Thursday, May 23, 2024

सुनने की फ़ुर्सत हो, तो आवाज़ है पत्थरों में...

 


फ़िरदौस ख़ान
ये कहानी है दिल्ली के ’शहज़ादे’ और हिसार की ’शहज़ादी’ की, उनकी मुहब्बत की.
गूजरी महल की तामीर का तसव्वुर सुलतान फ़िरोज़शाह तुग़लक़ ने अपनी महबूबा के रहने के लिए किया था. शायद यह किसी भी महबूब का अपनी महबूबा को परिस्तान में बसाने का ख़्वाब ही हो सकता था और जब गूजरी महल की तामीर की गई होगी. तब इसकी बनावट, इसकी नक्क़ाशी और इसकी ख़ूबसूरती को देखकर ख़ुद भी  इस पर मोहित हुए बिना न रह सका होगा.
हरियाणा के हिसार क़िले में स्थित गूजरी महल आज भी सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक और गूजरी की अमर प्रेमकथा की गवाही दे रहा है. गूजरी महल भले ही आगरा के ताजमहल जैसी भव्य इमारत न हो, लेकिन दोनों की पृष्ठभूमि प्रेम पर आधारित है. ताजमहल मुग़ल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज़ की याद में 1631 में बनवाना शुरू किया था, जो 22 साल बाद बनकर तैयार हो सका. हिसार का गूजरी महल 1354 में फ़िरोज़शाह तुग़लक ने अपनी प्रेमिका गूजरी के प्रेम में बनवाना शुरू किया, जो महज़ दो साल में बनकर तैयार हो गया. गूजरी महल में काला पत्थर इस्तेमाल किया गया है, जबकि ताजमहल बेशक़ीमती सफ़ेद संगमरमर से बनाया गया है. इन दोनों ऐतिहासिक इमारतों में एक और बड़ी असमानता यह है कि ताजमहल शाहजहां ने मुमताज़ की याद में बनवाया था. ताज एक मक़बरा है, जबकि गूजरी महल फ़िरोज़शाह तुग़लक ने गूजरी के रहने के लिए बनवाया था, जो महल ही है.
गूजरी महल की स्थापना के लिए बादशाह फ़िरोज़शाह तुग़लक ने क़िला बनवाया. यमुना नदी से हिसार तक नहर लाया और एक नगर बसाया. क़िले में आज भी दीवान-ए-आम, बारादरी और गूजरी महल मौजूद हैं. दीवान-ए-आम के पूर्वी हिस्से में स्थित कोठी फ़िरोज़शाह तुग़लक का महल बताई जाती है. इस इमारत का निचला हिस्सा अब भी महल-सा दिखता है. फ़िरोज़शाह तुग़लक के महल की बंगल में लाट की मस्जिद है. अस्सी फ़ीट लंबे और 29 फ़ीट चौड़े इस दीवान-ए-आम में सुल्तान कचहरी लगाता था. गूजरी महल के खंडहर इस बात की निशानदेही करते हैं कि कभी यह विशाल और भव्य इमारत रही होगी.
सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक और गूजरी की प्रेमगाथा बड़ी रोचक है. हिसार जनपद के ग्रामीण इस प्रेमकथा को इकतारे पर सुनते नहीं थकते. यह प्रेम कहानी लोकगीतों में मुखरित हुई है. फ़िरोज़शाह तुग़लक दिल्ली का सम्राट बनने से पहले शहज़ादा फ़िरोज़ मलिक के नाम से जाने जाते थे. शहज़ादा अकसर हिसार इलाक़े के जंगल में शिकार खेलने आते थे. उस वक्त यहां गूजर जाति के लोग रहते थे. दुधारू पशु पालन ही उनका मुख्य व्यवसाय था. उस काल में हिसार क्षेत्र की भूमि रेतीली और ऊबड़-खाबड़ थी. चारों तरफ़ घना जंगल था. गूजरों की कच्ची बस्ती के समीप पीर का डेरा था. आने-जाने वाले यात्री और भूले-भटके मुसाफ़िरों की यह शरणस्थली थी. इस डेरे पर एक गूजरी दूध देने आती थी. डेरे के कुएं से ही आबादी के लोग पानी लेते थे. डेरा इस आबादी का सांस्कृतिक केंद्र था.
एक दिन शहज़ादा फ़िरोज़ शिकार खेलते-खेलते अपने घोड़े के साथ यहां आ पहुंचा. उसने गूजर कन्या को डेरे से बाहर निकलते देखा तो उस पर मोहित हो गया. गूजर कन्या भी शहज़ादा फ़िरोज़ से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. अब तो फ़िरोज़ का शिकार के बहाने डेरे पर आना एक सिलसिला बन गया. फिरोज़ ने गूजरी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा तो उस गूजर कन्या ने विवाह की मंजरी तो दे दी, लेकिन दिल्ली जाने से यह कहकर इंकार कर दिया कि वह अपने बूढ़े माता-पिता को छोड़कर नहीं जा सकती. फ़िरोज़ ने गूजरी को यह कहकर मना लिया कि वह उसे दिल्ली नहीं ले जाएगा.
1309 में दयालपुल में जन्मा फ़िरोज़ 23 मार्च 1351 को दिल्ली का सम्राट बना. फ़िरोज़ की मां हिन्दू थी और पिता तुर्क मुसलमान था. सुल्तान फ़िरोज़शाह तुग़लक ने इस देश पर साढ़े 37 साल शासन किया. उसने लगभग पूरे उत्तर भारत में कलात्मक भवनों, किलों, शहरों और नहरों का जाल बिछाने में ख्याति हासिल की. उसने लोगों के लिए अनेक कल्याणकारी काम किए. उसके दरबार में साहित्यकार, कलाकार और विद्वान सम्मान पाते थे.
दिल्ली का सम्राट बनते ही फ़िरोज़शाह तुग़लक ने महल हिसार इलांके में महल बनवाने की योजना बनाई. महल क़िले में होना चाहिए, जहां सुविधा के सब सामान मौजूद हों. यह सोचकर उसने क़िला बनवाने का फ़ैसला किया. बादशाह ने ख़ुद ही करनाल में यमुना नदी से हिसार के क़िले तक नहरी मार्ग की घोड़े पर चढ़कर निशानदेही की थी. दूसरी नहर सतलुज नदी से हिमालय की उपत्यका से क़िले में लाई गई थी. तब जाकर कहीं अमीर उमराओं ने हिसार में बसना शुरू किया था.
किवदंती है कि गूजरी दिल्ली आई थी, लेकिन कुछ दिनों बाद अपने घर लौट आई. दिल्ली के कोटला फिरोज़शाह में गाईड एक भूल-भूलैया के पास गूजरी रानी के ठिकाने का भी ज़िक्र करते हैं. तभी हिसार के गूजरी महल में अद्भुत भूल-भूलैया आज भी देखी जा सकती है.
क़ाबिले-गौर है कि हिसार को फ़िरोज़शाह तुग़लक के वक्त से हिसार कहा जाने लगा, क्योंकि उसने यहां हिसार-ए-फिरोज़ा नामक क़िला बनवाया था. 'हिसार' फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है 'क़िला'. इससे पहले इस जगह को 'इसुयार' कहा जाता था. अब गूजरी महल खंडहर हो चुका है. इसके बारे में अब शायद यही कहा जा सकता है-
सुनने की फ़ुर्सत हो तो आवाज़ है पत्थरों में
उजड़ी हुई बस्तियों में आबादियां बोलती हैं...

Tuesday, May 21, 2024

लोकप्रिय नेता थे राजीव गांधी


किसी भी बेटे के लिए उसके पापा का जाना बहुत तकलीफ़देह होता है... हमें भी अपने पापा की बहुत याद आ रही है... स्वर्गीय राजीव गांधी पापा के प्रिय नेता थे...हमारे और पापा के प्रिय नेता स्वर्गीय राजीव गांधी को भावभीनी श्रद्धांजली...

लोकप्रिय नेता थे राजीव गांधी
-फ़िरदौस ख़ान
श्री राजीव गांधी ने उन्नीसवीं सदी में इक्कीसवीं सदी के भारत का सपना देखा था.  स्वभाव से गंभीर लेकिन आधुनिक सोच और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता वाले श्री राजीव गांधी देश को दुनिया की उच्च तकनीकों से पूर्ण करना चाहते थे. वे बार-बार कहते थे कि भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के साथ ही उनका अन्य बड़ा मक़सद इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण है. अपने इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने देश में कई क्षेत्रों में नई पहल की, जिनमें संचार क्रांति और कंप्यूटर क्रांति, शिक्षा का प्रसार, 18 साल के युवाओं को मताधिकार, पंचायती राज आदि शामिल हैं. वे देश की कंप्यूटर क्रांति के जनक के रूप में भी जाने जाते हैं. वे युवाओं के लोकप्रिय नेता थे. उनका भाषण सुनने के लिए लोग घंटों इंतज़ार किया करते थे. उन्‍होंने अपने प्रधानमंत्री काल में कई ऐसे महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए, जिसका असर देश के विकास में देखने को मिल रहा है. आज हर हाथ में दिखने वाला मोबाइल उन्हीं फ़ैसलों का नतीजा है.

चालीस साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने वाले श्री राजीव गांधी देश के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री थे और दुनिया के उन युवा राजनेताओं में से एक हैं, जिन्होंने सरकार की अगुवाई की है. उनकी मां श्रीमती इंदिरा गांधी 1966 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बनी थीं, तब वह उनसे उम्र में आठ साल बड़ी थीं. उनके नाना पंडित जवाहरलाल नेहरू 58 साल के थे, जब उन्होंने आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री के तौर शपथ ली. देश में पीढ़ीगत बदलाव के अग्रदूत श्री राजीव गांधी को देश के इतिहास में सबसे बड़ा जनादेश हासिल हुआ था. अपनी मां के क़त्ल के बाद 31 अक्टूबर 1984 को वे कांग्रेस अध्यक्ष और देश के प्रधानमंत्री बने थे. अपनी मां की मौत के सदमे से उबरने के बाद उन्होंने लोकसभा के लिए चुनाव कराने का आदेश दिया. दुखी होने के बावजूद उन्होंने अपनी हर ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया. महीने भर की लंबी चुनावी मुहिम के दौरान उन्होंने पृथ्वी की परिधि के डेढ़ गुना के बराबर दूरी की यात्रा करते हुए देश के तक़रीबन सभी हिस्सों में जाकर 250 से ज़्यादा जनसभाएं कीं और लाखों लोगों से रूबरू हुए. उस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और पार्टी ने रिकॉर्ड 401 सीटें हासिल कीं. सात सौ करोड़ भारतीयों के नेता के तौर पर इस तरह की शानदार शुरुआत किसी भी हालत में क़ाबिले-तारीफ़ मानी जाती है. यह इसलिए भी बेहद ख़ास है, क्योंकि वे उस सियासी ख़ानदान से ताल्लुक़ रखते थे, जिसकी चार पीढ़ियों ने जंगे-आज़ादी के दौरान और इसके बाद हिन्दुस्तान की ख़िदमत की थी. इसके बावजूद श्री राजीव गांधी सियासत में नहीं आना चाहते थे. इसीलिए वे सियासत में देर से आए.

श्री राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त, 1944 को मुंबई में हुआ था. वे सिर्फ़ तीन साल के थे, जब देश आज़ाद हुआ और उनके नाना आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने. उनके माता-पिता लखनऊ से नई दिल्ली आकर बस गए. उनके पिता फ़िरोज़ गांधी सांसद बने, जिन्होंने एक निडर तथा मेहनती सांसद के रूप में ख्याति अर्जित की.
राजीव गांधी ने अपना बचपन अपने नाना के साथ तीन मूर्ति हाउस में बिताया, जहां इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री की परिचारिका के रूप में काम किया. वे कुछ वक़्त के लिए देहरादून के वेल्हम स्कूल गए, लेकिन जल्द ही उन्हें हिमालय की तलहटी में स्थित आवासीय दून स्कूल में भेज दिया गया. वहां उनके कई दोस्त बने, जिनके साथ उनकी ताउम्र दोस्ती बनी रही. बाद में उनके छोटे भाई संजय गांधी को भी इसी स्कूल में भेजा गया, जहां दोनों साथ रहे. स्कूल से निकलने के बाद श्री राजीव गांधी कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए, लेकिन जल्द ही वे वहां से हटकर लंदन के इम्पीरियल कॉलेज चले गए. उन्होंने वहां से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.
उनके सहपाठियों के मुताबिक़ उनके पास दर्शन, राजनीति या इतिहास से संबंधित पुस्तकें न होकर विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की कई पुस्तकें हुआ करती थीं. हालांकि संगीत में उनकी बहुत दिलचस्पी थी. उन्हें पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय और आधुनिक संगीत पसंद था. उन्हें फ़ोटोग्राफ़ी और रेडियो सुनने का भी ख़ासा शौक़ था. हवाई उड़ान उनका सबसे बड़ा जुनून था. इंग्लैंड से घर लौटने के बाद उन्होंने दिल्ली फ़्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की और व्यावसायिक पायलट का लाइसेंस हासिल किया. इसके बाद वे  1968 में घरेलू राष्ट्रीय जहाज़ कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए.
कैम्ब्रिज में उनकी मुलाक़ात इतालवी सोनिया मैनो से हुई थी, जो उस वक़्त वहां अंग्रेज़ी की पढ़ाई कर रही थीं. उन्होंने 1968 में नई दिल्ली में शादी कर ली. वे अपने दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका के साथ नई दिल्ली में श्रीमती इंदिरा गांधी के निवास पर रहे. वे ख़ुशी ख़ुशी अपनी ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे, लेकिन  23 जून 1980 को एक जहाज़ हादसे में उनके भाई संजय गांधी की मौत ने सारे हालात बदल कर रख दिए. उन पर सियासत में आकर अपनी मां की मदद करने का दबाव बन गया. फिर कई अंदरूनी और बाहरी चुनौतियां भी सामने आईं. पहले उन्होंने इन सबका काफ़ी विरोध किया, लेकिन बाद में उन्हें अपनी मां की बात माननी पड़ी और इस तरह वे न चाहते हुए भी सियासत में आ गए. उन्होंने जून 1981 में अपने भाई की मौत की वजह से ख़ाली हुए उत्तर प्रदेश के अमेठी लोकसभा क्षेत्र का उपचुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें जीत हासिल हुई.  इसी महीने वे युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए. उन्हें नवंबर 1982 में भारत में हुए एशियाई खेलों से संबंधित महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी दी गई, जिसे उन्होंने बख़ूबी अंजाम दिया. साथ ही कांग्रेस के महासचिव के तौर पर उन्होंने उसी लगन से काम करते हुए पार्टी संगठन को व्यवस्थित और सक्रिय किया.

अपने प्रधानमंत्री काल में राजीव गांधी ने नौकरशाही में सुधार लाने और देश की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के लिए कारगर क़दम उठाए, लेकिन पंजाब और कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को नाकाम करने की उनकी कोशिश का बुरा असर हुआ. वे सियासत को भ्रष्टाचार से मुक्त करना चाहते थे, लेकिन यह विडंबना है कि उन्हें भ्रष्टाचार की वजह से ही सबसे ज़्यादा आलोचना का सामना करना पड़ा.  उन्होंने कई साहसिक क़दम उठाए, जिनमें श्रीलंका में शांति सेना का भेजा जाना, असम समझौता, पंजाब समझौता, मिज़ोरम समझौता आदि शामिल हैं. इसकी वजह से चरमपंथी उनके दुश्मन बन गए. नतीजतन, श्रीलंका में सलामी गारद के निरीक्षण के वक़्त उन पर हमला किया गया, लेकिन वे बाल-बाल बच गए. साल 1989 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया, लेकिन वह कांग्रेस के नेता पद पर बने रहे. वे आगामी आम चुनाव के प्रचार के लिए 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेराम्बदूर गए, जहां एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई. देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी.
राजीव गांधी की देश सेवा को राष्ट्र ने उनके दुनिया से विदा होने के बाद स्वीकार करते हुए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया, जिसे श्रीमती सोनिया गांधी ने 6 जुलाई, 1991 को अपने पति की ओर से ग्रहण किया.

राजीव गांधी अपने विरोधियों की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे. साल 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या कर दी गई, तो एक पत्रकार ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी से संपर्क किया. उन्होंने पत्रकार को अपने घर बुलाया और कहा कि अगर वह विपक्ष के नेता के नाते उनसे राजीव गांधी के ख़िलाफ़ कुछ सुनना चाहते हैं, तो मैं एक भी शब्द राजीव गांधी के ख़िलाफ़ नहीं कहेंगे, क्योंकि राजीव गांधी की मदद की वजह से ही ज़िन्दा हैं. उन्होंने भावुक होकर कहा कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तो उन्हें पता नहीं कैसे पता चल गया कि मेरी किडनी में समस्या है और इलाज के लिए मुझे विदेश जाना है. उन्होंने मुझे अपने दफ़्तर में बुलाया और कहा कि वह उन्हें आपको संयुक्त राष्ट्र में न्यूयॉर्क जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं और उम्मीद है कि इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर आप अपना इलाज करा लेंगे. मैं न्यूयॉर्क गया और आज इसी वजह से मैं जीवित हूं. फिर वाजपेयी बहुत भावविह्वल होकर बोले कि मैं विपक्ष का नेता हूं, तो लोग उम्मीद करते हैं कि में विरोध में ही कुछ बोलूंगा. लेकिन ऐसा मैं नहीं कर सकता. मैं राजीव गांधी के बारे में वही कह सकता हूं, जो उन्होंने मेरे लिए किया.

आज़ाद भारत स्वर्गीय राजीव महत्वपूर्ण योगदान के लिए हमेशा उनका ऋणी रहेगा. कांग्रेस स्वर्गीय राजीव गांधी की पुण्यतिथि 21 मई को ’बलिदान दिवस’ के रूप में मनाती है.

Saturday, May 11, 2024

Meditation is an important daily ritual for me.

दुनिया के सभी मज़हबों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है, क्योंकि माँ के दम से ही तो हमारा वजूद है. ख़ुदा ने जब कायनात की तामीर कर इंसान को ज़मीं पर बसाने का तसव्वुर किया होगा, तो यक़ीनन उस वक़्त मां का अक्स भी उसके ज़ेहन में उभर आया होगा. जिस तरह सूरज से यह कायनात रौशन है. ठीक उसी तरह माँ से इंसान की ज़िन्दगी में उजाला बिखरा हुआ है. तपती-झुलसा देने वाली गर्मी में दरख़्त की शीतल छांव है माँ, तो बर्फ़ीली सर्दियों में गुनगुनी धूप का अहसास है मां. एक ऐसी दुआ है मां, जो अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाती है. मां, जिसकी कोख से इंसानियत जनमी. जिसके आंचल में कायनात समा जाए. जिसकी छुअन से दुख-दर्द दूर हो जाएं. जिसके होठों पर दुआएं हों. जिसके दिल में ममता हो और आंखों में औलाद के लिए इंद्रधनुषी सपने सजे हों. ऐसी ही होती है माँ. बिल्कुल ईश्वर के प्रतिरूप जैसी. ख़ुदा के बाद माँ ही इंसान के सबसे ज़्यादा क़रीब होती है.

इसीलिए सभी नस्लों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है. इस्लाम में माँ का दर्जा बहुत ऊंचा है. क़ुरआन करीम की सूरह अल अहक़ाफ़ में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि हमने इंसान को अपने मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करने की ताकीद की है. उसकी माँ ने उसे तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे तकलीफ़ के साथ जन्म भी दिया. उसके गर्भ में पलने और दूध छुड़ाने में तीस माह लग गए. अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है. आप सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने एक हदीस में इरशाद फ़रमाया है कि मैं वसीयत करता हूं कि इंसान को माँ के बारे में कि वह उसके साथ नेक बर्ताव करे. 
एक अन्य हदीस के मुताबिक़ एक शख़्स अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और सवाल किया कि ऐ अल्लाह के नबी! मेरे अच्छे बर्ताव का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारा वालिद. फिर तुम्हारे क़रीबी रिश्तेदार." 

यानी इस्लाम में माँ को पिता से तीन गुना ज़्यादा अहमियत दी गई है. इस्लाम में जन्म देने वाली माँ के साथ-साथ दूध पिलाने और परवरिश करने वाली माँ को भी ऊंचा दर्जा दिया गया है. इस्लाम में इबादत के साथ ही अपनी माँ के साथ नेक बर्ताव करने और उसकी ख़िदमत करने का भी हुक्म दिया गया है. कहा जाता है कि जब तक माँ अपने बच्चों को दूध नहीं बख़्शती, तब तक उनके गुनाह भी माफ़ नहीं होते.

यहूदियों में भी माँ को सम्मान की नज़र से देखा जाता है. उनकी दीनी मान्यता के मुताबिक़ कुल 55 पैग़म्बर हुए हैं, जिनमें सात महिलाएं थीं. ईसाइयों में भी माँ को उच्च स्थान हासिल है. इस मज़हब में यीशु की माँ मदर मैरी को बहुत बड़ा रुतबा हासिल है. गिरजाघरों में ईसा मसीह के अलावा मदर मैरी की प्रतिमाएं भी विराजमान रहती हैं. यूरोपीय देशों में मदरिंग संडे मनाया जाता है. दुनिया के अन्य देशों में भी मदर डे यानी मातृ दिवस मनाने की परम्परा है. भारत में मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है. चीन में दार्शनिक मेंग जाई की माँ के जन्मदिन को मातृ दिवस के तौर पर मनाया जाता है, तो इज़राईल में हेनेरिता जोल के जन्मदिवस को मातृ दिवस के रूप में मनाकर माँ के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है. हेनेरिता ने जर्मन नाज़ियों से यहूदियों की रक्षा की थी. अमेरिका में मई के दूसरे रविवार को मदर डे मनाया जाता है. इस दिन मदर डे के लिए संघर्ष करने वाली अन्ना जार्विस को अपनी मुहिम में कामयाबी मिली थी. इंडोनेशिया में 22 दिसम्बर को मातृ दिवस मनाया जाता है. भारत में भी मदर डे पर उत्साह देखा जाता है. नेपाल में वैशाख के कृष्ण पक्ष में माता तीर्थ उत्सव मनाया जाता है.

भारत में माँ को शक्ति का रूप माना गया है. हिन्दू धर्म में देवियों को माँ कहकर पुकारा जाता है. धन की देवी लक्ष्मी, ज्ञान की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा को माना जाता है. नवरात्रों में माँ के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना का विधान है. वेदों में माँ को पूजनीय कहा गया है. महर्षि मनु कहते हैं कि दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्या होता है, सौ आचार्यों के बराबर एक पिता होता है और एक हज़ार पिताओं से अधिक गौरवपूर्ण माँ होती है. तैतृयोपनिशद्‌ में कहा गया है-मातृ देवो भव:. इसी तरह जब यक्ष ने युधिष्ठर से सवाल किया कि भूमि से भारी कौन है तो उन्होंने जवाब दिया कि माता गुरुतरा भूमे: यानी मां इस भूमि से भी कहीं अधिक भारी होती है. रामायण में राम कहते हैं कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी यानी जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है. बौद्ध धर्म में महात्मा बुद्ध के स्त्री रूप में देवी तारा की महिमा का गुणगान किया जाता है.

माँ बच्चे को नौ माह अपनी कोख में रखती है. प्रसव पीड़ा सहकर उसे इस संसार में लाती है. सारी-सारी रात जागकर उसे सुख की नींद सुलाती है. हम अनेक जनम लेकर भी माँ की कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सकते. माँ की ममता असीम है, अनंत है और अपरंपार है. माँ और उसके बच्चों का रिश्ता अटूट है. माँ बच्चे की पहली गुरु होती है. उसकी छांव तले पलकर ही बच्चा एक ताक़तवर इंसान बनता है. हर व्यक्ति अपनी माँ से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. वो कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, लेकिन अपनी माँ के लिए वो हमेशा उसका छोटा-सा बच्चा ही रहता है. माँ अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्यौछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है. माँ बनकर ही हर महिला ख़ुद को पूर्ण मानती है.

कहते हैं कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बहुत तेज़ घुड़सवारी किया करते थे. एक दिन अल्लाह ने उनसे फ़रमाया कि अब ध्यान से घुड़सवारी किया करो. जब उन्होंने इसकी वजह पूछी तो जवाब मिला कि अब तुम्हारे लिए दुआ मांगने वाली तुम्हारी माँ ज़िन्दा नहीं है. जब तक वो ज़िन्दा रहीं उनकी दुआएं तुम्हें बचाती रहीं, मगर उन दुआओं का साया तुम्हारे सर से उठ चुका है. सच, माँ इस दुनिया में बच्चों के लिए ईश्वर का ही प्रतिरूप है, जिसकी दुआएं उसे हर बला से महफ़ूज़ रखती हैं. माँ को लाखों सलाम. दुनिया की सभी माओं को समर्पित हमारा एक शेअर पेश है- 
क़दमों को माँ के इश्क़ ने सर पे उठा लिया
साअत सईद दोश पे फ़िरदौस आ गई
(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में सम्पादक हैं)

माँ, तुझे सलाम…

उसने कभी मां को नहीं देखा था. उसने ज़मीन पर मां की तस्वीर बनाई और उसकी गोद में सो गई.
इराक़ी यतीमख़ाने में एक मासूम यतीम बच्ची की तस्वीर.

माँ, तुझे सलाम…
फ़िरदौस ख़ान 
दुनिया के सभी मज़हबों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है, क्योंकि माँ के दम से ही तो हमारा वजूद है. ख़ुदा ने जब कायनात की तामीर कर इंसान को ज़मीं पर बसाने का तसव्वुर किया होगा, तो यक़ीनन उस वक़्त मां का अक्स भी उसके ज़ेहन में उभर आया होगा. जिस तरह सूरज से यह कायनात रौशन है. ठीक उसी तरह माँ से इंसान की ज़िन्दगी में उजाला बिखरा हुआ है. तपती-झुलसा देने वाली गर्मी में दरख़्त की शीतल छांव है माँ, तो बर्फ़ीली सर्दियों में गुनगुनी धूप का अहसास है मां. एक ऐसी दुआ है मां, जो अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाती है. मां, जिसकी कोख से इंसानियत जनमी. जिसके आंचल में कायनात समा जाए. जिसकी छुअन से दुख-दर्द दूर हो जाएं. जिसके होठों पर दुआएं हों. जिसके दिल में ममता हो और आंखों में औलाद के लिए इंद्रधनुषी सपने सजे हों. ऐसी ही होती है माँ. बिल्कुल ईश्वर के प्रतिरूप जैसी. ख़ुदा के बाद माँ ही इंसान के सबसे ज़्यादा क़रीब होती है.

इसीलिए सभी नस्लों में माँ को बहुत अहमियत दी गई है. इस्लाम में माँ का दर्जा बहुत ऊंचा है. क़ुरआन करीम की सूरह अल अहक़ाफ़ में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि हमने इंसान को अपने मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करने की ताकीद की है. उसकी माँ ने उसे तकलीफ़ के साथ उठाए रखा और उसे तकलीफ़ के साथ जन्म भी दिया. उसके गर्भ में पलने और दूध छुड़ाने में तीस माह लग गए. अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है. आप सलल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने एक हदीस में इरशाद फ़रमाया है कि मैं वसीयत करता हूं कि इंसान को माँ के बारे में कि वह उसके साथ नेक बर्ताव करे. 
एक अन्य हदीस के मुताबिक़ एक शख़्स अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और सवाल किया कि ऐ अल्लाह के नबी! मेरे अच्छे बर्ताव का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारी माँ.” उसने कहा कि फिर कौन? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “तुम्हारा वालिद. फिर तुम्हारे क़रीबी रिश्तेदार." 


यानी इस्लाम में माँ को पिता से तीन गुना ज़्यादा अहमियत दी गई है. इस्लाम में जन्म देने वाली माँ के साथ-साथ दूध पिलाने और परवरिश करने वाली माँ को भी ऊंचा दर्जा दिया गया है. इस्लाम में इबादत के साथ ही अपनी माँ के साथ नेक बर्ताव करने और उसकी ख़िदमत करने का भी हुक्म दिया गया है. कहा जाता है कि जब तक माँ अपने बच्चों को दूध नहीं बख़्शती, तब तक उनके गुनाह भी माफ़ नहीं होते.

यहूदियों में भी माँ को सम्मान की नज़र से देखा जाता है. उनकी दीनी मान्यता के मुताबिक़ कुल 55 पैग़म्बर हुए हैं, जिनमें सात महिलाएं थीं. ईसाइयों में भी माँ को उच्च स्थान हासिल है. इस मज़हब में यीशु की माँ मदर मैरी को बहुत बड़ा रुतबा हासिल है. गिरजाघरों में ईसा मसीह के अलावा मदर मैरी की प्रतिमाएं भी विराजमान रहती हैं. यूरोपीय देशों में मदरिंग संडे मनाया जाता है. दुनिया के अन्य देशों में भी मदर डे यानी मातृ दिवस मनाने की परम्परा है. भारत में मई के दूसरे रविवार को मातृ दिवस मनाया जाता है. चीन में दार्शनिक मेंग जाई की माँ के जन्मदिन को मातृ दिवस के तौर पर मनाया जाता है, तो इज़राईल में हेनेरिता जोल के जन्मदिवस को मातृ दिवस के रूप में मनाकर माँ के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है. हेनेरिता ने जर्मन नाज़ियों से यहूदियों की रक्षा की थी. अमेरिका में मई के दूसरे रविवार को मदर डे मनाया जाता है. इस दिन मदर डे के लिए संघर्ष करने वाली अन्ना जार्विस को अपनी मुहिम में कामयाबी मिली थी. इंडोनेशिया में 22 दिसम्बर को मातृ दिवस मनाया जाता है. भारत में भी मदर डे पर उत्साह देखा जाता है. नेपाल में वैशाख के कृष्ण पक्ष में माता तीर्थ उत्सव मनाया जाता है.


भारत में माँ को शक्ति का रूप माना गया है. हिन्दू धर्म में देवियों को माँ कहकर पुकारा जाता है. धन की देवी लक्ष्मी, ज्ञान की देवी सरस्वती और शक्ति की देवी दुर्गा को माना जाता है. नवरात्रों में माँ के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना का विधान है. वेदों में माँ को पूजनीय कहा गया है. महर्षि मनु कहते हैं कि दस उपाध्यायों के बराबर एक आचार्या होता है, सौ आचार्यों के बराबर एक पिता होता है और एक हज़ार पिताओं से अधिक गौरवपूर्ण माँ होती है. तैतृयोपनिशद्‌ में कहा गया है-मातृ देवो भव:. इसी तरह जब यक्ष ने युधिष्ठर से सवाल किया कि भूमि से भारी कौन है तो उन्होंने जवाब दिया कि माता गुरुतरा भूमे: यानी मां इस भूमि से भी कहीं अधिक भारी होती है. रामायण में राम कहते हैं कि जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी यानी जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है. बौद्ध धर्म में महात्मा बुद्ध के स्त्री रूप में देवी तारा की महिमा का गुणगान किया जाता है.

माँ बच्चे को नौ माह अपनी कोख में रखती है. प्रसव पीड़ा सहकर उसे इस संसार में लाती है. सारी-सारी रात जागकर उसे सुख की नींद सुलाती है. हम अनेक जनम लेकर भी माँ की कृतज्ञता प्रकट नहीं कर सकते. माँ की ममता असीम है, अनंत है और अपरंपार है. माँ और उसके बच्चों का रिश्ता अटूट है. माँ बच्चे की पहली गुरु होती है. उसकी छांव तले पलकर ही बच्चा एक ताक़तवर इंसान बनता है. हर व्यक्ति अपनी माँ से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. वो कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, लेकिन अपनी माँ के लिए वो हमेशा उसका छोटा-सा बच्चा ही रहता है. माँ अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर न्यौछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है. माँ बनकर ही हर महिला ख़ुद को पूर्ण मानती है.

कहते हैं कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम बहुत तेज़ घुड़सवारी किया करते थे. एक दिन अल्लाह ने उनसे फ़रमाया कि अब ध्यान से घुड़सवारी किया करो. जब उन्होंने इसकी वजह पूछी तो जवाब मिला कि अब तुम्हारे लिए दुआ मांगने वाली तुम्हारी माँ ज़िन्दा नहीं है. जब तक वो ज़िन्दा रहीं उनकी दुआएं तुम्हें बचाती रहीं, मगर उन दुआओं का साया तुम्हारे सर से उठ चुका है. सच, माँ इस दुनिया में बच्चों के लिए ईश्वर का ही प्रतिरूप है, जिसकी दुआएं उसे हर बला से महफ़ूज़ रखती हैं. माँ को लाखों सलाम. दुनिया की सभी माओं को समर्पित हमारा एक शेअर पेश है- 
क़दमों को माँ के इश्क़ ने सर पे उठा लिया
साअत सईद दोश पे फ़िरदौस आ गई

(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में सम्पादक हैं)

Thursday, May 2, 2024

फ़िरदौस ख़ान को मिला बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड

 

स्टार न्यूज़ एजेंसी  
जल संरक्षण के लिए समर्पित विश्व विख्यात संस्था ‘ड्रॉप डेड फ़ाउंडेशन’ ने फ़िरदौस ख़ान को उनके पानी बचाने के लिए किये जा रहे उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया है. संस्था ने उन्हें साल 2023-2024 के बेस्ट वालंटियर अवॉर्ड से नवाज़ा है. 

ग़ौरतलब है कि सुप्रसिद्ध साहित्यकार, चित्रकार, कार्टूनिस्ट और पर्यावरणविद आबिद सुरती ने साल 2007 में मुम्बई में ड्रॉप डेड फ़ाउंडेशन की शुरुआत की थी. इसकी टैगलाइन है- सेव एवरी ड्रॉप ऑर ड्रॉप डेड. इसका मक़सद जल संरक्षण को बढ़ावा देना है. इस मुहिम को देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में सराहा जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र भी इसे तवज्जो दे रहा है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के पूर्व कार्यकारी निदेशक एरिक सोल्हेम ने भी कई बार इसकी तारीफ़ की है. 

मार्च 2008 में फ़िल्म निर्माता शेखर कपूर जल संरक्षण पर फ़िल्म बना रहे थे. उन्होंने अपनी वेबसाइट पर इस मुहिम की ख़ूब तारीफ़ की थी. सुप्रसिद्ध अभिनेता शाहरुख़ ख़ान ने भी इसे सराहा है. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने भी जल संरक्षण की इस मुहिम की सराहना करते हुए इसकी टीम को मुबारकबाद दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मुहिम की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए इस पर ‘वाटर वारियर’ नामक फ़िल्म बनवाई है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी इससे बहुत मुतासिर हैं. उन्होंने आबिद सुरती साहब को दिल्ली बुलाया और उनके वॉटर मॉडल को अपने राज्य में लागू करने का फ़ैसला किया. देश की राजधानी दिल्ली भी जल संकट से जूझ रही है.
  
फ़िरदौस ख़ान कहती हैं कि ज़मीन का दो तिहाई हिस्सा पानी से घिरा हुआ है, लेकिन इसमें से पीने लायक़ पानी बहुत कम यानी सिर्फ़ ढाई फ़ीसद है. इस पानी का भी दो तिहाई हिस्सा बर्फ़ के रूप में है. दुनियाभर में जितना पानी है, उसका महज़ 0.08 फ़ीसद हिस्सा ही इंसानों के लिए मुहैया है. इंसानों की ख़ामियों की वजह से ये पानी भी लगातार दूषित होता जा रहा है. कारख़ानों और नालों की गंदगी नदियों के पानी को ज़हरीला बना रही है. पहाड़ों में मुसलसल खनन होने और जंगलों को काटने की वजह से बारिश पर असर पड़ रहा है. जब हम पानी पैदा नहीं कर सकते, तो फिर हमें इसे बर्बाद करने का क्या हक़ है?

वे कहती हैं कि जो रब से मुहब्बत करता है, वह उसकी क़ुदरत के ज़र्रे-ज़र्रे से भी मुहब्बत करता है. और जिस चीज़ से मुहब्बत की जाती है, तो उसकी हिफ़ाज़त करना भी लाज़िमी हो जाता है. वैसे भी पानी की हर बूंद अनमोल है. पानी के बिना ज़िन्दगी का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता. हर जानदार चीज़ को पानी की ज़रूरत होती है. इसलिए पानी को फ़िज़ूल न बहायें, क्योंकि इससे कितने ही लोगों के गले तर हो सकते हैं.

वे बताती हैं कि हमारे देश की ज़्यादातर आबादी धार्मिक है. इसलिए जल संरक्षण का संदेश देने के लिए विभिन्न धर्मों के पोस्टर बनवाए गये हैं. हर धार्मिक स्थल पर रोज़ाना सैकड़ों से लेकर हज़ारों लोग आते हैं. वे इन संदेशों को बार-बार देखेंगे, तो इस पर विचार करेंगे और पानी बचाने पर ध्यान देंगे. मुम्बई के बाद दिल्ली और उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों पर भी जल संरक्षण का संदेश छपे पोस्टर लगाए जा रहे हैं. इस मुहिम को भरपूर जनसमर्थन मिल रहा है. आबिद सुरती साहब चाहते हैं कि ये मुहिम दुनिया के हर कोने तक पहुंचे. वे लोगों से अपील करती हैं कि वे इस मुहिम में बढ़ चढ़कर शिरकत करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को जल संकट से न जूझना पड़े.

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दिल्ली से प्रकाशित दैनिक मयूर संवाद  
2 मई 2024
        

दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हमारा मैट्रो   
2 मई 2024

दिल्ली से प्रकाशित दैनिक क़लम की दुनिया   
2 मई 2024




दैनिक स्वदेश लखनऊ संस्करण 
2 मई 2024