Monday, May 8, 2017

ठंडा पानी और बर्फ़...

सब इंसानों की बुनियादी ज़रूरतें एक जैसी ही हैं... लेकिन सबके पास अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के साधन नहीं हैं... दुनिया में कितने ही लोग ऐसे हैं, जिनके पास ज़रूरत से ज़्यादा, यहां तक कि बेहिसाब चीज़ें हैं... बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनके पास अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने लाय़क भी चीज़ें नहीं हैं... वे महरूम रह जाते हैं... अगर हम एक-दूसरे की मदद करें, इंसान के नाते... ये मानकर कि ये हम पर फ़र्ज़ है, और सामने वाले का ये हक़ है... तो इसमें कोई दो राय नहीं कि इससे जहां हमें दिली सुकून मिलेगा, वहीं सामने वाले की ज़रूरत पूरी हो जाएगी... ऐसा करके हम किसी पर कोई अहसान नहीं करेंगे, बल्कि ये सामने वाला का ही अपनापन होगा कि वो हमारी मदद को क़ुबूल करके हमें ख़ुशी देगा...

बात किसी को रुपये-पैसे की मदद या कोई क़ीमती चीज़ देने की नहीं है... हम अपनी हैसियत के हिसाब से जो कर सकते हैं, वो हमें करना ही चाहिए... मिसाल के तौर पर...

हमारे घर के पास एक सरकारी स्कूल है... अकसर उसका नल ख़राब रहता है... स्कूल में पीने साफ़ पानी का भी कोई इंतज़ाम नहीं है... पानी की जो टंकी है, उसकी भी सफ़ाई नहीं होती... तपती गरमी के मौसम में बच्चों को बहुत परेशानी होती है... हमने अपने घर के आगे सड़क पर एक नल लगवाया... पहले घर के अंदर नल लगा था, लेकिन उसमें रेत आने लगा था, कई बार ठीक कराने के बावजूद जब रेत आना बंद नहीं हुआ, तो उसे बंद करवाकर बाहर नल लगवा लिया... आसपास से बहुत लोग पानी भरने आते थे...  स्कूल के बच्चे भी यहां आने लगे... मगर कुछ वक़्त बाद यह नल भी खराब हो गया... एक दिन अम्मी ने बच्चों को मायूस लौटते देख, उनसे रुकने को कहा और फ़्रिज से ठंडा पानी लाकर उन्हें पिला दिया... अब हर रोज़ बच्चे आने लगे... स्कूल के अलावा सड़कों पर काग़ज़ बीनने वाले बच्चे भी दरवाज़ा खटखटाकर पानी और खाना मांग लेते हैं...

हमारी चार साल की भतीजी भी जब बच्चों को देखती है, तो पानी की बोतल लेकर दौड़ती है... कहते हैं कि बच्चे अपने बड़ों से ही सीखते हैं... हमारी भी एक आदत रही है, कहीं से आते हैं, तो आटो या रिक्शेवाले से पानी को ज़रूर पूछते हैं...

इलाक़े के एक-दो घरों के लोग बर्फ़ भी ले जाते हैं... हालांकि अब घर-घर फ़्रिज हैं, लेकिन अब भी सब लोगों के पास फ़्रिज नहीं हैं... पहले तो ऐसा बहुत होता था कि एक के घर फ़्रिज आया, तो आसपास के लोग बर्फ़ ले जाते थे...
अम्मी जान कई बर्तनों में बर्फ़ जमाती हैं, ताकि किसी को को ख़ाली हाथ न लौटना पड़े... एक रोज़ अम्मी से एक पड़ौसन ने कहा कि हमारे बस का नहीं ये सब... कौन रोज़-रोज़ अपने दरवाज़े पर भीड़ लगाए... हम तो साफ़ मना कर देते हैं... ख़ैर, ये उनकी अपनी सोच है... ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है...

ये सब लिखने का हमारा मक़सद ये है कि अगर हमारे आसपास ऐसे लोग हैं, जिनकी हम किसी भी तरह कोई मदद कर सकते हैं, तो हमें उनकी मदद करनी चाहिए...

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