Wednesday, August 16, 2017

इंदिरा कैंटीन : भूखों को भोजन देने की पहल

फ़िरदौस ख़ान
जिस देश में भूख से लोगों की मौतें होती हों, जहां करोड़ों लोग आज भी भूखे पेट सोते हों, ऐसे देश में सस्ता खाना मुहैया कराना बेहद ज़रूरी है. कर्नाटक सरकार ने राज्य को भूखमरी मुक्त बनाने के मक़सद से लोगों को सस्ता भोजन मुहैया कराने की एक सराहनीय योजना शुरू की है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आज बेंगलुरु के जयनगर वॉर्ड में इंदिरा कैंटीन का उद्घाटन किया. तमिलनाडु के अम्मा कैंटीन के तर्ज़ पर बने इस इंदिरा कैंटीन में 5 रुपये में नाश्ता और 10 रुपये में दिन और रात का खाना मिलेगा.  राहुल गांधी ने कर्नाटक में कांग्रेस सरकार की इस पहल को ‘सभी को भोजन’ के कांग्रेस के संकल्प की ओर एक और क़दम बताया.  उन्होंने कहा कि बेंगलुरु में बहुत से लोग बड़े घरों में रहते हैं और महंगी कारों से चलते हैं. उनके लिए खाना बड़ा मुद्दा नहीं है, लेकिन यहां लाखों लोग ऐसे हैं, जिनके पास ज़्यादा पैसा नहीं है. इंदिरा कैंटीन इनकी सेवा करेगी. हम चाहते हैं कि शहर के सबसे ग़रीब और कमज़ोर तबक़े के लोग जानें कि वे भूखे नहीं रहने वाले. क़ैंटीन के भोजन की गुणवत्ता को परखने के लिए  उद्घाटन के बाद राहुल गांधी ने कैंटीन जाकर खाना भी खाया.

ग़ौरतलब है कि इस योजना के शुरुआती चरण में 101 कैंटीन खोली गई हैं. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का कहना है कि इस कैंटीन का शहर के ग़रीब पर पड़े अच्छे और बुरे प्रभाव का अध्ययन कर राज्य के अन्य शहरों और क़स्बों में भी इसी तरह के कैंटीन खोले जाएंगे. चालू वित्त वर्ष 2017-18 में सभी 198 वार्डों में कैंटीन चलाने के लिए 100 करोड़ रुपये के बजट में प्रावधान किया गया है. राज्य में हर महीने ग़रीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) को 'अन्न भाग्य योजना' के 7 किलोग्राम चावल मुफ़्त दिया जा रहा है, ताकि वे दो वक़्त भोजन कर सकें.

क़ाबिले-ग़ौर है कि देश की 32 फ़ीसद आबादी ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही है. हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो फ़सल काटे जाने के बाद खेत में बचे अनाज और बाज़ार में पड़ी गली-सड़ी सब्ज़ियां बटोर कर किसी तरह उससे अपनी भूख मिटाने की कोशिश करते हैं. महानगरों में भी भूख से बेहाल लोगों को कू़ड़ेदानों में से रोटी या ब्रेड के टुकड़ों को उठाते हुए देखा जा सकता है. रोज़गार की कमी और ग़रीबी की मार की वजह से कितने ही परिवार चावल के कुछ दानों को पानी में उबाल कर पीने को मजबूर हैं. एक तरफ़ गोदामों में लाखों टन अनाज सड़ता है, तो दूसरी तरफ़ लोग भूख से मर रहे होते हैं. कितने अफ़सोस की बात है कि देश में हर रोज़ क़रीब सवा आठ करोड़ लोग भूखे सोते हैं, जबकि हर साल लाखों टन अनाज सड़ जाता है. कुछ अरसा पहले अनाज की बर्बादी पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख़ अपनाते हुए केंद्र सरकार से कहा था कि गेहूं को सड़ाने से अच्छा है, उसे ज़रूरतमंद लोगों में बांट दिया जाए. कोर्ट ने इस बात पर भी हैरानी जताई थी कि एक तरफ़ इतनी बड़ी तादाद में अनाज सड़ रहा है, वहीं लगभग 20 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार हैं. पिछले काफ़ी अरसे से हर साल लाखों टन गेहूं बर्बाद हो रहा है. बहुत-सा गेहूं खुले में बारिश में भीगकर सड़ जाता है, वहीं गोदामों में रखे अनाज का भी 15 फ़ीसद हिस्सा हर साल ख़राब हो जाता है. इतना ही नहीं, कोल्ड स्टोरेज के अभाव में हर साल हज़ारों करोड़ रुपये की सब्ज़ियां और फल भी ख़राब हो जाते हैं. अनाज ज़्यादा है और भंडारण क्षमता कम है. ऐसे में खुले में रखा अनाज खराब हो जाता है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक़, देश में 46 फ़ीसद बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. यूनिसेफ़ द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के कुल कुपोषणग्रस्त बच्चों में से एक तिहाई आबादी भारतीय बच्चों की है. भारत में पांच करोड़ 70 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. विश्व में कुल 14 करोड़ 60 लाख बच्चे कुपोषणग्रस्त हैं.

केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने खाद्यान्न उत्पादन में आई स्थिरता एवं बढ़ती जनसंख्या के खाद्य उपभोग को ध्यान में रखते हुए अगस्त 2007 में केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना शुरू की थी. इसका मक़सद गेहूं, चावल एवं दलहन की उत्पादकता में वृद्धि लाना है, ताकि देश में खाद्य सुरक्षा की हालत को बेहतर किया जा सके. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत चावल की पैदावार बढ़ाने के लिए 14 राज्यों के 136 ज़िलों को चुना गया है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं. गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए 9 राज्यों के 141 ज़िलों को चुना गया. इन राज्यों में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र एवं पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इसी तरह दलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए 14 राज्यों के 171 ज़िलों को चुना गया. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इस योजना के तहत इन ज़िलों के 20 मिलियन हेक्टेयर धान के क्षेत्र, 13 मिलियन हेक्टेयर गेहूं के क्षेत्र और 4.5 मिलियन हेक्टेयर दलहन के क्षेत्र शामिल किए गए हैं, जो धान एवं गेहूं के कुल बुआई क्षेत्र का 50 फ़ीसद है. दलहन के लिए अतिरिक्त 20 फ़ीसद क्षेत्र का सृजन किया जाएगा.

दरअसल, बढ़ती महंगाई और घटते रोज़गार ने निम्न आय वर्ग के लिए दो वक़्त की रोटी का भी संकट खड़ा कर दिया है. देश में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके घर में उसी दिन चूल्हा जलता है, जिस दिन उन्हें कोई काम मिलता है. इसलिए रोज़गार के साधन बढ़ाए जाने चाहिए.  साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सरकारी राशन की दुकानों पर लोगों को उनके हिस्से का पूरा राशन मिले. बढ़ती महंगाई पर लोग लगना भी बेहद ज़रूरी है.  बहरहाल, ज़रूरतमंदों को सस्ता भोजन मुहैया कराने की इंदिरा कैंटीन एक सराहनीय योजना है. अन्य राज्यों में भी ऐसी ही कैंटीन खोली जानी चाहिए.

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