Sunday, March 18, 2018

राहुल गांधी ने किया सबकी रक्षा का वादा

फ़िरदौस ख़ान
किसी भी देश की तरक़्क़ी के लिए, किसी भी समाज की ख़ुशहाली के लिए चैन-अमन सबसे ज़रूरी है. पिछले चार बरसों में देश में जो नफ़रत का माहौल बना है, कहीं मज़हबी झगड़े, तो कहीं जातिगत ख़ून-ख़राबा. इस ख़ौफ़ के माहौल में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अवाम को यक़ीन दिलाया है कि वे उसकी रक्षा करेंगे. उन्होंने उन लोगों की रक्षा करने की भी बात कही, जो हमेशा उनके ख़िलाफ़ रहते हैं, उनके ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करते हैं. सच, ऐसा राहुल गांधी ही कर सकते हैं. राहुल गांधी ही वो शख़्सियत हैं, जो अपने दुश्मनों, अपने विरोधियों के बारे में भी हमेशा अच्छा ही सोचते हैं, अच्छा ही करते हैं.

देश की राजधानी दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में आयोजित कांग्रेस के महाधिवेशन को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देश में डर का माहौल बना दिया है. प्रेस के लोग भी डरते हैं. जनता इंसाफ़ के लिए अदालत में जाती है. पहली बार ऐसा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट के चार जज इंसाफ़ के लिए जनता की तरफ़ दौड़े. ये आरएसएस का काम है. कांग्रेस पार्टी और आरएसएस में बहुत फ़र्क़ है. हम हिन्दुस्तान के इंस्टीट्यूशन की इज़्ज़त करते हैं, वो हिन्दुस्तान के इंस्टीट्यूशन को ख़त्म करना चाहते हैं. वो सिर्फ़ एक इंस्टीट्यूशन चाहते हैं, आरएसएस. और वो चाहते हैं कि हिन्दुस्तान के सब इंस्टीट्यूशन आरएसएस के नीचे काम करें. चाहे वो ज्यूडिशरी हो, चाहे वो पार्लियामेंट हो, पुलिस हो, कोई भी इंस्टीट्यूशन हो. ये सच्चाई की लड़ाई है. हम हमारे इंस्टीट्यूशन की रक्षा करेंगे. हम पीछे नहीं हटेंगे.

मीडिया के दुष्प्रचार का ज़िक्र करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि प्रेस वाले हमारे बारे में, कांग्रेस पार्टी के बारे में भी ख़राब लिखते हैं, कभी-कभी ग़लत भी लिखते हैं. लेकिन मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि हम आपकी भी रक्षा करेंगे. आप जितना भी ख़राब हमारे बारे में लिखना चाहते हो, लिखो. मगर कांग्रेस पार्टी का ये हाथ आपकी रक्षा करेगा. जब आरएसएस आपको मारेगी, दबाएगी, काटेगी, ये हाथ आपकी रक्षा करेगा. हम लोग आपकी रक्षा करेंगे.

उन्होंने कहा कि ये दो विचारधाराओं की लड़ाई है. हमारी विचारधारा जीतेगी. ये गांधी जी का संगठन है. शेरों का संगठन है. हम किसी से नहीं डरेंगे. सच्चाई की लड़ाई लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि मैं पंद्रह साल से राजनीति में हूं. ये आसान नहीं है. झटके लगते हैं, ठोकर लगती है, चोट लगती है, दर्द भी होता है. इससे हम सीखते हैं. हमसे ग़लती होती है, तो हम उसे मान लेते हैं और कहते हैं कि फिर से ग़लती नहीं करेंगे, लेकिन आरएसएस और बीजेपी वाले ग़लती मानते नहीं हैं, किसी की सुनते भी नहीं हैं. पूरी दुनिया कह देगी कि ग़लती की, तो मोदी जी आंसू बहा देंगे, लेकिन ये नहीं मानेंगे कि ग़लती की. मोदी सरकार की नीतियों की वजह से देश बर्बाद हो गया, लेकिन वो लोग ये नहीं मानते.

राहुल गांधी ने कहा कि आज देश में ग़ुस्सा फैलाया जा रहा है. देश को बांटा जा रहा है. हिन्दुस्तान के एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से लड़ाया जा रहा है. हमारा काम जोड़ना का काम है. उन्होंने कांग्रेस के निशान का ज़िक्र करते हुए कहा कि ये जो हाथ का निशान है, यही एक निशान है जो हिन्दुस्तान को जोड़ने का काम कर सकता है. यही एक निशान है, जो इस देश को आगे ले जा सकता है.  इस निशान की जो शक्ति है, वो आपके अंदर है. अगर देश को जोड़ने का काम करना है, तो हम सबको मिलकर, देश की जनता को मिलकर काम करना होगा. उन्होंने कहा कि हम भविष्य की बात कर रहे हैं, बदलाव की बात कर रहे हैं. हमारी परम्पराओं में बदलाव किया जाता है, मगर बीते हुए वक़्त को भूला नहीं जाता है. युवाओं की बात होती है, मगर मैं कहना चाहता हूं कि अगर युवा कांग्रेस पार्टी को आगे ले जाएंगे, तो हमारे अनुभवी नेताओं के बिना कांग्रेस पार्टी आगे नहीं जा सकती. मेरा काम वरिष्ठ नेताओं और युवाओं को जोड़ने का काम है. एक नई दिशा दिखाने का काम है. इसके लिए संगठन में कई बदलाव करने होंगे. पार्टी के मेहनतकश कार्यकर्ताओं को आगे लाना होगा. नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच की दीवार को तोड़ना होगा. इस दीवार के अलग-अलग रूप हैं. एक रूप होता है कि पेराशूट की तरह ऊपर से टिकट लेकर कोई व्यक्ति गिरता है. दूसरा रूप होता है, दस-पंद्रह साल कार्यकर्ता ख़ून-पसीना बहाता है और फिर टिकट से पहले उसको कहा जाता है, भईया, तुम कार्यकर्ता हो, तुम्हारे पास पैसा नहीं है, तुम्हें टिकट नहीं मिलेगा. पर मैं कहता हूं- नहीं-नहीं-, तुम कार्यकर्ता हो, तुम्हारे दिल में कांग्रेस की विचारधारा है, तुम्हें टिकट ज़रूर मिलेगा और गुजरात में हमने छोटा-सा उदाहरण दिया, बड़ा नहीं, छोटा-सा, कांग्रेस पार्टी ने कार्यकर्ताओं को टिकट दिया और नतीजा आपने देखा.

दूसरी दीवार और शायद ये और भी बड़ी दीवार है, मगर ये जो पहली दीवार है, उसे तोड़े बिना वो दूसरी दीवार नहीं तोड़ी जा सकती. वो दीवार है- हिन्दुस्तान के युवाओं और राजनीतिक सिस्टम के बीच की दीवार. युवाओं ने मोदी जी में विश्वास किया, लेकिन वे ठगे गए. नीरव मोदी, ललित मोदी और अमित शाह जी का पुत्र अमेरिका भाग गए.

उन्होंने कहा कि अगर इन दीवारों को तोड़ना है, तो इसके लिए आगे आना होगा. उन्होंने ख़ाली स्टेज की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि ये स्टेज मैंने आपके लिए ख़ाली किया है. अगर हिन्दुस्तान को बदलना है, तो हर जात, हर मज़हब के लड़कों को, लड़कियों को समझना पड़ेगा कि आप ही बदल सकते हो और कोई नहीं बदल सकता. जो लोग हिन्दुस्तान के विज़न को समझते हैं, जिनके दिल में हिन्दुस्तान की आग जलती है, मैं उनसे इस स्टेज को भरूंगा.  आपका हाथ पकड़ कर आपको यहां बिठाऊंगा. मैं सत्तर-अस्सी साल पहले वाली,  महात्मा गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू जी, सरदार पटेल जी, मौलाना आज़ाद जी, जगजीवन राम जी वाली कांग्रेस को देखना चाहता हूं. जैसे उन दिनों कांग्रेस पार्टी हुआ करती थी, वैसी ही कांग्रेस पार्टी देखना चाहता हूं. वरिष्ठ नेता हैं, आपकी जगह है, कांग्रेस पार्टी में युवा हैं, आपकी जगह है और कांग्रेस पार्टी के बाहर करोड़ों युवा हैं, आपकी भी जगह है.
हमें मिलकर काम करना है. दुनिया में आज दो विज़न दिखाई दे रहे है. एक अमेरिका का विज़न और दूसरा चीन का विज़न है. मैं चाहता हूं कि दस साल के अंदर एक इंडिया का विज़न भी दिखाई दे जाए. पूरी दुनिया ये कहे कि ये तरीक़ा सबसे अच्छा है. भाईचारे का, अहिंसा का, प्यार का. इसके लिए युवाओं को रोज़गार देना होगा. हर ज़िले में कोई न कोई चीज़ है. उत्तर प्रदेश को लीजिए. कानपुर, मिर्ज़ापुर, मुरादाबाद, कोई भी ज़िला देख लीजिए. स्किल की हिन्दुस्तान में कोई कमी नहीं है, इंटेलिजेंस की हिन्दुस्तान में कोई कमी नहीं है ऊर्जा की कोई कमी नहीं है. कमी एक है, जिसके पास स्किल है, जिसके पास ऊर्जा है, उसके पास बैंक लोन नहीं है, उसके पास टैक्नॊलोजी नहीं है. जो हमारा स्किल का ढांचा है, हर ज़िले में, हम उसे बैंकों के पैसे से और टैक्नॊलोजी से जोड़ने का काम करेंगे.
दूसरी बात, किसान अनाज उगाता है, सब्ज़ी उगाता है. उसका ज़्यादा से ज़्यादा उत्पाद ख़राब हो जाता है. उत्तर प्रदेश की सड़कों पर आलू दिखाई देते हैं. किसान उन्हें फेंक देते हैं. कांग्रेस पार्टी पूरे देश में फ़ूड पार्कों का नेटवर्क फैलाएगी. हर ज़िले में किसान अपना अनाज, अपनी सब्ज़ी, अपना फल सीधा फ़ूड प्रोसेसिंग फ़ैक्ट्री में जाकर बेचेगा. उन्होंने किसानों को यक़ीन दिलाया कि हमारी सरकार आने पर हम आपकी रक्षा करेंगे, दिल से आपकी रक्षा करेंगे और जैसे हमने सत्तर हज़ार करोड़ रुपये का क़र्ज़ माफ़ किया था, वैसे ही ज़रूरत पड़ने पर आपकी मदद करेंगे. तीसरा सबसे बड़ा काम शिक्षा का है. आज व्यापम स्कैम पूरे देश में फैलाया जा रहा है. दिल्ली में युवा धरना दे रहे हैं. प्रश्न पत्र बिकता है. इसे ख़रीदकर परीक्षा देने वाले पूरे देश में फैल रहे हैं.  शिक्षा पर सबका हक़ है. हमारी सरकार आने पर हम देश के कोने-कोने में उच्च शिक्षा की व्यवस्था करेंगे.

उन्होंने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच के फ़र्क़ को बताया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और विपक्ष में क्या फ़र्क़ है, एक सबसे बड़ा फ़र्क़ है- वो क्रोध और ग़ुस्से का प्रयोग करते हैं, हम प्यार प्रयोग करते हैं. हम भाईचारे का प्रयोग करते हैं और चाहे कुछ भी हो जाए, मैं फिर से दोहराना चाहता हूं कि ये देश हम सबका है, हर धर्म का है, हर जात का है. हर व्यक्ति का है और जो भी पार्टी करेगी, वो पूरे देश के लिए करेगी, देश के हर व्यक्ति के लिए करेगी और किसी को पीछे नहीं छोड़ेगी.

गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी के मंदिर जाने पर भारतीय जनता पार्टी ने उन पर ख़ूब तंज़ किए थे. इस बारे में राहुल गांधी ने कहा कि गुजरात का चुनाव हुआ और वहां काफ़ी लोगों ने कहा कि मैं मंदिर जाता हूं. अजीब-सी बात है, क्योंकि मैं सालों से गुजरात चुनाव के बहुत पहले से, अपने दौरों पर मंदिर जाता हूं और मैं सिर्फ़ मंदिर में नहीं जाता हूं, मैं मस्जिद में, गुरुद्वारे में, चर्च में भी जाता हूं. मुझे जब भी कोई बुलाता है, मैं जाता हूं. उन्होंने दो मंदिरों का ज़िक्र करते हुए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच के फ़र्क़ को बताया. उन्होंने कहा कि मैं आपको दो मंदिरों की कहानी बताता हूं. अपने दौरों पर दो अलग-अलग मंदिरों के पुजारी मिले, जिसमें एक कांग्रेस समर्थक थे और दूसरे भारतीय जनता पार्टी से थे. पहले मंदिर गया, शिव का मंदिर था, पूजा हो रही थी, पंडित जी बैठे थे. पूजा ख़त्म हुई, अलग-अलग चीज़ें थीं. सवाल पूछने की आदत है, तो मैंने पंडित जी से पूछा, गुरुजी आप मुझे बताइए आपने किया क्या? आपने दूध डाला, पानी डाला, मंत्र पढ़े, आपने क्या किया ? उन्होंने कहा कि बेटा समझना चाहता हैं, तो इन सिक्योरिटी वालों को परे कर. सिक्योरिटी वालों को परे किया. उन्होंने कहा कि अच्छा इधर आ, पीछे खड़ा हो जा. मंदिर के पीछे दीवार पर माथा लगा. फिर उन्होंने कहा, तू भगवान ढूंढ रहा है न, तो तुझे भगवान कहीं भी मिल जाएगा. जहां तू देखेगा, वहीं मिल जाएगा. मंदिर में ढूंढ रहा है, तो मंदिर में मिलेगा, चर्च में मिलेगा, गुरुद्वारे में मिलेगा, पेड़-पौधों में मिलेगा, आसमान की शून्यता में मिलेगा, जहां तू देखेगा, तुझे भगवान दिखेगा. ये जो हमने किया, ये हम करते हैं, ये हमें करने दे. अगर तू भगवान ढूंढ रहा है, तो जहां भी तू देखेगा, तुझे भगवान दिखेगा. इसके बाद बिल्कुल वही हालात, वैसा ही शिव मंदिर, वही पूजा वही सवाल. मगर पंडित जी ने सवाल का जवाब देने से मना कर दिया, लेकिन मैं अड़ गया. हम बाहर आ चुके थे. पंडित जी ने कहा कि मैंने तेरे लिए पूजा कर दी है. अब तुम प्रधानमंत्री बनने जा रहे हो, वो छत देख रहे हो. ऐसा करना जब तुम प्रधानमंत्री बन जाओ, तो इस पर सोना लगा देना. मतलब एक व्यक्ति सच्चाई कहता है. हमारा भगवान मंदिर में है, मस्जिद में है, चर्च में है, गुरुद्वारे में है, सब जगह है. हम तो पहले पुजारी की तरह सच के सिपाही हैं.  

उन्होंने कहा कि बीजेपी की राजनीति में बीजेपी का जो धर्म है, वो सिर्फ़ सत्ता को पाने के लिए है. लेकिन हम जनता के लिए लड़ते हैं. हमारे लोगों ने देश के लिए अपना ख़ून दिया है. हम नफ़रत नहीं करते, हम ग़ुस्सा नहीं करते. आप हमें मारे-पीटो, हम आपसे नफ़रत नहीं करेंगे.
उन्होंने कहा कि आज देश मुश्किल में है. किसान कहते हैं कि हम जी नहीं सकते. खेती से आमदनी नहीं होती, आत्महत्या करनी पड़ती है. दूसरी तरफ़ करोड़ों युवा बेरोज़गार हैं, उन्हें रास्ता नहीं दिख रहा है. समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें. चार साल पहले इन लोगों ने मोदी जी पर भरोसा किया था, जो अब टूट चुका है. ख़त्म हो चुका है. उन्होंने कहा कि देश में करोड़ों युवा, जो आज थके हुए हैं, जब वे मोदी जी की तरफ़ देखते हैं, तो उन्हें रास्ता दिखाई नहीं देता. उन्हें ये बात समझ नहीं आती कि उन्हें रोज़गार कहां से मिलेगा ? किसानों को उनकी फ़सल का सही दाम कब मिलेगा ? देश एक तरह से थका हुआ है, रास्ता ढूंढ रहा है और मैं दिल से कहता हूं कि देश को सिर्फ़ कांग्रेस पार्टी ही रास्ता दिखा सकती है. उन्होंने कहा कि हम साथ मिलकर काम करें, तो कांग्रेस फिर से जीत सकती है.

ग़ौरतलब है कि 16 से 18 मार्च को आयोजित कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह, मोती लाल वोरा, गु़लाम नबी आज़ाद, मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा स्टीयरिंग कमेटी के सदस्यों, अंतर्राष्ट्रीय डेलिगेट्स, एआईसीसी सदस्यों, पीसीसी सदस्यों और देश भर से आए पार्टी कार्यकर्ताओं ने शिरकत की और अपने विचार रखे. 

Friday, March 16, 2018

अब भी वक़्त है...

फ़िरदौस ख़ान
मुद्दई सुस्त और गवाह चुस्त. ये कहावत इस वक़्त कांग्रेस के नेताओं और रणनीतिकारों पर बिल्कुल सही बैठ रही है.  पार्टी कार्यकर्ता कांग्रेस को वापस सत्ता में लाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. जनमानस भी कांग्रेस पर यक़ीन करना चाहता है. मेघालय में जनता ने कांग्रेस को 21 सीटें जिताकर प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बनाया, लेकिन इसके बावजूद महज़ दो सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाने के लिए दावा पेश कर दिया. यहां कांग्रेस नैतिक रूप से भले ही चुनाव जीत गई हो, लेकिन रणनीति के लिहाज़ से पार्टी की हार हुई है. भारतीय जनता पार्टी के कारनामों को देखा जाए, तो उसके लिए नैतिकता कोई मायने नहीं रखती. वह सिर्फ़ जीतना चाहती है, भले ही उसके लिए उसे तमाम क़ायदे-क़ानून ताक़ पर ही क्यों न रखने पड़ें. एक कहावत भी है कि मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है. ये सियासी जंग है, जिसे वही जीत सकता है, जिसमें जीतने की ख़्वाहिश हो, जीतने का जज़्बा हो. और ये ख़्वाहिश और ये जज़्बा इस वक़्त भारतीय जनता पार्टी में कूट-कूट कर भरा हुआ है.

ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी मेहनत नहीं करते हैं. वे भी दिन-रात मेहनत करते हैं. मीलों पैदल चलते हैं, जनसभाएं करते हैं. ट्वीट कर प्रधानमंत्री से सवाल करते हैं. लेकिन उन्हें मालूम होना चाहिए कि चुनाव जीतने के लिए सिर्फ़ यही काफ़ी नहीं होता. इसके लिए जनता का समर्थन जुटाना होता है. जनसभाओं और रैलियों में महज़ भीड़ इकट्ठी करना ही काफ़ी नहीं है. इस भीड़ को वोटों में भी बदले जाने की ज़रूरत होती है. पिछ्ले कुछ सालों में देश के हालात काफ़ी ख़राब हुए हैं. लगातार बढ़ती महंगाई, नोटबंदी और जीएसटी ने लोगों के काम-धंधे चौपट कर दिए. एक तो पहले ही बेरोज़गारी कम नहीं थी, ऊपर से जो लोग काम में लगे थे, वे भी घर बैठ गए. सांप्रदायिक और जातिगत संघर्ष ने भी माहौल को ख़राब करने का काम किया. इतना ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी जिन वादों के बूते सत्ता में आई थी, उसे भी उसने तिलांजली दे दी. ऐसे में कांग्रेस के पास मुद्दों की कमी नहीं है. कांग्रेस को देशभर में एक जन आंदोलन चलाना चाहिए. इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के मामले में भी कांग्रेस ख़ामोशी अख़्तियार किए हुए है.  कांग्रेस जिस तरह घोटालों का विरोध कर रही है, उसे इसी तरह महंगाई व अन्य मुद्दों को लेकर जनता के बीच बने रहना चाहिए.

चुनाव में बहुमत न मिले, तो सरकार बनाने के लिए गठबंधन की ज़रूरत होती है. चुनाव से पहले ही इसके लिए तैयारी कर लेनी चाहिए. सियासत में एक-एक पल बेशक़ीमती हुआ करता है, इसलिए बहुत ही चौकस रहने की ज़रूरत होती है. जब मुक़ाबला किसी भारतीय जनता पार्टी से हो, तो और भी होशियार रहने की ज़रूरत होती है. राहुल गांधी अच्छे से जानते हैं कि उनका मुक़ाबला किससे है. उन्होंने ख़ुद कहा है कि भारतीय जनता पार्टी मणिपुर और गोवा की तरह मेघालय में जनादेश को अनदेखा करते हुए ग़लत तरीक़े से सरकार बना रही है. महज़ दो सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी ने परोक्ष ढंग से मेघालय में सत्ता हथिया ली. भारतीय जनता पार्टी का यह रवैया लोगों के जनादेश के प्रति घोर असम्मान दिखाता है. भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता हथियाने की भूख और अवसरवादी गठबंधन बनाने के लिए धन का इस्तेमाल किया है.

सियासी लिहाज़ से ऐसे नाज़ुक वक़्त में राहुल गांधी अपनी नानी के घर चले गए. बेहतर होता कि वे कुछ दिन बाद इटली जाते. वे यहीं रहकर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ, पार्टी समर्थकों के साथ होली का त्यौहार मनाते और हर सियासी उठापटक़ पर नज़र रखते. मेघालय में सही रणनीति बनाई गई होती, गठबंधन किया होता, तो पार्टी की सरकार बन सकती थी. कांग्रेस ने जीत के बाद मणिपुर और गोवा की सत्ता गंवाने के बाद भी सबक़ नहीं लिया. ऐसे वक़्त में राहुल गांधी का कार्यकर्ताओं के बीच होना बेहद ज़रूरी था, ताकि कार्यकर्ताओं का मनोबल कमज़ोर न पड़े.

त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय की हार सिर्फ़ राहुल गांधी की ही शिकस्त नहीं है, बल्कि यह पूरी पार्टी की हार है, ख़ासकर कांग्रेस के रणनीतिकारों की हार है. कांग्रेस के पास या यूं कहें कि राहुल गांधी को ऐसे रणनीतिकारों की बेहद ज़रूरत है, जो हालात पर पैनी नज़र रख सकें. जो जनमानस के बीच कांग्रेस को मज़बूत करने का काम कर सकें, जो भीड़ को वोटों में बदलने के फ़न में माहिर हों, जो विरोधियों की हर चाल को समझ सकें और उसे मात दे सकें. लोकसभा चुनाव को बहुत ज़्यादा वक़्त नहीं बचा है. इस साल के आख़िर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं. अगर कांग्रेस अब भी पूरी ताक़त झोंक दे, तो कामयाबी उसके क़दम चूम सकती है.

बेशक, राहुल गांधी एक अच्छे इंसान हैं. वे लोगों से मिलते हैं, उनके सुख-दुख में शरीक होते हैं. मंदिरों में पूजा-पाठ करते हैं, मज़ारों पर चादरें चढ़ाते हैं. वे हर काम चुनावी फ़ायदे के लिए नहीं करते. लोगों से मिलना-जुलना और उनके सुख-दुख में शामिल होना, उसके स्वभाव में शामिल है. ये कांग्रेस के लिए फ़क्र की बात है कि उन्हें एक सच्चा नेता मिला है, लेकिन सियासत में सच्चाई और अच्छाई के साथ सही रणनीति की भी ज़रूरत होती है. ये बात कांग्रेस ख़ासकर राहुल गांधी को समझनी होगी.

Thursday, March 15, 2018

सीलिंग का क़हर बरपा

फ़िरदौस ख़ान
देश की राजधानी दिल्ली में जिस तेज़ी से आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से बुनियादी सुविधाओं को जुटाना कोई आसान काम नहीं है. इस आबादी में देश के अन्य राज्यों से आए लोगों की भी एक बड़ी संख्या है. आबादी को रहने के लिए घर चाहिए, रोज़गार चाहिए, बिजली-पानी चाहिए, शैक्षिक, स्वास्थ्य व परिवहन की सुविधाएं चाहिएं. यानी घर-परिवार के लिए सभी बुनियादी सुविधाएं चाहिएं. जनता को ये सब सुविधाएं मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी सरकार की है, प्रशासन की है. इसके लिए एक योजना की ज़रूरत होती है, एक मास्टर प्लान की ज़रूरत होती है. किसी भी शहर के सतत योजनाबद्ध विकास का मार्गदर्शन करने के लिए एक योजना होती है. इस मास्टर प्लान को बनाते वक़्त इस बात का ख़्याल रखा जाता है कि जिस समयावधि के लिए यह बनाया जा रहा है, उस वक़्त शहर की आबादी कितनी होगी और उसकी ज़रूरतें क्या-क्या होंगी.  मास्टर प्लान 2021 भी एक ऐसी ही योजना है, जिसके मुताबिक़ दिल्ली को एक ऐसा विश्वस्तरीय शहर बनाना है, जिसमें यहां के बाशिन्दों को तमाम सुविधाएं मुहैया हो सकें.

ग़ौरतलब है कि देश की राजधानी दिल्ली पिछले दिसम्बर माह से सीलिंग के साये में है. सुप्रीम कोर्ट की मॉनिटरिंग कमेटी के आदेश पर राजधानी में सीलिंग का काम चल रहा है. इस सीलिंग की वजह यही मास्टर प्लान 2021 है.  ये मास्टर प्लान साल 2001 में आ जाना चाहिए था, लेकिन वह छह साल बाद 2007 में आया. दिल्ली विकास प्राधिकरण के मुताबिक़ हर पांच साल के बाद इस प्लान की समीक्षा की जानी थी. इसके तहत साल 2012 के शुरू माह जनवरी में इसमें बदलाव के लिए जनता से सुझाव मांगे गए थे. इस सुझावों के हिसाब से मैनेजमेंट एक्शन कमेटी का भी गठन किया गया. सुझावों को अमल में लाने के लिहाज़ से इनका विश्लेषण किया गया. इसी के आधार पर मास्टर प्लान में बदलाव किया गया. इसे दिल्ली विकास प्राधिकरण ने पास भी कर दिया. दिल्ली विकास प्राधिकरण के इस मास्टर प्लान में 18 क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिनमें भू-नीति, सार्वजनिक भागीदारी और योजना के कार्यान्वयन, पुनर्विकास, आश्रय, ग़रीबों के लिए आवास, पर्यावरण, अनधिकृत कॉलोनियों, मिश्रित उपयोग विकास, व्यापार और वाणिज्य, अनौपचारिक क्षेत्र, उद्योग, विरासत का संरक्षण, परिवहन, स्वास्थ्य, शैक्षणिक व खेल सुविधाएं, आपदा प्रबंधन आदि शामिल हैं.

दिल्ली विकास प्राधिकरण के मुताबि़क साल 2021 तक दिल्ली की आबादी 225 लाख तक पहुंच जाएगी.  मास्टर प्लान के हिसाब से इसे 220 लाख से कम रखने की कोशिश की जाएगी. यह योजना इस आबादी को घर बनाने के लिए  एक तीन-आयामी रणनीति को अपनाने पर ज़ोर देती है. इसके तहत लोगों को उपनगरों में स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहित करना, शहर की सीमा का विस्तार और मौजूदा क्षेत्रों की आबादी-धारण क्षमता को बढ़ाकर उनका पुनर्विकास किया जाएगा. इसके अलावा सरकार के मालिकाना हक़ वाली ख़ाली ज़मीनों का इस्तेमाल किया जाएगा. साल साल 2021 तक 60 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों की तादाद 24 लाख से ज़्यादा होने की उम्मीद है और वह कुल आबादी का 10.7 फ़ीसद हिस्सा होगा.  ऐसे में उनके लिए भी विशेष सुविधाओं की ज़रूरत होगी.  ग़ौरतलब है कि जब 2005 में सार्वजनिक सुझावों को आमंत्रित करने के लिए ड्राफ़्ट को अधिसूचित किया गया था, तब उसे सात हज़ार आपत्तियां और सुझाव मिले थे, जबकि 611 लोगों और संगठनों को इस पर व्यक्तिगत सुनवाई दी गई थी. केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने साल 2007 में इस योजना के मौजूदा रूप को मंज़ूरी दे दी थी.  इलाक़ों के विकास के लिए नियम शहर के अन्य इलाक़ों से अलग होंगे. इसके मुताबिक़ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में कोई नया केंद्रीय और सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम कार्यालय नहीं बनाया जाएगा. दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या आबादी में बढ़ोतरी, शहरीकरण, जीवन शैली और उपभोग के तरीक़े और यहां से निकलने वाले कचरे से निपटने के लिए लैंडफ़िल की स्थापना का प्रस्ताव भी किया गया है. आवास के लिए बने इलाक़ों में ग़ैर-रिशायशी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए, योजनाओं में एक मिश्रित उपयोग नीति की परिकल्पना की गई है, जो दिल्ली को बेहतर शहर बनाने में मदद करेगी. हालांकि लुटियन के बंगला ज़ोन, सिविल लाइंस बंगला ज़ोन, सरकारी आवास, सार्वजनिक और निजी एजेंसियों की संस्थागत, स्टाफ़ आवास और विरासत संरक्षण समिति द्वारा सूचीबद्ध इमारतों, परिसरों में मिश्रित उपयोग की अनुमति नहीं दी गई है.

सीलिंग को लेकर राजधानी में क़हर बरपा है. भारतीय जनता पार्टी और सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं. आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज का कहना है कि सीलिंग की एक वजह फ़्लोर एरिया रेशियो भी है, जिसे मास्टर प्लान-2021 में संशोधन करके बढ़ाया जा सकता है और सीलिंग को रोका जा सकता है. चूंकि मास्टर प्लान-2021 दिल्ली विकास प्राधिकरण का है, इसीलिए वही इसमें संशोधन कर सकता है. दिल्ली विकास प्राधिकरण भारतीय जनता पार्टी शासित केंद्र सरकार के अधीन आता है और उपराज्यपाल ही इसकी अध्यक्षता करते हैं. इसका दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग से कोई लेना-देना नहीं है.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का आरोप है कि सीलिंग अभियान के ज़रिये भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) के लिए रास्ता बनाना चाहती है.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि दिल्ली में सीलिंग के मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप का नाटक बंद कर देना चाहिए. भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी की मिलीभगत और फ़र्ज़ी लड़ाई में व्यापारियों को बहुत नुक़सान हो रहा है. दोनों पार्टियों को राजनीतिक रोटी सेंकने के बजाय इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान निकालना चाहिए.

केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि सीलिंग का हल ढूंढ लिया गया है. इस बाबत जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय में एक हल्फ़नामा दाख़िल किया जाएगा. इसमें मास्टर प्लान में संशोधन के क़ानूनी अधिकारों का का इस्तेमाल किया गया है. अगर सर्वोच्च न्यायालय मान जाता है, तो सीलिंग का मसला हल हो सकता है. इसके साथ ही दिल्ली सरकार द्वारा मिक्स लैंड यूज़ वाली 351 सड़कें भी जल्द ही अधिसूचित कर दी जाएंगी. ख़ैर, सीलिंग रोकने की नूराकुश्ती जारी है, लेकिन यह इतना आसान नहीं है.

बहरहाल, सीलिंग की वजह से काराबोर ठप होकर रह गया है. बड़े व्यापारियों का तो नुक़सान हो ही रहा है, वहीं सड़क के किनारे बैठकर सामान बेचने वाले लोग भी परेशान हैं. दुकानों पर काम करने वाले लोग भी ख़ाली घूम रहे हैं. उनके समक्ष रोज़ी-रोटी का संकट अपिदा हो गया है. कंफ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने दिल्ली बाज़ार बंद का आह्वान किया था. इसके अलावा एक अन्य कारोबारी संगठन चैंबर ऑफ़ ट्रेड एंड इंडस्ट्री ने भी अलग से बाज़ार बंद की घोषणा की थी.

क़ाबिले-ग़ौर है कि व्यापारियों के सामने सीलिंग की आज जो सबसे बड़ी समस्या पैदा हो गई है, उसके लिए पूरी तरह से सरकार ही ज़िम्मेदार है. साल 1962 में राजधानी के लिए एक मास्टर प्लान बनाया गया था, लेकिन उस पर सहे तरीक़े से अमल नहीं किया गया. इसलिए लोगों को जहां जगह मिली, वे वहां मकान और दुकानें बनाते चले गए. यह काम कोई एक दिन में तो हुआ नहीं है, इसमें बरसों लग गए. दिल्ली नगर निगम और दिल्ली विकास प्राधिकरण की नाकामी की वजह से उतने व्यापारिक परिसर नहीं बन पाए, जितने बनने चाहिए थे. मास्टर प्लान 1962 पूरा हो नहीं पाया था कि उसके बाद मास्टर प्लान 1981 आ गया, जो नौ साल बाद 1990 में अमल में आया. फिर एक लम्बी जद्दो-जहद के बाद मास्टर प्लान 1921 आया. आज इसी मास्टर प्लान की वजह से दिल्ली के व्यापारिक प्रतिष्ठान सीलिंग के साये में हैं.

Sunday, March 11, 2018

ऐसी बानी बोलिए

फ़िरदौस ख़ान
कहते हैं, ज़बान शीरी, तो मुल्कगिरी यानी जिसकी ज़बान में मिठास होती है, वो मुल्क पर हुकूमत करता है. भाषा का दरख़्त दिल में उगता है और ज़ुबान से फल देता है. जैसा दरख़्त होगा, वैसे ही उसके फल होंगे.  इंसान की पहचान ग़ुस्से की हालत में ही होती है यानी ग़ुस्से में वह सब कह देता है, बोल देता है, जो उसके दिल में होता है, ग़ुस्से में इंसान का अपने दिमाग़ पर क़ाबू नहीं होता. किसी भी इंसान की भाषा उसके किरदार का आईना हुआ करती है. उसकी भाषा से, उसके शब्दों से न सिर्फ़ उसके विचारों का पता चलता है, बल्कि उसके संस्कार भी प्रदर्शित हो जाते हैं. अच्छे लोग, संस्कारी लोग ग़ुस्से में भी अपशब्दों को इस्तेमाल नहीं करते. 

दरअसल, भाषा एक आग है. वह सभ्यता की बुनियाद है, तो बर्बादी की जड़ भी है. भाषा बहता शीतल जल भी है, जो वीरानों को आबाद कर देता है, उनमें फूल खिला देता है. भाषा सैलाब भी है, जो अपने साथ न जाने कितनी आबादियां बहा ले जाता है. ख़ुशहाल बस्तियों को वीरानियों में बदल देता है. ये इंसान के अपने हाथ में है कि वह भाषा रूपी इस आग का, इस पानी का किस तरह इस्तेमाल करता है. ये भाषा ही तो है, जो दोस्तों को दुश्मन बना देती है और दुश्मनों को दोस्त बना लेती है. ये भाषा ही तो है, जिसके ज़ख़्म कभी नहीं भरते, हमेशा हरे रहते हैं, जबकि बड़े से बड़े ज़ख़्म भर जाते हैं, तीर-तलवार के ज़ख़्म भी वक़्त के साथ कभी न कभी भर जाया करते हैं.

भारत जैसे देश में जहां पत्थर तक को पूजा जाता है, तिलक लगाकर उसका अभिनंदन किया जाता है,  जहां कण-कण में ईश्वर के अस्तित्व को माना जाता है, वहां अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल हज़ारों बरसों की संस्कृति पर कुठाराघात करता है. बेशक हमारा भारत एक लोकतांत्रिक देश है. और किसी भी लोकतांत्रिक देश में, प्रजातांत्रिक देश में सबको अपनी बात कहने की आज़ादी होती है, अपने विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है. लोकतंत्र के नाम पर, प्रजातंत्र के नाम पर, अभिव्यक्ति के नाम पर क्या किसी व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में अपशब्द बोलने की आज़ादी दी जा सकती है ? क़तई नहीं, क्योंकि ऐसा करना सामाजिक अपराध माना जाएगा. अपशब्दों के ज़रिये किसी का चरित्र हनन करना, किसी के मान-सम्मान को चोट पहुंचाना, किसी भी सूरत में सही नहीं कहा जा सकता. इस बारे में कोई भी दलील काम नहीं करेगी. ठीक है, आपको किसी से शिकायत है, किसी से नाराज़गी है, आप किसी से ग़ुस्सा हैं, तो आप सभ्य भाषा में भी अपनी बात रख सकते हैं. 

यह बेहद अफ़सोस और शर्म की बात है कि भारतीय राजनीति में अमर्यादा का समावेश होता जा रहा है. जहां सत्ता हासिल करने के लिए राजनेता साम-दाम-दंड-भेद का इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं भाषा के मामले भी रसातल में जा रहे हैं. राजनेताओं की भाषा दिनोदिन अमर्यादित होती जा रही है. ताज़ा मिसाल भारतीय जनता पार्टी में देखने को मिली है. हुआ यूं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब पंजाब नेशनल बैंक के घोटाले पर सवाल दाग़े, तो भारतीय जनता पार्टी के सांसद ब्रज भूषण शरण ने उनके बारे में विवादित बयान दिया. उन्होंने राहुल गांधी के बारे में न सिर्फ़ विवादित बयान दिया, बल्कि अपशब्दों का इस्तेमाल तक कर डाला. इससे पहले इसी पार्टी की केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल किया था. ख़बरों के मुताबिक़  मेनका गांधी ने बहेड़ी में जनता दरबार लगाया था.  इस दौरान वह आग बबूला हो गईं और उन्होंने अधिकारियों को जनता के सामने ही डांट-फटकार लगाई. वह यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने एक इंस्पेक्टर से उसके मोटापे पर अभद्र टिप्पणी करते हुए कहा कि उसकी कोई इज़्ज़त नहीं है. वह एक बुरा आदमी है और उसकी आमदनी से ज़्यादा संपत्ति की जांच कराई जाएगी.

यह कोई पहला मामला नहीं है, जब चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने इस तरह अमर्यादित व्यवहार किया है. ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ़ भारतीय जनता पार्टी के नेता ही अमर्यादित और विवादित बयान देते हैं, इस मामले में इस मामले में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी आदि के नेता भी पीछे नहीं हैं. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में फ़र्क़ ये है कि कांग्रेस का कोई नेता विवादित बयान देता है, तो पार्टी उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करती है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में विवादित बयान दिया, तो कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया. हालांकि मणिशंकर अय्यर ने इसके लिए माफ़ी भी मांग ली थी और कहा था कि उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था. अनुवाद की ग़लती की वजह से ऐसा हुआ. राहुल गांधी कहते हैं कि कांग्रेस के संस्कार ऐसे नहीं हैं कि वह किसी के बारे में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करे. हम कांग्रेसी हैं और किसी भी हालत में अपने संस्कार नहीं छोड़ सकते. 

इसके बरअक्स भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं, जो आए-दिन विवादित और अमर्यादित बयान देते रहते हैं. बयानों पर हंगामा होने के बाद माफ़ी मांगना तो दूर की बात है, वे कुतर्कों से अपने बयानों को सही ठहराने में जुट जाते हैं. पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भारतीय सेना के बारे में विवादित बयान दिया था. इससे पहले भी वह इस तरह के विवादित बयान देते रहे हैं. विवादित बयानो के मामले में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े साधु-संत भी पीछे नहीं हैं. इस मामले में साध्वियां भी कम नहीं हैं. उनके विवादित बयान भी सुर्ख़ियों में रहते हैं.

आख़िर क्यों कोई अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल करता है. क्या सहनशीलता नाम की कोई चीज़ बाक़ी नहीं रह गई है कि लोग अपनी ज़रा सी आलोचना भी सहन नहीं कर पाते. जीवन में सबकुछ अपनी मर्ज़ी का तो नहीं हो सकता. सृष्टि की तरह ही जीवन के भी दो पहलू हैं, दो पक्ष हैं. हमारी संस्कृति में तो निंदक नियरे रखने की बात कही गई है. संत कबीर कहते हैं-
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय 
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय
यानी जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने ज़्यादा से ज़्यादा करीब रखना चाहिए. वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बताकर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है.

यह बेहद चिंता का विषय है कि सियासत में भाषाई मर्यादा ख़त्म होने लगी है. देश के प्रधानमंत्री से लेकर कार्यकर्ता तक सब ऐसी भाषा इस्तेमाल करने लगे हैं, जिसे किसी भी हाल में सभ्य नहीं कहा जा सकता. देश में ऊंचे ओहदों पर बैठे लोगों को कम से कम अपने ओहदे का ही ख़्याल कर लेना चाहिए.  
शायद ऐसे ही लोगों के लिए संत कबीर कह गए हैं-
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय 
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय