. क्षमता से ज़्यादा लोग इन किश्तियों पर सवार होने की वजह से कई बार बड़े हादसे होते रहते हैं. कुछ किश्तियां लीबिया तट तक पहुंचने से पहले ही डूब गईं. कुछ लालची लोग इन लोगों की जान की परवाह न करते हुए इन्हें रबर की बनी किश्तियों में यूरोप भेजने की कोशिश करते हैं और बदले में लाखों रुपये कमाते हैं. ये किश्तियां पानी पर तैरते ताबूत बनकर रह गई  हैं. अब तक 3200 से ज़्यादा लोगों इन किश्तियों के डूबने की वजह से मारे जा चुके हैं और ये सिलसिला बदस्तूर जारी है.

दरअसल, दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ माहौल बनाना होगा. अगर अब भी इसे उतनी संजीदगी से नहीं लिया गया, जितना लिया जाना चाहिए, तो एक दिन ये पूरी दुनिया को तबाह कर देगा. जब तक दुनिया के सभी देश मिलकर ईमानदारी से दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ सख़्ती नहीं बरतेंगे, तब तक न जाने कितने मासूम इसी तरह अपनी जान गंवाते रहेंगे.

Tuesday, September 1, 2015

भूमि अधिग्रहण अधिनियम पर कांग्रेस की जीत


फ़िरदौस ख़ान
भूमि अधिग्रहण अधिनियम पर आख़िरकार कांग्रेस ने बड़ी सियासी लड़ाई जीत ही ली. इस मुद्दे पर राहुल गांधी और कांग्रेस के 44 सांसदों ने भाजपा के 282 सांसदों को झुकाकर ही दम लिया. विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश कल ख़त्म हो गया और इसकी जगह पर अब 2013 का संबंधित क़ानून फिर से प्रभावी हो गया है. केंद्र सरकार ने 2013 के भूमि अधिग्रहण क़ानून में कई बदलाव करते हुए पिछले साल दिसम्बर में एक अध्यादेश जारी किया था, जिसकी मियाद दो बार बढ़ाई गई थी. सरकार संसद के बजट सत्र के पहले चरण के दौरान भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक लाई थी. इसे लोकसभा में पारित कराया गया था, लेकिन कांग्रेस के सख़्त विरोध के मद्देनज़र इसे राज्यसभा में नहीं ला पाई. बजट सत्र के दूसरे चरण में इस विधेयक को संसद की संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था, जिसे मानसून सत्र की शुरुआत में अपनी रिपोर्ट देनी थी. लेकिन समिति तयशुदा वक़्त पर अपनी रिपोर्ट पेश नहीं कर पाई. उसने इसके लिए शीतकालीन सत्र की शुरुआत तक का वक़्त ले लिया.

पिछली बार जारी अध्यादेश की अवधि 31 अगस्त को ख़त्म हो गई है. प्रधानमंत्री ने रविवार को मन की बात में भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि इसके विरोध के मद्देनज़र सरकार ने यह फ़ैसला लिया है. उन्होंने कहा कि सरकार 13 अन्य क़ानूनों के तहत अधिग्रहित की जाने वाली ज़मीन का मुआवज़ा भी भूमि अधिग्रहण क़ानून के अनुरूप देगी. अब केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग, पुरातत्व अधिनियम और रेलवे अधिनियम जैसे 13 केंद्रीय अधिनियमों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम के दायरे में लाने का आदेश जारी किया है.  इनमें प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व धरोहर अधिनियम-1958, परमाणु ऊर्जा अधिनियम-1962, दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन अधिनियम-1948, भारतीय ट्रामवे अधिनियम-1886, खदान भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1885, मेटो रेलवे (निर्माण कार्य) अधिनियम-1978, राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम-1956, पेट्रोलियम एवं खनिज पाइप लाइन भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1962, विस्थापित पुनर्वास (भूमि अधिग्रहण) अधिनियम-1948, कोयला धारण क्षेत्र एवं विकास अधिनियम-1957, बिजली अधिनियम-2003 और रेलवे अधिनियम-1989 शामिल हैं. इन अधिनियमों के तहत ज़मीन अधिग्रहण होने पर भूमि अधिग्रहण क़ानून के प्रावधान लागू होंगे. केंद्र सरकार के अधिकारियों के मुताबिक़ इससे उन लोगों को फ़ायदा होगा, जिनकी ज़मीन इन 13 क़ानूनों के तहत अधिग्रहित की जाएगी. इस आदेश से केंद्रीय क़ानूनों के तहत भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में उचित मुआवज़ा, पुनर्वास और पुन:स्थापन संबंधित प्रावधान लागू होंगे. संप्रग सरकार द्वारा पास किए गए भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 में शर्त थी कि इन 13 केंद्रीय अधिनियमों पर भी एक साल के भीतर इस क़ानून के प्रावधान लागू हो जाएंगे. भाजपा सांसद एसएस अहूलवालिया की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति राजग सरकार द्वारा लाए गए संशोधित भूमि अधिग्रहण विधेयक की जांच कर रही थी, इसलिए सरकार के इस ताज़ा आदेश में उन उपधाराओं को नहीं छुआ गया है, जिसे संशोधित कर संप्रग सरकार द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण विधेयक को बदल दिया गया था.

भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक का कांग्रेस समेत तक़रीबन सभी विपक्षी दल और सरकार में शामिल कुछ दल भी लगातार विरोध करते रहे हैं. विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार ने अध्यादेश के ज़रिये यूपीए सरकार द्वारा बनाए गए भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 में जो संशोधन किए हैं, वे पूरी तरह से किसानों के हितों के ख़िलाफ़ हैं. क़ाबिले-ग़ौर है कि कांग्रेस ने राहुल गांधी की अगुवाई में केंद्र सरकार के  नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के ख़िलाफ़ एक मुहिम शुरू की थी, जिसके तहत राहुल गांधी ने न सिर्फ़ पद यात्राएं कीं, बल्कि रैलियों को भी संबोधित किया. देशभर में कांग्रेस ने नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के ख़िलाफ़ जमकर प्रदर्शन किए. कांग्रेस की इस मुहिम को किसानों का ज़बरदस्त समर्थन मिला. राहुल गांधी ने कहा था कि संसद में भले ही हमारी तादाद कम है, लेकिन देश के करोड़ों किसानों की ताक़त हमारे साथ है और हम किसानों की एक इंच ज़मीन भी छिनने नहीं देंगे. उन्होंने कहा था कि सरकार के पास ज़मीन है, प्रदेश सरकारों के पास ज़मीन है, सेज़ के पास 40 फ़ीसद ज़मीन ख़ाली पड़ी है, लेकिन सरकार उद्योगपतियों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए किसानों की ज़मीन छीन लेना चाहती है, लेकिन कांग्रेस ऐसा होने नहीं देगी. किसान अकेले नहीं हैं, कांग्रेस किसानों के साथ खड़ी है. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को किसानों की ताक़त दिखाने का फ़ैसला कर लिया है.

बहरहाल, कांग्रेस ख़ुश है कि उसने भूमि अधिग्रहण अधिनियम पर केंद्र सरकार को अपने क़दम वापस खींचने पर मजबूर कर दिया. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पटना में आयोजित रैली में कह दिया कि संसद में विपक्ष की लड़ाई रंग लाई है. कांग्रेस ने इसे यूपीए सरकार की नीतियों और किसानों की जीत क़रार दिया है.