Wednesday, September 29, 2010

अफ़वाहें... जंगल में आग की तरह फैलती हैं...

फ़िरदौस ख़ान
अफ़वाहें... जंगल में  आग की तरह फैलती हैं... मौजूदा वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए इससे बचकर रहना बेहद ज़रूरी है...क्योंकि अफ़वाहें और दहशत दोनों की ही प्रतिक्रियाएं संक्रामक होती हैं. अफ़वाहें महज़ एक फ़ीसदी लोग ही फैलाते हैं. ज़्यादातर अफ़वाहें तथ्यों से परे होती हैं. अफ़वाहों के बारे में सच्चाई को जानने का सबसे बढ़िया तरीक़ा यह है कि बताने वाले से पूछना चाहिए ''आपको किसने कहा?'' इसका जवाब किसी एक का नाम होगा. जब तक उसका नाम न सुन लें और उसकी सच्चाई का पता न कर लें तब तक उस पर भरोसा न करें. मानव की यह प्रवृत्ति होती है कि वह जितना सुनता है, उससे कहीं ज़्यादा वह बोलता है.
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल के मुताबिक़ अफ़वाहें वैज्ञानिक होती है और ये 100 बंदरों की गाथा पर आधारित होती हैं. एक बार जब यह आबादी में फैल जाती हैं तो फिर यह जंगल में आग की तरह फैलती हैं. 1000 लोगों की भीड़ में महज़ 10 लोगों को अफ़वाह फैलाने की ज़रूरत होती है और इसके साथ दहशत भी फैल सकती हैं. युध्द जैसी स्थिति में लोगों में अफ़वाह फैलाना आसान होता है और इससे दहशत भी बढ़ती है साथ ही एक अजीब तरह का खौफ़ सताने लगता है.
दहशत के आधात को परिभाषित नहीं किया जा सकता. साथ ही इससे निपटने के लिए भी ज़रूरी उपाय तय नहीं हैं. शरीर में अचानक से जान जाने की प्रतिक्रिया जैसी स्थिति सामने आ जाती है. दहशत के आघात से आमतौर पर दुर्भाग्यवश हार्ट अटैक जैसी स्थिति होती है और इससे बहुत ज़्यादा खौफ़ हो जाता है. एन्जाइटी भी कभी-कभी दहशत आघात की वजह बन सकती है और बहुत से लोग जो एन्जाइटी की गिरफ़्त में होते हैं, वे दहशत के आघात का शिकार बन सकते हैं.
एन्जाइटी एक अनुभव होता है जिसको व्यक्ति एक समय विशेष में या अन्य तरह से ग्रसित हो जाता है. यह क्षण भावुक होता है और इसमें अधिकतर लोग खतरे का अनुभव करते हैं। दिल की धड़कन बढ़ जाती है, मांस पेशियां तनाव में आ जाती हैं, व्यक्ति ज़िन्दगी से जूझने के लिए तैयार हो जाता है. इसे '' फाइट या फ्लाइट'' प्रतिक्रिया कहते हैं और ऐसे में व्यक्ति को अतिरिक्त ताक़त की ज़रूरत होती है, जिससे खतरनाक स्थिति से बचाया जा सके. वहीं दूसरी ओर, एंजाइटी डिसआर्डर की स्थिति तब होती है जब इसके लक्षण दिखाई दें, लेकिन ''फाइट या फ्लाइट'' प्रतिक्रिया का अनुभव स्पष्ट नहीं होता.
दहशत का अटैक अचानक से आता है और इसमें किसी भी तरह के कोई चेतावनी सूचक भी नहीं होते और इसकी कोई ख़ास वजह भी नहीं होती. जितना आप अनुभव करते हैं, उससे कहीं ज़्यादा इसकी क्षमता हाती है जैसा कि अनुभवी लोग खुलासा करते हैं. दहशत के आघात के लक्षणों में शामिल हैं-

* दिल की धड़कन बढ़ जाना
* सांस लेने में दिक्कत या जितनी आपको हवा चाहिए उतनी न मिल पा रही हो
* खौफ़ जो कि शरीर को शक्तिहीन करने लगता है
* 'ट्रम्बलिंग,' पसीना आना, कांपना
* 'चोकिंग,' सीने में दर्द होना
* अचानक से गरम या बहुत ठंडे का अहसास होना
* हाथ की या पैर की उंगलियों का सुन्न हो जाना
* एक ऐसा डर जिससे आपके सामने मौत का मंज़र दिखे
इन लक्षणों के अलावा दहशत के आघात को निम्न परिस्थितियों में चिन्हित किया गया है:
* यह अचानक होता है, इसके लिए कोई विशेष स्थिति नहीं होती और अकसर इसका कोई जोड़ या किसी से संबंध नहीं होता है.
* यह कुछ मिनटों में गुज़र जाता है, शरीर ''फाइट या फ्लाइट'' को लम्बे समय तक नहीं झेल सकता. लेकिन बार-बार अटैक घंटों तक असर डाल सकता है.

 दहशत का आघात ख़तरनाक नहीं होता, लेकिन इससे बड़े पैमाने पर खौफ़ छा जाता है क्योंकि इसमें व्यक्ति 'क्रेजी' और 'नियंत्रण से बाहर' का अनुभव करता है. पैनिक डिसआर्डर से खौफ़ व्याप्त हो जाता है, क्योंकि पैनिक अटैक से इसका संबंध है और इसकी वजह से अन्य तरह की जटिलताएं जैसे फोबिया, डिप्रेशन, सब्स्टेंस एब्यूज, चिकित्सीय जटिलताएं और यहां तक की आत्महत्या भी शामिल है. इसका असर हल्के या सामाजिक असंतुलन तक शामिल होता है. इसलिए बेहतर है कि अफ़वाहों को फैलने से रोका जाए.

9 Comments:

Satish Saxena said...

बढ़िया जानकारी के लिए आभार !

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

नमस्कार....

P.N. Subramanian said...

बहुत सुन्दर. बड़ी हंसी आई. इसके लिए आभार.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

बहुत अच्छी...
लाभदायक...
समसामायिक जानकारी.

प्रवीण पाण्डेय said...

सच है, इनसे बचा जाये।

amar jeet said...

बहुत अच्छी जानकारी दी आपने वर्तमान में देस जिस दौर से गुजर रहा है ऐसे में इस लेख की उपयोगिता है आपने बहुत ही साधारण और सामान्य लहजे में अपनी बात को प्रस्तुत किया है सराहनीय है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छी जानकारी देता लेख ..

arvind said...

jaankariyon se bharaa huaa lekh...bahut badhiya.

दिगम्बर नासवा said...

अफवाहों से क्या क्या हो जाता है ... बहुत ही सार्थका लेख ...

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