Sunday, May 31, 2009

हरियाणा के ग्रामीण अंचल पर मोहित पर्यटक



फ़िरदौस ख़ान
हरियाणा में प्राकृतिक दृष्टि से पर्यटन स्थलों का अभाव रहा है, लेकिन इसके बावजूद यहां ऐसे पर्यटक स्थलों का विस्तार किया गया है, जिसके कारण यह राज्य देश के पर्यटन मानचित्र पर अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा है. हरियाणा ने हाईवे टूरिज्म के बाद रूरल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए फार्म हाउस टूरिज्म को विकसित करने की पहल की है, ताकि देशी और विदेशी पर्यटक राज्य की ग्रामीण जीवन शैली, रीति-रिवाजों और खेत-खलिहानों की झलक पाकर देश के एक अनूठे रंग से वाकिफ हो सकें। हरियाणा पर्यटन निगम ने वर्ष 2003 में विश्व पर्यटन दिवस यानी 27 सितंबर से ‘फार्म हॉलिडे’ और ‘विलेज सफारी’ पर्यटन की योजनाएं शुरू की थीं। इसके साथ ही एक और योजना ‘म्हारा गांव’ भी शुरू की गई है, जो लोगों को हरियाणा की लोक संस्कृति से जोड़ने की बेहतरीन कोशिश है। भारत में अतिथि सत्कार की एक विशेष परंपरा है। ‘अतिथि देवो भव’ इसी परंपरा को इंगित करता है। सुबह पौ फटते ही देहात में चहचहाते परिन्दें की मधुर आवाजें, खेतों में लहलहाती फसलें, सरसों के झूमते पीले फूल, जोहड़ों में तैरती बत्तखें, चौपालों की बैठकें और हवेलियों या महफिलों में सांग-आल्हा की पौराणिक कथाएं मन को मोह लेने के साथ ही मन-मस्तिष्क पर ग्रामीण अंचल की छाप छोड़ जाती हैं।

हरियाणा धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतों की दृष्टि से समृध्द है। चाहे मामला कुरुक्षेत्र की पवित्र धरती पर श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को गीता का ज्ञान देने का हो, पानीपत की तीन महत्वपूर्ण लड़ाइयों का हो या फिर फिरोजशाह तुगलक द्वारा अपनी प्रेमिका गूजरी के लिए बीहड़ बयांबान जंगल में हिसारे-फिरोजां का निर्माण कर उसमें गूजरी महल बनवाने का हो। यहां के कण-कण में इतिहास बोलता है। राज्य में रूरल टूरिज्म को बढ़ावा की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है।

एक किवदंती के मुताबिक देवताओं ने पृथ्वी पर खेती की शुरुआत महाराज कुरु से करवाई थी। उन्होंने सरस्वती नदी द्वारा सिंचित कुरुक्षेत्र जिले के पेहवा कस्बे में स्थित बीड़ बरसवान में पहली बार सोने का हल चलाया था। भगवान विष्णु ने इस भूमि में धान का बीज बोया था। यहां उगी चावल की फसल को बीड़ के नाम पर बासमाती कहा जाने लगा। गौरतलब है कि बासमाती शब्द का अर्थ माटी की सुगंध है। हर साल हरियाणा में करीब 65 लाख पर्यटक आते हैं, जिनमें लगभग एक लाख विदेशी पर्यटक शामिल हैं। संयुक्त परियोजना के तहत पर्यटन विभाग पुराने ऐतिहासिक व पौराणिक गाथाओं को समेटे भवनों के रख-रखाव में भी अहम भूमिका निभा रहा है, जिसमें महेंद्रगढ़ का माधोगढ़ किला और बल्लभगढ़ में राजा नाहर सिंह का किला भी शामिल है। राज्य का कोई भी राष्ट्रीय राजमार्ग या राजमार्ग ऐसा नहीं है, जहां 40 से 50 किलोमीटर की दूरी पर पर्यटन स्थल न हो। राज्य में सरकार ने 44 पर्यटन स्थलों का फैलाव किया गया है, जो हरियाणा पर्यटन विभाग द्वारा संचालित किए जा रहे हैं।

इसके अलावा 28 पर्यटन स्थल निजी क्षेत्र चला रहे हैं। कलेसर राज्य का एकमात्र ऐसा पर्यटन स्थल है जो शिवालिक की पहाड़ियों के साथ-साथ हरे-भरे पेड़-पौधों की छटा से घिरा हुआ है। पिंजौर में मनोरंजक पार्क भी स्थापित किया गया। यह स्थल शिवालिक की पहाड़ियों के समीप है, जिसमें बने मुगल गार्डन, जल महल और मानव निर्मित झरने, लघु चिड़िया घर इसके सौंदर्य को और निखार रहे हैं। पंजौर एक ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल है। यहां पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक साल का गुप्त समय बिताया था। कालांतर में वही स्थान पिंजौर गार्डन के नाम से जाना जाता है। 17वीं शताब्दी में यह मुगल गार्डन था, जिसकी वास्तुकला का निर्माण बादशाह औरंगजेब के भतीजे नवाब फिदई खान ने कराया था। यह वही नवाब था, जिसने लाहौर में शाही मस्जिद का डिजाइन तैयार किया था। 1775 में पटियाला में महाराज अमर सिंह ने पिंजौर गार्डन को खरीदकर अपनी जमीन में मिला लिया था। वे इसके सौंदर्य को बनाए रखने के लिए नियमित रूप से इस मुगल गार्डन का दौरा किया करते थे। हरियाणा के गठन के वक्त 1966 में इस मुगल गार्डन को हरियाणा को सौंप दिया गया। मुगल गार्डन के शीश महल व रंग महल को भी पर्यटन केंद्र में तबदील कर दिया गया है। फरीदाबाद में मेगपाई पर्यटन स्थल पर सिल्वर जुबली हॉल भी पर्यटन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। निजी उद्यमी बड़े स्तर के समारोहों के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। बड़खल पर्यटन स्थल पर तरनताल व झील पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

पेहवा के अंजन यात्रिका, फरीदाबाद के अरावली गोल्फ क्लब, समालखा के ब्लूजे, सोहना के बाखेट, हिसार के फ्लेमिंगो व ब्लू बर्ड, हांसी के ब्लैक बर्ड, जींद के बुलबुल, उचाना की चक्रवती लेन, सोनीपत के चकोर पर्यटन स्थल, बहादुरगढ़ के डबचीक, यमुनानगर के पेलिकन, नरवाना के हरियाल, पंचकुला के बटायु यात्रिका माता मनसा देवी व रेड विशाप, धारूहेड़ा के जंगल बाबलर, ज्योतिसर के ज्योतिसर कॉम्पलैक्स, पानीपत के काता अम्ब, सैरस दमदमा झील व स्काई लार्क, अम्बाला के किंग फिशर, कैथल के कोयल, रोहतक के मैना व तिलियार झील, महम के नोरंग, कुरुक्षेत्र के नीलकंठी कृष्णा धाम यात्री निवास, उचाना के ओसीस, पिपली के पैराकीट, फतेहाबाद के पपीहा, भिवानी के रेड रोबिन, रेवाड़ी के सैंड पाइपर, गुड़गांव के शमा, आसाखेड़ा के शिकारा, सिरसा के सुरखाव, सुल्तानपुर के बर्ड सैन्यरी, सूरजकुंड के सनबर्ड हर्मीटैज व होटल राजहंस, मोरनी हिल्स के माउंटैन वबैल और पिंजौर के यादविन्द्रा गार्डन में पर्यटन विभाग द्वारा काफी सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं।

खास बात यह है कि सभी पर्यटन स्थलों के नाम पक्षियों के नाम पर रखे गए हैं, जो स्वच्छ पर्यावरण को इंगित करते हैं। सरकार ने सरकारी क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र में भी पर्यटन को बढ़ावा देने पर भी ख़ासा ध्यान दे रही है, लेकिन कुरुक्षेत्र में पर्यटन का विस्तार सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र में ही रखा है। राज्य में पर्यटन निगम की स्थापना की गई है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और राजस्थान से सटा होने की वजह से हरियाणा का महत्व और भी बढ़ जाता है। राज्य में से छह मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग भी गुंजरते हैं और राज्य का तेंजी से औद्योगिक विकास भी हुआ है, जिससे दूसरे देशों के उद्योगपति भी अकसर यहां आते रहते हैं। पर्यटन स्थलों पर वाहनों में ईंधन भरवाने के लिए पेट्रोल पंप भी स्थापित किए गए हैं। इन स्थलों को और मनोरम बनाने के लिए लघु चिड़िया घर व झीलें में नौकायन की सुविधा भी मुहैया कराई गई है। स्थलों के बाहर खुले हरी-भरी घास से सुसज्जित बड़े लॉन और फलदार पेड़ों व फूलदार पौधों से आकर्षण और ज्यादा बढ़ता है।

दरअसल, अब पर्यटन को स्वच्छ पर्यावरण और भू संरक्षण का एक सशक्त माध्यम मान लिया गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2002 को इको टूरिज्म वर्ष घोषित किया था। हरियाणा पर्यटन निगम भी इस दिशा में काम कर रहा है। हरियाणवी संस्कृति के जरिये पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य में मेलों का आयोजन किया जाता है। इनमें सूरजकुंड क्राफ्ट मेला बहुत प्रसिध्द है, जो 1986 में शुरू हुआ था। यह मेला हर साल एक से 15 फरवरी तक आयोजित किया जाता है। इस मेले में हरियाणा संस्कृति के अलावा अन्य राज्यों से आए कलाकार भी अपनी संस्कृति व कला के जलवे बिखेरते हैं। मेले में हस्तकला का कमाल देखने को भी मिलता है। दूर-दराज से आए कारीगर हस्तकला की वस्तुएं बेचते हैं। इतना ही नहीं श्रीलंका की स्टॉल भी यहां लगती है। स्पेशल टूरिज्म बोर्ड के चेयरमैन एसके मिश्रा के मुताबिक सूरजकुंड मेले का मुख्य उद्देश्य लोगों को देश की प्राचीन व गौरवशाली से संस्कृति से जोड़ना है। इसके अलावा हस्तकला निर्मित वस्तुओं की बिक्री के लिए कारीगरों को मंच प्रदान करने की भी कोशिश है। इस मेले में विदेशी पर्यटक व व्यापारी भी आते हैं। हस्तकला की वस्तुएं पसंद आने पर वे कारीगरों को ऑर्डर भी देते हैं, जिससे उन्हें रोजगार मिल जाता है। इससे विदेशों में भारतीय कला का प्रचार-प्रसार भी होता है।

हरियाणा की पर्यटन मंत्री किरण चौधरी का कहना है कि आज की महानगरों व शहरों की भाग-दौड़ की जिन्दगी से उकताए लोग अपना कुछ समय प्रकृति के समीप गुजारना चाहते हैं। उनकी यह ख्वाहिश व जरूरत रूरल टूरिज्म पूरी करता है। हरियाणा के रूरल टूरिज्म के महत्व को समझते हुए हिमाचल प्रदेश ने भी हरियाणा के साथ एक समझौता किया है। इसके तहत दोनों राज्यों के पर्यटन विभाग मिलकर काम करेंगे।

गौरतलब है कि देश में 1987 में पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिया गया था। भारत विदेशियों के लिए बेहतरीन पर्यटन स्थल रहा है। वैश्विक आर्थिक संकट और गत 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद विदेशी पर्यटकों की संख्या घटन से पर्यटन उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। काबिले-गौर है कि 2008 की पहली छमाही में बीते साल की इसी समयावधि के मुकाबले 11।5 फीसदी अधिक पर्यटक भारत आए थे और इस दौरान विदेशी मुद्रा में होने वाली आय में 22।2 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। मगर नवंबर-दिसंबर 2008 के दौरान बीते साल की इसी अवधि के मुकाबले 8 फीसदी कम विदेशी पर्यटक भारत आए और विदेशी मुद्रा से होने वाली आय में 13। फीसद की गिरावट दर्ज की गई। इसका असर हरियाणा के पर्यटन उद्योग पर भी पड़ा है। हालांकि पर्यटन मंत्रालय ने दुनिया के कई देशों में नए सिरे से आक्रामक विज्ञापन अभियान छेड़ा है।

मंत्रालय के अधिकारियों का दावा है कि ‘एड कैम्पेन’ से प्रभावित होकर न सिर्फ ज्यादा विदेशी पर्यटक भारत आएंगे, बल्कि इससे भारतीय पर्यटन उद्योग को भी मजबूती मिलेगी। इस ‘एड कैम्पेन’ के तहत एम्सटर्डम की बसों में ‘नमस्ते इंडिया एड कैम्पन’ आकर्षक कलेवर में पेंट करवाया गया है। पेरिस, ब्यूनस आयर्स और जर्मनी की टैक्सियों पर भारत के पर्यटन स्थलों के चित्र पेंट किए गए हैं। यहां के टैक्सी चालक ‘इंक्रेडिबल शर्ट’ पहन रहे हैं। बीजिंग और शंघाई के सब-वे में प्रमोशनल पोस्टर लगाए गए हैं। कोरिया की सब-वे रेलों में भी भारत के चित्र लगाए गए हैं। इसके अलावा अमेरिका में कई जगहों पर होर्डिंग्स, केबल कारों और बसों में भी भारत के पर्यटन स्थलों के चित्र लगाकर पर्यटकों को आकर्षित करने की कोशिश की गई है।

Tuesday, May 12, 2009

हसन के इंतज़ार में पथराईं मां की आंखें














फ़िरदौस ख़ान
जब घर का चश्मो-चिराग कहीं खो जाता है, तो उसकी याद में किस तरह दिल तड़पता है और आंखें गंगा-जमुना की धारा बन जाती हैं, इसके तसव्वुर से ही रूह कांप उठती है. अगर जाने वाले को इसका अहसास हो तो कभी वह ख्वाब में भी अपने घर-परिवार को छोड़कर जाने की बात नहीं सोचेगा. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरपुर जिले के कस्बे बुढाना के 10 साल के मोहम्मद हसन की गुमशुदगी को चार साल होने वाले हैं. उसकी मां आयशा का रो-रोकर बुरा हाल है. उन्होंने अपने लाल को हर जगह तलाशा, मगर वो कहीं न मिला. सुबह सूरज की पहली किरण से ही पूरा घर अपने लाडले के इंतज़ार में पलकें बिछा लेता है, उम्मीद की एक लौ कायम रहती है कि कभी कोई तो आएगा, उनके बेटे की खबर लेकर, लेकिन जब रात ढलती है और हसन की कोई ख़बर नहीं आती तो दिल बुझने लगता है.

मोहम्मद हसन के पिता मोहम्मद फुरकान का कहना है कि उन्हें क्या पता था कि उनका बेटा उनसे बिछड़ जाएगा. वे तो बस इतना चाहते थे कि मदरसे से आने के बाद हसन यहां-वहां खेलकर वक्त बर्बाद करने के बजाय उनके काम में हाथ बंटाए, ताकि उसे काम करने की आदत पड़ जाए. वे कहते हैं कि हम तो खेती करने वाले लोग हैं. सुबह पौ फटने से लेकर देर रात तक खेतों में खून-पसीना बहाना पड़ता है तब कहीं जाकर घर-परिवार के गुजारे लायक आमदनी जुटा पाते हैं. हम बचपन से ही बच्चों को काम की आदत डालते हैं, ताकि बड़े होकर वे मेहनत-मजदूरी कर सकें. बस, खेत में काम करने की बात को लेकर ही बेटे पर उनका हाथ उठ गया और वह कहीं चला गया. अपनी इस गलती के लिए वे आज तक पछता रहे हैं. काश, उन्होंने अपने बेटे को मारने के बजाय प्यार से समझाया होता तो आज वह हमारे साथ ही होता. उन्होंने अपने बेटे को आसपास ही नहीं दूर-दराज तक के इलाकों में ढूंढा, मगर वह कहीं नहीं मिला. उन्होंने अपने सब रिश्तेदारों के यहां जाकर भी बेटे को तलाश किया.

बच्चे का मामू जान कारी मोहम्मद आरिफ साहब का कहना है कि मोहम्मद हसन अपने पिता मोहम्मद फुरकान से बहुत डरता था. उसके पिता उससे खेत में काम करने को कहते थे. इसी बात को लेकर कई बार वे अपने बेटे को पीट भी चुके हैं. इससे पहले दो बार वह अपने पिता की मार खाने के बाद अपने मामा के पास बंतीखेड़ा आ गया. बाद में वो उसे समझा-बुझाकर उसके घर छोड़कर आए. वे बताते हैं कि हसन पढ़ने में बहुत होशियार है. उसे पास के ही मदीना-उल-तुलूम मदरसे में कुरआन हिफ्ज यानि मुंह जबानी याद करने के लिए दाखिल कराया गया था. छोटी-सी उम्र में ही उसने तीन पारे अध्याय हिफ्ज कर लिए थे. उसे क्रिकेट खेलने का बहुत शौक है. नम आंखों से वे कहते हैं कि हसन जहां कहीं भी होगा, क्रिकेट जरूर खेलता होगा.

कारी साहब कहते हैं कि आज भी देहात के मुसलमानों में फोटो खिंचवाने का चलन नहीं है. जब कभी दस्तावेजों के लिए जरूरत पड़ती है, तभी लोग फोटो खिंचवाते हैं. एक दिन उन्होंने यूं ही मदरसे में बच्चों के साथ अपने भांजे हसन की फोटो खिंचवा ली थी, वरना आज उसकी तलाश के लिए एक तस्वीर तक उनके पास नहीं होती.

हसन का बड़ा भाई मोहम्मद मुबारक 15 साल का है. पोलियो की वजह से एक पैर से लाचार होने के बावजूद वे भी अपने भाई की तलाश में जगह-जगह भटकता रहता है. उसका कहना है कि बस उसे एक बार उसका भाई मिल जाए, वे उसे कहीं नहीं जाने देगा. हसन का छोटा भाई अब्दुल कादिर, बहनें आरिफा और मंतशा भी अपने भाई को देखने के लिए तरस रही हैं. वे दिन-रात यही दुआ करती हैं कि बस एक बार उनका भाई घर वापस आ जाए.