Thursday, April 23, 2015

ज़रा सोचिये...


फ़िरदौस ख़ान
जो लोग दूसरों का हक़ मार कर ऐशो-इशरत की ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं, वो अपने गुनाहों का बोझ कैसे उठाएंगे...? मेहनतकश किसानों से उनकी ज़मीनें छीनी जा रही हैं... ग़रीबों को बेघर करने वाले अपनी सालगिरह तक पर अरबों रुपये ख़र्च कर रहे हैं... क्या इन लोगों का ज़मीर बिल्कुल मर चुका है... ? क्या इन्हें ज़रा भी ख़ौफ़े-ख़ुदा नहीं है...?
हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं-
जो शख़्स दुनिया में कम हिस्सा लेता है, वो अपने लिए राहत का सामान बढ़ा लेता है. और जो दुनिया को ज़्यादा समेटता है, वो अपने लिए तबाहकुन चीज़ों का इज़ाफ़ा कर लेता है...

Wednesday, April 22, 2015

ग़लती किसकी


भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ दिल्ली में जंतर-मंतर पर आज आयोजित आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान गजेंद्र सिंह नाम के एक किसान ने फांसी लगाकर ख़ुदकुशी कर ली... वह राजस्थान के दौसा ज़िले के गांव नांगल झामरवाडा़ का रहने वाला था... किसान की ख़ुदकुशी से उसके परिजनों पर क्या बीत रहे होगी, उस दर्द को लफ़्ज़ों में बयां नहीं किया जा सकता...
अब सवाल यह है कि क्या गजेंद्र सिंह की ख़ुदकुशी के लिए सिर्फ़ केंद्र सरकार ही ज़िम्मेदार है... क्या वो लोग ज़िम्मेदार नहीं हैं, जिन्होंने ऐसी सरकार चुनी... ?

Monday, April 20, 2015

संस्कार विरासत में मिलते हैं,

फ़िरदौस ख़ान
संस्कार विरासत में मिलते हैं, घर से मिला करते हैं... संस्कार बाज़ार में नहीं मिलते... ज़्यादा पैसा या बड़ा पद मिलने से संस्कार नहीं मिल जाते...
राहुल गांधी को देखें, वो अपने विरोधियों का नाम भी सम्मान के साथ लेते हैं, उनके नाम के साथ जी लगाते हैं... जबकि उनके विरोधी भले ही वे देश के बड़े से बड़े पद पर हों, राहुल गांधी के लिए ग़लत शब्दों का इस्तेमाल करते हैं...
दरअसल, किसी के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करके इंसान सामने वाला का अपमान नहीं करता, बल्कि अपने ही संस्कारों का प्रदर्शन करता है...