Wednesday, August 1, 2012

राहुल गांधी निभाएंगे बड़ी भूमिका




-फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जल्द ही पार्टी संगठन  और सरकार में एक बड़ी भूमिका में नज़र आएंगे. पार्टी  संगठन  में उनकी बड़ी  भूमिका पर काम शुरू हो चुका  है.  अब तक राहुल ने सिर्फ़ उत्तर प्रदेश तक ही ख़ुद को सीमित रखा था, लेकिन अब वह इस साल होने वाले तीन राज्यों गुजरात, हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा के विधानसभा चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाएंगे. उन्होंने इन राज्यों में टिकटों के वितरण से लेकर चुनावी रणनीति तय करने में अपनी युवा टीम को ज़िम्मेदारी सौंप कर इसके साफ़ संकेत दे दिए हैं कि इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में उनका पूरा दख़ल रहेगा. हिमाचल प्रदेश के लिए बनी स्क्रीनिंग कमेटी में शीला दीक्षित को अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि लंबे वक़्त तक राहुल के साथ संबद्ध सचिव रहे गृह राज्यमंत्री भंवर जितेंद्र सिंह को सदस्य के तौर पर रखा गया  है. इसी  तरह त्रिपुरा में केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग राज्यमंत्री जितिन प्रसाद टिकट बटवारे का काम देखेंगे. गुजरात में स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री डॉ. सीपी जोशी को बनाया गया है, जबकि टीम राहुल के प्रमुख सदस्य पेट्रोलियम राज्यमंत्री आरपीएन सिंह इसमें सदस्य के तौर पर रहेंगे.

वहीं, सरकार में सोनिया गांधी की ख्वाहिश के मुताबिक़ राहुल के प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री के नए किरदार को मंज़ूर करने पर फ़िलहाल मंथन जारी है. पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती हैं कि राहुल अब सरकार में प्रशासनिक अनुभव भी लें. राहुल संगठन में पिछले आठ साल से सक्रिय हैं. आगामी लोकसभा चुनाव से पहले वह प्रशासनिक स्तर पर भी अनुभवी हो जाएं तो बेहतर है.  इस नज़रिये से सोनिया और उनके सलाहकार चाहते हैं कि राहुल को प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री के तौर पर भूमिका निभानी चाहिए. इससे उन्हें सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय की कार्यप्रणाली और उनकी ज़िम्मेदारियों का अनुभव होगा. प्रधानमंत्री कार्यालय के अलावा उनके लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय का विकल्प भी तलाशा गया है,  मगर राहुल सरकार में किस स्वरूप में शामिल होंगे, इस पर अभी फ़ैसला नहीं हो सका है.

कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अलावा अब पार्टी के वरिष्ठ नेता भी यह चाहते हैं कि राहुल गांधी जल्द ही सरकार और संगठन में बड़ी भूमिका निभाएं. पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी तो पहले ही साफ़ कह चुकी हैं कि यह फ़ैसला राहुल को करना है. सोनिया गांधी के इस बयान के बाद राहुल ने भी कह दिया कि वह कोई भी बड़ी ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं. अब यह फ़ैसला पार्टी और सरकार को करना है कि वे राहुल को क्या ज़िम्मेदारी देना चाहते हैं. केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाए जाने की मांग का समर्थन किया है. चिदंबरम ने कहा है कि वह राहुल गांधी को किसी भी पद पर आसीन किए जाने का स्वागत करेंगे. उन्होंने केरल के एक प्रमुख समाचार चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा है कि राहुल गांधी सरकार, पार्टी या सदन में कोई भी पद स्वीकार कर सकते हैं.  मुझे यक़ीन है कि वह इनमें से किसी भी पद पर अच्छा काम करेंगे. चिदंबरम ने  कहा कि गांधी को किस पद पर नियुक्त किया जाएगा, इसका फ़ैसला कांग्रेस अध्यक्ष को प्रधानमंत्री की सलाह से करना है. उधर, राहुल गांधी को बड़ी भूमिका देने बढ़ती मांग के बीच पार्टी के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का कहना है कि 2014 लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए उन्हें संगठन में आना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस वक़्त हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती आम चुनाव है. इसलिए राहुल को सरकार की बजाय चुनाव की तैयारी के लिए पार्टी संगठन में आना चाहिए.

गौरतलब है कि हाल में कांग्रेस के दस सांसदों ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर राहुल गांधी को लोकसभा का नेता बनाए जाने की मांग की है. सांसदों ने पत्र में लिखा है कि यह वक़्त की ज़रुरत है, क्योंकि मौजूदा मुद्दों पर राहुल सबसे अधिक प्रभावी तरीक़े से बोल सकते हैं. सदन के बाहर और भीतर उनकी बेहद ज़रूरत है. सांसदों ने कहा है कि देश की पचास फ़ीसदी से ज़्यादा युवा आबादी किसी युवा को ही अपना नेता देखना चाहती है. हाल के वर्षों में राहुल सबसे अधिक स्वीकार्य नेता के रूप में उभरे हैं. ऐसे में पार्टी अध्यक्ष को फ़ौरन फ़ैसला करना चाहिए. चिट्ठी में कहा गया है कि प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद राहुल को नेतृत्व सौंपना और ज़रूरी हो गया है.

सीएनएन-आईबीएन और सीएनबीसी-टीवी 18 टीवी नेटवर्क  के सर्वे के मुताबिक़ ज़्यादातर लोगों की राय है कि राहुल गांधी को देश का अगला प्रधानमंत्री बनना चाहिए. देश के 20 राज्यों में किए गए इस सर्वे के मुताबिक़ कांग्रेस शासित राज्यों के 42 फ़ीसदी लोग चाहते हैं कि राहुल देश की कमान संभालें, जबकि 32 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि जल्द ही मनमोहन सिंह की जगह ले लेनी चाहिए. कुल 39 हज़ार लोगों में से महज़ 22 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद पर बने रहना चाहिए. वहीं 54 फ़ीसदी लोगों का कहना है कि राहुल ग़रीबों के हितैषी और भरोसेमंद नेता हैं. उनके सामने कांग्रेस पार्टी का कोई नेता नहीं टिक पाया. दरअसल, राहुल की सादगी ही उन्हें लोकप्रिय और ख़ास बनाती है. महलों में रहकर भी वह आम आदमी के बीच घुलमिल जाते हैं. जब भ्रष्टाचार और महंगाई के मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का चौतरफ़ा विरोध हो रहा था, ऐसे वक़्त  में राहुल ने गांव-गांव जाकर जनमानस से एक भावनात्मक रिश्ता क़ायम किया. राहुल ने लोगों से मिलने का कोई मौक़ा नहीं छो़ड़ा.  भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर राहुल गांधी द्वारा निकाली गई पदयात्रा से सियासी हलक़ों में चाहे जो प्रतिक्रिया हुई हो, लेकिन यह हक़ीक़त है कि राहुल ने ग्रामीणों के साथ जो वक़्त बिताया, उसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे. इन लोगों के लिए यह किसी सौग़ात से कम नहीं था कि उन्हें युवराज के साथ वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिला.

अपनी पदयात्रा के दौरान पसीने से बेहाल राहुल ने शाम होते ही गांव बांगर के किसान विजय पाल की खुली छत पर स्नान किया. फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद उन्होंने घर पर बनी रोटी, दाल और सब्ज़ी खाई. ग्रामीणों ने उन्हें पूड़ी-सब्ज़ी की पेशकश की, लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया. गांव में बिजली की क़िल्लत रहती है, इसलिए ग्रामीणों ने जेनरेटर का इंतज़ाम किया था, लेकिन राहुल ने पंखा भी बंद करवा दिया. वह एक आम आदमी की तरह ही बांस और बांदों की चारपाई पर सोए. यह कोई पहला मौक़ा नहीं था, जब राहुल गांधी इस तरह एक आम आदमी की ज़िंदगी गुज़ार रहे थे. इससे पहले भी वह रोड शो कर चुके हैं और उन्हें इस तरह के माहौल में रहने की आदत है. कभी वह किसी दलित के घर भोजन करते हैं तो कभी किसी मज़दूर से साथ ख़ुद ही परात उठाकर मिट्टी ढोने लगते हैं. राहुल का आम लोगों से मिलने-जुलने का यह जज़्बा उन्हें लोकप्रिय बना रहा है. राहुल जहां भी जाते हैं, उन्हें देखने के लिए, उनसे मिलने के लिए लोगों का हुजूम इकट्ठा हो जाता है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि "हां, मैं ग़रीबों का दुख-दर्द देखकर, प्रदेश की दुर्दशा देखकर पागल हो गया हूं. कोई कहता है कि राहुल गांधी अभी बच्चा है, वह क्या जाने राजनीति क्या होती है. तो मेरा कहना है कि हां, मुझे उनकी तरह राजनीति करनी नहीं आती. मैं सच्चाई और साफ़ नीयत वाली राजनीति करना चाहता हूं. मुझे उनकी राजनीति सीखने का शौक़ भी नहीं है. मायावती कहती हैं राहुल नौटंकीबाज़ है. तो मेरा कहना है कि अगर ग़रीबों का हाल जानना, उनके दुख-दर्द को समझना, नाटक है तो राहुल गांधी यह नाटक ताउम्र करता रहेगा.’’

राहुल के विरोधी तर्क देते हैं कि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा में कोई करिश्मा नहीं कर पाए. इनका ऐसा सोचना सही नहीं है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस की जो हालत है, उसे देखते यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि अगर यहां राहुल ने प्रचार न किया होता तो, कांग्रेस के लिए खाता खोलना भी मुश्किल हो जाता. उन्होंने 48 दिन उत्तर प्रदेश में गुज़ारे और 211 जनसभाएं कीं. अगर राहुल हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते तो कहा जा सकता था कि कांग्रेस के स्टार प्रचारक होने के बावजूद उन्होंने पार्टी उम्मीदवारों के लिए कुछ नहीं किया. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का यह कहना बिलकुल सही था कि अगर उत्तर प्रदेश में चुनाव नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं आते हैं, तो इसके लिए राहुल गांधी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि एक नेता माहौल बनाता है. इस माहौल को वोट और सीटों में तब्दील करना उम्मीदवारों और संगठन का काम है. इस चुनाव में राहुल गांधी ने बहुत मेहनत की है. इसे किसी भी सूरत में झुठलाया नहीं जा सकता है. राहुल के हाथ में कोई जादू की छड़ी तो नहीं है कि वह पल भर में हार को जीत में बदल दें. उत्तर प्रदेश कांग्रेस में जिस तरह से सीटों के बंटवारे को लेकर बवाल हुआ. बाहरी उम्मीदवारों को लेकर सवाल उठे और अपनों को टिकट दिलाने को लेकर अंदरूनी गुटबाज़ी सामने आई. हालांकि राहुल ने हालात को बहुत संभाला. राहुल ही बदौलत ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार बढ़ा. पार्टी के वोट बैंक में इज़ाफ़ा हुआ. क़ाबिले-गौर यह भी है कि कांग्रेस नेताओं की फ़िज़ूल की बयानबाज़ी और अति आत्मविश्वास ने भी पार्टी को नुक़सान पहुंचाया. तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि अगर कांग्रेस को उम्मीद के मुताबिक़ कामयाबी मिल जाती तो पार्टी नेता और ज़्यादा मगरूर हो जाते. ऐसे में 2014 के लोकसभा में कांग्रेस को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता.

बहरहाल, कांग्रेस को इस हार से सबक़ लेते हुए पार्टी संगठन को मज़बूत बनाना चाहिए. राहुल को यह नहीं भूलना चाहिए कि जंग जांबाज़ सिपाहियों के  दम पर जीती जाती है, मौक़ापरस्तों के सहारे नहीं. कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को कांग्रेस की बुनियाद मज़बूत करनी होगी. उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर कांग्रेसी बिना किसी परेशानी के उनसे मिल सके. उनके सामने अपनी बात रख सकें. उन्हें उन कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतना होगा, जो किसी भी वजह से पार्टी से दूर होते जा रहे हैं... अगर राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को मज़बूत करने में कामयाब हो गए तो फिर कांग्रेस के लिए आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव जीतना मुश्किल नहीं है.

Tuesday, July 31, 2012

राहुल गांधी के ख़िलाफ़ साज़िश का पर्दाफ़ाश




-फ़िरदौस ख़ान
पिछले माह हमने लिखा था- लगता है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के ख़िलाफ़ एक बड़ी साज़िश की जा रही है. इसी के तहत उन पर संगीन आरोप लगाए जा रहे हैं. अब यह हक़ीक़त सामने आ गई है कि राहुल गांधी को बदनाम करने के लिए साज़िश रची गई थी और इसी साज़िश के तहत ही उन पर बलात्कार का संगीन आरोप लगाया गया था. समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि उसकी पार्टी के आलाकमान ने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के ख़िलाफ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के लिए उकसाया था.

राहुल गांधी उभरते हुए नेता हैं और देश का युवा उन्हें प्रधानमंत्री देखना चाहता है. ऐसे में उनके ख़िलाफ़ साज़िशें रचे जाने से इनकार नहीं किया जा सकता है. उन पर लगे बलात्कार के आरोप की भी साज़िश से जोड़कर देखा जा रहा है. बहरहाल, इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने तो पहली ही सुनवाई में राहुल ख़िलाफ़ दाख़िल की गई याचिका को ख़ारिज कर दिया था. साथ ही याचिकाकर्ता पर 50 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए उसके ख़िलाफ़ सीबीआई जांच की भी सिफ़ारिश की थी. अब मामला सर्वोच्च न्यायालय में है.  

बहरहाल, कांग्रेस महासचिव और अमेठी के सांसद राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में एक लड़की और उसके माता-पिता को से बंधक बनाकर रखने और लड़की से बलात्कार के आरोपों से इनकार करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक हलफ़नामा दाख़िल किया है. हलफ़नामे में उन्होंने कहा, "ख़ुद पर लगाए गए बलात्कार और अपहरण के आरोपों से मैं पूरी तरह इनकार करता हूं. ये दोनों आरोप पूरी तरह ग़लत, तुच्छ, परेशान करने वाले और छवि को ख़राब करने के लिए सुनियोजित ढंग से लगाए गए हैं."

सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले साल छह अप्रैल को राहुल गांधी, उत्तर प्रदेश सरकार और चार अन्य लोगों को नोटिस जारी किया था. हलफ़नामे में कहा गया है, "हम आदरपूर्वक कहना चाहते हैं कि इस तरह के आरोपों के मामले गंभीरता से देखे जाने चाहिए." उसी के जवाब में राहुल गांधी ने यह हलफ़नामे दाख़िल किया. इलाहबाद उच्च न्यायालय ने समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते के ख़िलाफ़ सीबीआई जांच की भी सिफ़ारिश की थी, जिस पर न्यायमूर्ति वीएस सिरपुरकर और टीएस ठाकुर की खंड पीठ ने रोक लगा दी थी और सभी पक्षों से चार हफ़्तों में जवाब दाख़िल करने के लिए कहा था. राहुल गांधी ने न्यायमूर्ति एचएल दत्तू और सीके प्रसाद की खंडपीठ के सामने दायर हलफ़नामे में ये सारी बातें कही हैं.

गौरतलब है कि कि मध्य प्रदेश से समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक किशोर समरीते और गजेंद्र पाल सिंह ने  पिछले साल एक मार्च को राहुल गांधी के ख़िलाफ़ दो अलग-अलग बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थीं, जिनमें कहा गया था कि साल 2006 में राहुल गांधी अपने कुछ विदेशी मित्रों के साथ पार्टी के कार्यकर्ता बलराम सिंह के घर में रुके. उसी दिन से बलराम सिंह, उनकी पत्नी सावित्री और पुत्री सुकन्या ग़ायब हैं. याचिका में आरोप लगाया गया था कि राहुल गांधी ने सभी का अपहरण करके उन्हें बंदी बनाकर रखा है.

अदालत के 4 मार्च, 2011 के आदेश के तहत उत्तर प्रदेश के डीजीपी करमवीर सिंह ने कथित सुकन्या और उसके माता-पिता को अदालत में पेश किया और उन्होंने अदालत को बताया कि उन्हें किसी ने बंधक नहीं बनाया था. सुकन्या बताई जा रही ल़डकी ने अदालत को अपना असली नाम कीर्ति सिंह बताया, जबकि अपने पिता का नाम बलराम सिंह, मां का नाम सुशीला उर्फ़ मोहिनी होने की पुष्टि की. अमेठी थाना प्रभारी ने इन तीनों कथित बंदियों की शिनाख्त की.

इस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने राहुल गांधी के ख़िलाफ़ दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर ही 50 लाख रूपये का जुर्माना लगा दिया. इसके साथ ही खंडपीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि जुर्माने की रक़म एक महीने में जमा की जाए. इसके अलावा अदालत ने याचिकाकर्ताओं की सीबीआई जांच कराने का भी आदेश दिया. जस्टिस उमानाथ सिंह और जस्टिस सतीश चंद्र की बेंच ने कथित रूप से अमेठी में रहने वाली सुकन्या और उसके माता-पिता को राहुल द्वारा बंदी बना लिए जाने की खबर देने वाली एक वेबसाइट पर भी प्रतिबंध लगाने के आदेश दिए.

Wednesday, June 6, 2012

हिन्दुस्तान में कौन सा क़ानून लागू है...?



हमारे मुल्क हिन्दुस्तान में कौन सा क़ानून लागू है...भारतीय संविधान या शरीयत....? हम यह सवाल इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि हाल में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी मुस्लिम लड़की ने 15 साल की उम्र में प्यूबर्टी हासिल कर ली है, तो उसकी शादी ग़ैर क़ानूनी नहीं है. हाईकोर्ट के जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस एसपी गर्ग की बेंच ने अपने फ़ैसले में कहा, 'इस्लामिक क़ानून के मुताबिक़ कोई भी मुस्लिम लड़की बिना अपने माता-पिता की इजाज़त के शादी कर सकती है, बशर्ते उसने प्यूबर्टी हासिल कर ली हो. अगर उसकी उम्र 18 साल से कम भी है तो उसे अपने पति के साथ रहने का हक़ है.'

मुस्लिम नाबालिग़ लड़कियों की शादी पर सुप्रीम कोर्ट के कई फ़ैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा, ऐसे फ़ैसलों की रौशनी में यह साफ़ है कि तरुणाई की उम्र (अमूमन 15 साल) में शादी करने पर शादी अवैध नहीं ठहराई जा सकती है. हालांकि ऐसी लड़की के पास यह विकल्प है कि बालिग़ (18 साल) होने पर वह अपनी शादी को ख़ारिज कर सकती है.

दिल्ली हाई कोर्ट का यह फ़ैसला ऐतिहासिक माना जा रहा है. क़ाबिले गौर है कि  हिन्दुस्तानी क़ानून के मुताबिक़ शादी के वक़्त  लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की 21 साल होनी चाहिए...

Saturday, May 19, 2012

राहुल गांधी की आम ज़िन्दगी की चाह...




कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी एक ऐसी शख़्सियत के मालिक हैं, जिनसे शायद ही कोई मुतासिर हुए बिना रह सके... मुल्क की एक बड़ी सियासी पार्टी के एक नेता ने हमसे कहा था कि राहुल का विरोध करना उनकी पार्टी की नीति का एक अहम हिस्सा है, लेकिन ज़ाती तौर पर वो राहुल को बहुत पसंद करते हैं...पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल ने जितनी मेहनत की, शायद ही किसी और पार्टी के नेता ने की हो...लेकिन कांग्रेस के उन नेताओं ने ही राहुल की मेहनत पर पानी फेर दिया, जिन्हें राहुल ने अपना समझा...
बहरहाल, कुछ अरसा पहले दैनिक भास्कर में राहुल के बारे में एक लेख शाया हुआ था, पेश है वही तहरीर...
साल 2008 की गर्मियों में भारत के बेहतरीन बॉक्सिंग कोच और द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित ओमप्रकाश भारद्वाज के फोन की घंटी बजी. फोन भारतीय खेल प्राधिकरण से आया था. उन्हें बताया गया कि 10 जनपथ से कोई उनसे संपर्क करेगा. कुछ समय बाद नेहरू-गांधी परिवार के निजी स्टाफ में दो दशकों से ज़्यादा समय से कार्यरत पी माधवन ने उन्हें फ़ोन किया और एक असामान्य-सी गुज़ारिश की- राहुल गांधी बॉक्सिंग सीखना चाहते हैं. क्या भारद्वाज उन्हें सिखाएंगे? ‘मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ.’ तब 70 की उम्र को छू रहे भारद्वाज बताते हैं. ‘राहुल बॉक्सिंग रिंग में उतरने की योजना तो नहीं ही बना रहे होंगे. मैंने सोचा वह शायद आत्मरक्षा के गुर सीखना चाहते होंगे.’ हाथ आया मौक़ा गंवाने से पहले ही भारद्वाज फ़ौरन राज़ी हो गए. फ़ीस के तौर पर वह कुल इतना चाहते थे कि उन्हें घर से लाने-ले जाने की व्यवस्था करवा दी जाए. कक्षाएं 12 तुगलक लेन में होनी थीं, जहां राहुल रहते थे. भारद्वाज के लिए यह राहुल को क़रीब से जानने-समझने का भी मौक़ा था. न सिर्फ़ बॉक्सिंग सीख रहे छात्र के रूप में, बल्कि उस शख्स के रूप में भी जिसे भारत का भावी प्रधानमंत्री कहा जा रहा था. ‘वह हमेशा ज़्यादा के लिए तैयार रहते थे. वार्म अप के लिए अगर मैंने लॉन का एक चक्कर लगाने को कहा, तो वे तीन चक्कर लगा लेते.’

बॉक्सिंग सत्र 12 तुगलक लेन के लॉन पर हफ्ते में तीन दिन होते. कभी-कभी प्रियंका और उनके बच्चे भी राहुल को मुक्केबाज़ी के हुनर सीखते देखने आते. कई बार सोनिया भी वहां बैठकर देखतीं. ‘एक दिन प्रियंका ने मुझसे कहा कि मुझे भी सिखाइए.’ भारद्वाज बताते हैं. उन्होंने उतनी ही चुस्त-दुरुस्त छोटी बहन को भी मुक्केबाज़ी  की कुछ चालें समझाईं और उनके एक पंच पर दंग रह गए. ‘यह बहुत ख़ूबसूरत पंच था, उस शख़्स से तो इसकी उम्मीद ही नहीं की जा सकती थी, जो पहली बार मुक्केबाज़ी  में हाथ आज़मा रहा था.

जिस दिन इंदिरा गांधी की हत्या हुई, वह आख़िरी दिन जब राहुल और प्रियंका स्कूल गए. अगले पांच वर्ष उनकी पढ़ाई-लिखाई घर पर ही हुई. राजीव गांधी के शब्दों में ‘घूमने-फिरने और खेलकूद के शौक़ीन व्यक्ति होने के नाते राहुल ने खेलकूद में अपनी अभिरुचि को आगे बढ़ाने के रास्ते खोज लिए. उन्होंने तैराकी, साईलिंग और स्कूबा-डायविंग की और स्वैश खेला. अपने पिता की तरह उन्होंने दिल्ली के नज़दीक अरावली की पहाड़ियों पर एक शूटिंग रेंज में निशानेबाज़ी का प्रशिक्षण लिया और हवाई जहाज़ उड़ाना भी सीखा. खेलों में अभिरुचि की वजह से ही 1989 में उन्हें दिल्ली के बेहतरीन सेंट स्टीफेंस कॉलेज में दाख़िला मिला. नंबरों के बल पर तो उन्हें इस कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल सका, अलबत्ता पिस्टल शूटिंग में अपने हुनर की बदौलत स्पोर्ट्स कोटे में प्रवेश मिल गया. उन्होंने इतिहास ऑनर्स में नाम लिखवाया. वह सुरक्षा गार्डो के साथ कॉलेज आते और अक्सर क्लास में पीछे बैठते. रैगिंग के दौरान वह काफ़ी मज़े लेते, लेकिन कॉलेज में बाक़ी समय बहुत कम मौक़ों पर ही बोलते. एक साल और तीन महीने बाद उन्होंने सेंट स्टीफेंस कॉलेज छोड़ दिया. कॉलेज के प्रिंसीपल डॉ. अनिल विल्सन भी राहुल के अधबीच में कोर्स छोड़ देने के कारणों के बारे में अन्य लोगों की तरह सिर्फ़ अनुमान ही लगा पाते हैं.

उन्होंने पाया कि राहुल ज़मीन से जुड़े व्यक्ति थे और गांधी परिवार का सदस्य होने के नाज़-नख़रों से मुक्त थे. उन्हें लगा कि राहुल हर कहीं साये की तरह साथ चलती कड़ी सुरक्षा से असहज महसूस करते थे और संभवत: इसी वजह से उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. सेंट स्टीफेंस कॉलेज छोड़ने के फ़ौरन बाद राहुल अमेरिका चले गए और इकॉनोमिक्स के छात्र के तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया. वह बीस साल के थे. हार्वर्ड में अभी मुश्किल से एक साल ही बिताया था कि उनके पिता की हत्या हो गई. त्रासदी का असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा. राहुल हार्वर्ड छोड़कर लिबरल आर्ट्स के एक निजी संस्थान रॉलिन्स कॉलेज में पढ़ने के लिए विंटर पार्क, लोरिडा आ गए. इसकी वजह भी एक बार फिर सुरक्षा चिंताओं को ही बताया गया. अब तक सुरक्षा गार्डो की सतत पहरेदारी में ज़िन्दगी बिताते आ रहे नौजवान को इस उपनगरीय शहर ने, जिसे अमीर उद्योगपतियों ने प्रारंभ में रिसॉर्ट डेस्टिनेशन की तौर पर बसाया था, आदर्श माहौल मुहैया किया. यहां राहुल ने वह कोर्स पूरा किया, जिसमें दाख़िला लिया था और 1994 में कॉलेज में पढ़ाए जाने वाले छह मुख्य विषयों में से एक, इंटरनेशनल रिलेशंस में डिग्री के साथ ग्रेजुएट किया.

इसके बाद राहुल कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ने गए. उनके परदादा जवाहरलाल नेहरू भी 1907 से 1910 तक इसी कॉलेज में पढ़े थे और क़ानून की डिग्री ली थी. राजीव गांधी ने भी ट्रिनिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. राहुल ने डेवलपमेंट स्टडीज़ में एम फिल करने का विकल्प चुना, जिसे 1995 में पूरा किया.

ट्रिनिटी कॉलेज से उत्तीर्ण होकर राहुल फ़ौरन भारत नहीं लौटे. वह लंदन चले गए, जहां उन्होंने एक ग्लोबल मैनेजमेंट एंड स्ट्रैटजी कंसल्टेंसी फर्म, मॉनीटर ग्रुप, में काम किया. इसके सह-संस्थापक थे हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफ़ेसर माइकल यूजीन पोर्टर, जिन्हें ब्रैंड स्ट्रैटजी का अग्रणी आधिकारिक विद्वान माना जाता है. राहुल ने वहां तीन साल काम किया, लेकिन फ़र्ज़ी नाम से. उनके सहयोगियों को अंदाज़ तक नहीं था कि इंदिरा गांधी का पौत्र उनके बीच काम कर रहा है. प्रायवेसी की ज़रूरत के बारे में, जिससे वह हमेशा वंचित रहे, राहुल ने कहा, ‘अमेरिका में पढ़ाई के बाद मैंने जोखिम उठाया और अपने सुरक्षा गार्डो से छुटकारा पा लिया, ताकि इंग्लैंड में सामान्य ज़िन्दगी बिता सकूं.’ उनके पिता ने भी कभी ऐसी ही ज़रूरत महसूस की थी. प्रधानमंत्री बनने के बाद जब अपने और परिवार के लिए वक़्त निकालना मुश्किल हो गया और राजनीति की रफ़्तार ने उड़ान के जज़्बे को नेपथ्य में धकेल दिया, तब उन्होंने कहा था, ‘कभी-कभी मैं कॉकपिट में चला जाता हूं, बिल्कुल अकेला, और दरवाज़ा  बंद कर लेता हूं. मैं उड़ भले न सकूं, कम से कम कुछ देर के लिए दुनिया से अपने को अलग तो कर पाता हूं.’

उधर, राहुल इंग्लैंड में सामान्य जीवन जीने की कोशिश कर रहे थे, इधर भारत में उनकी मां सोनिया गांधी राजनीति में गहरे और गहरे उतरती जा रही थीं. 1997 में राजनीति में प्रवेश के बाद अब वह कांग्रेस का नेतृत्व कर रही थीं. इस दौरान प्रियंका उनके साथ खड़ी थीं, शक्तिस्रोत बनकर. कांग्रेस के भीतर शोर-शराबा बढ़ रहा था कि प्रियंका पार्टी में शामिल हों. राहुल को देश से बाहर रहते दस साल से ज़्यादा हो चुके थे, लेकिन राजनीति उन्हें पुकार रही थी और यह संकेत था कि उनके लौटने का वक़्त आ गया है. वह लौटे, 2002 में. भारत में आउटसोर्सिग इंडस्ट्री उछाल पर थी. पश्चिम की मल्टीनेशनल कंपनियां भारत का रुख़ कर रही थीं, ताकि काम तेज़ी से और सस्ते में करवाए जा सके. राहुल ने देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई में एक इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी आउटसोर्सिग फर्म, बेकॉप्स सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाई. इस बीपीओ उद्यम में सिर्फ़ आठ लोग काम करते थे और रजिस्ट्रार ऑफ़ कंपनीज में दर्ज आवेदन के मुताबिक़ इसका लक्ष्य था घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को सलाह व सहायता मुहैया करना, सूचना प्रौद्योगिकी में परामर्शदाता और सलाहकार की भूमिका निभाना और वेब सॉल्यूशन देना. राहुल, अपने पारिवारिक मित्र मनोज मट्टू के साथ, इसके निदेशकों में से एक थे. अन्य दो निदेशक थे - कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामेश्वर ठाकुर के बेटे अनिल ठाकुर और दिल्ली में रहने वाले रणवीर सिन्हा. दोनों ने 2006 में ‘निजी कारणों’ का हवाला देते हुए इस्तीफ़ा दे दिया. 2004 के आम चुनाव से पहले चुनाव आयोग को दिए हलफ़नामे के मुताबिक़ बेकॉप्स सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड में राहुल की हिस्सेदारी 83 फ़ीसद थी. कंपनी की बैलेंस शीट से पता चलता था कि यह एक छोटा व्यावसायिक उद्यम था.

2004 में राहुल के राजनीति में प्रवेश के कुछ समय बाद उनकी कंपनी ने सीईओ की तलाश के लिए विज्ञापन निकाला. ‘हम एक सीईओ की खोज में हैं, हालांकि मैं समय-समय पर कर्मचारियों के साथ मीटिंग करता हूं और बड़े मुद्दे सुलझाता हूं.’ जून 2004 में राहुल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा था. उस वक़्त कंपनी के पास तीन विदेशी ग्राहक थे और राहुल ने माना कि पहले साल कोई रेवन्यू नहीं आया. 2009 में, लोकसभा चुनाव से कुछ पहले, राहुल ने अपने को इस उद्यम से बाहर कर लिया. कांग्रेसियों के मुताबिक़ राजनीति के तक़ाज़ों में उन्हें बिजनेस चलाने के लिए वक़्त ही नहीं मिलता था.

राहुल की पढ़ाई-लिखाई में जैसे अवरोध आए, वैसे ही उनके कॅरियर में भी. लेकिन शारीरिक चुस्ती और रोमांचक खेलों को लेकर उनके जज़्बे में कभी कमी नहीं आई. दिन में कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो, वह व्यायाम के लिए वक़्त निकाल ही लेते. जिस साल उन्होंने बॉक्सिंग में क्रैश कोर्स किया, उसी साल पैराग्लाइडिंग में भी हाथ आज़माया.  अपनी मैनेजमेंट ट्रेनिंग का अच्छा इस्तेमाल करते हुए वह अमेठी से सात-आठ लोगों की एक टीम को महाराष्ट्र के कामशेट स्थित निर्वाणा एडवेंचर्स नामक एक लाइंग क्लब में ले गए. यह तीन दिनों का पैराग्लाइडिंग कोर्स था, जो 28 से 30 जनवरी 2008 तक चला. इसने टीम बिल्डिंग का भी काम किया. पश्चिमी घाट में पुणो से 85 किलोमीटर दूर कामशेट ऐसी जगह नहीं थी, जहां कोई राजनीतिज्ञ अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ एकत्र हो और काम पर चर्चा करे. लेकिन राजनीतिज्ञों की बंधी-बधाई लीक से हटकर चलने वाले राहुल के लिए असामान्य बात नहीं थी. सरसों के खेतों, शांत झीलों और प्राचीन बौद्घ गुफ़ा मंदिरों से सजी-धजी पहाड़ियों के बीच राहुल की अमेठी टीम सुबह पैराग्लाइडिंग के पाठ सीखती और शामें धुआंधार बहसों में बीततीं. कामशेट में उन्हें देखने वाले बताते हैं कि चर्चाएं हरेक के साथ सीधे होतीं. कौन छोटा है और कौन बड़ा यह सिर्फ़ तब पता चलता जब टीम राहुल को संबोधित करती. सभी उन्हें राहुल भैया कहते. राहुल और उनकी टीम के कामशेट पहुंचने से पहले उनकी मेज़बान एस्ट्रिड राव अपने इस शांत और मनोरम अंचल में एक हाईप्रोफाइल राजनेता के आगमन को लेकर ख़ासी आशंकित थीं. अपने शौहर संजय राव के साथ मिलकर निर्वाणा एडवेंचर्स की स्थापना करने वाली एस्ट्रिड मुतमईन थीं कि इस आगमन से इलाक़े की शांति भंग हो जाएगी. उन्होंने कहा, ‘मुझे यक़ीन था कि राहुल के साथ आने वाली कड़ी सुरक्षा व्यवस्था पूरे इलाक़े की घेराबंदी कर देगी.’ ऐसा कुछ नहीं हुआ. ‘हमारे कहे बग़ैर राहुल ने सुनिश्चित कर दिया कि गेस्ट हाउस के आसपास कोई भी वर्दीधारी या बंदूक़ धारी दिखाई न दे.

उनकी मौजूदगी से एक बार भी हमारी दिनचर्या में ख़लल नहीं पड़ा.’वे किसी भी दूसरे मेहमान की तरह वहां रहे. पहली रात राव दंपती ने आगंतुकों के लिए मेमना पकाया. बुफ़े सजा दिया गया. एस्ट्रिड बताती हैं, ‘मुझे देखकर ताज्जुब हुआ कि राहुल अपने साथियों को प्लेटें दे रहे थे. अपनी प्लेट भी वह ख़ुद किचन में रखकर आए.’ अगले दिन खाने के वक़्त राहुल रसोइये के पास गए और पूछा कि क्या कल रात का मेमना बचा हुआ है. कोच भारद्वाज भी राहुल को ग़ुरूर से मुक्त बताते हैं. ‘जब मैंने उन्हें सिखाना शुरू किया, मैं उन्हें सर या राहुल जी कहता.’ लेकिन दो दिन बाद राहुल ने अपने कोच से गुज़ारिश की, ‘मुझे सर मत कहिए. राहुल कहिए. मैं आपका शिष्य हूं.’ भारद्वाज बताते हैं, एक बार उन्होंने राहुल से कहा कि वह पानी पीना चाहते हैं. ‘पास ही सेवक खड़े थे, लेकिन उन्हें बुलाने की बजाय राहुल ख़ुद किचन में गए और गिलास में मुझे पानी लाकर दिया.’ और सीखने के बाद वह अपने गुरु को गेट तक छोड़ने आते.

कामशेट के पैराग्लाइडिंग स्कूल में राहुल ने पहला दिन लाइट ट्रैनर संजय राव के साथ बिताया, जिन्होंने उन्हें मैदानी प्रशिक्षण दिया. असली लाइट बाद के दो दिनों में सिखाई गई. ‘राहुल का परफॉर्मेस बहुत अच्छा था. उन्होंने ग्लाइडर उठाया और बस उड़ गए.’ संजय ने बताया. वह राहुल को अपने टॉप 10 फ़ीसदी छात्रों में शुमार करते हैं. ‘वह बहुत ध्यान से सुनते हैं, इसीलिए तेज़ी से सीखते हैं.’ जिन्होंने उन्हें देखा है, वे उन्हें ऐसा शख्स बताते हैं जो ‘हमेशा अपना एंटीना खुला रखता है.’ कामशेट में रहने के दौरान राहुल पड़ोस की झील में तैरने जाना चाहते थे, लेकिन उनके सुरक्षा गार्डो ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी. उन्होंने उनकी बात मानी. ‘यह बड़े दुख की बात थी, ख़ासकर जब वह बहुत एथलेटिक शख्स हैं और रोज़ 10 किलोमीटर जॉगिंग करते हैं.’ एस्ट्रिड बताती हैं. वह ऐसे शख्स भी नहीं हैं, जो वादा करके भूल जाएं. एस्ट्रिड को यह बात राहुल और उनकी टीम के कामशेट से जाने के एक महीने बाद पता चली. जब वह उन्हें अपना बगीचा दिखा रही थीं, राहुल ने उनसे कहा कि उनकी मां को भी बाग़वानी बहुत प्रिय है. उन्होंने बताया कि सोनिया के पास एक ख़ास किताब है जिसका वह अकसर  ज़िक्र करती हैं, लेकिन उस वक़्त वह उसका नाम याद नहीं कर सके. उन्होंने वादा किया कि दिल्ली जाकर वह किताब भेजेंगे. एक महीने बाद एस्ट्रिड को एक अप्रत्याशित पार्सल मिला. इसमें बाग़वानी की वही किताब थी, जिसकी राहुल ने चर्चा की थी. राहुल न तो भूलते नहीं हैं और न ही वह माफ़ करते हैं.

यह बात कुछ पत्रकारों को ख़ासी क़ीमत चुकाकर समझ आई. 22 जनवरी 2009 को एनएसयूआई ने राहुल के कहने पर पुलिस में एक शिकायत दर्ज की. दरअसल एक सभा स्थल से लंच ब्रेक के दौरान राहुल के भाषण और प्रेजेंटेशन के लिए तैयार नोट्स ग़ायब हो गए थे. घटना दिल्ली के कॉंस्टिट्यूशन क्लब में घटी, जहां पार्टी की एक वर्कशॉप आयोजित की गई थी. शक एक टीवी क्रू के सदस्यों पर था जो उस वक़्त हॉल में दाख़िल हुए थे, जब बाक़ी सब लोग खाना खाने चले गए थे. वहां क़रीब पच्चीस पत्रकार मौजूद थे. एनएसयूआई प्रमुख हिबी ईडन ने पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की. कहा जाता है कि यह क़दम  तभी उठाया गया जब राहुल ने ज़ोर डाला कि मामला पुलिस में दिया जाए. पत्रकार ज़्यादा से ज़्यादा सूचनाएं जुटाने के लिए अक्सर किसी भी हद तक चले जाते हैं, लेकिन सार्वजनिक नहीं की गई जानकारी हासिल करने की ग़रज़ से किसी के काग़ज़ उठा लेना, राहुल के लिए यह चोरी से कम नहीं था. दो दिनों तक पुलिस ने अलग-अलग चैनलों के तीन पत्रकारों को बुलाकर ग़ायब काग़ज़ों  के बारे में पूछताछ की. हालांकि राहुल की टीम के सदस्यों ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की कि आख़िरकार ये प्रेजेंटेशन के काग़ज़ात कागजात ही थे और उनमें कोई गोपनीय जानकारी नहीं थी, लेकिन वह पत्रकारों के ख़िलाफ़ कार्रवाई पर ज़ोर देते रहे.

19 जून 2011 को राहुल इकतालीस साल के हो गए. राजनेता की व्यस्त ज़िन्दगी जीने के बावजूद वह अपने शौक़ पूरे करते हैं और अपने माता-पिता की तरह सामान्य जीवन बिताने के रास्तों की तलाश में रहते हैं. जब उनके पति पायलट थे और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, तब सोनिया को अक्सर दिल्ली की खान मार्केट में सब्ज़ियां ख़रीदते देखा जाता था. उन्हें खाना पकाना बहुत प्रिय था. प्रियंका भी इसी बाज़ार से अपनी ख़रीदारी करना पसंद करती हैं. दुनिया की सबसे महंगी खुदरा हाई स्ट्रीट में शुमार खान मार्केट दिल्ली में राहुल का भी सबसे प्रिय हैंगआउट है. उन्हें बरिस्ता में कॉफी पीते या बाज़ार की बाहरी तरफ़ बुक शोप्स में किताबें पलटते देखा जा सकता है. उन्हें अपनी भांजी, मिराया और भांजे रेहान के साथ वक़्त बिताना भी बहुत अच्छा लगता है. 'ज़ाहिर तौर पर वह प्रियंका के बच्चों को बहुत स्नेह करते हैं.' कामशेट में उनके मेज़बान बताते हैं. पैराग्लाइडिंग यात्रा के दौरान वह हमेशा उनके और प्रियंका के बारे में बात करते थे. एस्ट्रिड बताती हैं, ‘वह अक्सर कहते थे कि प्रियंका को यहां आना चाहिए, लेकिन वह आलसी है.’

ख़ामोश शामें राहुल को जितनी अपील करती हैं, उतना ही फास्ट ट्रैक जीवन. यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में मनमोहन सिंह के साथ घनिष्ठ रूप से काम कर चुके एक अधिकारी ने कहा कि हाई-ऑ टेन ग्रां प्री सीजन के दौरान जब सिंगापुर की सड़कें फॉर्मूला वन रेसिंग ट्रैक में बदल जातीं, तब राहुल चुपचाप वहां के लिए उड़ जाते. वे दिनभर संगीत सभाओं और पार्टियों में शिरकत करते. उत्सुक बाइकर होने के साथ-साथ राहुल को अपने क़रीबी दोस्तों के समूह के साथ गो-कार्टिंग में भी बहुत आनंद आता है. अप्रैल 2011 में मुंबई में वर्ल्ड कप क्रिकेट मैच के दौरान एक दोपहर 1.30 बजे के आसपास राहुल पिज्जा, पास्ता और मैकिसकन  तोस्तादा सलाद की दावत के लिए चौपाटी बीच पर न्यू यॉर्कर रेस्त्रां पहुंच गए. उन्होंने वेटर से गपशप की और खाने का ख़र्च वहन करने के मैनेजर के आग्रह को ठुकरा दिया. फिर राहुल और उनके दोस्तों ने 2,233 रुपये का बिल आपस में बांट लिया.

Tuesday, May 8, 2012

वर्चुअल दोस्ती के ख़तरे...




-फ़िरदौस ख़ान
झूठ की बुनियाद पर बनाए गए रिश्तों की उम्र बस उस वक़्त तक ही होती है, जब तक झूठ पर पर्दा पड़ा रहता है. जैसे ही सच सामने आता है, वो रिश्ता भी दम तोड़ देता है. अगर किसी इंसान को कोई अच्छा लगता है और वो उससे उम्रभर का रिश्ता रखना चाहता है तो उसे सामने वाले व्यक्ति से झूठ नहीं बोलना चाहिए. जिस दिन उसका झूठ सामने आ जाएगा. उस वक़्त उसका रिश्ता तो टूट ही जाएगा, साथ ही वह हमेशा के लिए नज़रों से भी गिर जाएगा. कहते हैं- इंसान पहाड़ से गिरकर तो उठ सकता है, लेकिन नज़रों से गिरकर कभी नहीं उठ सकता. ऐसा भी देखने में आया है कि कुछ अपराधी प्रवृति के लोग ख़ुद को अति सभ्य व्यक्ति बताते हुए महिलाओं से दोस्ती गांठते हैं, फिर प्यार के दावे करते हैं. बाद में पता चलता है कि वो शादीशुदा हैं और कई बच्चों के बाप हैं. दरअसल, ऐसे बाप टाईप लोग हीन भावना का शिकार होते हैं. अपराधी प्रवृति के कारण उनकी न घर में इज्ज़त होती है और न ही बाहर. उनकी हालत धोबी के कुत्ते जैसी होकर रह जाती है यानी धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का. ऐसे में वे सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपना अच्छा सा प्रोफाइल बनाकर ख़ुद को महान साबित करने की कोशिश करते हैं. वह ख़ुद को अति बुद्धिमान, अमीर और न जाने क्या-क्या बताते हैं, जबकि हक़ीक़त में उनकी कोई औक़ात नहीं होती. ऐसे लोगों की सबसे बड़ी 'उपलब्धि' यही होती है कि ये अपने मित्रों की सूची में ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को शामिल करते हैं. कोई महिला अपने स्टेट्स में  कुछ भी लिख दे, फ़ौरन उसे 'लाइक' करेंगे, कमेंट्स करेंगे और उसे चने के झाड़ पर चढ़ा देंगे. ऐसे लोग समय-समय पर महिलाएं बदलते रहते हैं, यानी आज इसकी प्रशंसा की जा रही है, तो कल किसी और की. लेकिन कहते हैं न कि काठ की हांडी बार-बर नहीं चढ़ती. 

वक़्त दर वक़्त ऐसे मामले सामने आते रहते हैं. ब्रिटेन में हुए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि ऑनलाइन रोमांस के चक्कर में तक़रीबन दो लाख लोग धोखा खा चुके हैं. धोखा देने वाले लोग अपनी असली पहचान छुपाकर रखते थे और आकर्षक मॉडल और सेना अधिकारी की तस्वीर अपनी प्रोफाइल पर लगाकर लोगों को आकर्षित किया करते थे. ऐसे में सोशल नेटवर्किंग साइटों का इस्तेमाल करने वाले लोगों का उनके प्रति जुड़ाव रखना स्वाभाविक ही था, लेकिन जब उन्होंने झूठे प्रोफाइल वाले लोगों से मिलने की कोशिश की तो उन्हें सारी असलियत पता चल गई. कई लोग अपनी तस्वीर तो असली लगाते हैं, लेकिन बाक़ी जानकारी झूठी देते हैं. झूठी प्रोफाइल बनाने वाले या अपनी प्रोफ़ाइल में झूठी जानकारी देने वाले लोग महिलाओं को फांसकर उनसे विवाह तक कर लेते हैं. सच सामने आने पर उससे जुड़ी महिलाओं की ज़िन्दगी बर्बाद होती है. एक तरफ़ तो उसकी अपनी पत्नी की और दूसरी उस महिला की जिससे उसने दूसरी शादी की है.

बीते माह मार्च में एक ख़बर आई थी कि अमेरिका में एक महिला ने सोशल नेटवर्किंग साइट फ़ेसबुक पर अपने पति की दूसरी पत्नी को खोज निकाला. फ़ेसबुक पर बैठी इस महिला ने साइड में आने वाले पॉपअप ‘पीपुल यू मे नो’ में एक महिला को दोस्त बनाया. उसकी फ़ेसबुक पर गई तो देखा कि उसके पति की वेडिंग केक काटते हुए फोटो थी. समझ में नहीं आया कि उसका पति किसी और के घर में वेडिंग केक क्यों काट रहा है? उसने अपने पति की मां को बुलाया, पति को बुलाया. दोनों से पूछा, माजरा क्या है? पति ने पहली पत्नी को समझाया कि ज़्यादा शोर न मचाये, हम इस मामले को सुलझा लेंगे. मगर इतने बड़े धोखे से आहत महिला ने घर वालों को इसकी जानकारी दी. उसने अधिकारियों से इस मामले की शिकायत की. अदालत में पेश दस्तावेज़ के मुताबिक़  दोनों अभी भी पति-पत्नी हैं. उन्होंने तलाक़ के लिए भी आवेदन नहीं किया. अब दोषी पाए जाने पर पति को एक साल की जेल हो सकती है. पियर्स काउंटी के एक अधिकारी के मुताबिक़, एलन ओनील नाम के इस व्यक्ति ने 2001 में एलन फल्क के अपने पुराने नाम से शादी की. फिर 2009 में पति ओनील ने नाम बदलकर एलन करवा लिया था और किसी दूसरी महिला से शादी कर ली थी. उसने  पहली पत्नी को तलाक़ नहीं दिया था.

दरअसल, सोशल नेटवर्किंग साइट्स के कारण रिश्ते तेज़ी से टूट रहे हैं. अमेरिकन एकेडमी ऑफ मैट्रीमोनियल लॉयर्स के एक सर्वे में भी यह बात सामने आई है. सर्वे के मुताबिक़ तलाक़ दिलाने वाले क़रीब 80 फ़ीसद वकीलों ने माना कि उन्होंने तलाक़ के लिए सोशल नेटवर्किंग पर की गई बेवफ़ाई वाली टिप्पणियों को अदालत में एक साक्ष्य के रूप में पेश किया है. तलाक़ के सबसे ज़्यादा मामले फ़ेसबुक से जुड़े हैं. 66 फ़ीसद मामले फ़ेसबुक से, 15 फ़ीसद माईस्पेस से, ट्विटर से पांच फ़ीसद और बाक़ी दूसरी सोशल नेटवर्किंग साइट्स से 14 फ़ीसद मामले जुड़े हैं. इन डिजिटल फुटप्रिंट्स को अदालत में तलाक़ के एविडेंस के रूप में पेश किया गया. पिछले दिनों अभिनेत्री इवा लांगोरिया ने बास्केट बाल  खिलाड़ी अपने पति टोनी पार्कर का तलाक़ दे दिया. इवा का आरोप है कि फ़ेसबुक पर उसके पति टोनी और एक महिला की नज़दीकी ज़ाहिर हो रही थी. ब्रिटेन में भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स की वजह से तलाक़ के मामले तेज़ी से बढ़े हैं. अपने साथी को धोखा देकर ऑनलाइन बात करते हुए पकड़े जाने के कारण तलाक़ के मामलों में इज़ाफ़ा हुआ है. ब्रिटिश न्यूज पेपर 'द सन' के मुताबिक़, पिछले एक साल में फ़ेसबुक पर की गईं आपत्तिजनक टिप्पणियां तलाक़ की सबसे बड़ी वजह बनीं. रिश्ते ख़राब होने और टूटने के बाद लोग अपने साथी के संदेश और तस्वीरों को तलाक़ की सुनवाई के दौरान इस्तेमाल कर रहे हैं.

सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जहां कुछ फ़ायदें हैं, वहीं नुक़सान भी हैं. इसलिए सोच-समझ कर ही इनका इस्तेमाल करें. अपने आसपास के लोगों को वक़्त दें, उनके साथ रिश्ते निभाएं. सोशल नेटवर्किंग साइट्स के आभासी मित्रों से परस्पर दूरी बनाकर रखें.  कहीं ऐसा न हो कि आभासी फ़र्ज़ी दोस्तों के चक्कर में आप अपने उन दोस्तों को खो बैठें, जो आपके सच्चे हितैषी हैं.  (स्टार न्यूज़  एजेंसी)

Wednesday, April 4, 2012

युवराज के लिए एक संदेश


किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता उस पार्टी की बुनियाद का सबसे अहम हिस्सा होता है...इसलिए यह ज़रूरी है कि ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले और पार्टी के लिए खून-पसीना बहाने वाले कार्यकर्ताओं की क़द्र की जाए...उनकी पहुंच अपनी पार्टी के मुखिया तक होनी चाहिए...यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि कार्यकर्ता ही पार्टी की जान होते हैं...जिन पार्टियों ने अपने कार्यकर्ताओं को नज़र अंदाज़ किया उन्हें इसका ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ा... उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कामयाबी न मिलना इसकी ताज़ा मिसाल है...

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को कांग्रेस की बुनियाद मज़बूत करनी होगी... उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर कांग्रेसी बिना किसी परेशानी के उनसे मिल सके...उनके सामने अपनी बात रख सके... उन्हें उन कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतना होगा, जो किसी भी वजह से पार्टी से दूर होते जा रहे हैं... अगर राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को मज़बूत करने में कामयाब हो गए तो फिर कांग्रेस के लिए आगामी लोकसभा चुनाव जीतना कोई मुश्किल नहीं है...  
-फ़िरदौस ख़ान

Tuesday, March 13, 2012

कांग्रेस का एक और आत्मघाती क़दम...


लगता है, कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों से सबक़ नहीं लिया है... विजय बहुगुणा को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद कांग्रेस में कलह शुरू हो गई है... उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद के मज़बूत दावेदार रहे हरीश रावत के समर्थकों ने न केवल सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की, बल्कि पार्टी नेतृत्व के ख़िलाफ़ भी अपना आक्रोश जताया... ये लोग हरीश रावत को मुख्यमंत्री न बनाए जाने से नाराज़ हैं...अगर कांग्रेस चुनाव के वक़्त ही हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर देती तो पार्टी को बहुमत मिल सकता था...

गौरतलब है कि विजय बहुगुणा उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे और रीता बहुगुणा जोशी के भाई हैं... वह टिहरी गढ़वाल लोकसभा सीट से सांसद हैं... वह 14वीं लोकसभा में भी सदस्य थे... विजय बहुगुणा का जन्म इलाहाबाद में हुआ था... विजय बहुगुणा ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी की पढ़ाई की थी... इसके बाद वे इलाहाबाद हाई कोर्ट में बतौर वकील प्रैक्टिस करने लगे थे... बाद में वह जज भी बने...
बहरहाल, कांग्रेस जिस तरह के फ़ैसले ले रही है, उससे तो यही लगता है कि सत्ता से अब उसका मन भर गया है...

Tuesday, March 6, 2012

जंग जांबाज़ सिपाहियों के दम पर जीती जाती है...

फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुत मेहनत की, लेकिन पार्टी के कमज़ोर संगठन की वजह से उन्हें वो कामयाबी नहीं मिल पाई जिसकी उम्मीद की जा रही थी...यह राहुल का बड़प्पन है कि उन्होंने हार की ज़िम्मेदारी ख़ुद ली है...उन्होंने कहा, सबसे पहले मैं समाजवादी पार्टी, मुलायम सिंह यादव जी और अखिलेश को बधाई देना चाहता हूं कि यूपी की जनता ने उन्हें समर्थन दिया... और शुभकामनाएं देता हूं कि वो राज्य में अच्छा शासन करें... निश्चित रूप से मैंने यूपी चुनाव की ज़िम्मेदारी ली थी... मैं आगे खड़ा था, इसलिए ज़िम्मेदारी मेरी है... मैं हार की ज़िम्मेदारी लेता हूं... हम चुनाव लड़े, पूरी मेहनत से लड़े, अगर हार हुई है तो इसके भी कारण हैं... हमने मेहनत की, लेकिन रिजल्ट जो आया, इतना अच्छा नहीं आया... इसके बारे में हम फिर से सोचेंगे...उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की बुनियाद कमज़ोर थी... उस बुनियाद को जब तक हम ठीक नहीं करेंगे, तब तक ये कमज़ोरी दूर नहीं होगी... हालांकि कुल मिलाकर यूपी में कांग्रेस की स्थिति में सुधार आया है, लेकिन हमें उसे और सुधारना होगा... इस हार को मैं एक सीख की तरह देखता हूं... इस हार के बाद मैं शायद और गहन विचार करूंगा, जो एक अच्छी बात है...मैंने यूपी की जनता से वादा किया है कि मैं उनके साथ हर जगह खड़ा रहूंगा, उन्हें गांवों में, शहरों में, सड़कों पर किसानों और ग़रीब लोगों के साथ दिखाई दूंगा, तो मैं उनके साथ रहूंगा... मेरा काम चलता रहेगा... मेरा काम है जनता के दुख-दर्द को दूर करना, तो मैं वो करता रहूंगा...मेरी पूरी कोशिश होगी कि यूपी में हम कांग्रेस पार्टी को हम खड़ा करें और एक दिन वहां जीतें...

उत्तर प्रदेश कांग्रेस की जो हालत है, उसे देखते यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि अगर यहां राहुल ने प्रचार न किया होता तो, कांग्रेस के लिए खाता खोलना भी मुश्किल हो जाता...उन्होंने 48 दिन उत्तर प्रदेश में गुज़ारे और 211 जनसभाएं कीं... अगर राहुल हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते तो कहा जा सकता था कि कांग्रेस के स्टार प्रचारक होने के बावजूद उन्होंने पार्टी उम्मीदवारों के लिए कुछ नहीं किया...कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का यह कहना बिलकुल सही था कि अगर उत्तर प्रदेश में चुनाव नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं आते हैं, तो इसके लिए राहुल गांधी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता...क्योंकि एक नेता माहौल बनाता है. इस माहौल को वोट और सीटों में तब्दील करना उम्मीदवारों और संगठन का काम है... इस चुनाव में राहुल गांधी ने बहुत मेहनत की है...इसे किसी भी सूरत में झुठलाया नहीं जा सकता है...राहुल के हाथ में कोई जादू की छड़ी तो नहीं है कि वो पल भर में हार को जीत में बदल दें...उत्तर प्रदेश कांग्रेस में जिस तरह से सीटों के बंटवारे को लेकर बवाल हुआ...बाहरी उम्मीदवारों को लेकर सवाल उठे और अपनों को टिकट दिलाने को लेकर अंदरूनी गुटबाज़ी सामने आई...राहुल गांधी ने हालात को बहुत संभाला है...जो हुआ, सो हुआ...कांग्रेस के लिए अब ज़रूरी है कि वो आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र अपने संगठन को और मज़बूत बनाए...और ऐसी किसी भी ग़लती से बचे, जिससे विरोधियों को उसके ख़िलाफ़ आग उगलने का मौक़ा मिले...

क़ाबिले-गौर यह भी है कि कांग्रेस नेताओं की फ़िज़ूल की बयानबाज़ी और अति आत्मविश्वास ने भी पार्टी को नुकसान पहुंचाया है...तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि अगर कांग्रेस को उम्मीद के मुताबिक़ कामयाबी मिल जाती तो पार्टी नेता और ज़्यादा मगरूर हो जाते...ऐसे में 2014 के लोकसभा में कांग्रेस को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता (पड़ सकता है)...बेहतर यही है कि कांग्रेस को इस हार से सबक़ लेते हुए पार्टी संगठन को मज़बूत बनाना चाहिए...राहुल को यह नहीं भूलना चाहिए कि जंग जांबाज़ सिपाहियों के  दम पर जीती जाती है, मौक़ापरस्तों के सहारे नहीं...

मुबारकबाद...

उत्तर प्रदेश में पार्टी की जीत से समाजवादी पार्टी के नेता बहुत ख़ुश हैं... हमारे दोस्त (सपा नेता) चाहते हैं कि हम मुलायम सिंह जी की ताजपोशी के समारोह में शिरकत करें... इसके लिए वे हवाई जहाज़ की टिकटें भी भेज रहे हैं...
इस जीत के लिए उन्हें दिली मुबारकबाद...

Sunday, March 4, 2012

दिग्विजय सिंह ने जो कहा, सही कहा...


फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का यह कहना बिलकुल सही है कि अगर उत्तर प्रदेश में चुनाव  नतीजे पार्टी के पक्ष में नहीं आते हैं, तो इसके लिए राहुल गांधी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता...क्योंकि एक नेता माहौल बनाता है. इस माहौल को वोट और सीटों में तब्दील करना उम्मीदवारों और संगठन का काम है... इस चुनाव में राहुल गांधी ने बहुत मेहनत की है...इसे किसी भी सूरत में झुठलाया नहीं जा सकता है...राहुल के हाथ में कोई जादू की छड़ी तो नहीं है कि वो पल भर में हार को जीत में बदल दें...उत्तर प्रदेश कांग्रेस में जिस तरह से सीटों के बंटवारे को लेकर बवाल हुआ...बाहरी उम्मीदवारों को लेकर सवाल उठे और अपनों  को टिकट दिलाने को लेकर अंदरूनी गुटबाज़ी सामने आई...उसे देखते हुए यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि राहुल गांधी ने हालात को बहुत संभाला है...जो हुआ, सो हुआ...कांग्रेस के लिए अब ज़रूरी है कि वो आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र अपने संगठन को और मज़बूत बनाए...और ऐसी किसी भी बात से बचे, जिससे विरोधियों को उसके ख़िलाफ़ आग उगलने का मौक़ा मिले...  

क़ाबिले-गौर है कि  कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार में सभी सियासी दलों के नेताओं को पीछे छोड़ दिया... उन्होंने अब तक कुल 211 जनसभाएं कीं... उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन 14 नवम्बर से इलाहाबाद के फूलपुर से चुनाव मुहिम की शुरूआत की थी...हालांकि राहुल 12 नवम्बर को बाराबंकी से चुनाव प्रचार शुरू कर चुके थे... अमेठी के सांसद ने विधानसभा चुनाव में 48 दिन उत्तर प्रदेश में गुज़ारे... दिन और सभाओं के मामले में किसी भी पार्टी के नेता का यह सबसे लंबा दौरा था... अब तक किसी भी विधानसभा चुनावों में किसी भी राष्ट्रीय पार्टी के नेता ने इतनी सभाएं नहीं कीं...

Saturday, January 28, 2012

राहुल ने दिखाया विकास का सपना


फ़िरदौस ख़ान
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार की बागडोर संभाले हुए हैं. अपनी जनसभाओं में वह जिस तरह सांप्रदायिकता, जातिवाद, भ्रष्टाचार और अपराध को लेकर भारतीय जनता पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और समाजवादी पार्टी को निशाना बनाए हुए हैं, उससे सभी दलों के होश उड़े हुए हैं. कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी विपक्षियों पर सधे राजनीतिक अंदाज़ में हमले कर रहे हैं. एक संजीदा वक्ता की तरह तार्किक ढंग से वह विरोधी दलों की चुन-चुन कर व्यंग्यात्मक लहजे में जवाब दे रहे हैं. उनके इसी अंदाज़ से विपक्षी दलों में बौखलाहट पैदा हो गई है. वे समझ नहीं पा रहे हैं कि राहुल के ‘आम आदमी’ का कौन सा तोड़ निकालें.

राहुल गांधी भाजपा के 'इंडिया शाइनिंग' और लोकपाल पर उसके चरित्र की जमकर बखिया उधेड़ रहे हैं. वह भाजपा द्वारा बाबू सिंह कुशवाहा जैसे भ्रष्टाचारी नेताओं से हाथ मिलाने पर लोगों से सवाल करते हैं, तो उन्हें भीड़ से खुलकर जवाब भी मिलते हैं. उन्हीं जवाबों को आगे बढ़ाते हुए मंच से राहुल गांधी लोगों को बताते हैं कि ग़रीबों का मसीहा बनने वाले विपक्षी नेता कहते हैं कि राहुल गांधी पागल हो गया है, और इसके बाद वह आक्रामक हो जाते हैं. अपनी आस्तीनें चढ़ाकर हमलावर अंदाज़ में कहते हैं- ‘‘हां, मैं ग़रीबों का दुख-दर्द देखकर, प्रदेश की दुर्दशा देखकर पागल हो गया हूं. कोई कहता है कि राहुल गांधी अभी बच्चा है, वह क्या जाने राजनीति क्या होती है. तो मेरा कहना है कि हां, मुझे उनकी तरह राजनीति करनी नहीं आती. मैं सच्चाई और साफ़ नीयत वाली राजनीति करना चाहता हूं. मुझे उनकी राजनीति सीखने का शौक़ भी नहीं है. मायावती कहती हैं राहुल नौटंकीबाज़ है. तो मेरा कहना है कि अगर ग़रीबों का हाल जानना, उनके दुख-दर्द को समझना, नाटक है तो राहुल गांधी यह नाटक ताउम्र करता रहेगा.’’

राहुल गांधी अपनी पाठशाला में उत्तर प्रदेश को दो दशकों के राजनीतिक पिछड़ेपन, बदहाली से निकालने के लिए युवाओं से साथ का हाथ बढ़ाते हैं. इस दौरान राहुल यह बताना नहीं भूलते कि वह यहां चुनाव जीतने नहीं, उत्तर प्रदेश को  बदलने आए हैं. यह उनकी इस साफ़गोई का सपा, बसपा और भाजपा के पास कोई जवाब नहीं है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राहुल गांधी की बातों में दम है. उत्तर प्रदेश में अभी तक जितने भी काम हुए मसलन बुनकरों को राहत देने के लिए बुनकर पैकेज का ऐलान हो, बुंदेलखंड को दुर्दशा से निकालने के लिए बुंदेलखंड पैकेज का भारी-भरकम पैसा उपलब्ध कराना हो या फिर उत्तर प्रदेश के युवाओं के लिए राजनीति के दरवाज़े खोलने के लिए एशिया की सर्वोत्तम यूनिवर्सिटी बीएचयू में युवा राजनीति का अखाड़ा छात्र संघ बहाली का प्रयास हो, इन सब में राहुल की कोशिश और उनकी ईमानदारी के कारण ही कामयाबी मिली है.

यह हक़ीक़त है कि पिछले पांच सालों में वह हवाई नेताओं की तरह आसमान में नहीं उड़े और न ही किसी पंचतारा सेलिब्रिटी की तरह रथ पर चढ़कर ज़िलों का दौरा किया. उन्होंने खाटी देसी अंदाज़ में गांवों में रात रात बिताई. पगडंडियों पर कीचड़ की परवाह किए बिना चले और आम आदमी से बेलाग संवाद स्थापित करने की कोशिश की. आम आदमी को नज़दीक से जानने-समझने और अपना हाथ उसके हाथ में देने की पहल की.

राहुल गांधी एक परिपक्व राजनेता हैं. इसके बावजूद उन्हें अमूल बेबी कहना उनके ख़िलाफ़ एक साज़िश का हिस्सा ही कहा जा सकता है. भूमि अधिग्रहण मामले को ही लीजिए. राहुल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर जिस तरह पदयात्रा की, वह कोई परिपक्व राजनेता ही कर सकता है. हिंदुस्तान की सियासत में ऐसे बहुत कम नेता रहे हैं, जो सीधे जनता के बीच जाकर उनसे संवाद करते हैं. नब्बे के दशक में बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम ने गांव-गांव जाकर पार्टी को मज़बूत करने का काम किया था, जिसका फल बसपा को सत्ता के रूप में मिला. चौधरी देवीलाल ने भी इसी तरह हरियाणा में आम जनता के बीच जाकर अपनी एक अलग पहचान बनाई थी. दक्षिण भारत में भी कई राजनेताओं ने पद यात्रा के ज़रिये जनता में अपनी पैठ बनाई और सत्ता हासिल की.

कुल मिलाकर राहुल गांधी ऐसे क़द्दावर नेताओं की फ़ेहरिस्त में शुमार हो चुके हैं, जिनके तूफ़ान से विपक्षी सियासी दलों के  हौसले  पस्त हो जाते हैं. हालत यह हो गई है कि कोई सियासी दल दाग़ी को ले रहा है, तो कोई दग़ाबाज़ी को सहारा बना रहा है. अब कोई चारा न देखकर कुछ सियासी दल राहुल पर व्यक्तिगत प्रहार करने में जुट गए हैं.  मगर इससे राहुल गांधी को कोई नुक़सान नहीं होगा, क्योंकि राजनीति की विरासत को संभालने वाला यह युवा नेता अब युवाओं, और अन्य वर्गों के साथ-साथ बुजुर्गों का भी चहेता बन चुका है. राहुल गांधी की जनसभाओं में दूर-दूर से आए बुज़ुर्ग यही कहते हैं कि लड़का ठीक ही तो कह रहा है, यही कुछ करेगा. महिलाओं में तो राहुल गांधी लेकर काफ़ी क्रेज है. यह बात तो विरोधी दलों के नेता भी बेहिचक क़ुबूल  करते हैं. वे तो मज़ाक़ के लहजे में यहां तक कहते हैं कि अगर महिलाओं को किसी एक नेता को वोट देने को कहा जाए तो सभी राहुल गांधी को ही देकर आएंगी. राहुल युवाओं ही नहीं बच्चों से भी घुलमिल जाते हैं. कभी किसी मदरसे में जाकर बच्चों से बात करते हैं, तो कभी किसी मैदान में खेल रहे बच्चों के साथ बातचीत शुरू कर देते हैं. यहां तक कि गांव-देहात में मिट्टी में खेल रहे बच्चों तक को गोद में उठाकर उसके साथ बच्चे बन जाते हैं.

जब भ्रष्टाचार और महंगाई के मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का चौतरफ़ा विरोध हो रहा था, ऐसे वक़्त में राहुल गांव-गांव जाकर जनमानस से एक भावनात्मक रिश्ता क़ायम कर रहे थे. राहुल लोगों से मिलने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते. पिछले साल में वह भट्टा-पारसौल गांव गए. उन्होंने आसपास के गांवों का भी दौरा कर ग्रामीणों से बात की, उनकी समस्याएं सुनीं और उनके समाधान का आश्वासन भी दिया- इससे पहले भी 11 मई की सुबह वह मोटरसाइकिल से भट्टा-पारसौल गांव जा चुके हैं. उस वक़्त मायवती ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया था. इस बार भी वह गुपचुप तरीक़े से ही गांव गए. न तो प्रशासन को इसकी ख़बर थी और न ही मीडिया को इसकी भनक लगने दी गई. हालांकि उनके दौरे के बाद प्रशासन सक्रिय हो गया. इसी तरह बीती 29 जून को वह लखीमपुर में पीड़ित परिवार के घर गए और उन्हें इंसाफ़ दिलाने का वादा किया.

भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी द्वारा निकाली गई पदयात्रा से सियासी हलक़ों में चाहे जो प्रतिक्रिया हो रही हो, लेकिन यह हक़ीक़त है कि राहुल गांधी ने ग्रेटर नोएडा के ग्रामीणों के साथ जो वक़्त बिताया, उसे वे कभी नहीं भूल पाएंगे. इन लोगों के लिए यह किसी सौग़ात से कम नहीं है कि उन्हें कांग्रेस के युवराज के साथ वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिला. अपनी पदयात्रा के दौरान पसीने से बेहाल राहुल ने शाम होते ही गांव बांगर के किसान विजय पाल की खुली छत पर स्नान किया. फिर थोड़ी देर आराम करने के बाद उन्होंने घर पर बनी रोटी, दाल और सब्ज़ी खाई. ग्रामीणों ने उन्हें पूड़ी-सब्ज़ी की पेशकश की, लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया. गांव में बिजली की क़िल्लत रहती है, इसलिए ग्रामीणों ने जेनरेटर का इंतज़ाम किया, लेकिन राहुल ने पंखा भी बंद करवा दिया. वह एक आम आदमी की तरह ही बांस और बांदों की चारपाई पर सोये. यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब राहुल गांधी इस तरह एक आम आदमी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं. इससे पहले भी वह रोड शो कर चुके हैं और उन्हें इस तरह के माहौल में रहने की आदत है. कभी वह किसी दलित के घर भोजन करते हैं तो कभी किसी मज़दूर के  साथ ख़ुद ही परात उठाकर मिट्टी ढोने लगते हैं. राहुल का आम लोगों से मिलने-जुलने का यह जज़्बा उन्हें लोकप्रिय बना रहा है. राहुल जहां भी जाते हैं, उन्हें देखने के लिए, उनसे मिलने के लिए लोगों का हुजूम इकट्ठा हो जाता है. हालत यह है कि लोगों से मिलने के लिए वह अपना सुरक्षा घेरा तक तोड़ देते हैं.

राहुल समझ चुके हैं कि जब तक वह आम आदमी की बात नहीं करेंगे, तब तक वह सियासत में आगे नहीं ब़ढ पाएंगे. इसके लिए उन्होंने वह रास्ता अख्तियार किया, जो बहुत कम लोग चुनते हैं. वह भाजपा की तरह एसी कल्चर की राजनीति नहीं करना चाहते. राहुल का कहना है कि उन्होंने किसानों की असल हालत को जानने के लिए पदयात्रा शुरू की, क्योंकि दिल्ली और लखनऊ के एसी कमरों में बैठकर किसानों की हालत पर सिर्फ़ तरस खाया जा सकता है, उनकी समस्याओं को न तो जाना जा सकता है और न ही उन्हें हल किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता रामकुमार भार्गव कहते हैं कि राहुल गांधी को भारी जनसमर्थन मिल रहा है, जिससे पार्टी कार्यकर्ता बहुत उत्साहित हैं. दरअसल, राहुल गांधी कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं. हर उम्मीदवार यही चाहता है कि वह उसके लिए जनसभा को संबोधित करें. उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों में भी वह चुनाव प्रचार कर रहे हैं.  

बहरहाल, उत्तर प्रदेश के सियासी माहौल से तो यही लग रहा है कि जनता अब बदलाव चाहती है. लोग कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के उत्तर प्रदेश के विकास के सपने को सच करने के लिए कितना उनका साथ दे पाते हैं, यह तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा. लेकिन इतना ज़रूर है कि इस युवराज ने यहां के बाशिंदों को विकास एक ऐसा सपना ज़रूर दिखा दिया है, जिसमें पलायन के लिए कोई जगह नहीं है.