Thursday, May 31, 2018

जनता बेहाल, सरकार मालामाल

फ़िरदौस ख़ान 
केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने 26 मई को चार साल पूरे कर लिए हैं. इन चार सालों को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेता और सरकार अपनी कामयाबी के कितने ही दावे कर लें, लेकिन हक़ीक़त यही है कि हर मोर्चे पर केंद्र सरकार नाकारा ही साबित हुई है. हालत यह है कि आम आदमी को इंसाफ़ मिलने की बात तो दूर, ख़ुद सर्वोच्च न्यायालय के चार जजों को इंसाफ़ के लिए जनता के बीच आना पड़ा. अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए सरकार ने हमेशा ग़ैर ज़रूरी मुद्दों को हवा दी है.  अवाम ने शिक्षा की बात की, तो शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की बजाय जेएनयू और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में विवाद पैदा किए गए. अवाम ने रोज़गार मांगा, तो नोटबंदी कर उन्हें बैंक के सामने क़तारों में दिन-रात खड़ा रहने पर मजबूर कर दिया गया. स्वास्थ्य सेवाओं की बात करें, तो गोरखपुर के मृत बच्चों की लाशें सामने आ जाती हैं. ऒक्सीज़न की कमी से किस तरह वे तड़प-तड़प कर मौत की आग़ोश में चले गए. दरअसल, मुट्ठीभर अमीरों को छोड़कर देश की अवाम का बुरा हाल है. आलम ये है कि तीज-त्यौहारों के दिनों में भी लोगों के पास काम नहीं हैं. बाज़ार में भी मंदी छाई हुई है. दुकानदार दिन भर ग्राहकों का इंतज़ार करते है, लेकिन जब लोगों के पैसे होंगे, तभी तो वे कुछ ख़रीद पाएंगे. बड़े उद्योगपतियों को छोड़कर बाक़ी छोटे काम-धंधे करने वालों के काम ठप्प होकर रह गए हैं. बेरोज़गारी कम होने की बजाय दिनोदिन बढ़ रही है.

देश की अवाम त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है और ऐसे में केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी के नेता अपने चार साल के शासनकाल की उपलब्धियां गिनाते नहीं थक रहे हैं. बेशक इन चार सालों में केंद्र सरकार का काफ़ी भला हुआ है. उसके ख़ज़ाने लगातार भर रहे हैं. पेट्रोल पर भारी एक्साइज़ ड्यूटी से केंद्र को भारी मुनाफ़ा हुआ है. पिछले चार साल के दौरान इससे सरकार को 150 गुना ज़्यादा राजस्व मिला है. ग़ौरतलब है कि पिछली कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की एक्साइज़ ड्यूटी में मोदी सरकार 126 फ़ीसद बढोतरी कर चुकी है. पेट्रोल पर जहां केंद्र और राज्य सरकारें मालामाल होती हैं, वहीं उपभोक्ताओं को भारी नुक़सान होता है. केंद्र सरकार  पेट्रोल पर एक्साइज़ ड्यूटी लगाती है और राज्य सरकार अपने स्तर से वैट और बिक्री कर लगाती हैं, जिससे इसकी क़ीमत बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है. पिछले साल मार्च में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में बताया था कि एक अप्रैल 2014 को मोदी सरकार से पहले पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 9.48 रुपये और डीजल पर 3.56 रुपये थी. महज़ दो साल में एनडीए सरकार ने एक्साइज टैक्स में 126 फ़ीसद का इज़ाफ़ा किया, जिससे एक्साइज ड्यूटी बढ़कर 21.48 रुपये हो गई. डीज़ल पर भी एक्साइज टैक्स की दर ज़्यादा रही. मार्च 2016 तक डीजल पर चार बार एक्साइज़ ड्यूटी में बढ़ोतरी की गई, जिससे 3.56 से बढ़कर टैक्स 17.33 रुपये हो गया. इस दौरान मोदी सरकार ने 144 फ़ीसद ज़्यादा कमाई की. मोदी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2014-5 में सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी से 99.184  लाख करोड़, स्टेट वैट और सेल्स टैक्स से 137.157 लाख करोड़, साल 2015-16 में 178.591 और 142.848 और साल 2016-17 में 242.691 और 166.378 लाख करोड़ रुपये वसूले. यानी इससे सरकार जितना ज़्यादा फ़ायदा हुआ, जनता को उतना ही नुक़सान उठाना पड़ा.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी सरकार को तेल के दाम कम करने का चैलेंज देते हुए कहा था कि तेल की क़ीमते कम कीजिए, वरना हम आपको मजबूर कर देंगे. इसके बाद केंद्र सरकार ने डीज़ल और पेट्रोल की क़ीमत में एक पैसे की कमी कर दी. इस पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पर तंज़ करते हुए कहा है कि आपने पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों में एक पैसे की कटौती की है. एक पैसा!!  अगर ये आपका मज़ाक़ करने का तरीक़ा है, तो ये बचकाना और बेहद घटिया है. एक पैसे की कटौती मेरे द्वारा दिया गए फ्युएल चैलेंज का वाजिब जवाब नहीं है.

भारतीय जनता पार्टी  सरकार के शासनकाल में घोटाले भी ख़ूब हुए हैं. सूचना के अधिकार के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक से मांगी गई एक जानकारी के मुताबिक़ साल 2014-2015 से 2017-2018 के बीच देश के अलग-अलग बैंकों से 19000 से ज़्यादा धोखाधड़ी के मामले सामने आए हैं, जिनमें 90 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का घोटाला हुआ है. अप्रैल, 2017 से मार्च, 2018 के बीच बैंक धोखाधड़ी के 5152 मामले दर किए गए, जिनमें 28,459 करोड़ रुपये शामिल हैं.  इससे पहले साल 2016-17 में 5076 बैंक घोटाले हुए, जिनमें 23,933 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई. ग़ौरतलब है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय जैसी कई केंद्रीय जांच एजेंसियां उद्योगपतियों द्वारा किए गए धोखाधड़ी के मामलों की तफ़्तीश कर रही हैं. इनमें नीरव मोदी और मेहुल चोकसी द्वारा किया गया 12 सौ करोड़ से ज़्यादा का पंजाब नेशनल बैंक घोटाला भी शामिल है.

भले ही भारतीय जनता पार्टी जश्न मना रही है, लेकिन विपक्षी दल इसे विश्वासघात के तौर पर देख रहे हैं, वहीं अवाम भी सरकार से हिसाब मांगने लगी है. मोदी सरकार के चार साल पूरे होने पर कांग्रेस ने एक पोस्‍टर जारी किया है. कांग्रेस के राष्‍ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत का कहना है कि मोदी सरकार के चार साल जनता से विश्वासघात जैसा है. उन्होंने कहा कि आम आदमी का भरोसा सरकार से उठ चुका है. वामदलों ने भी सरकार पर जनता से विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि देश के सभी तबक़े सरकार से परेशान हैं.

क़ाबिले-ग़ौर है कि पिछले चार सालों में देश की हालत बद से बदतर हुई है. देश में मज़हब और जाति के नाम पर वैमन्य बढ़ा है, लोगों में अविश्वास बढ़ा है. उनका चैन-अमन प्रभावित हुआ है. उनकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी मुतासिर हुई है. दादरी के अख़्लाक हत्याकांड से समाज में कटुता बढ़ी, जबकि आरक्षण को लेकर चले आंदोलन की वजह से जातिगत वैमन्य बढ़ोतरी हुई है. बढ़ती महंगाई ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है. तीज-त्यौहारों के रंग फीके पड़ गए हैं, क्योंकि बेरोज़गारी और महंगाई की वजह से लोग ज़रूरत का पूरा सामान तक ख़रीद नहीं पा रहे हैं.

अब जब इस सरकार को चार साल पूरे हो गए हैं, तो ऐसे में लोग उन वादों के बारे में सवाल करने लगे हैं, जो भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आने से पहले जनता से किए थे.  तब लोगों को लगा था कि देश में ऐसा शासन आएगा, जिसमें सब मालामाल हो जाएंगे, मगर जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई और महंगाई ने अपना रंग दिखाना शुरू किया, तो लोगों को लगा कि इससे तो पहले ही वे सुख से ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे. ऐसा नहीं है कि अच्छे दिन नहीं आए हैं, अच्छे दिन आए हैं, लेकिन मुट्ठी भर अमीरों के लिए. बहरहाल, प्रधानमंत्री ने उन चुनावी वादों को चुनावी जुमले कहकर टाल चुके हैं, लेकिन जनता टालने के मूड में बिल्कुल नहीं है. 

Thursday, May 17, 2018

सियासत का मौसम बदला-बदला है...

फ़िरदौस ख़ान
सियासत का मौसम कब बदल जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. ये सियासत की ही ज़मीन है, जो सावन में भी ख़ुश्क रह जाए और सूखे में भी बिन बादल भीग जाए. कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को ही लें. कर्नाटक में पहली बार उन्होंने ख़ुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताकर सबको चौंका दिया है. चौंका इसलिए दिया है, क्योंकि सियासी गलियारे में अभी तक यही माना जा रहा था कि अगर 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस जीत हासिल करती है, तो वे अपने किसी क़रीबी और विश्वसनीय व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाना चाहेंगे. वे ख़ुद अपनी मां सोनिया गांधी की तरह पार्टी संगठन का ही काम देखेंगे और सरकार पर नज़र रखेंगे.  लेकिन राहुल गांधी के एक बयान ने सियासी माहौल को गरमा दिया है.

प्रधानमंत्री बनने के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, मैं क्यों पीएम नहीं बनूंगा, अगर 2019 का चुनाव जीते तो ज़रूर पीएम बन सकता हूं. अपने इस बयान से उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुली चुनौती दी है कि वे मुक़ाबले के लिए तैयार हैं. ये राहुल गांधी का हौसला और आत्मविश्वास ही है कि पिछले कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में हारने और सत्ता गंवाने के बाद फिर से संघर्ष के लिए खड़े हो जाते हैं. वे जानते हैं कि सियासत में कभी मौसम एक जैसा नहीं रहता. यहां कुछ भी स्थाई नहीं है. सत्ता कब किसके हाथ में आ जाए, कब किसके हाथ से फिसल जाए, कोई नहीं जानता.  वे जानते हैं कि जीत और हार, धूप और छांव की तरह हैं. और वक़्त कभी एक जैसा नहीं रहता. ये हर पल बदलता रहता है. वक़्त कभी उनके साथ रहा है, तो आज उनके विरोधियों के साथ है. कांग्रेस आज भले ही गर्दिश में है, लेकिन उसने कभी अपनी विचारधारा से अपने उसूलों के साथ समझौता नहीं किया. इसीलिए कांग्रेस आज भी इस देश की माटी में रची-बसी है. अवाम का मिज़ाज हमेशा कांग्रेस के साथ रहा है और आगे भी रहेगा. कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है, जिसे हर कोई अपनी पार्टी मानता है. कांग्रेस जनमानस की पार्टी रही है. कांग्रेस ने हमेशा इस देश की आत्मा और अपनी अनमोल व समृद्ध विरासत का प्रतिनिधित्व किया है. महात्मा गांधी ने कांग्रेस के बारे में कहा है, "कांग्रेस इस देश में रहने वाले सभी भारतीयों की है, चाहे वे हिन्दू हों, मुसलमान हों, ईसाई, सिख या पारसी हों." कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी कहते हैं, "जब भी मैं किसी देशवासी से मिलता हूं. मुझे सिर्फ़ उसकी भारतीयता दिखाई देती है. मेरे लिए उसकी यही पहचान है. अपने देशवासियों के बीच न मुझे धर्म, ना वर्ग, ना कोई और अंतर दिखता है." यही कांग्रेस की ख़ासियत है.

कांग्रेस हमेशा जनमानस का सहारा बनी और मुश्किल वक़्त में अवाम को हिम्मत दी. किसी भी देश की तरक़्क़ी के लिए, अवाम की ख़ुशहाली के लिए चैन-अमन सबसे ज़रूरी है. पिछले कुछ बरसों में देश में जो नफ़रत और ग़ैर यक़ीनी का माहौल बना है, उस ख़ौफ़ के माहौल में राहुल गांधी ने अवाम को यक़ीन दिलाया है कि वे उसकी हिफ़ाज़त करेंगे. वे उन लोगों की हिफ़ाज़त करने का भी वादा करते हैं, जो हमेशा उनके ख़िलाफ़ रहते हैं, उनके ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करते हैं. ऐसा राहुल गांधी ही कर सकते हैं, क्योंकि वे उस विरासत से ताल्लुक़ रखते हैं, जिसने देश की गरिमा को बढ़ाया. बेशक, कांग्रेस का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है. वे कांग्रेस के नेताओं ने इस देश के लिए अपना जान तक क़ुर्बान कर दी. देश को ग़ुलामी की ज़ंजीरों से आज़ाद कराने में महात्मा गांधी के योगदान को भला कौन भुल पाएगा. उन्होंने अपनी सारी ज़िन्दगी देश के नाम कर दी.  देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू आधुनिक भारत के निर्माताओं में अग्रणी रहे हैं. श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत को विश्व पटल पर चमकाया. श्री राजीव गांधी ने देश को, देश के युवाओं को नई राह दी, जिसकी बदौलत आज देश उन्नति के शिखर तक पहुंचा है. श्रीमती सोनिया गांधी ने भी देश के लिए बहुत कुछ किया है और आज भी कर रही हैं. जब भी देश और पार्टी पर कोई संकट आया, श्रीमती सोनिया गांधी आगे आईं.

क़ाबिले-ग़ौर है कि राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद श्रीमती सोनिया गांधी ने ख़्वाहिश ज़ाहिर की थी कि वे अब आराम करना चाहती हैं. माना जा रहा था कि वे अब सियासत से दूरी बना लेंगी. उन्होंने ऐसा किया भी. उन्होंने कुछ अरसे के लिए सियासी सरगर्मियों से फ़ासला रखा, लेकिन कांग्रेस को संकट में देख उन्होंने सियासत में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. कर्नाटक में उन्होंने चुनावी रैलियां करते हुए केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार से चार साल का हिसाब मांगा. उन्होंने  बीजापुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज़ करते हुए कहा कि मोदी जी अच्छा भाषण देते हैं, एक अभिनेता की तरह भाषण देते हैं. लेकिन केवल भाषण से लोगों का पेट नहीं भर सकता, लोगों का कल्याण नहीं हो सकता है. अगर भाषण से पेट भरता, तो मेरी प्रार्थना है कि वह और भी अच्छा भाषण दें.

सोनिया गांधी चुनावी मुहिम में इसीलिए उतरी हैं, ताकि कांग्रेस को मज़बूत बना सकें. एक वक़्त वह था, जब वे न तो खुद सियासत में आना चाहती थीं और न ही अपने बच्चों को इसमें शामिल होने देना चाहती थीं. लेकिन वक़्त जो न कराए, कम है. राहुल गांधी की भी सियासत में इतनी गहरी दिलचस्पी नहीं थी. वह सत्ता के पीछे भी नहीं भागे. एक वह वक़्त था, जब देश में उनकी पार्टी की सरकार थी, तब उनके समर्थक चाहते थे कि वह सरकार में कोई अहम ओहदा लें, कोई मंत्रालय संभालें, लेकिन उन्होंने बता दिया कि वे सरकार में कोई किरदार निभाने की बजाय पार्टी संगठन में काम करना पसंद करते हैं, इसलिए उन्होंने मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री का ओहदा लेने से साफ़ इंकार कर दिया था.

मगर आज हालात जुदा हैं. राहुल गांधी ने ख़ुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार, तो बता दिया है. क्या उनके सहयोगी दल इस पर राज़ी होंगे? उनके सहयोगी दलों के कई नेता न जाने कब से प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोये बैठे हैं.
क्या राहुल गांधी ने बहुत-सोच-समझकर ये ऐलान किया है? सवाल कई हैं, लेकिन जवाब आने वाले वक़्त की तह में छुपे हैं. बहरहाल, कांग्रेसी ख़ासकर राहुल गांधी के चाहने वाले उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में ही देखना चाहते हैं.

Friday, May 4, 2018

कांग्रेस को अवाम की आवाज़ बनना होगा

फ़िरदौस ख़ान
एक ख़ुशहाल देश की पहचान यही है कि उसमें रहने वाले हर व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान हो, उसे बुनियादी ज़रूरत की सभी चीज़ें, सभी सुविधाएं मुहैया हों. जब व्यक्ति ख़ुशहाल होगा, तो परिवार ख़ुशहाल होगा, परिवार ख़ुशहाल होगा, तो समाज ख़ुशहाल होगा. एक ख़ुशहाल समाज ही आने वाली पीढ़ियों को बेहतर समाज, बेहतर परिवेश दे सकता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सर्वोदय समाज का सपना देखा था और वे इसे साकार करना चाहते थे. गांधीजी कहते हैं- "समाजवाद का प्रारंभ पहले समाजवादी से होता है. अगर एक भी ऐसा समाजवादी हो, तो उस पर शून्य बढ़ाए जा सकते हैं. हर शून्य से उसकी क़ीमत दस गुना बढ़ जाएगी, लेकिन अगर पहला अंक शून्य हो, तो उसके आगे कितने ही शून्य बढ़ाए जाएं, उसकी क़ीमत फिर भी शून्य ही रहेगी." भूदान आन्दोलन के जनक विनोबा भावे के शब्दों में, सर्वोदय का अर्थ है- सर्वसेवा के माध्यम से समस्त प्राणियो की उन्नति. आज देश को इसी सर्वोदय समाज की ज़रूरत है.

पिछले कुछ बरसों देश एक ऐसे दौर से गुज़र रहा है, जहां सिर्फ़ मुट्ठीभर लोगों का ही भला हो रहा है. बाक़ी जनता की हालत बद से बदतर होती जा रही है. लोगों के काम-धंधे तो पहले ही बर्बाद हो चुके हैं. बढ़ती महंगाई की मार भी लोग झेल ही रहे हैं. ऐसे में अपराधों की बढ़ती वारदातों ने डर का माहौल पैदा कर दिया है. हालत ये है कि चंद महीने की मासूम बच्चियां भी दरिन्दों का शिकार बन रही हैं. क़ानून-व्यवस्था की हालत भी कुछ ऐसी है कि शिकायत करने वाले मज़लूम की हिरासत में मौत तक हो जाती है और आरोपी खुले घूमते रहते हैं. ऐसे में जनता का शासन-प्रशासन से यक़ीन उठने लगा है. बीते मार्च माह में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आरोपी की फ़ौरन गिरफ़्तारी पर रोक लगाने के आदेश के बाद से इन तबक़ों में खौफ़ पैदा हो गया है. उन्हें लगता है कि पहले ही उनके साथ अमानवीय व्यवहार के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं, ऐसे में उन पर दबंगों का ज़ुल्म और ज़्यादा बढ़ जाएगा. अपने अधिकारों के लिए उन्हें सड़क पर उतरना पड़ा. क़ाबिले-गौर है कि देश में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की आबादी तक़रीबन 20 करोड़ है. लोकसभा में इन तबक़ों के 131 सदस्य हैं. हैरानी की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी में 67 सांसद इसी तबक़े से होने के बावजूद दलितों के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों पर कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है. चंद सांसदों के बयान सामने आए, लेकिन जो विरोध होना चाहिए था, वह दिखाई नहीं पड़ा. ग़ौरतलब है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक़, हर 15 मिनट में एक दलित के साथ अपराध होता है. रोज़ाना छह दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है. ये तो सिर्फ़ सरकारी आंकड़े हैं, और उन मामलों के हैं, जो दर्ज हो जाते हैं. जो मामले दर्ज नहीं कराए जाते, या दर्ज नहीं हो पाते, उनकी तादाद कितनी हो सकती है, इसका अंदाज़ा लगाना कोई मुश्किल नहीं है.

बुरे हालात में कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल दलितों के समर्थन में सामने आए. कांग्रेस ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में संविधान बचाओ रैली का आयोजन करके जहां भाजपा सरकार को ये चेतावनी दी कि अब और ज़ुल्म बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, वहीं दलितों को भी ये यक़ीन दिलाने की कोशिश की गई कि वे अकेले नहीं हैं. कांग्रेस हमेशा उनके साथ है. रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि  दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार बढ़ रहा है. मोदी के दिल में दलितों के लिए कोई जगह नहीं है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस दलितों, ग़रीबों, किसानों औऱ देश के सभी कमज़ोर तबक़ों की रक्षा के लिए हमेशा लड़ती रहेगी. कांग्रेस ने सत्तर साल में देश की गरिमा बनाई और पिछले चार साल में मोदी सरकार ने इसे धूमिल कर दिया, इसे चोट पहुंचाई. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देश को संविधान दिया और ये संविधान दलितों, ग़रीबों और महिलाओं की रक्षा करता है. आज सर्वोच्च न्यायालय को कुचला और दबाया जा रहा है, पहली बार ऐसा हुआ है कि चार जज हिन्दुस्तान की जनता से इंसाफ़ मांग रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग इस संविधान को कभी नहीं छू पाएंगे, क्योंकि हम ऐसा होने नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि आज जनता बेहाल है. देश के प्रधानमंत्री सिर्फ़ अपने मन की बात सुनते हैं. वह किसी को बोलना देना नहीं चाहते. वे कहते हैं कि सिर्फ़ मेरे मन की बात सुनो. मैं कहता हूं कि 2019 के चुनाव में देश की जनता मोदीजी को अपने मन की बात बताएगी.

दरअसल, आपराधिक मामलों में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के नाम सामने आने की वजह से भी अवाम का भाजपा सरकार से यक़ीन ख़त्म हो चला है. भाजपा नेताओं के अश्लील और विवादित बयान भी इस पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे को सामने लाते रहते हैं. ये बेहद अफ़सोस की बात है कि केंद्र सरकार में ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग पूरी तरह से संवेदनहीन रवैया अपनाये हुए हैं. इसी ही वारदातों की तरफ़ इशारा करते हुए राहुल गांधी ने तंज़ किया, मोदी जी अब नया नारा देंगे- "बेटी बचाओ, बीजेपी के लोगों से बचाओ."

बहरहाल, आज देश को ऐसे रहनुमाओं की ज़रूरत है, जो बिना किसी भेदभाव के अवाम के लिए काम करें. जनता को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि देश में किस सियासी दल का शासन है, उसे तो बस चैन-अमन चाहिए, बुनियादी सुविधाएं चाहिएं, ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए अच्छा माहौल चाहिए. अवाम की ये ज़रूरतें वही सियासी दल पूरी कर सकते हैं, जो पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हों. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस ने इस देश के लिए बहुत कुछ किया है. आज भी अवाम को कांग्रेस से बहुत उम्मीदें हैं. राहुल गांधी की ज़िम्मेदारी है कि वे विपक्ष में होने के नाते, एक सियासी दल के अध्यक्ष होने के नाते, जनता को ये यक़ीन दिलाते रहें कि वे हमेशा उसके साथ हैं. महात्मा गांधी के सर्वोदय के सिद्धांत पर अमल करते हुए देश और समाज के लिए काम करना भी उनकी ज़िम्मेदारियों में शामिल हैं. आज जनता को ऐसे नेता की ज़रूरत है, जो उनकी आवाज़ बन सके. कांग्रेस इसमें कितना कामयाब हो पाती है, ये आने वाला वक़्त ही बताएगा.