Tuesday, November 30, 2010

उत्तर भारत में बढ़ा ज़ीरो टिलेज का क्रेज


फ़िरदौस ख़ान
देश के उत्तरी राज्यों में किसान ज़ीरो टिलेज को अपना रहे हैं. ज़ीरो टिलेज पारंपरिक खेती से अलग कृषि की एक नई विधा है, जिसमें खेत की जुताई के बिना बुआई की जा सकती है. यह इसके फायदों को देखते हुए सरकार द्वारा भी इसमें इस्तेमाल होने वाले यंत्र पर किसानों को 50 फ़ीसदी सब्सिडी दी जा रही है, ताकि इस विधा को बढ़ावा मिल सके. इतना ही नहीं कृषि वैज्ञानिक भी किसानों को इसी के ज़रिये खेती करने की सलाह दे रहे हैं.

इस साल आई बाढ़ के बाद अनेक गांव पानी में डूब गए थे और किसानों के सामने कम समय में रबी की फसल की बुआई का संकट था. ऐसी हालत में कृषि वैज्ञानिकों ने बुआई के लिए जीरो टिलेज को ही उपयुक्त करार दिया था. कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर कैथल ज़िले के गांव काठवाड़ के किसानों ने इस विधा के ज़रिये बुआई की. सीवन गांव के किसान लक्ष्मी आनंद बताते हैं कि वह पिछले कई वर्षों से ज़ीरो टिलेज के माध्यम से ही खेती कर रहे हैं. उन्होंने इसके फायदों को देखते हुए इसे अपनाने का फ़ैसला किया और आज वह अपने इस निर्णय से बेहद खुश हैं. इसी तरह छतर सिंह, रामेश्वर आर्य, रणबीर सिंह श्योकंद, आनंद मुजाल आदि किसान भी पिछले एक दशक से जीरो टिलेज के माध्यम से खेती कर रहे हैं. वे बताते हैं कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने उन्हें इस बारे में जानकारी दी थी. अब वे भी अन्य किसानों को इसके प्रति जागरूक कर रहे हैं. रोहतक ज़िले का भैंसी एक ऐसा गांव है, जहां की समूची कृषि भूमि पर ज़ीरो टिलेज के ज़रिये ही बुआई की जाती है. इस गांव के किसानों की देखा-देखी आसपास के गांवों के किसानों ने भी इसे अपना लिया है.

गौरतलब है कि ख़रीफ़ यानि धान की कटाई के बाद किसानों को रबी की फसल गेहूं आदि के लिए खेत तैयार करने पड़ते हैं. गेहूं के लिए किसानों को अमूमन 5-7 जुताइयां करनी पड़ती हैं. ज्यादा जुताइयों की वजह से किसान समय पर गेहूं की बिजाई नहीं कर पाते, जिसका सीधा असर गेहूं के उत्पादन पर पड़ता है. इसके अलावा इसमें लागत भी ज़्यादा आती है. ऐसे में किसानों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाता. ज़ीरो टिलेज से किसानों का वक़्त तो बचता ही है, साथ ही लागत भी कम आती है, जिससे किसानों का मुनाफ़ा काफ़ी बढ़ जाता है. ज़ीरो टिलेज के ज़रिये खेत की जुताई और बिजाई दोनों ही काम एक साथ हो जाते हैं. इस विधा से बुआई में प्रति हेक्टेयर किसानों को क़रीब 2000-2500 रुपए की बचत होती है. बीज भी कम लगता है और पैदावार क़रीब 15 फ़ीसदी बढ़ जाती है. खेत की तैयारी में लगने वाले श्रम व सिंचाई के रूप में भी क़रीब 15 फ़ीसदी बचत होती है. इसके अलावा खरपतवार भी ज़्यादा नहीं होता, जिससे खरपतवार नाशकों का ख़र्च भी कम हो जाता है. समय से बुआई होने से पैदावार भी अच्छी होती है. किसान अगेती फ़सल की बुआई भी कर सकते हैं.

ज़ीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल मशीन में लगे कुंड बनाने वाले फरो-ओपरन पतले धातु की मजबूत शीट से बने होते हैं, जो जुते खेत में एक कूड़ बनाते हैं. इसी कूड़ में खाद और बीज एक साथ उसी वक़्त डाल दिया जाता है. यह सीड ड्रिल 9 और 11 फरो-ओपेनर आकार में उपलब्ध हैं. इसमें फरो-ओपेनर इस तरह लगाए गए हैं कि उनके बीच की दूरी को कम या ज़्यादा किया जा सकता है. यह मशीन गेहूं और धान के अलावा दलहन फ़सलों के लिए भी बेहद उपयोगी है. इससे दो घंटे में एक हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की जा सकती है. इस मशीन को 35 हॉर्स पॉवर शक्ति के ट्रैक्टर से चलाया जा सकता है.

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मशीन में फाल की जगह लगे दांते मानक गहराई तक मिट्टी को चीरते हैं. इसके साथ ही मशीन के अलग-अलग चोंगे में रखा खाद और बीज कूंड़ में गिरता जाता है. साथ ही वे कहते हैं कि इससे बिजाई करते वक़्त गहराई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इसके इस्तेमाल से पहले कुछ सावधानियां बरतनी चाहिएं. खेत समतल और साफ़-सुथरा होना चाहिए. खेत समतल और साफ़ होना चाहिए. कंबाइन से कटे धान से बिखरे हुए पुआल को हटा देना चाहिए, वरना यह मशीन में फंसकर खाद-बीज के बराबर से गिरने में बाधक हो सकते हैं. धान की फ़सल को जमीन जड़ के पास से काटना चाहिए, ताकि बाद में डंठल खड़े न रह जाएं. इन डंठलों को हटाने में काफ़ी वक़्त बर्बाद हो जाता है. बुआई के वक़्त मिट्टी में नमी का होना बेहद ज़रूरी है. अगर नमी कम है तो बुआई से कुछ दिन पहले खेत में हल्का पानी छिड़क लें. बुआई के वक़्त दानेदार उर्वरकों का ही इस्तेमाल करें, ताकि वे ठीक से गिर सके. इसके अलावा सीड ड्रिल को चलाते समय ही उठाना या गिराना चाहिए, वरना फरो-ओपनर में मिट्टी भर जाती है, जिससे कार्य प्रभावित होता है.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत ज़ीरो टिलेज सहित कई कृषि यंत्रों पर अनुदान दिया जाता है. ज़ीरो टिलेज मशीन पर 15 हज़ार रुपए, रोटावेटर पर 30 हज़ार रुपए, स्ट्रा रीपर पर 40 हज़ार रुपए, धान रोपाई मशीन पर 50 हज़ार रुपए, लेजर लैंड लेवलर पर 50 हज़ार रुपए, स्ट्रा बालर पर एक लाख रुपए, मल्टी क्राप प्लांटर पर 15 हज़ार रुपए, बिजाई मशीन पर 15 हज़ार रुपए, पावर टीलर, पावर विडर और रीपर बाइंडर पर 40 हज़ार रुपए का अनुदान दिया जाता है.

कृषि यंत्रों पर अनुदान के लिए किसान को प्रार्थना-पत्र अपने इलाके के संबंधित कृषि विकास अधिकारी के पास जमा करना होता है. पत्र के साथ जिस यंत्र की अनुदान राशि 15 हज़ार तक है उस पर 2500 रुपए का और जिस पर अनुदान राशि 15 हज़ार रुपए है उसके लिए पांच हज़ार रुपए का ड्राफ्ट कृषि विभाग द्वारा अधिकृत फार्म के नाम लगाना होगा. योग्यता प्रमाण-पत्र एक हफ़्ते के भीतर दिया जाएगा. इसके बाद किसान संबंधित फर्म से कृषि यंत्र खरीदेगा और दस दिन के अंदर यंत्र का बिल सहायक कृषि अभियंता के कार्यालय में जमा कराना होगा. कृषि विभाग की टीम यंत्र का निरीक्षण करेगी. फिर उसके बाद ही किसान के नाम अनुदान राशि का चेक जारी किया जाएगा. इस मशीन की कीमत 30 हज़ार रुपए है और सरकार इस पर 50 फ़ीसदी राशि अनुदान के तौर पर देती है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से अगस्त 2007 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन नामक योजना शुरू की थी. इस योजना का मक़सद गेहूं, चावल और दलहन की उत्पादकता को बढ़ाना है, ताकि देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति को सुनिश्चित किया जा सके. साथ ही समुन्नत प्रौद्योगिकी के प्रसार एवं कृषि प्रबंधन पहल के माध्यम से इन फ़सलों के उत्पादन में व्याप्त अंतर को दूर करना है.

कृषि मंत्रालय के कृषि व सहकारिता विभाग के मुताबिक़ इस योजना के तीन घटक हैं-राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-चावल जिसके तहत देश के 14 राज्यों के 136 ज़िलों को शामिल किए जाने का प्रावधान है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कनार्टक, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-गेहूं, जिसके तहत देश के नौ राज्यों के 141 ज़िलों को शामिल करने का प्रावधान है. इन राज्यों में बिहार, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इसी तरह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन- दलहन, जिसके तहत 14 राज्यों के 171 ज़िले शामिल करने का प्रावधान है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इस योजना के तहत इन ज़िलों के 20 मिलियन हेक्टेयर धान के क्षेत्र, 13 मिलियन हेक्टेयर गेहूं के क्षेत्र और 4.5 मिलियन हेक्टेयर दलहन के क्षेत्र शामिल किए गए हैं, जो धान व गेहूं के कुल बुआई क्षेत्र का 50 फ़ीसदी है. दलहन के लिए 20 फ़ीसदी और क्षेत्र का सृजन किया जाएगा.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना अवधि (2007-08 से 2011-12) के लिए 4882.48 करोड़ रुपए बजट रखा गया है. इसके लिए पात्र किसान उस कृषि भूमि पर शुरू की गई गतिविधियों पर आने वाली कुल लागत का 50 फ़ीसदी ख़र्च वहन करेंगे, बाकी ख़र्च सरकार देगी. इसके तहत पात्र किसान बैंक से क़र्ज़ भी ले सकते हैं. ऐसी स्थिति में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी की राशि बैंकों को जारी की जाएगी. इस योजना के क्रिन्यानवयन के परिणामस्वरूप् वर्ष 2011-12 तक चावल के उत्पादन में 10 मिलियन टन, गेहूं के उत्पादन में 8 मिलियन टन व दलहन के उत्पादन में 2 मिलियन टन की बढ़ोतरी होगी. साथ ही यह अतिरिक्त रोज़गार के अवसर भी पैदा करेगा.

देश में ज़ीरो टिल फर्टी सीड ड्रिल मशीन की बढ़ती मांग को देखते हुए चीन की कंपनियों ने भी इनकी बिक्री शुरू कर दी है. ये उपकरण नेपाल के समीपवर्ती इलाकों में आसानी से मिल जाते हैं. इनकी क़ीमत भारतीय कृषि यंत्रों से कम होने की वजह से किसान इन्हें खरीद रहे हैं, लेकिन इनकी गुणवत्ता के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. ज़ीरो टिलेज से संबंधित अधिक जानकारी के लिए किसान अपने इलाक़े के कृषि अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं.


Friday, November 26, 2010

'वो' मासूम लड़कियों का खून मांगती है...

आप सबसे मुआफ़ी चाहते हैं कि इस पोस्ट को पढ़कर आपको कुछ तकलीफ़ ज़रूर होगी... यक़ीन मानिए पोस्ट लिखते हुए हमें भी बहुत तकलीफ़ हो रही है...मानो हमारी रूह भी लहुलुहान हो गई हो... किसी अपने को खोने से बड़ा कोई और दुख नहीं होता...जिसने भी किसी अपने को खोया है, वो इसे शिद्दत से महसूस कर सकता है...

कुछ वक़्त पहले दिल्ली में बचपन की एक सहेली से हमारी मुलाक़ात हुई...वो हमारे दिल के बहुत क़रीब थी...लड़की उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर की थी... हाल ही में उत्तराखंड के एक लड़के से उसका विवाह हुआ था... एक दिन ख़बर मिली कि उस लड़की की मौत हो गई है... वजह..., जिस लड़के के साथ उस लड़की की शादी हुई थी, उस लड़के के अपनी मां की उम्र की एक "आंटी" के साथ नाजायज़ ताल्लुक़ात थे... 'आंटी' के कहने पर लड़के ने अपनी पत्नी को ज़हर देकर मार डाला... 'आंटी' के बच्चे भी उस लड़के की उम्र के ही हैं... अपनी एक पूरी ज़िन्दगी जी चुकी 'महिला' ने अपनी हवस पूरी करने के लिए एक लड़की की सुहाग सेज को उसकी मौत की शय्या बना डाला... जिस लड़की के हाथों की मेहंदी अभी सूखी भी नहीं थी...वो क़ब्र की गहराइयों में दफ़न हो गई... जाने कितने अरमानों को अपने साथ लिए... उस लड़के के साथ अपनी ज़िन्दगी को तसव्वुर करके उसने कितने इंद्रधनुषी सपने बुने होंगे... जो अब कभी पूरे नहीं होंगे...

बेटी के सदमे से लड़की की मां का का बुरा हाल है... वो किसी को पहचान तक नहीं पा रही हैं... लड़की का पिता अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा है... लड़की की छोटी बहन का भी रो-रोकर बुरा हाल है...


हवस...एक ऐसी आग है, जो इंसान को जानवर बना देती है. हवस में अंधे होकर लोग सामाजिक मान-मर्यादा  तक को भूल जाते हैं. वे मां-बेटे और और भाई-बहन जैसे पाक रिश्तों को भी कलंकित कर देते हैं. ऐसे संबंधों में उनको तसल्ली रहती है कि कोई उन पर शक नहीं करेगा. दरअसल 'आधुनिकता' के नाम पर भी नाजायज़ रिश्तों का चलन बढ़ा है. ऐसे मामलों में महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. कुछ साल पहले एक न्यूज़ चैनल ने एक स्टिंग ऑपरेशन दिखाया था, जिसमें महिलाएं अपनी बेटों की उम्र के लड़कों से 'सौदा' करती हैं. पुरुष वेश्या का किरदार निभा रहे एक रिपोर्टर ने जब महिला से उसके परिवार के बारे में पूछा तो महिला बताती है कि उसका पति है, जवान बच्चे हैं, जो जॉब करते हैं.रिपोर्टर ने जब महिला से पूछा कि पति के रहते उसे लड़का क्यों चाहिए? तो महिला का जवाब था-'टेस्ट' बदलने के लिए. यह है हमारे समाज का बदलता घिनौना (या यूं कहें कि तथाकथित आधुनिक चेहरा.  

पुलिस थानों में हर रोज़ ऐसे जाने कितने मामले आते हैं...जिन्हें अकसर दहेज प्रताड़ना का मामला कहकर पेश किया जाता है... कुछ साल पहले हरियाणा में एक महिला ने पहले अपने 'साथियों' के साथ मिलकर अपने पति की हत्या की...फिर बाद में अपने एक 'साथी' की पत्नी को जलाकर मार डाला...जब महिला की जवान बेटी ने मां का विरोध करना शुरू किया तो उसे भी ज़हर पिलाकर मौत की नींद सुला दिया... कुछ वक़्त पहले एक एक युवक ने अपनी मां की उम्र की महिला से अवैध संबंध के चलते अपनी पत्नी और दो मासूम बच्चों को जलाकर मौत की नींद सुला दिया...ऐसे कितने ही मामले मिल जाएंगे...कुछ लोगों की हवस कितनी ही ख़ुशहाल ज़िन्दगियों को निग़ल जाती है...

क़ानून किसी को उसके जुर्म की सज़ा तो दे सकता है, लेकिन किसी का चरित्र नहीं बदल सकता...यह तो अपने-अपने संस्कारों की बात होती है...इंसान के जैसे संस्कार होंगे, वो भी वैसा ही बनेगा...अच्छे संस्कार एक मां ही देती है... एक अच्छी बेटी ही एक अच्छी पत्नी साबित होती है...और एक अच्छी पत्नी ही एक अच्छी मां बनती है...लेकिन जो महिला ख़ुद ही किसी मासूम के क़त्ल की वजह हो, उसने अपने बच्चों को क्या संस्कार दिए होंगे कहने की ज़रूरत नहीं.
 
वो कहानी तो सुनी होगी, जिसमें राजकुमारी अपने राज्य में मेहमान के तौर पर आए राजकुमार के से साथ भाज जाना चाहती है...राजकुमार घोड़ा ख़रीदने जाता है...घोड़े वाले उसे घोड़े दिखाते हुए तेज़ दौड़ने वाली घोड़ी की क़ीमत बहुत कम बताता है. राजकुमार जब इसकी वजह पूछता है तो घोड़े वाला कहता है कि यह पानी देखकर रुक जाती है...इसी तरह इसकी मां और नानी भी पानी देखकर रुक जाया करती थी...यह सुनकर राजकुमार सोचता है कि आज राजकुमारी अपने पिता की गरिमा को धूल में मिलाकर मेरे साथ भाग जाना चाहती है...कल इसकी बेटी भी ऐसा ही करेगी...यह ख़्याल आते ही राजकुमार वापस अपने देश लौट जाता है...

उस महिला के शौहर और बच्चों पर क्या गुज़रती होगी...? तसव्वुर करके ही रूह कांप जाती है... क़ाबिले-गौर यह भी है कि यह सब "प्रेम-प्यार" के नाम पर होता है. जबकि ऐसे लोग प्रेम का मतलब तक नहीं जानते... 'वासना' को 'प्रेम' के आवरण से छुपाया नहीं जा सकता...प्यार तो राह दिखाता है, भटकाता नहीं है...मीडिया के लोग बख़ूबी जानते हैं कि हर रोज़ कितने ऐसे मामले आते हैं. यह मामले भी उस वक़्त सामने आते हैं, जब किसी किसी का क़त्ल हो जाता है... 

नाजायज़ रिश्तों को लेकर भारतीय समाज में पुरुषों पर तो सब अंगुलियां उठा देते हैं...मगर हवस की भूखी महिलाओं का क्या...? जिस देश में 'सीता-सावित्री' जैसी देवियां हुई हैं, उस देश में ऐसी महिलाओं की भी कमी नहीं जो अपने बेटे की उम्र के लड़कों के साथ अवैध संबंध रखती हैं...बेशर्मी की हद तो यह कि उन लड़कों से कहती हैं कि उनके लिए 'करवा चौथ' का व्रत रखा है...कभी सावित्री ने यह नहीं सोचा होगा कि इस 'पवित्र व्रत' के नाम पर इतना 'अधर्म' होगा...? 

कहते हैं- वेश्याएं भी मजबूरी में अपना जिस्म बेचती हैं...लेकिन ऐसी महिलाओं को क्या कहेंगे, जो अपनी हवस में अंधी होकर अपने बेटे की उम्र के लड़कों के साथ अवैध संबंध बनाती हैं...?
हवस की भूखी जो महिला अपने बेटे की उम्र के लड़के के साथ नाजायज़ रिश्ता बनाती है, अगर वो अपने सगे बेटे से भी ऐसा रिश्ता बना ले तो हैरानी नहीं... ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जब महिलाओं ने अपने ही सगे बेटों के साथ यौन संबंध बनाकर इंसानियत को शर्मसार किया है...  

पिछले साल जुलाई में अमेरिका के मिशिगन शहर में एक 36 वर्षीय महिला ने मां-बेटे के रिश्ते की सारी मर्यादा तोड़ते हुए अपने ही 14 साल बेटे के साथ यौन संबंध स्थापित किया. ये वो महिला है, जिसने अपने इसी बच्चे को दूसरों की झोली में डालने के प्रयास किए थेअमेरिका की एक अदालत में जब एमी एल स्वॉर्ड नाम की इस महिला को पेश किया गया तो उसने अपना जुर्म स्वीकार किया. उसके वकील ने कोर्ट में कहा, कि जब दो साल पहले जब उसका बेटा 14 साल का था, वे अपने बेटे के संपर्क में आई तो उसे मां-बेटे के बजाय गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड जैसा रिश्ता महसूस हुआ. आवेश में आकर उसने यौन संबंध स्थापित किए. यह घटना ग्रांड रैपिड होटल की है. उसके बाद कई बार घर पर भी उसने संबंध स्थापित किए. अदालत ने सभी दलीलें सुनते हुए इसे यौन उत्पीड़न का मामला क़रार  देते हुए एमी को 30 साल की सज़ा सुनाई है. एमी शादीशुदा है और पांच बच्चों की मां भी हैइस बात का पता तब चला जब काउंसलर ने उसके बेटे से पूछताछ की.
 
पिछले साल अक्टूबर में सिडनी की एक अदालत में भी एक ऐसा ही शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया, जिसमें एक दंपत्ति पर साल 2009 में जनवरी से नवंबर के बीच में अपने बेटे यौन शोषण करने के आरोप लगे. दंपति पर बेटे से यौन संबंध का वीडियो बनाकर ऑनलाइन करने का भी आरोप लगा. अदालत में सुनवाई के दौरान  47 वर्षीय आस्ट्रेलियाई महिला और 57 वर्षीय उसके पति ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपने बेटे के साथ यौन संबंध स्थापित किए हैं

नाजायज़ रिश्ते कई ज़िन्दगियों की खुशियों को लील जाते हैं.  सवाल यह भी है कि जो महिला अपने पति और बच्चों की हुई तो उस लड़के कि क्या होगी.? जिस महिला को अपनी और अपने परिवार की मान-मर्यादा का ख़्याल नहीं तो वह किसी और की इज्ज़त का क्या ख़्याल करेगी

नाजायज़ रिश्ते समाज के लिए नासूर हैं. जब तक ऐसे संबंध रहेंगे मासूमों की ज़िंदगियां, उनकी खुशियां तबाह होती रहेंगी. नाजायज़ रिश्तों की शुरुआत भले ही आकर्षण से हो, लेकिन इनका अंजाम बहुत ही घृणित होता है.


आओ दुआ करें कि ईश्वर हमारी बहन-बेटियों कोउनकी ज़िन्दगी को हवस के दरिन्दों (महिला हो या पुरुषसे बचाकर रखे... साथ ही यह भी दुआ करना कि उस दरिन्दे को उसके किए की सज़ा मिले...और हमारी सहेली की रूह को सुकून हासिल हो... आमीन