Friday, February 23, 2018

उप चुनाव बताएंगे हवा का रुख़

फ़िरदौस ख़ान
उत्तर प्रदेश और बिहार में लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं. उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा और बिहार की अररिया लोकसभा सीटों के लिए 11 मार्च को मतदान होना है. इसी दिन बिहार की जहानाबाद और भभुआ विधानसभा सीटों के लिए भी वोट डाले जाएंगे. चुनाव नतीजे 14 मार्च को आएंगे. सियासी दलों ने इन चुनावों में जीत हासिल करने के लिए कमर कस ली है. ये उप चुनाव जहां प्रतिष्ठा का सवाल बने हुए हैं, वहीं अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिहाज़ से भी अहम माने जा रहे हैं. सियासी दलों का मानना है कि ये चुनाव साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का रुख़ तय करेंगे.

उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें पहले भारतीय जनता पार्टी के पास थीं. भारतीय जनता पार्टी की पूरी कोशिश है कि वह अपनी इन सीटों पर दबदबा बनाए रखे. भारतीय जनता पार्टी के लिए गोरखपुर सीट जीतना इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट रही है. उन्होंने साल 1998 से लगातार पांच बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता है. इससे पहले उनके गुरु व गोरखनाथ मंदिर के पूर्व महंत अवैद्यनाथ मंहत यहां से तीन बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. यह सीट जीतकर वह पांच बार संसद तक पहुंचे हैं. इतना ही नहीं, किसी सत्ताधारी पार्टी के लिए वह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन जाती है, जो उसके शासक के पास रही हो.

कांग्रेस के लिए भी ये उप चुनाव बहुत अहम है. फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस का पुराना और गहरा रिश्ता रहा है. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू साल 1952 में इसी सीट से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे. उन्होंने साल 1952, 1957 और 1962 में लगातार तीन बार इस सीट पर जीत का परचम लहराया. पंडित जवाहर लाल नेहरू का जलवा यह था कि साल 1962 में समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस को हराने के लिए यहां से ख़ुद चुनाव लड़ा और शिकस्त खाई.  पंडित जवाहर लाल नेहरू की वजह से ही यह सीट बेहद ख़ास हो गई. पंडित जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित यहां से साल 1964 का उपचुनाव जीतकर सांसद बनीं. उन्होंने साल 1967 में यहां से जीत दर्ज की. संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि बनने के बाद साल 1969 में उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया. यहां हुए उपचुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र ने जीत हासिल की. इसके बाद साल 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के विश्वनाथ प्रताप सिंह ने यहां से चुनाव जीता. साल 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की उम्मीदवार कमला बहुगुणा ने जीत हासिल की, जो बाद में कांग्रेस में शामिल हो गईं. साल 1980 के चुनाव में लोकदल के उम्मीदवार बीडी सिंह ने यहां से चुनाव जीता. साल 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस के रामपूजन पटेल ने यहां से जीत दर्ज की. बाद में वह जनता दल में चले गए और साल 1989 और 1991 में भी उन्होंने जीत हासिल की. साल 1996 और 1998 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी के जंग बहादुर ने यहां से चुनाव जीता. साल 1999 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के ही धर्मराज पटेल और साल 2004 के आम चुनाव में बाहुबली अतीक़ अहमद ने यहां से जीत का परचम लहराया. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में यह सीट बहुजन समाज पार्टी के खाते में चली गई. यहां से बहुजन समाज पार्टी के कपिल मुनि करवरिया ने जीत दर्ज की. यह जीत बहुजन समाज के लिए इसलिए भी बहुत ख़ास थी, क्योंकि पार्टी के संस्थापक कांशीराम यह सीट हार गए थे. कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले फूलपुर लोकसभा क्षेत्र में पहली बार साल 2014 में केशव प्रसाद मौर्य ने जीत हासिल करके इसे भारतीय जनता पार्टी की झोली में डाल दिया.

समाजवादी पार्टी भी इन सीटों को हासिल करने के लिए जी जान लगा देना चाहती है. ऐसा करके वह विधानसभा में मिली हार के ज़ख़्म पर कुछ मल्हम लगाना चाहती है. भारतीय जनता पार्टी ने समाजवादी पार्टी से ही राज्य की सत्ता छीनी थी. समाजवादी पार्टी चाहती है कि अगर ये सीटें उसकी झोली में आ गईं, तो इससे पार्टी में एक नई जान आ जाएगी. इस जीत से पार्टी कार्यकर्ताओं में भी जोश पैदा होगा. उप चुनाव में समाजवादी पार्टी एकला चलो की राह पर चल रही है. समाजवादी पार्टी के विधानसभा में विपक्ष के नेता राम गोविंद चौधरी ने किसी भी दल के साथ गठबंधन से इंकार करते हुए कहा है कि दोनों सीटों पर उनके उम्मीदवार पार्टी के चुनाव निशान पर ही मैदान में उतरेंगे.

गौरतलब है कि गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफ़ा देने की वजह से ख़ाली हुई हैं. योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य अपनी-अपनी सीटों से इस्तीफ़ा देकर उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य बन गए हैं. उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में रहने के लिए प्रदेश की विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य होना ज़रूरी है. इस चुनाव में इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन भी मुद्दा बनी हुई है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने चुनाव आयोग से ईवीएम की बजाय मतपत्रों से मतदान कराए जाने की मांग की है.

उधर, बिहार में भी उपचुनाव को लेकर माहौल गरमाया हुआ है. बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड ने उपचुनाव से दूरी बना ली है. पार्टी का कहना है कि उसका कोई उम्मीदवार इस चुनाव में खड़ा नहीं होगा. सियासी गलियारे में कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का घटक दल यानी जनता दल यूनाइटेड ने भारतीय जनता पार्टी के दबाव में आकर उप चुनाव से किनारा किया है. भारतीय जनता पार्टी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र उप चुनाव जीतकर यह संदेश देना चाहती है कि जनता में उसकी पैठ अभी भी बनी हुई है.

बहरहाल,  कांग्रेस राजस्थान में हुए उप चुनाव में मिली जीत से उत्साहित है. कांग्रेस ने अलवर, अजमेर और मांडलगढ़ विधानसभा क्षेत्रों में हुए उप चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त दी थी. इसके अलावा कांग्रेस, समाजवादी पार्टी व अन्य विपक्षी दलों का यह भी मानना है कि जनता वादा ख़िलाफ़ी के लिए भारतीय जनता पार्टी को सबक़ सिखाएगी. हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नेता सभी सीटों पर जीत के दावे कर रहे हैं. अलबत्ता, सियासी दलों की जीत और हार जनता के हाथ में है.

Saturday, February 17, 2018

कौन बनेगा प्रधानमंत्री मोदी, राहुल या...


फ़िरदौस ख़ान
वक़्त कैसे बीतता है, पता ही नहीं चलता. कल की ही सी बात लगती है. अब फिर से आम चुनाव का मौसम आ गया. अगले ही बरस लोकसभा चुनाव होने हैं. सभी सियासी दलों ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं. अवाम में भी सरग़ोशियां बढ़ गई हैं. सबकी ज़ुबान पर यही सवाल है कि अगली बार किसकी सरकार आएगी. क्या भारतीय जनता पार्टी वापसी करेगी? अवाम ने जिन अच्छे दिनों की आस में भाजपा को चुना था, वो तो अभी तक नहीं आए और न ही कभी आने की उम्मीद है. ऐसे में क्या अवाम भाजपा को सबक़ सिखाएगी और देश की बागडोर एक बार फिर से कांग्रेस को सौंपेगी? अवाम कांग्रेस को चुनेगी, तो कांग्रेस की तरफ़ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा. क्या पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे?

हालांकि पार्टी की तरफ़ से यही दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा. कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख और मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहना है कि मोदी का विकल्प सिर्फ़ और सिर्फ़ राहुल गांधी ही हैं. कोई और नहीं हो सकता. कांग्रेस और देश के लोग राहुल गांधी को देश का अगला प्रधानमंत्री देखना चाहते हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली का भी यही कहना है कि पार्टी और युवाओं की महत्वाकांक्षा राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनते देखना है. वे कहते हैं कि राहुल गांधी अब नरेन्द्र मोदी से तुलना से परे हैं. वे एक मज़बूत व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं.
बेशक कांग्रेस नेता, कार्यकर्ता और पार्टी समर्थक राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, लेकिन क्या ख़ुद राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं?

ये जगज़ाहिर है कि अपने पिता की तरह ही राहुल गांधी भी सियासत में नहीं आना चाहते थे, लेकिन उन्हें सियासत में आना पड़ा.  साल 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस को शानदार जीत मिली थी और राहुल गांधी भी भारी मतों से चुनाव जीतकर सांसद बने थे. केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनी और डॊ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. लेकिन राहुल गांधी ने सरकार में कोई ओहदा नहीं लिया. वे पार्टी संगठन से ही जुड़े रहे. इसी तरह साल 2009 के आम चुनाव में भी कांग्रेस ने जीत का परचम लहराते हुए वापसी की और राहुल गांधी ने भी अपने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी में शानदार जीत हासिल की. क़यास लगाए जा रहे थे कि वे इस बार ज़रूर सरकार में कोई अहम ज़िम्मेदारी संभालेंगे, लेकिन इस बार भी उन्होंने सरकार में कोई ओहदा लेने से इंकार करते हुए संगठन को मज़बूत करने पर ही ज़्यादा ध्यान दिया. इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी चाहते, तो वे प्रधानमंत्री बन सकते थे. आज हालात और हैं, पहले उनकी मां सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी संभाल रही थीं, लेकिन आज राहुल गांधी ख़ुद इस ज़िम्मेदारी को निभा रहे हैं. अब उन पर दोहरी ज़िम्मेदारी है. पहली पार्टी संगठन को मज़बूत करने की और दूसरी खोया हुआ जनाधार हासिल करके पार्टी को हुकूमत में लाने की. क्या ऐसे हालात में वे ख़ुद प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे और पार्टी अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी किसी वरिष्ठ नेता को सौंप देंगे. या फिर ख़ुद पार्टी की ज़िम्मेदारी संभालते रहेंगे और किसी अन्य क़रीबी नेता को प्रधानमंत्री बनाने के लिए उसका नाम पेश करेंगे? पार्टी के क़रीबी सूत्रों का माना है कि राहुल गांधी अपने एक क़रीबी नेता को प्रधानमंत्री बनाना चाहेंगे. पार्टी का ये क़रीबी नेता उनके पिता राजीव गांधी का भी विश्वासपात्र रहा है. इस नेता के गांधी परिवार से गहरे रिश्ते हैं और राहुल गांधी की विदेश यात्रा में वह उनके साथ रहता है.

इसके बरअक्स अगर देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है, तो प्रधानमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार नरेन्द्र मोदी ही हो सकते हैं. ये नरेन्द्र मोदी की ही चतुराई थी कि पिछले लोकसभा चुनाव में हर तरफ़ मोदी-मोदी ही हो रहा था. भले ही मोदी भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार थे, लेकिन चुनाव में भाजपा कहीं नहीं थी. ऐसा लग रहा था कि ये चुनाव कांग्रेस और नरेन्द्र मोदी के बीच है. नरेन्द्र मोदी ने ख़ुद को पार्टी से बड़ा साबित करके दिखा दिया. भाजपाई ख़ुद मोदी लहर की बात कर रहे थे, मोदी नाम की सुनामी की बात कर रहे थे. इस बारे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का अपना ही नज़रिया है. वे मानते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में जो सरकार बनेगी, उसमें मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए कोई जगह नहीं होगी. वे ये भी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) जीतता भी है, तो उसके सहयोगी दल नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद पर स्वीकार नहीं करेंगे. ऐसे में मौजूदा गृहमंत्री राजनाथ सिंह के प्रधानमंत्री बन सकते है. इसकी वजह ये है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक द्ल नरेन्द्र मोदी से नाराज़ चल रहे हैं. ऐसे हालात में वे मोदी को फिर से मौक़ा नहीं देना चाहेंगे, हां अगर भारतीय जनता पार्टी बहुमत हासिल कर लेती है, तो फिर सहयोगी दलों का विरोध भी मोदी की राह में कोई रुकावट नहीं बन पाएगा.  क़ाबिले-ग़ौर है कि नरेन्द्र मोदी पिछले लोकसभा चुनाव से ही 2024 तक का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं. इसमें उन्हें कितनी कामयाबी मिलती है, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.

बहरहाल, इसी माह पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. त्रिपुरा में 18 फ़रवरी में मतदान होगा, जबकि मेघालय और नागालैंड में 27 फ़रवरी वोट डाले जाएंगे. तीनों राज्यों के चुनाव नतीजे 3 मार्च को आएंगे. इन तीनों ही राज्यों में विधानसभा सीटों की संख्या 60-60  है. गौरतलब है कि त्रिपुरा विधानसभा का कार्यकाल 6 मार्च को, मेघालय विधानसभा का 13 मार्च और नगालैंड विधानसभा का कार्यकाल 14 मार्च को पूरा हो रहा है. मेघालय में कांग्रेस हुकूमत में है और उसके विधायकों की संख्या 29 है. त्रिपुरा में सीपीआई (एम) 51 सीटों के साथ सत्ता में है. वह पिछले 25 साल से सत्तासीन है. नगालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट की सरकार है और उसके पास 45 सीटें हैं. इनके अलावा इसी साल कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव होने हैं. इन चुनावों के नतीजे आगामी लोकसभा चुनाव की राह तय करेंगे.

Wednesday, February 14, 2018

वेलेंटाइन डे और आप


कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं, जो हमें बिल्कुल भी पसंद नहीं होतीं... लेकिन हम उन्हें मिटा तो नहीं सकते, उनसे नफ़रत तो नहीं कर सकते... उन्हें बदल तो नहीं सकते... हो सकता है कि वो चीज़ें दूसरों को अच्छी लगती हों...

फ़िलहाल बात वेलेंटाइन डे की है... बहुत से लोगों को ये दिन बिल्कुल भी पसंद नहीं... इस दिन को नापसंद करने के लिए उनकी अपनी दलीलें हैं...
बहुत से लोगों को वेलेंटाइन अच्छा लगता है... वो इसे जज़्बात से जोड़ कर देखते हैं... कुछ लोगों के लिए ये दिन अपनी मुहब्बत के इक़रार करने का दिन है... कुछ लोगों के लिए ये दिन अपने परिवार के साथ कहीं बाहर घूम-फिर कर रोज़मर्रा की दुश्वारियों का तनाव दूर कर लेने का दिन है...

बहरहाल, वेलेंटाइन डे आप मनाएं या न मनाएं, या किस तरह मनाएं... आप अपने महबूब के साथ इसे मनाएं, अपने दोस्तों के साथ मनाएं, अपने वालदेन के साथ मनाएं, अपने भाई-बहनों के साथ मनाएं या फिर अपने बच्चों के साथ मनाएं... ये आपकी अपनी मर्ज़ी है...

Saturday, February 3, 2018

भाजपा की कांटों भरी राह

फ़िरदौस ख़ान
केन्द्र में सत्तारूढ़  भारतीय जनता पार्टी ने अगले साल होने वाले आमसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं. वह पिछली बार की तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन करना चाहती है. इसके लिए पार्टी चुनावी रणनीति भी बना रही है, लेकिन उसके लिए आम चुनाव की राह उतनी आसान नहीं है. इसकी सबसे बड़ी वजह है भारतीय जनता पार्टी सरकार की वादा ख़िलाफ़ी. साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने जो लोक लुभावन नारे दिए थे, जिनके बूते पर उसने लोकसभा चुनाव की वैतरणी पार की थी, अब जनता उनके बारे में सवाल करने लगी है. जनता पूछने लगी कि कहां हैं, वे अच्छे दिन जिसका इंद्रधनुषी सपना भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें दिखाया था. कहां हैं, वह 15 लाख रुपये, जिन्हें उनके खाते में डालने का वादा किया गया था. कहां है वह विदेशी काला धन, जिसके बारे में वादा किया गया था कि उसके स्वदेश में आने के बाद जनता के हालात सुधर जाएंगे.

भारतीय जनता पार्टी जिन वादों के सहारे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ी थी, सत्ता की कुर्सी पाते ही उन्हें भूल गई और ठीक उनके उलट काम करने लगी. भारतीय जनता पार्टी ने महंगाई कम करने का वादा किया था, लेकिन उसके शासनकाल में महंगाई आसमान छूने लगी. भारतीय जनता पार्टी ने महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों पर अंकुश लगाने का वादा किया था, लेकिन आए-दिन महिला शोषण के दिल दहला देने वाले कितने ही मामले सामने आ रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने किसानों को राहत देने का वादा किया था, लेकिन किसानों के ख़ुदकुशी के मामले थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने युवाओं को रोज़गार देने का वादा किया था, लेकिन रोज़गार देना तो दूर, नोटबंदी और जीएसटी लागू करके जो उद्योग-धंधे चल रहे थे, उन्हें भी बंद करने का काम किया है. भारतीय जनता पार्टी की सरकार जो भी फ़ैसले ले रही है, उनसे सिर्फ़ बड़े उद्योगपतियों को ही फ़ायदा हो रहा है. ऑक्सफ़ेम सर्वेक्षण के हवाले से कहा गया है कि पिछले साल यानी 2017 में भारत में सृजित कुल संपदा का 73 फ़ीसद हिस्सा देश की एक फ़ीसद अमीर आबादी के पास है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बारे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सवाल भी किया है. ग़ौरतलब है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं और उनकी सरकार पर अमीरों के लिए काम करने और उनके कर्ज़ माफ़ करने को लेकर लगातार हमला कर रहे हैं.
दरअसल, एक तरफ़ केन्द्र सरकार अमीरों को तमाम सुविधाएं दे रही है, उन्हें करों में छूट दे रही है, उनके कर माफ़ कर रही है, उनके क़र्ज़ माफ़ कर रही है. वहीं दूसरी तरफ़ ग़रीब जनता पर आए दिन नये-नये कर लगाए जा रहे हैं, कभी स्वच्छता के नाम पर, तो कभी जीएसटी के नाम पर उनसे वसूली की जा रही है. खाद्यान्नों और रोज़मर्रा में काम आने वाली चीज़ों के दाम भी लगातार बढ़ाए जा रहे हैं. मरीज़ों के लिए इलाज कराना भी मुश्किल हो गया है. दवाओं यहां तक कि जीवन रक्षक दवाओं और ख़ून के दाम भी बहुत ज़्यादा बढ़ा दिए गए हैं. ऐसे में ग़रीब मरीज़ कैसे अपना इलाज कराएंगे, इसकी सरकार को ज़रा भी फ़िक्र नहीं है. सरकार का सारा ध्यान जनता से कर वसूली पर ही लगा हुआ है.

इतना ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी ने आम चुनाव में कांग्रेस के जिस भ्रष्टाचार को, जिस घोटाले को अपने लिए प्रचार का साधन बनाया था, उन मामलों में भी अदालत में कांग्रेस पाक-साफ़ साबित हुई है.
टू जी स्पैक्ट्रम घोटाले में केन्द्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और कनिमोई सहित 17 आरोपियों को सभी मामलों में बरी कर दिया. न्यायाधीश ओपी सैनी ने अपने फ़ैसले में लिखा है, "मैं ये भी बता दूं कि बीते सात साल से हर दिन- गर्मी की छुट्टियों सहित, मैं सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक पूरी निष्ठा से खुली अदालत में बैठता था और इंतज़ार करता था कि कोई आए और अपने पास से कोई ऐसा सबूत दे जो क़ानूनी तौर पर मंज़ूर हो, लेकिन सब बेकार रहा. एक भी शख़्स सामने नहीं आया. इससे पता चलता है कि हर कोई अफ़वाहों, अनुमानों और गपशप से बनी आम राय के हिसाब से चल रहा था. लेकिन न्यायिक कार्यवाही में लोगों की इस राय की जगह नहीं है. "

इस फ़ैसले से यह साबित हो गया कि टू जी स्पैक्ट्रम घोटाला पूरी तरह से काल्पनिक और मनगढ़ंत था. कांग्रेस को बदनाम करके अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए बड़े लोगों को आरोपी बनाया गया था. यह फ़ैसला संयुक्त प्रगतिशाल गठबंधन के लिए राहत का सबब बना, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार और केन्द्रीय जांच ब्यूरो कठघरे में ज़रूर खड़े हो गए हैं. अल्पसंख्यकों और दलितों पर हो रहे लगातार हमलों को लेकर भी केन्द्र की मोदी सरकार पहले से ही सवालों के घेरे में है.

हालांकि कुछ समय पहले हुए गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया. भारतीय जनता पार्टी ने जहां गुजरात में अपनी सत्ता बचाई, वहीं हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस से सत्ता छीनी. इस साल देश के आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, मेघालय, मिज़ोरम और नागालैंड शामिल हैं. हालांकि भारतीय जनता पार्टी इस बात को लेकर आश्वस्त है कि इन विधानसभा चुनावों में भी वह अच्छा प्रदर्शन करेगी, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बहुत फ़र्क़ है. विधानसभा चुनाव जहां क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर लड़े जाते हैं, वहीं लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे छाये रहते हैं. भारतीय जनता पार्टी के सांसद इस बात को लेकर परेशान हैं कि वे चुनावों में जनता को क्या मुंह दिखाएंगे. जनता जब उनसे सवाल पूछेगी, तो सिवाय बग़ले झांकने के वे कुछ नहीं कर पाएंगे.

फ़िलहाल भारतीय जनता पार्टी अपना जनाधार बढ़ाने पर ख़ासा ध्यान दे रही है. उसने मिलेनियम वोटर कैंपेन नामक एक मुहिम शुरू की है. इस मुहिम में उन दो करोड़ युवाओं को शामिल करने की कोशिश की जाएगी, जो साल 2019 में पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इन युवाओं को पार्टी से जोड़ने के लिए सोशल मीडिया की मदद ली जाएगी. पिछले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने ज़्यादा से ज़्यादा युवाओं को जोड़ा था और उसे युवाओं का समर्थन भी मिला था. क़ाबिले-ग़ौर है कि ’मन की बात’ के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नये मतदाताओं पर ज़ोर देते हुए कहा था, 'हम लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए इक्कीसवीं सदी में पैदा हुए लोगों का स्वागत करते हैं, क्योंकि वे योग्य मतदाता बन जाएंगे. उनका वोट 'नये भारत का आधार' बन जाएगा.

बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी अपनी कोशिश में कितनी कामयाब हो पाती है, यह तो आने वाला वक़्त बताएगा. लेकिन इतना ज़रूर है कि उसकी राह कांटों भरी होगी, जो उसने अपनी राह में ख़ुद बोये हैं.