Tuesday, September 29, 2009

हिन्दू शायर ने लिखा था पाक का क़ौमी तराना


फ़िरदौस ख़ान
पाकिस्तान में इन दिनों वहां के पहले क़ौमी तराने (राष्ट्रगान) बहस का मुद्दा बना हुआ है। पाक के अंग्रेजी अखबार ‘डान’ में सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका बीना सरवर ने इस बारे में लिखा है, ‘जिन्ना के विचारों से पीछा छुड़ाने की सोच के तहत ही आज़ाद की नज़्म को तुच्छ मान लिया गया था, लेकिन अपने प्रतीकों की वजह से वह नज़्म क़ाबिले-गौर है। इसे फिर से स्थापित किया जाए और कम से कम राष्ट्रीय गीत का दर्जा देकर सम्मान दिया जाए, ताकि हमारे बच्चे इससे सीख सकें. क्योंकि भारतीय बच्चे इक़बाल की कृति... सारे जहां से अच्छा... से सीख रहे हैं।’

ग़ौरतलब है कि 1950 में हाफ़िज़ जालंधरी की नज़्म को क़ौमी तराने का दर्जा देने से पहले जिस शायर को यह सम्मान दिया गया था उनका नाम था जगन्नाथ आज़ाद। पाकिस्तान के क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्नाह ने लाहौर में रहने वाले उर्दू के शायर तिलोक चंद के बेटे जगन्नाथ आज़ाद को 1947 में देश के रूप में अलग होने से कुछ ही दिनों पहले पाकिस्तान का राष्ट्रगान लिखने का ज़िम्मा सौंपा था।

नया देश बनने के साथ ही देश के लिए विभिन्न चिन्ह और प्रतीक चुनने का काम भी शुरू हुआ. देश का झंडा पहले ही तैयार हो चुका था, लेकिन क़ौमी तराना नहीं बना था. आज़ादी के वक़्त पाकिस्तान के पास कोई क़ौमी तराना नहीं था. इसलिए जब भी परचम फहराया जाता तो " पाकिस्तान ज़िन्दाबाद, आज़ादी पैन्दाबाद" के नारे लगते थे.

क़ायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्नाह को यह मंज़ूर नही था. वे चाहते थे कि पाकिस्तान के क़ौमी तराने को रचने का काम जल्द से जल्द पूरा हो. उनके सलाहकारों ने उन्हें कई जानेमाने उर्दू शायरों के नामों पर गौर करने को कहा, लेकिन जो बेहतरीन क़ौमी तराना रच सकते थे, लेकिन जिन्नाह दुनिया के सामने पाकिस्तान की धर्मनिरपेक्ष छवि स्थापित करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने लाहौर के उर्दू शायर जगन्नाथ आज़ाद से कहा ''मैं आपको पांच दिन का ही वक़्त दे सकता हूं, आप पाकिस्तान के लिए क़ौमी तराना लिखें". हालांकि पाकिस्तान के कई नेताओं को इससे जिन्नाह का यह क़दम अच्छा नहीं लगा, लेकिन जिन्नाह की मर्ज़ी के सामने किसी का नहीं चली. वे बेबस थे.

आखिरकार जगन्नाथ आज़ाद ने पांच दिनों के अंदर क़ौमी तराना तैयार कर लिया जो जिन्नाह को बहुत पसंद आया. क़ौमी तराना के बोल थे-

ऐ सरज़मीं ए पाक ज़र्रे तेरे हैं आज सितारों से तबनक रोशन है कहकशां से कहीं आज तेरी खाक़...

जिन्नाह ने इसे क़ौमी तराने के रूप मे मान्यता दी और उनकी मौत तक यही गीत क़ौमी तराना बना रहा. सितंबर 1948 में जिन्ना की मौत के महज़ छह माह बाद ही इस क़ौमी तराने की मान्यता भी ख़त्म कर दी गई. किस्तान सरकार ने एक राष्ट्र-गीत कमेटी बनाई और जाने माने शायरों से क़ौमी तराने के नमूने मंगवाए, लेकिन कोई भी गीत क़ौमी तराने के लायक़ नहीं बन पा रहा था. आखिरकार पाकिस्तान सरकार ने 1950 मे अहमद चागला द्वारा रचित धुन को राष्ट्रीय धुन के तौर पर मान्यता दी. उसी वक़्त ईरान के शाह पाकिस्तान की यात्रा पर आए और उन्हें यह धुन बेहद पसंद आई. यह धुन पाश्चात्य ज़्यादा लगती थी, लेकिन राष्ट्र-गीत कमेटी का मानना था कि इसका यह स्वरूप पाश्चात्य समाज में ज़्यादा पसंद किया जाएगा.

सन 1954 में उर्दू के मशहूर शायर हाफ़िज़ जालंधरी ने इस धुन के आधार पर एक गीत की रचना की. यह गीत राष्ट्र-गीत कमेटी के सदस्यों को पसंद भी आया. और आखिरकार हाफ़िज़ जालंधरी का लिखा गीत पाकिस्तान का क़ौमी तराना बन गया. इस क़ौमी तराने के बोल हैं-

पाक सरज़मी शाद बाद, किश्वरे हसीँ शाद बाद, तु निशाने अज़्मे आलीशान अर्ज़े पाकिस्तान मर्कज़े हसीँ शाद बाद...
हाफ़िज़ जालंधरी के इस क़ौमी तराने के बाद जगन्नाथ आज़ाद का गीत भुला दिया गया. बाद में जगन्नाथ आज़ाद बाद में भारत चले आए थे.

12 Comments:

Saleem Khan said...

सही लिखा आपने, यह सत्य है कि आजाद जी ने ही पकिस्तान का पहला कौमी तराना लिखा था....

-सलीम खान
"हमारी अन्जुमन"- World's First and Only Islamic Community Blog in Hindi
(http://hamarianjuman.blogspot.com)

संजय बेंगाणी said...

धर्म निरपेक्षता के ढ़ोंग के तहत एक हिन्दु से लिखवाया था, मगर कट्टरपंथी कौम इसे सह न सकी. आप यह न लिखें कि एक हिन्दु से लिखवाया. यह लिखें की उस पर कायम क्यों न रह सके. एक भारत था जिसने मुसलमानों के विरोध में अपने सच्चे राष्ट्रगीत वंन्देमातरम को त्याग दिया.

वन्दे ईश्वरम vande ishwaram said...

अच्‍छी जानकारी, यह पढ कर हमें बहुत प्रसन्‍ता हुई, अल्‍लाह आपकी हिम्‍मत बनाये रखे,

ओम आर्य said...

सार्थक पोस्ट .........एक अच्छी जानकारी दी आपने पोस्ट के माध्यम से .........

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bilkul sahi likha hai aapne............ and very interesting...........

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

bilkul sahi likha hai aapne............ and very interesting...........

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Saleem Khan said...

बधाई हो फिरदौस जी,

आपका लेख अमर उजाला में आज छपा है...

सलीम खान
"हमारी अन्जुमन" (विश्व का प्रथम एवम् एकमात्र हिंदी इस्लामी सामुदायिक चिट्ठा)
HTTP://HAMARIANJUMAN.BLOGSPOT.COM

खुर्शीद अहमद said...

बहुत सही लिखा आपने, मैंने भी पहले कहीं सरसरी तौर पे कहीं पढा था आज आपके ब्लॉग से यह मालूम चल गया.

Unknown said...

फिरदौस जी, आपके ब्लॉग पर पहली मर्तबा आया, काफ़ी अच्छा लिखती हैं आप.

Saleem Khan said...

बैगनी शर्ट वाले भईया से पूर्णतया असहमत

Science Bloggers Association said...

जानकर प्रसन्नता हुई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

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